वे समस्या जो पर्यावरण में बाधा उत्पन्न करती है या पर्यावरण की गुणवत्ता को प्रभावित करती है उसमें अवांछित परिवर्तन लाती है, पर्यावरण संबंधी समस्या कहलाती है।
उदाहरण- विश्व उस्मन (हरित गृह प्रभाव), ओजोन क्षय, अम्लीय वर्षा, प्रदूषण, जैव विविधता की हानि, सुखा व बाढ़ जैसी समस्याएं।
पर्यावरण ह्रास के मुख्य कारण-
अपशिष्ट पदार्थ- दैनिक जीवन में उपयोग के उपरांत ऐसे पदार्थ हैं जिन्हें फेंकना पड़ता है, अपशिष्ट पदार्थ कहलाते हैं। यह दो प्रकार के होते हैं-
जैव निम्नीकरणीय पदार्थ, अजैव निम्नीकरणीय पदार्थ
जैव निम्नीकरणीय पदार्थ | अजैव निम्नीकरणीय पदार्थ |
वे पदार्थ जिन्हें जीवाणु तथा कवक जैसे सूक्ष्म जीव सरल पदार्थों में अब गठित कर देते हैं,जैव निम्नीकरणीय पदार्थ कहलाते हैं, | वे पदार्थ जिन्हें सूक्ष्म जीवों द्वारा गठित नहीं किया जा सकता अजैव निम्नीकरणीय पदार्थ कहलाते हैं। |
वे पदार्थ जिनके निम्नीकरण के लिए एंजाइम सूक्ष्म जीवों में उपलब्ध होते हैं, | सूक्ष्म जीवों में उपयुक्त एंजाइमों की अनुपस्थिति के कारण उनका अपघटन नहीं होता है। |
उदाहरण- कृषि/पादप अपशिष्ट, कागज, चमड़ा गोबर आदि। | उदाहरण- संश्लिष्ट पदार्थ, जैसे पॉलिथीन प्लास्टिक, काँच, Pपीड़कनाशी जैसे DDT धातु के टुकड़े, कैन आदि। |
अजैव निम्नीकरणीय पदार्थ जैसे पीड़कनाशी बिना निम्नीकरण के पर्यावरण में बहुत लंबे समय तक रहते हैं। वे रासायनिक पदार्थ खाद्य श्रृंखला में उत्पादकों (पौधों) के माध्यम से प्रवेश करते हैं तथा उच्च पोषी स्तरों तक पहुंच जाते हैं। इस प्रक्रिया में एक स्तर से दूसरे स्तर तक उनका सान्द्रण उच्चतम पोषी स्तर में अधिकतम होती है। इस प्रक्रिया को जैविक आवर्धन कहते हैं। यह रसायन जीवो के वृद्धि, विकास योजना आदि में बाधा उत्पन्न कर के अनेक समस्याओं को जन्म देते हैं।
एंजाइम पदार्थ विशेष होते हैं जो जटिल कार्बनिक पदार्थों को सरल कार्बनिक पदार्थों में अब गठित कर देते हैं। लेकिन जीवाणु तथा कुछ मृतजीवी कवक एंजाइमों का स्त्रावण नहीं करते जो प्लास्टिक जैसे पदार्थों को अपघटित कर सकें।
पारितंत्र- किसी क्षेत्र के सभी जीव तथा वातावरण के अजैव कारक संयुक्त रूप से पारितंत्र कहलाते हैं। अंत्य पारितंत्र जैव व अजैव घटकों से मिलकर बना होता है।
सामान्य पारितंत्र- वन, तालाब और झील, समुंद्र, खेत खलिहान, घास के मैदान, उद्यान, नदी।
प्राकृतिक पारितंत्र- प्राकृतिक पारितंत्र वे पारितंत्र होते हैं जो मानव क्रियाकलापों के प्रभाव से मुक्त होते हैं, अच्छी प्रकार फलते फूलते हैं। उदाहरण- वन, नदिया, झीले, समुंदर।
कृत्रिम पारितंत्र- मानव निर्मित पारितंत्र ओं को हम कृत्रिम पारितंत्र कहते हैं। उदाहरण- उधान, खेत, जीवशाला।
