आज इस आर्टिकल में हिसार जिला – Haryana GK Hisar District के बारे में विस्तृत जानकारी दे रहे है. इससे जुड़े कुछ सवाल हम आपको नीचे दे रहे है.
फिरोज़ शाह तुगलक ने सन 1354 में हिसार नगर की स्थापना की। उसने इस नये नगर हिसार-ए-फिरोजा को महलों, मस्जिदों, बगीचों, नहरों और अन्य इमारतों से सजाया था।
‘हिसार’ फारसी शब्द है। इसका अर्थ किला या घेरा है। सन् 1354 में दिल्ली के सुल्तान फिरोज़शाह ने यहा जिस किले का निर्माण कार्य शुरू करवाया, उसका नाम ‘हिसार-ए- फिरोज़ा’ पड़ा यानि फिरोज का हिसार। अब समय की यात्रा में केवल हिसार रह गया है। हिसार का नाम आज देश के प्रमुख शहरों में शुमार हो चुका है। हिसार भारत के राष्ट्रीय राजमार्ग नम्बर 09 पर दिल्ली से 164 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
हिसार जिले में अग्रोहा, राखीगढ़ी, (बनावाली, कुनाल और भिरडाना अब फतेहाबाद जिला में) नामक स्थलों की खुदाई के दौरान पहली बार मानव सभ्यता के अवशेष मिले हैं, जिनके अध्ययन से प्रि हड़प्पन सेटलमैंट और प्रागैतिहासिक काल के इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है। हिसार किले में स्थापित सम्राट अशोक के शासनकाल के समय का स्तम्भ (234 ए0डी0) वास्तव में अग्रोहा से लाकर यहां स्थापित किया गया था।
‘हिसार-ए- फिरोज़ा’ की नीवं से पहले यहां पर दो गांव बड़ा लारस एवं छोटा लारस थे। बड़े लारस में 50 खरक (चारागाह) थी तथा छोटे लारस में 40 खरक थी। बड़े लारस की नजदीक का क्षेत्र फिरोज़शाह को पसंद आया, जहां उसने किले का निर्माण अपनी देख-रेख में करवाया। इसके निर्माण में दो से ढाई साल लगे। इस क्षेत्र में शेरों, चीतों एवं दूसरे जंगली पशुओं की भरमार थी तथा यह भारत की एक सर्वोतम शिकारगाह थी। इसके अलावा यहा पर बतखखाना और कई बाग व बगीचे हुआ करते थे। सुल्तान फिरोज़शाह तुगलक को हिसार से इतना लगाव था कि वह इसे इस्लामिक धार्मिक शहर बनाना चाहता था।
भौगोलिक स्थिति के अनुसार हिसार दक्षिण-पश्चिम मानसून क्षेत्र में स्थित है और उसी जलवायु के अनुसार यहां ज्यादातर मौसम गर्म व सूखा रहता है। सामान्यतः हिसार को चार ऋतुओं में बांटा जा सकता है।
यहां दक्षिण पश्चिम मानसून का मौसम जून के अन्तिम सप्ताह से सितम्बर मध्य तक रहता है। यहां का मौसम अक्तुबर मास से आगामी जून तक लगभग सूखा ही रहता है। कभी-कभी पश्चिम विक्षोभ के कारण बिजली कड़कने के साथ हल्की- फुल्की बारीश होती है। जून से सितम्बर के महीने में ही कुछ बारीश का 75 प्रतिशत से 80 प्रतिशत तक बारीश होती है।
यहां भी औसत वार्षिक वर्षा 450 एमएम है व जुलाई में 133.4 एमएम, अगस्त में 116.2 एमएम सितम्बर से 54.5 एमएम तथा जून से औसत वार्षिक वर्षा 49.8 एमएम है। वर्षा ऋतु का औसत 354 एमएम है। अब तक की अधिकतम बारीश 793.6 एमएम 1976 में मापी गई थी। न्यूनतम बारीश वर्ष 2000 में 145.2 एमएम मापी गई है।
