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हिमाचल प्रदेश में जलवायु/वर्षा/हिमपात से जुडी जानकारी

हिमाचल प्रदेश में स्थलाकृति के अंतर के कारण जलवायु भिन्नता पाई जाती है। समुद्र तल से ऊंचाई, हरे-भरे वन प्रदेश ,सदा नीरा नदियां ये सभी कारक जलवायु के निर्धारण में सहायक होते है। प्रदेश के निकटवर्ती राज्य पंजाब के मैदान की अपेक्षा यहां की जलवायु कठोर है। यहां शीत ऋतू बहुत ही ठंडी होती है जिसका कारण यहाँ  वर्षा का अधिक होना है।

प्रदेश के 2000 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले प्रदेश में हिमपात होता है। अधिक ऊंचाई में हवा का तापमान जब पानी के जमाव बिंदु से नीचे गिर जाता है तो हवा में उपस्थित जल कण बर्फ के कणों में परिवर्तित हो जाते हैं। प्रदेश के लाहौल स्पीति जिला क्षेत्र में हिमपात ही जल का मुख्य स्रोत है क्योंकि इस क्षेत्र में वर्षा बहुत कम होती है। हिमाचल प्रदेश में लगभग 1,500 मीटर की ऊंचाई तक वर्षा होती है जैसे-जैसे ऊंचाई बढ़ती जाती है वैसे-वैसे वर्षा भी बढ़ती जाती है। प्रदेश के बाहरी हिस्से में जहां पवनें सरलता से प्रवेश कर जाती है, वहां अच्छी वर्षा हो जाती है। यहां की जलवायु बहुत ही ठंडी एवं स्वास्थ्यप्रद है।

महत्वपूर्ण स्मरणीय तथ्य

वर्षा की दृष्टि से हिमाचल प्रदेश को तीन भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है-

