अगर एक ही लाइन में इसका अर्थ आपको बताएँगे तो यह एक तरह की भारी तलवार है जिसका इस्तेमाल किसी व्यक्ति विशेष को मृत्युदंड देने के लिए करते थे. इस तलवार को दो खम्बो के बीच में रखा जाता है. और इसको एक रस्सी की मदद से ऊपर बाँधा जाता है.
गिलोटिन का नामकरण इसके आविष्कारक डॉ गिलोटिन के नाम पर रखा गया था.
आज इस आर्टिकल में हम आपको गिलोटिन का आविष्कार कब और किसने किया?
हर देश में मृत्युदंड देने के अलग अलग तरीके अजमाए जाते थे और इनमें काफी बदलावे भी लाये गए. गिलोटिन जो की व्यापक रूप से काफी इस्तेमाल होना शुरू हुआ था इसको सबसे पहले फ़्रांस से शुरू किया गया जहाँ पर राज्य क्रांति से कुछ दिन पहले ही पहला मृत्युदंड दिया गया.
इसका आविष्कार जोसेफ-इग्नेस गिलोटिन ने किया था. इनका जन्म 28 मई 1738 को फ़्रांस में हुआ था.
ऐसा माना जाता है की फ़्रांस में गिलोटिन का आविष्कार नहीं हुआ.
गिलोटिन का वजन लगभग 579 किलोग्राम और ब्लेड का वजन लगभग 40 किलोग्राम के आस पास होता है. इसके इस्तेमाल से पता चला की यह किसी कोई मृत्युदंड देने में सिर्फ 1 सेकंड से सोलवें हिस्से का टाइम लेता है.
गिलोटिन सिर को काटने के लिए एक तंत्र है, जिसका उपयोग कई यूरोपीय देशों में मौत की सजा देने के लिए किया जाता है।
यह एक विशाल तिरछा चाकू था, जिसका वजन 40-100 किलोग्राम तक था। रस्सी के साथ उसे लगभग 3 मीटर की ऊंचाई तक उठाया गया था और एक घिरनी के साथ लगाया गया था।
इनके बीच में उनको लेटाया जाता था जिनको मृत्युदंड दिया जाता था, इसके लिए उनकी गर्दन को नीचे एक गतिहीन हिस्से पर रख कर बाँध दिया जाता था.
चाक़ू को एक रस्सी की मदद से ऊपर रखा जाता था और जब किसी के मृत्युदंड का समय होता था तब बेल्ड का लीवर को खोल दिया जात था और यह सीधे पीड़ित की गर्दन पर बड़ी तेजी से गिरी, जिससे तुरंत मौत हो गई।
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