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ईंधन के प्रकार और उनकी जानकारी

जो पदार्थ जलने पर उष्मा व प्रकाश उत्पन करते है, ईंधन कहलाते है. ईंधन मुख्यत: तीन प्रकार के होते है-

  1. ठोस ईंधन:- ये ईंधन ठोस रूप में होते है. तथा जलाने पर कार्बन डाईऑक्साइड ,कार्बन मोनो ऑक्साइड व उष्मा उत्पन करते है. लकड़ी,कोयला आदि ठोस इंधनों के उदहारण है.
  2. द्रव ईंधन :- ये ईंधन विभिन प्रकार के हाइड्रोकार्बन के मिश्रण से बने होते है तथा जलाने पर कार्बन डाईऑक्साइड व जल का निर्माण करते है. जेसे – केरोसिन,पेट्रोल,डीजल, अल्कोहल आदि.
  3. गैस ईंधन :– जिस प्रकार ठोस व द्रव ईंधन जलाने पर उष्मा उत्पन करते है, उसी प्रकार कुछ ऐसी गैस भी है जो जलाने पर ऊष्मा उत्पन करती है. गैस ईंधन द्रव व ठोस इंधनों की अपेक्षा अधिक सुविधा जनक होती है व पाइपो द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान तक सरलता पूर्वक भेजे जा सकते है. इसके अतिरिक्त गैस इंधनों की ऊष्मा सरलतापूर्वक नियत्रित की जा सकती है.

कोल गैस

कोल गैस में 54% हाइड्रोजन,35%मीथेन,11%कार्बन मोनो ऑक्साइड,5%हाइड्रोकार्बन व 3% कार्बन डाईऑक्साइड आदि गेसो का मिश्रण होता है. कोल गैस कोयले के भंजक आसवन के द्वारा बनाई जाती है. यह रंगहीन व एक विशेष गंध वाली गैस है यह वायु के साथ विस्फोटक मिश्रण बनाती है.

प्रोड्यूसर गैस

प्रोड्यूसर गैस मुख्यत: नाइट्रोजन व कार्बन मोनो ऑक्साइड गैस का मिश्रण है इसमे 60% नाइट्रोजन, 30%कार्बन मोनो ऑक्साइड व शेष कार्बन डाईऑक्साइड व मिथेन गैस होती है. इसका प्रयोग ईंधन तथा कॉच व इस्पात बनाने में किया जाता है.

वाटर गैस

वाटर गैस कार्बन मोनो ऑक्साइड (CO) व हाइड्रोजन (H2) गैस का मिश्रण होती है. इस गैस से बहुत अधिक उष्मा की मात्रा प्राप्त होती है इस का प्रयोग अपचायक के रूप में एल्कोहल, हाइड्रोजन आदि के ओद्योगिक निर्माण में होता है.

प्राकृतिक गैस

यह पेट्रोलियम कुओ से निकलती है इसमे 95% हाइड्रोकार्बन होता है जिसमे 80%मीथेन रहता है घरो में प्रयुक्त होने वाली द्रवित प्राकतिक गैस को एल०पी०जी०कहते है. यह ब्यूटेन एव प्रोपेन का मिश्रण होता है जिसे उच्च दाब पर द्रवित कर सिलेंडरो में भर लिया जाता है.

एल०पी०जी०अत्यधिक ज्वलनशील होती है अत: इससे होने वाली दुर्घटना से बेचने के लिए इसमें सल्फर के यौगिक ( मिथाइल मरकॉप्टेन) को मिला देते है ताकि इसमे रिसाव का इसकी गंघ से पहचान लिया जाय.

गोबर गैस

गीले गोबर के सड़ने पर जव्लनशील मीथेन गैस बनती है, जो वायु की उपस्थिति में सुगमता से जलती है. गोबर गैस सयंत्र में शेष रहे पदार्थ का पदार्थ का उपयोग कार्बनिक खाद के रूप में किया जाता है.

सी०एन०जी०

सी०एन०जी० में 80%-90% मात्रा मीथेन गैस की होती है. यह एक प्रकार की हाइड्रोकार्बन मिश्रित गैस है. यह गैस पेट्रोलियम कुओं से स्वत: निकलती रहती है. अत: इसे प्राकृतिक गैस कहा जाता है. इसका प्रयोग वाहनों में इंधन के रूप में होता है. इसका प्रथम सी०एन०जी० स्टेशन तमिलनाडु के नागपट्टनम नामक स्थान पर लगाया गया था.

एक अच्छे ईंधन के कौन कौन से गुण होने चाहिए?

  1. वह सबसे सस्ता और आसानी से उपलब्ध होना चाहिए.
  2. उसका उष्मीय मान ज्यादा होना चाहिए.
  3. जलने के बाद उससे अधिक मात्रा में अवशिष्ट पदार्थ नही बचना चाहिए.
  4. जलने के दौरान या बाद कोई हानिकारक पदार्थ उत्पन्न होना चाहिए.
  5. उसका जमाव, परिवहन आसन होना चाहिए.
  6. उसका जलना नियंत्रित होना चाहिए.
  7. उसका प्रज्वलन ताप कम से कम होना चाहिए.