  • प्रथम, बाहरी हिमालय जिसमें 150 सेंटीमीटर से 175 सेंटीमीटर तक वर्षा होती।
  • द्वितीयक, आंतरिक हिमालय, जहां 75 सेंटीमीटर से 100 सेंटीमीटर तक वर्षा होती है।
  • तृतीय उच्च हिमालय जो लगभग 5 महीने तक बर्फ से आच्छादित रहता है।
  • प्रदेश में शिमला व धर्मशाला जिलों में क्रमश: 157 सेंटीमीटर व 297 सेंटीमीटर वर्षा होती है।
  • प्रदेश की वार्षिक वर्षा का औसत 160 सेंटीमीटर है। प्रदेश के दक्षिण के निचले भाग (450-900 मीटर) में गर्म और कम आर्द्र उष्ण कटिबंधीय दशाएँ, हल्की गर्म शीतोष्ण  (900- 1,800 मीटर) ठंडी और शीतोष्ण (1900-2400 मीटर) एवं उत्तर और पूर्व की ऊंची पर्वत श्रेणियों में कड़कड़ाती और हिमस्वी (2400- 4800 मीटर दर्शाएं पाई जाती है।
  • लाहुल-स्पीति और किन्नौर जिलों की वायु अर्द्धशुष्क पठारी प्रकार की है।
  • हिमाचल प्रदेश कर्क रेखा की उत्तरी दिशा में 7 आक्षशीय दृष्टि से उपोष्ण क्षेत्र में स्थित है।
  • पश्चिम एशिया के भू- मध्यसागरिय क्षेत्र की तरह हिमाचल प्रदेश भी गर्म समशीतोष्ण क्षेत्र में स्थित है। इसी भौगोलिक स्थिति के कारण भारत की उष्ण जलवायु या प्रभाव यहां की पहाड़ी प्रदेश की जलवायु पर पड़ता है। यही वजह है, कि इस प्रदेश में अधिक मात्रा में हिमपात व वर्षा होती है।
  • प्रदेश का आधा उत्तरी क्षेत्र ग्रीष्मकालीन मानसून की पहुंच से बाहर है। इसके आधे दक्षिणी भाग की जलवायु उतरी-पश्चिम भारत की तरह है।
  • हिमाचल प्रदेश के उत्तर-पश्चिम में चंबा पांगी से लेकर रामपुर, बुशहर तक एक सीधी रेखा तक मानसून सीमित रहता है।
  • शिमला में छह माह तक दक्षिणी हवाएं चलती है। शिमला के ऊपरी भागों में ऊंचाइयों पर ठंडी के ऊतरी हवाओं का प्रभाव रहता है।
  • प्रदेश के आधे दक्षिणी भाग में हल्की सी सर्दी और अधिक गर्मी पड़ती है।
  • प्रदेश के मध्य भाग में हल्की गर्मी और शीत ऋतु का प्रभाव रहता है और इसके उत्तर के आंतरिक भाग में कठोर शीत और हल्की ग्रीष्म ऋतु रहती है।
  • कुल्लू के आगे लाहौल स्पीति और किन्नौर की तरह वृष्टि छाया प्रभाव के कारण वर्षा की मात्रा कम हो जाती है।
  • प्रदेश में सबसे अधिक वर्षा राज्य के धर्मशाला जिले में 3,400 मिमी होती है।
  • शिमला और नूरपुर 1,500-2,000 मिमी वर्षा वाले क्षेत्र में आते हैं,
  • धर्मशाला, कांगड़ा, पालमपुर, और जोगिंद्र नगर 2,000 मिमी से अधिक वर्षा वाले क्षेत्र हैं।
  • मंडी, रामपुर, कुल्लू, केलांग की और बढ़ने पर वर्षा क्रमिक ढंग से कम होने लगती है। लाहौल स्पीति के अधिकांश भागों में 500 मिमी से भी अधिक वर्षा होती है।
  • प्रदेश में जून या जुलाई में मानसून आ जाता है। वर्षा के बाद पूरा क्षेत्र हरा-भरा (हरियाली से सौंदर्यपूर्ण) हो जाता है। नदियों में जल बढ़ने लगता है। वातावरण तरोताजा हो जाता है।
  • प्रदेश में जुलाई, अगस्त का महीना सबसे अधिक वर्षा वाला महीना होता है। वर्षा के कारण मिट्टी का कटाव, बाढ़ और भूस्खलन से भारी नुकसान होता है।
  • सितंबर के अंत तक वर्षा की मात्रा कम हो जाती है। स्फूर्तिदायक और मनभावन शरद शुरू हो जाती है।
  • राज्य के लाहौल स्पीति, पांगी और किन्नौर जिलों में फसल उगने का समय वर्ष में 120-210 दिनों तक घट जाता है। लगभग 6 महीने इन पहाड़ी इलाकों में तापमान 6 डिग्री सेल्सियस से कम रहता है।
  • प्रदेश का आधा उत्तरी क्षेत्र ग्रीष्मकालीन मानसून की पहुंच से बाहर है। इसके आधे दक्षिणी भाग की जलवायु उत्तर पश्चिम भारत की तरह है।
  • हिमाचल के उत्तर पश्चिम के इलाकों में मौसम खुशगवार और आरामदायक होता है। इसी कारण अधिकांश हिल स्टेशन इन्ही भागों में स्थित है।
  • कृषि कार्यकलाप का मानसून से गहरा संबंध है। प्रदेश में वर्ष 2009 के मानसून के मौसम (जून से सितंबर) में राज्य के बिलासपुर, किन्नौर, कुल्लू, शिमला, सोलन और ऊना जिला में अत्यधिक, कांगड़ा, मंडी एवं सिरमौर जिलों में सामान्य तथा चंबा और लाहौल-स्पीति जिले में छूटपुट वर्षा हुई है। इस वर्ष प्रदेश में मानसून के मौसम में सामान्य वर्षा की तुलना में केवल-36% वर्षा विभिन्न जिलों में मानसून मौसम में वर्षा की स्थिति को प्रदर्शित किया गया है।
  • हिमाचल प्रदेश में फरवरी के अंत तक शीतकाल की तीव्रता कम हो जाती है और तापमान धीरे-धीरे बढ़ने लगता है। बसंत मध्य प्रदेश से मध्य मार्च तक बहुत थोड़े समय के लिए रहता है। इसके बाद में मैदानों से सटे क्षेत्रों में मौसम गर्म और धूलभरा हो जाता है, लेकिन ऊंचाइयों पर मौसम सुहावना एवं खुशगवार रहता है।
  • प्रदेश में अक्टूबर तक मौसम साफ हो जाता है और सुबह या शाम को हल्की ठंड रहती है। आर्द्रता कम रहती है। सुबह और रात में बहुत सर्द होती है। विशेषकर वादियो में।
  • प्रदेश में दिसंबर और जनवरी में ऊंचाई वाले क्षेत्रों में आमतौर पर बर्फ पड़ती है। परंतु कभी-कभी इस अवधि से पहले या बाद में भी बर्फ पड़ सकती है। कोई 3000 मीटर की ऊंचाई पर औसतन 3 मीटर बर्फ की परत जम जाती है। यह बर्फ दिसंबर से मार्च तक पड़ती है। 4,500 मीटर से अधिक ऊंचाई पर सदैव बर्फ पड़ती रहती है।

मानसून वर्षा (जून-सितंबर 2012)

जिला वास्तविक मि.मी. सामान्य मि.मी.
बिलासपुर 812 877
चंबा 666 1406
हमीरपुर 1174 1076
कांगड़ा 1912 1582
किन्नौर 123 264
कुल्लू 669 520
लाहौल स्पीति
112 458
मंडी 1143 1093
शिमला   606 634
सिरमौर 984 1325
सोलन 893 1000
ऊना 838 863

अधिकतम/कमी

कुल मि.मी. प्रतिशतता
– 65 – 7
– 740 – 53
95 9
330 21
– 141 -54
149 29
-346 – 76
50 5
– 28 – 4
– 341 – 26
– 107 -11
– 25 – 3

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