यहां कुल बारीश का 10 प्रतिशत से 15 प्रतिशत तक बारीश दक्षिण विक्षोभ के कारण शीत कालीन ऋतु में होती है। वर्षा ऋतु के अधिकतम दिन जुलाई व अगस्त महीने में व न्यूनतम दिन नवम्बर व दिसम्बर में होते हैं। ग्रीष्म ऋतु में हवा का तापमान काफी अधिक जो कि 48.30ब् तक होता है। परन्तु वर्षा ऋतु के आने के बाद तापमान 350ब् तक हो जाता है।
हिसार का न्यूनतम तापमान वर्ष 1929 में -3.90ब् मापा गया है। जमाव बिन्दु यहां पर सामान्यतः नहीं पाया जाता। गर्मीयों में अधिकतम तापमान 40 डिग्री से 44 डिग्री व सर्दियों में न्यूनतम तापमान 40 से 60 तक रहता है। यहां पर औसत अधिकतम तापमान 31.50 व न्यूनतम तापमान 16.20ब् तक रहता है।
आद्रताः अप्रेल और मई के महीने मिलकर सबसे सुखे दीन पाये जाये जाते हैं । इन महीनों में सबसे कम आद्रता पाई जाती है। मानसून के आते-आते आद्रता धीरे-धीरे जुलाई प्रथम सप्ताह तक बढ़ जाती है व सितम्बर मध्य तक मानसून जाते-जाते आद्रता सामान्यतः ज्यादा ही रहती है। जोकि पूरे वर्ष में 5 से 100 प्रतिशत तक रहती है।
धूपः अक्तुबर से अप्रेल तक के महीने में धूप अच्छी खिलती है व कुल धू पका 70 प्रतिशत धून्ध-धूपवाले ही होते हैं। फरवरी से मई व सितम्बर से दिसम्बर महीने में लगभग औसत 8 घण्टे यहां धूप रहती है व जनवरी, जुलाई, अगस्त व दिसम्बर महीने में यहां औसत से कम धूप जोकि 6 से 7 घण्टे मांपी गई है।
हवाः औसत हवा की गति चार से दस किलोमीटर प्रतिघण्टा की पायी जाती है। उतरी पश्चिम शीत लहर, दिसम्बर जनवरी व फरवरी महीने में बहती है। मुख्यतः यहां पर उतरी, उतरी-पश्चिम, दक्षिण-पश्चिम, दक्षिण-पूर्व हवायें पाई जाती है। गर्म व सूखी दक्षिण-पश्चिम लू मई व जून में ही चलती है।
वाष्पीकरण: गर्मी के मौसम का औसत वाष्पीकरण 12एम/प्रतिदिन है जबकि वर्षा व सर्द ऋतु को क्रमशः औसत वाष्पीकरण 6.8 व 4 एमएम प्रतिवर्ष है। सबसे अधिक वाष्पीकरण अब तक 25.6 एमएम प्रति दिन मापा गया ळें
ओसः दिसम्बर व जनवरी के मौसम में सबसे ज्यादा धूंध पायी जाती है जबकि अप्रेल व नवम्बर मेें महीने में ओस की मात्रा कम होती है। ओस सामान्यतः दिसम्बर से अप्रेल तक पायी जाती है। एक वर्ष में कुल 25.0 एमएम ओस तक पायी जाती है।
विशिष्ट मौसम: गर्मी के मौसम में यहां धूल भरी आंधी व ओला वृष्टि (फरवरी से अप्रेल तक) के महीने में यहां सामान्यतः पाई जाती है। धूंध सामान्यतः दिसम्बर व फरवरी महीने में पड़ती है। गर्मी के मौसम में व वर्षा ऋतु में यहां बिजली कड़कने के साथ हल्की फुल्की बारीश होती है।
नाम | आंकड़े |
---|---|
क्षेत्र | 3,983 वर्ग किमी |
उप मंडलों की संख्या | 4 |
तहसीलों की संख्या | 6 |
उप तहसीलों की संख्या | 3 |
ब्लॉकों की संख्या | 9 |
ग्राम पंचायतों की संख्या | 308 |
