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डार्विनवाद क्या है?

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डार्विनवाद क्या है?

डार्विनवाद

चार्ल्स रॉबर्ट डार्विन (1809- 1882) ने विकास वाद के सिद्धांत की व्याख्या अपनी प्रसिद्ध पुस्तक जातियों का अभ्युदय में किया। इसे सिद्धांत का प्राकृतिक चयन का सिद्धांत कहा जाता है।

डार्विन जैव-विकासवाद का जनक माना जाता है। इसके सिद्धांत को प्राकृतिक वर्णवाद का सिद्धांत भी कहते हैं। डार्विन ने यह सिद्धांत सन 1859 में दिया। डार्विनवाद का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित प्रकार से है-

अत्यधिक संतान उत्पत्ति

सभी जीव अपने जीवन काल में अत्यधिक संतान को जन्म देते हैं, परंतु उनकी संख्या फिर भी सीमित रहती है। उदाहरण के लिए पैरामीशियम का 48 घंटे में तीन बार विभाजन होता है। यदि यह सभी जीवित रहे तो 1 वर्ष के अंत में इन सभी जीवो के आकार का परिमाण पृथ्वी से बड़ा हो सकता है।

जीवन हेतु संघर्ष

पृथ्वी पर स्थान (आवास) और भोजन की मात्रा सीमित है। जीव बड़ी तेजी से अपनी संख्या बढ़ा रहे हैं। जीवों के बीच स्थान और भोजन व अन्य जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु संघर्ष शुरू हो जाता है। इस संघर्ष में कुछ ही जीव अपना अस्तित्व बनाए रखने में सफल होते हैं। अंत: जीवों की संख्या एक सीमित सीमा के अंदर रहती है।

प्राकृतिक वरण

जीवन के संघर्ष में केवल श्रेष्ठतम जीव ही जीवित रहते हैं अथार्त प्रकृति योग्य जीवो का ही वरण करती है, बाकी सभी जीव नष्ट हो जाते हैं। जो जीव जीवित रहते हैं वे वर्तमान की परिस्थितियों से मुकाबला करते हैं। अत: योग्य जीव का ही प्राकृतिक वरण करती है। इस चुनाव का हर्बरट स्पेन्सर ने योग्य जीवो का जीवित रहने का नाम दिया है।

विभिन्नताएं

पृथ्वी पर जितने भी जीव हैं उन सभी के जीवन के गुणधर्म भिन्न भिन्न होते हैं। समरूपी जोड़े को छोड़कर बाकी कोई भी जीव शक्ल और शारीरिक संरचना में आपस में नहीं मिलते हैं, इन्हें भी विभिन्नताएं कहते हैं। इनमें से लाभदायक विभिन्नताओं के कारण ही जीव अपने आपको वातावरण के अनुरूप ढाल लेते हैं। यह विभिन्नताएं जीवों में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाती है जो अधिक अनुकूल बनाती है तथा अनावश्यक विभिन्नताएं जीव के जीवन में ही नष्ट हो जाती है।

नई जाती का बनना

डार्विन ने बताया कि अनुकूल और लाभदायक विभिन्नओं के कारण ही जीव अपने आपको वातावरण के अनुकूल सफलतापूर्वक ढालने के योग्य होता है और यही विभिन्नताएँ एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानांतरित होती रहती है और अनेकों विभिन्नताएँ एक पीढी के अंदर एकत्रित हो जाती है। इसे ही डार्विन ने origin of species कहा है। इस प्रकार ने गुणों वाला जीव अस्तित्व में आता है और यह प्रक्रम हर समय चलता रहता है और इसी प्रकार मे जीवो का सृजन होता है.


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