आज इस आर्टिकल में हम आपको पटना सचिवालय गोलीकांड (11 अगस्त, 1942) के शहीद के बारे में बताने जा रहे है.
शहीद | निवासी |
उमाकांत प्रसाद सिन्हा उर्फ रमण जी | नरेंद्रपुर, सारण |
रामानंद सिंह | सहादत नगर (वर्तमान धनरूआ) पटना |
सतीश प्रसाद झा | खड़ हरा, भागलपुर |
जगपती कुमार | खराटी (आबोरा थाना), औरंगाबाद |
देवीपद चौधरी | सिलहट, जमालपुर |
राजेंद्र सिंह | बनवारी चक, सारण |
राम गोविंद सिंह | दशरथा, पटना |
इस गोली कांड के विरोध में 12 अगस्त, 1942 को पटना में पूर्ण हड़ताल रही. उसी दिन शाम में कदमकुआं (पटना) स्थित कांग्रेस मैदान में आयोजित सभा में जगत नारायण लाल की अध्यक्षता में संचार सुविधाओं को ठप करने तथा सरकारी कार्यों को शिथिल बना देने का प्रस्ताव पारित हुआ. फलस्वरुप पूरे बिहार में उग्र आंदोलन की लहर चल पड़ी.
बिहार के समाजवादियों ने जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में इस आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान किया. उन्होंने हजीराबाग जेल से पलायन करने वालों के हनुमान नगर में शरण ली. जयप्रकाश के नेतृत्व में नेपाल में क्रांतिकारी युवकों को छापामार युद्ध की शिक्षा देने के लिए एक केंद्र संगठित हुआ. नेपाल में ही आजाद दस्ते का गठन किया गया.
1943 की मार्च-अप्रैल में नेपाल के राजविलास जंगल में आजादी के पहले प्रशिक्षण शिविर का गठन हुआ, जिसमें सरदार नित्यानंद सिंह के निर्देशन में बिहार के 25 युवकों को आग्नेयास्त्र चलाने की शिक्षा दी गई. आजाद दस्ते के कार्यक्रम में जयप्रकाश के साथ भाग लेने वाला प्रमुख समाजवादी लोग थे- राम मनोहर लोहिया, अरुणा आसफ अली, अच्युत पटवर्धन, योगेंद्र शुक्ल, रामानंद मिश्र, सूरज नारायण सिंह, सीताराम सिंह, गंगा शरण सिंह आदि.
1943 के अंत तक यह आजाद दस्ता सक्रिय रहा. परंतु नेपाल सरकार द्वारा राम मनोहर लोहिया अधिकारियों को गिरफ्तार कर लिए जाने के कारण यह शिथिल पड़ गया. जयप्रकाश नारायण इस काल में भूमिगत गतिविधियों में सक्रिय रहे तथा उन्होंने सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद सरकार से भी संपर्क करने का प्रयास किया था, हालांकि यह संभव नहीं हुआ.
1942 के आंदोलन के क्रम में हिस्सा और पुलिस दमन के उदाहरण सामने आए. सिवान थाने पर राष्ट्रीय झंडा लहराने की कोशिश में फुलेना प्रसाद श्रीवास्तव पुलिस की गोलियों का शिकार हुए. सारण में जगलाल चौधरी ने पुलिस थाने को जला डाला. चंपारण में एक पृथक सरकार बना ली गई.
दरभंगा में कुलानंद वैदिक और सिंघवारा में कर्पूरी ठाकुर ने संचार व्यवस्था को ठप कर दिया. मुजफ्फरपुर के पास थाने को जला डाला गया जबकि गया के कुर्था थाने पर झंडा फहराने की कोशिश में श्याम बिहारी लाल मारे गये. कटिहार थाने पर झंडा लगाने की कोशिश में ध्रुव कुमार को पुलिस ने गोली मार दी.
डुमराव में ऐसे ही प्रयास के फलस्वरूप कपिल मुनि को पुलिस ने गोली मार दी. छोटा नागपुर क्षेत्र के आदिवासियों ने और विशेषकर ताना भगत आंदोलनकारियों ने भी अपने क्षेत्र में ब्रिटिश सत्ता की चुनौती दी. पलामू, हजारीबाग, हाजीपुर, मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, और दरभंगा के क्षेत्रों में कई स्थानों पर क्रांतिकारी सरकारें संगठित कर ली गई.
गांव में पंचायतों और रक्षा बलों की स्थापना की जाने लगी और राष्ट्रवादी होने वस्तुतः समांतर सरकार की स्थापना कर ली. भारत छोड़ो आंदोलन में बिहार में 15,000 से अधिक व्यक्ति बंदी बनाए गए. 8783 को सजा हुई, 134 व्यक्ति मारे गए और 326 घायल हुए, जिससे अंतत सरकार को अपना रुख बदलने पर बाध्य कर दिया गया. 1945 में राजनीतिक प्रक्रिया बहाल हुई और युद्ध की समाप्ति के बाद पुनः चुनाव हुए.
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