नगर पालिकाओं की संख्या | 4 |
नगर निगमों की संख्या | 1 |
जनसंख्या | 1,743,931 |
गांवों की संख्या | 276 |
ऐसी मान्यता है कि अग्रोहा किसी समय महाराजा अग्रसेन के राज्य की राजधानी था। यह नगर अत्यंत सुसमृद्ध और सम्पन्न था, लेकिन कालान्तर में यह विदेशी आक्रमणों से नष्ट हो गया, परन्तु आज अग्रोहा धाम एक धार्मिक एवं दर्शनीय स्थल के रूप में विकसित हो चुका है। इसकी देखरेख एवं विकास अग्रोहा ट्रस्ट द्वारा की जाती है।
अग्रोहा धाम में महाराजा अग्रसेन, कुलदेवी महालक्ष्मी, शक्ति शीला माता मंदिर, मां वैष्णो देवी मंदिर, वीणा वंदिनी सरस्वती मंदिर, हनुमान मंदिर, 90 फुट ऊंची भगवान मारूति की प्रतिमा, महाराजा अग्रसेन का प्राचीन मंदिर, भैरो बाबा का मंदिर, बाबा अमरनाथ की गुफा, हिमानी शिवलिंग, तिरूपति की भव्य मूर्ति एवं शक्ति सरोवर इत्यादि धार्मिक दर्शनीय स्थल हैं।
यहां मनोरंजन के लिए नौका विहार एवं बच्चों के लिए आधुनिक झूले, बाल क्रिड़ा केन्द्र (अप्पूघर) भी हैं। यहां श्रद्धालु अपने बच्चों का मुंडन संस्कार कराने आते हैं। भाद्रपद अमावस्या को यहां बड़ा मेला लगता है। अग्रवाल समाज इसे अपना पांचवां धाम मानता है।
बस स्टैंड के पास बने ओ.पी. जिन्दल पार्क के सामने स्थित गुजरी महल जो बारादरी के नाम से भी जानी जाती है, का एक अपना रोचक इतिहास है। ऐसी किवंदती है कि गुजरी महल सुलतान फिरोजशाह तुगलक ने अपनी प्रेयसी गुजरी के रहने के लिए बनाया था, जो हिसार की रहने वाली थी।
लाट की मस्जिद किले की शान एवं ऐतिहासिक धरोहर है। किले के अंदर फिरोज़शाह ने एक मस्जिद का निर्माण करवाया था, जिसे लाट की मस्जिद के नाम से जाना जाता है।
आयरलैंट का निवासी जार्ज थामस, जिसने सिरसा से रोहतक तक के क्षेत्र पर अपना शासन स्थापित किया, ने जहाज कोठी का निर्माण सन् 1796 में अपनी रिहायश के लिए करवाया था। राज्य सरकार द्वारा सुरक्षित घोषित यह स्मारक देखने में समुद्री जहाज की तरह प्रतीत होता है। प्रारम्भ में यह स्मारक जार्ज कोठी के नाम से जाना जाता था लेकिन समय गुजरने के साथ जार्ज कोठी को जहाज कोठी के नाम से जाना जाने लगा। अब इस ऐतिहासिक स्मारक में क्षेत्रीय पुरातात्विक संग्रहालय स्थापित है।
यह असंरक्षित मकबरा गुरू जम्भेश्वर विश्वविद्यालय में स्थित बड़ा मंडल है जो गुम्बद से ढका है। इसका निर्माण इंटों द्वारा किया गया है। यह हिसार के अन्य मकबरों से भिन्न दिखता है।
इस इमारत के दक्षिण की तरफ दो शिलालेख हैं। ये ऐतिहासिक शिलालेख नक्शी लिपि में दीवारों में चिने गए पत्थरों पर अंकित हैं। शिलालेख में चार पंक्तियों में फारसी में लिखा गया है कि यह मकबरा तथा बाग 975/1567-8 में अबा याजत्रीद के आदेश पर बनाए गए थे।
दूसरा शिलालेख नस्खी लिपि में द़िक्षण प्रवेश की चैखट पर है। शिलालेख की सुंदर लिखावट नींव के पत्थरों की लिखावट से भिन्न है और तुगलक काल का प्रतीत होती है।