अपघटक पारितंत्र के बहुत ही महत्वपूर्ण घटक होते हैं, जिनके बिना पारितंत्र निर्वाह नहीं कर सकता। वह पदार्थों का निम्नीकरण/अपघटन करते हैं। यदि वे विद्यमान न हो तो-
जीवो का शरीर कार्बनिक पदार्थ, पदार्थों जैसे प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा आदि से मिलकर बना होता है। जब जीव मरते हैं तो मृत्यु जीवी जीवाणु व कवक उनके शरीर के जटिल कार्बनिक पदार्थों को सील पदार्थों में अपघटीत कर देते हैं। यह सरल पदार्थ पर्यावरण, ए पर्यावरण, मिट्टी, वायु आदि में मिल जाते हैं। पोषक तत्व जो शरीर में विद्यमान होते हैं, वह वापस मिट्टी में मिल जाते हैं। जहां से उन्हें पौधे द्वारा से प्राप्त कर लेते हैं। यह पदार्थों के पुनः चक्रीकरण में सहायक है।
स्वपोषी | विषमपोषी |
इन जीवो में हरे रंग का वर्णन क्लोरोफिल पाया जाता है। | इन जीवो में क्लोरोफिल नहीं होता है। |
यह प्रकाश संश्लेषण क्रिया करते हैं। | यह प्रकाश संश्लेषण क्रिया नहीं करते हैं। |
ये सौर ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित कर देते हैं। | यह सौर ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित नहीं करते हैं। |
यह अपना भोजन स्वयं संश्लेषित करते हैं। उदाहरण- सेवाल, पौधे, कुछ प्रकाश संश्लेषण जीवाणु। | अपना भोजन स्वयं संश्लेषित नहीं कर सकते हैं। उदाहरण- सभी जंतु, कवर कवक व अधिकतर जीवाणु। |
प्रथम उपभोक्ता | द्वितीय उपभोक्ता |
यह वे जीव है जो अपने पोषण के लिए सीधे ही पौधों तथा उनके उत्पादों पर निर्भर करते हैं। | यह वे जीव है जो शाकाहारियों को खा कर अपना पोषण प्राप्त करते हैं। |
यह शाकाहारी है। उदाहरण- टिड्डा, खरगोश, गाय, भैंस, बकरी आदि। | यह मांसाहारी है। उदाहरण- मेंढक, मछली, नीलकंठ, सांप आदि। |
आहार श्रृंखला- किसी परिस्थिति के तंत्र में एक जीव द्वारा दूसरे जीव को खाने की क्रमबद्ध प्रक्रिया श्रृंखला कहलाती है, जैसे घास के मैदान की आहार श्रृंखला का उदाहरण है-
घास (उत्पादक) – हिरण (प्रथम उपभोक्ता) – शेर (द्वितीय उपभोक्ता)
तीन चरणों वाली इस आहार श्रृंखला में घास को हिरण हिरण को शेर खाता है। आहार श्रृंखला में उर्जा का क्रमबद्ध स्थानांतरण होता है।
खाद्य जाल- किसी पारितंत्र में प्रतिपादित होने वाली विभिन्न भाषाओं की आपस में संबंध होने से बने जाल को खाद्य जाल कहते हैं। खाद्य जाल पौधों से आरंभ होता है और मांसाहारी पर समाप्त होता है। एक खाद्य जाल में अनेक आहार श्रृंखला हो सकती है।
किसी खाद्य श्रृंखला में उर्जा उत्पादकों से शाकाहारीयों में, शाकाहारीयों से मांसाहारियों में और मांसाहारी से उच्चत्तम मांसाहारियो में जाती है।
घास->हिरण->शेर
