आज इस आर्टिकल में हम आपको खिलाफत आंदोलन का इतिहास के बारे में बताने जा रहे है.
प्रथम विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद जब विजयी राष्ट्रों ने तुर्की के सुल्तान के साथ अन्यायपूर्ण व्यवहार किया और ब्रिटिश सरकार ने भारतीय के स्वशासन की मांग सहानुभूति पूर्वक, विचार करने के अपने आश्वासन को पूरा नहीं किया, तो भारतीय मुसलमानों तथा राष्ट्रवादियों का गुस्सा भड़क उठा. इसकी परिणति खिलाफत आंदोलन (1919-23) के रूप में हुई.
इस मजहरुल हक का सक्रिय सहयोग रहा. 16 फरवरी, 1919 को पटना में हसन इमाम की अध्यक्षता में एक सभा हुई, जिसमें खलीफा के प्रति मित्र राष्ट्रों द्वारा उचित व्यवहार के लिए लोकमत बनाने की बात कही गई. 30 नवंबर, 1919 को एक सभा में हसन इमाम ने शांति समारोह के बहिष्कार की बात कही. मौलाना अब्दुल कलाम आजाद के नेतृत्व में रांची में भी ऐसा ही प्रस्ताव पारित किया गया.
19 मार्च, 1920 को मुसलमानों ने समूचे बिहार में हड़ताल की, जिस का व्यापक असर हुआ. अप्रैल में खिलाफत आंदोलन के प्रमुख नेता मौलाना शौकत अली पटना आए. 1920 में खिलाफत आंदोलन पूरे बिहार में फैल गया.
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