नागोरी गेट में स्थित इस प्रसिद्ध जैन मंदिर का निर्माण सन् 1820 में किया गया। इस मंदिर की विशेषता यह है कि इसके निर्माण में किसी व्यक्ति विशेष के नाम का उल्लेख न करके पंचायत का नाम दिया गया है। जैन धर्म के लोगों की इस विशेष आस्था है जिस में अनेक जैन मूर्तियां संग्रहित हैं।
हांसी शहर भारत के प्राचीनतम ऐतिहासिक शहरों में एक है। मनुष्य की सभ्यता के प्रारम्भ से लेकर आधुनिक काल तक के प्रमाण यहां मौजूद हैं। कुषाण काल से लेकर राजपूत काल तक हांसी में रहने वालों का जीवनस्तर वैभवपूर्ण व संपन्न था।
यहां स्थित स्मारक किले के ऊपर बने भवन, बड़सी दरवाजा, मुस्लिम काल की मस्जिदें व दरगाह चार कुतुब आदि पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र हैं।
यह दरवाजा हांसी का ही नहीं, बल्कि हरियाणा की शान है व राष्ट्रीय स्तर के समारकों में से एक है। दरवाजे के निर्माण में वास्तुकला के साथ ही सौंदर्य कला व तकनीक का बड़ी सूक्ष्मता से ध्यान रखा गया था।
इसके अनुसार अलाउद्दीन खिलजी ने सन् 1303 ई0 में इसका निर्माण करवाया था।
हांसी शहर के पश्चिम की तरफ स्थित यह प्राचीन स्मारक चार कुतुब की दरगाह के नाम से प्रसिद्ध है। जमालुद्दीन हांसी (1187-1261) बुरहानुद्दीन (1261-1300) कुतुबउद्दीन मुनव्वर (1300-1303) और रूकनूद्दीन (1325-1397) अपने समय के महान सूफी संत थे और इन्हें कुतुब का दर्जा हासिल था।
ऐसा कहा जाता है कि यह दरगाह उसी स्थान पर है जहां बाबा फरीद ध्यान और प्रार्थना किया करते थे। इस दरगाह के उतरी दिशा में एक गुबंद का निर्माण सुलतान फिरोजशाह तुगलक ने करवाया था। मुगल बादशाह हुमांयू जब अपनी सल्तनत खो बैठा तो उसने दरगाह में आकर दुआ की थी।
इसे यह भी गौरव प्राप्त है कि यहां एक ही परिवार के लगातार चार सूफी संतों की मजार एक ही छत के नीचे है, इसलिए इसका नाम दरगाह चार कुतुब है। यह कहा जाता है कि यदि यहां पांच कुतुब बन जाते तो यह मक्का के स्तर का पवित्र स्थान बन जाता।
राखीगढ़ी दो शब्दों का योग है, राखी एवं गढ़ी। राखी दृषदृवती का अन्य नाम है। अतः इस नदी के किनारे बसे हुए शहर के गढ़ को राखीगढ़ी गहा गया। धौलावीरा, कच्छ, गुजरात के बाद राखीगढ़ी हड़प्पा सभ्यता के समय का एक विशाल स्थल है।
यह दिल्ली के पश्चिम-उत्तर में 130 किलोमीटर की दूरी पर विलुप्त सरस्वती-दृषदृवती नदी के पास नारनौंद तहसील में स्थित है।
कुल पांच विशाल थेह थे और हाल ही में हुई खुदाई के दौरान हड़प्पा सभ्यता के योजनाबद्ध तरीके से निर्मित नगर व्यवस्था, रिहायशी घर जिसमें कमरे, रसोई, स्नानघर, सड़कें, अनाज रखने के बर्तन, पानी निकासी की व्यवस्था, नगर की नाकाबंदी इत्यादि के अवशेष मिले हैं।