ऐसा कभी भी नहीं होता कि उर्जा शेरों से हिरण में वह हिरण से घास में स्थानांतरित हो। इसलिए हम कह सकते हैं कि ऊर्जा का प्रवाह केवल एक ही दिशा में होता है।
जब हम आने कारक रसायन पीड़कनाशक, कीटनाशक आदि पदार्थों का प्रयोग पीड़ितों को नष्ट करने के लिए करते हैं। तो रासायनिक उत्पादकों के माध्यम से जलप्लवकों, प्राणीप्लवकों के माध्यम से खाद्य श्रृंखला में प्रवेश करते हैं। छोटी मछलियां प्लवको को कीटों के लारवा खाते हैं या सूक्ष्म किट खाते हैं, तो यह हानिकारक पदार्थ उन तक पहुंच जाते हैं। यह हानिकारक अजैव निम्नीकरण पदार्थ है, जैसे DDT एक स्तर से दूसरे स्तर में सांद्रित होते चले जाते हैं। इन पदार्थों की सांदर्ता उच्चत्तम पोषीस्तर में अधिकतम होती है।
सांदर्ता में यह बढ़ोतरी जैविक आवर्धन कहलाती है। यह जीवों के स्वास्थ्य, उनकी प्रजनन क्षमता को बुरी तरह से प्रभावित करती है।
सभी खाद्य श्रृंखला के अंत में हम अपघटकों को पाते हैं। जो मृत जीवों के शरीर में उपस्थित कार्बनिक पदार्थ का अपघठन कर देते हैं तथा पदार्थों के चक्रिकरण में सहायता करते हैं। खाद्य श्रृंखला हानिकारक रसायनों के स्थानांतरण तथा उच्च स्तरों पर उनके सान्द्रण में भी योगदान देती है।
वनस्पति/हरे पौधे प्रकाश संश्लेषण क्रिया करने में सक्षम है। वे सौर ऊर्जा का प्रयोग करके कार्बनिक पदार्थों का संश्लेषण करते हैं। वे प्राप्त 90% ऊर्जा को अपनी वृद्धि के विकास के लिए प्रयोग करते हैं और बाकी 10% ऊर्जा को अगले पोषी स्तर तक स्थानांतरित कर देते हैं। उत्तम पोषी स्तरों पर पहुंचने वाली ऊर्जा की मात्रा कम होती चली जाती है। उत्पादक स्तर की अधिकतम मात्रा उपलब्ध रहती है। इसलिए वे जीव जो सीधे ही उत्पादकों पर निर्भर करते हैं, अधिकतम ऊर्जा ग्रहण करते हैं।
इसलिए शाकाहारी आहार आदतें ऊर्जा के संदर्भ में अधिक अच्छी होती है।
खाद्य श्रृंखलाओं की जुड़ी हुई व्यवस्था खाद्य जाल कहलाती है। इसमें किसी जीव का कार्य निश्चित नहीं होता है। एक खाद्य श्रृंखला में कोई जीव शिकार के रूप में हो सकता है तथा दूसरी खाद्य श्रृंखला में वही जीव शिकारी के रूप में हो सकता है। उदाहरण- मेंढक, सांप आदि।
ओजोन का क्षय और उसकी परत छेद क्लोरो फ्लोरो कार्बन आदि के।
नाभिकीय विस्फोट, सल्फेट एयरोसोल, हेलोजन, एयरोसोल दहन/आग तथा आधुनिक अग्निविनाशक।
प्लास्टिक के कप का निपटान यदि ठीक प्रकार से नहीं किया जाता तो यह समस्या उत्पन्न करते हैं क्योंकि अजैव निम्नीकरण य पदार्थ से बनी होते हैं। इसलिए यदि हम बड़ी संख्या में कुल्हाडो का प्रयोग ट्रेन में चाय आदि के लिए करेंगे तो हम अपनी उपजाऊ मिट्टी को खो देंगे, जो हमें कृषि या पौधे उगाने के लिए चाहिए। इसलिए अप्रत्यक्ष रूप से यह पर्यावरण को प्रभावित करेगा।
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