ईंधन का उष्मीय मान

किसी ईंधन का उष्मीय मान उष्मा की वह मात्रा है, जो उस ईंधन के एक ग्राम को वायु या ऑक्सीजन में पूर्णत: जलाने के पश्चात प्राप्त होती है. किसी भी अच्छे ईंधन का उष्मीय मान अधिक होना चाहिए. सभी ईंधन में हाइड्रोजन का उष्मीय मान सबसे अधिक होता है. परन्तु सुरक्षित भंडारण की सुविधा नही होने के कारण उपयोग आम तोर पर नही किया जाता है. हाइड्रोजन का उपयोग रॉकेट ईधन के रूप में तथा उच्च ताप उत्पन करने वाले ज्वालको में किया जाता है. हाइड्रोजन को भविष्य का ईंधन भी कहा जाता है.

अपस्फोटन व आक्टेन संख्या

कुछ ईंधन इसे होते है. जिसका ज्वलन समय के पहले हो जाता है. जिससे उष्मा पूर्णतया कार्य में परिवर्तित न होकर धात्विक ध्वनी उत्पन करने में नष्ट हो जाती है. यही धात्विक ध्वनी अपस्फोटन कहलाती है. एसे ईंधन जिसका अपस्फोटन अधिक होता है. उपयोग के लिए उचित नही माने जाते है. अपस्फोटन कम करने के लिए इसे इंधनों में अपस्फोटरोधी यौगिक मिला दिए जाते है. जिससे उसका अपस्फोटन कम हो जाता है. सबसे अच्छा अपस्फोटरोधी यौगिक टेटा एथिल लेड है. अपस्फोटन को आक्टेव संख्या के द्वारा व्यक्त किया जाता है. किसी ईंधन ,जिसकी आक्टेन संख्या जितनी अधिक होती है.आपका अपस्फोटन उतना ही कम होता है. तथा वह उतना ही उतम ईंधन माना जाता है.

कोयला

कार्बन की मात्रा के आधार पर कोयला चार प्रकार के होते है-

  1. पीट कोयला – यह सबसे निम्न कोटि का कोयला है. इसे जलाने पर अधिक राख एव धुँआ निकलता है. इसमें कार्बन की मात्रा 50%से 60%तक होती है.
  2. लिग्नाइट कोयला – इसका उपयोग घरेलू कार्यो में होता है. इसका रंग भूरा होता है. इसमें कार्बन की मात्रा 65% से 70%तक होती है.
  3. बिटुमिनस कोयला – इसका उपयोग घरेलू कार्यो में होता है. इसे मुलायम कोयला भी कहा जाता है.इसमें कार्बन की मात्रा 70% से 85%तक होती है.
  4. एन्थ्रासाइट कोयला – इसमें कार्बन की मात्रा 85% से भी अधिक रहती है. यह कोयले की सबसे उतम कोटि है.

कुछ महत्वपूर्ण बिन्दु

  • अल्कोहल को जब पैट्रॉल में मिला दिया जाता है. तो उसे पावर अल्कोहल कहते है. जो ऊर्जा का एक वैकल्पिक स्त्रोत है.
  • शुद्ध अल्कोहल में ईथर या बेन्जीन मिलाकर पावर अल्कोहल के रूप में हवाई जहाज के ईंधन में प्रयुक्त किया जाता है.
  • कोयले की खानों में मीथेन गैस निकलती है. मिथेन गैस दलदली स्थानों में पायी जाती है.इसलिए इसे मार्स गैस भी कहते है.