हिसार से 23 किलोमीटर की दूरी पर दिल्ली-हिसार-फाजिल्का राजमार्ग-09 पर स्थित प्राचीन स्थल एवं विशाल थेह पर की गई खुदाई से प्राप्त पुरातात्विक महत्व के चिन्ह अग्रोहा के गौरवमयी इतिहास की गाथा की पुष्टि करते हैं।
यह स्थल चैथी शताब्दी तक काफी फला-फूला। इस स्थान पर ईटों से निर्मित भवन के अवशेष कुषाण काल से गुप्तकाल के इतिहास की जानकारी देते हैं। थेह के ऊपर बुद्ध स्तूप परिसर की खोज एक बड़ी उपलब्धि है।
सन् 1777 में महाराजा पटियाला के दीवान् नानूमल द्वारा अग्रोहा थेह पर नगर की रखवाली व सुरक्षा के लिए बनवाया गया शिखर दुर्ग।
हिसार-राजगढ़ मार्ग पर स्थित आधुनिक एवं भव्य चार मंजिला लघु-सचिवालय भवन का निर्माण सन् 1978 में किया गया और सन् 1979 से उपायुक्त, पुलिस अधीक्षक, अतिरिक्त उपायुक्त सहित जिले के प्रमुख विभाग यहां पर स्थापित हैं।
अश्वों के स्वास्थ्य एवं उत्पादन के क्षेत्र में अनुसंधान के लिए राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केन्द्र की स्थापना सातवीं पंच वर्षीय योजना के अन्तर्गत हिसार में की गई।
यह संस्थान अश्वों की प्रमुख बीमारियों के उपचार तथा जैविक विकास हेतु भी कार्य कर रहा है। इसके साथ राष्ट्रीय प्रमाणित सुविधाओं को उपलब्ध कराते हुए यह अश्वों के स्वास्थ्य निरीक्षण एवं निगरानी की विविध व्यवस्था भी कर रहा है।
इस संस्थान की स्थापना 1 फरवरी, 1985 को की गयी।
यह संस्थान भैंसों के सुधार के लिए जीव कोशिका संरक्षण, सन्तुलित आहार, चारा क्षेत्र का विकास, प्रजनन योग्यताओं में बढ़ोतरी, दूध, मांस तथा खाल के स्वास्थ्य प्रबन्धन आदि पहलुओं पर अनुसंधान करता है।
यह केन्द्र सन् 1963 में एक प्रशिक्षण संस्थान के रूप में शुरू हुआ। उत्तरी क्षेत्रीय प्रशिक्षण सम्बन्धी आवश्यकताओं को पूरा करने के अलावा संस्थान में डीजल, पेट्रोल और मिट्टी के तेल से चलने वाले छोटे इंजनों, सिंचाई के पम्पों और पौधरक्षण यंत्रों की प्रमाणक, भिन्न योजनाओं के अन्तर्गत भारतीय मानक संस्थान द्वारा प्रमाणित जांच प्रयोगशाला भी स्थापित है।
हरसैक के नाम से प्रख्यात चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के प्रांगण में 26 फरवरी 1986 को स्थापित यह केन्द्र विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग हरियाणा की एक स्वायत संस्था है।
इसका उद्देश्य अन्तरिक्ष तकनीक, भू-सूचना प्रणाली तथा ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम आदि आधुनिक तकनीकों के माध्यम से राज्य के प्राकृतिक संसाधनों, पर्यावरण तथा ढांचागत सुविधाओं के सर्वेक्षण तथा प्रबन्धन में सहायता करना है।
इसकी स्थापना सन् 1974-75 में आस्ट्रेलिया सरकार के सहयोग से की गई थी। यहां पर सैंकड़ो पशु प्रमुखतया जर्सी फेसियन और क्रास नस्ल के हैं। फार्म 500 एकड़ भूमि पर स्थित है तथा हिसार से 7 किलोमीटर की दूरी पर हिसार-बरवाला सड़क पर स्थित है।