कार्बन एव उसके यौगिक

  • कार्बन :- कार्बन एक अधातु है. जो प्रकर्ति में मुक्त तथा अनेक योगिको के रूप में पाया जाता है प्रकति में कार्बन ही ऐसा तत्व है जिसके सबसे अधिक यौगिक पाये जाते है . कार्बन अपरूपता प्रदर्शित करता है. यह क्रिस्टलीय तथा अक्रिस्टलीय दोनों रूपों में पाया जाता है. हीरा तथा ग्रेफाइट कार्बन के क्रिस्टलीय उपरूप है. जबकि पत्थर, लकड़ी का कोयला, हड्डी आदि इसके अक्रिस्टलीय अपरूप है. वायु मण्डल  में कार्बन, कार्बन-डाई-ऑक्साइड के रूप में पाया जाते है . इसके अतिरिक्त यह सभी जीवधारियों पेड़ पोधों , चट्टानों आदि में पाया जाता है.
  • कार्बन-डाई-ऑक्साइड:- कार्बन-डाई-ऑक्साइड एक रंगहीन और गंधहीन गैस है. जिसका जलीय विलयन अम्लीय होता है. वायुमंडलीय दाब पर यह -78०C ताप पर ठोस अवस्था में बदल जाती है इस ठोस अवस्था को शुष्क बर्फ भी कहते है. प्रयोगशाला में यह गैस चुना-पत्थर पर हाइड्रोक्लोरिक अम्ल की क्रिया से बनाई जाती है. कार्बन-डाई-ऑक्साइड उच्च दाब पर शीतल पेय पदार्थों के साथ बोतलों में भर डी जाती है और जब बोतल खोलत है तो यह झाग के रूप में निकलती है. रात के समय पेड़ पौधे भी कार्बन-डाई-ऑक्साइड गैस निकालते है इसी वजह से रात को पेड़ के नीचे नहीं सोना चाहिए.
  • अपरूपता:- वे पदार्थ जिनके रासायनिक गुण समान और भौतिक गुण भिन्न हो अपरूप कहलाते है. और इस घटना को अपरुपता कहते है. कार्बन के दो मुख्य अपरूप हीरा और ग्रेफाइट है.
  • ग्रेफाइट:- यह विद्युत का सुचालक होता है और इसका उपयोग नाभिकीय रिएक्टर में विमंद्क के रूप में किया जाता है. ग्रेफाइट का उपयोग पेन्सिल और सीसा पेंसिल बनाने के लिए भी किया जाता है. जब इसको कागज पर रगड़ते है तो यह कागज पर काला निशान भी छोड़ देता है.
  • हीरा:- यह क्रिस्टलीय कार्बन का उदाहरण है. शुद्ध हीरा रंगहीन और पारदर्शक होता है और इसका रवे घने होते है. यह दुनिया का सबसे कठोर पदार्थ है. यह किसी भी द्रव में नही घुलता और इस पर अम्ल और क्षार का भी असर नही होता है. यह ताप और विदुयत का कुचालक होता है.
  • हीरा का अपवतनांक सबसे अधिक होता है और पूर्ण आंतरिक परिवर्तन के कारण यह अत्याधिक चमकीला दिखाई देता है.
  • शीशा काटने के लिए काले हीरे का प्रयोग किया जाता है, जिन्हें बोर्ट भी कहते है.

बहुलीकरण

जब एक ही यौगिक के दो और अधिक अणु आपस में सयोंग करके बड़ा अणु बनाते है तब इस पअभिक्रिया को बहुलीकरण कहते है. इस अभिक्रिया में भाग लेने वाले अणु को मोनोमर और उत्पाद को बहुलक कहते है. बहुलीकरण में एक यौगिक के अणु परस्पर सयोंग करते है. सेल्युलोज और स्टार्ज प्राकृतिक बहुलक के उदहारण है.

प्लास्टिक

रासायनिक विधि से तैयार प्लास्टिक दो प्रकार के होते है-

  1. थर्मोप्लास्टिक:- यह गर्म करने पर मुलायम और ठंडा करने पर कठोर हो जाता है. यह गुण इसमें सदैव मौजूद रहता है चाहे इसे कितनी बार ठंडा और गर्म किया जाए. जैसे पोलीथिन, नायलॉन, टेफ़लोन इत्यादि.
    पोलीथिन, एथिलीन को उच्च ताप और उच्च दाब पर बहुलीकरण के फलस्वरूप प्राप्त होता है. पोलीथीन पर अम्ल और क्षार का कोई असर नही होता है.
  2. थर्मोसेटिंग प्लास्टिक:- यह वो प्लास्टिक है जो पहली बार ग्राम करने पर मुलायम हो जाता है और इसके बाद इसको अपने हिसाब से किसी भी आकार में ढाला जा सकता है. लेकिन दूसरी बार गर्म करने पर यह मुलायम नही होता जैसे मेलामाइन और बैकेलाइट

बैकेलाइट

यह फिनाल और फार्मल्डीहाइड के बहुलीकरण के फलस्वरूप प्राप्त होता है. यह रेडियो, टेलीविज़न के आवरण, ढलाई, बाल्टी बनाने के लिए उपयोग होता है.

रबड़

प्राकृतिक रबड़ Isoprene का बहुलक होता है, प्राकृतिक रबड़ थर्मोप्लास्टिक है. प्राकृतिक रबड़ को सल्फर के साथ मिलाकर गर्म करने की क्रिया वल्कनिकरण कहलाता है इसके बाद रबड़ एक निश्चित आकार ग्रहण कर लेता है.
प्राकृतिक रबड़ काफी मुलायम होता है, इसे कठोर बनाने के लिए इसमें सल्फर व कार्बन मिलाया जाता है.

  1. नायलॉन:- नायलोन ऐसे छोटे कार्बनिक अणुओं के बहुलकीकरण प्रक्रिया द्वारा बनाया जाता है, जो प्राकृतिक रूप से उपलब्ध नही है. यह एक पीली एमाइड रेशे का उदाहरण है.
  2. रेयान:- सेल्युलोज से बने कृत्रिम रेशे को रेयान रासायनिक दृष्टि से सूट के समान है. रेयान उपयोग कपडा बनाने में, कालीन बनाने में और चिकित्सा क्षेत्र में किया जाता है.

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