इसकी स्थापना 1969-70 में आस्ट्रेलियन सरकार के सहयोग से की गई थी।
यह फार्म लगभग 2000 हेक्टेयर भूमि पर विकसित है तथा हिसार से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
हिसार शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभा रहा है। यहां स्थापित तीन विश्वविद्यालय एवं एक मेडिकल काॅलेज प्रदेश व पड़ोसी राज्यों से आने वाले छात्र-छात्राओं को विज्ञान, व्यावसायिक एवं सामयिक शिक्षा की मांग को पूरा कर रहे हैं।
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना द्वारा हिसार में स्थापित कैम्पस वेटरनरी काॅलेज 2 फरवरी, 1970 को हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार के रूप में अस्तित्व में आया जो वर्तमान में चौ. चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार के रूप में विकसित हैं, जिसमें एग्रीकल्चर रिसर्च सेंटर, होम सांइस, बेसिक सांइस, स्पोट्र्स एवं एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग व कई अन्य कोर्स की शिक्षा दी जाती है।
इस विश्वविद्यालय की संरचना में प्रथम कुलपति ए.एल. फ्लेचर, आई.सी.एस. (सेवानिवृत) का बहुत बड़ा योगदान रहा। यह विश्वविद्यालय कृषि शिक्षा, शोध एवं उत्तम तरीके के बीज विकसित करने एवं उसके उत्पादन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। कृषि के क्षेत्र में नित नए आविष्कार के कारण यह विश्वविद्यालय देश के खाद्यान्न भण्डार को समृद्ध बनाने में सक्रिय भूमिका निभा रहा है।
गुरू जम्भेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, हिसार की स्थापना 20 अक्तुबर 1995 को की गई। इस विश्वविद्यालय में विज्ञान, प्रौद्योगिकी से संबंधितत स्नातक एवं स्नातकोतचर तथा शोध के विविध पाठ्यक्रम संचालित है।
शैक्षणिक विकास के क्रम में इस विश्वविद्यालय का माॅनीटोबा वि.वि., मेरीलैण्ड वि.वि., जार्ज वाशिंगटन वि.वि., टी.सी.जी. लाइफ सांइसेज, कोलकाता, बार्क, मुम्बई, आई.सी.आई. नई दिल्ली, एडिसिल नोएडा आदि के साम एम.ओ.यू. अनुबंध है। हाल ही में इस विश्वविद्यालय में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के प्रेक्षागृह का निर्माण किया गया है।
लाल लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय की स्थापना 1 दिसम्बर 2010 को की गई। पशु चिकित्सा महाविद्यालय का साठ वर्षों का इतिहास गौरव पूर्ण रहा है।
रोहतक जिला – Haryana GK Rohtak District
हिसार के चौ. चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय से जुड़ा यह महाविद्यालय अब ‘पंजाब केसरी’ राष्ट्रभक्त लाला लाजपत राय की स्मृति में एक स्वतंत्र विश्वविद्यालय का रूप ले चुका है। शैक्षणिक सुविधाओं के अतिरिक्त/ पशुचिकित्सालय, प्रयोगशालाएं, शोध हेतु पशु शाला एवं बाड़ा उपलब्ध है। इस विश्वविद्यालय के नये परिसर का निर्माण 300 एकड़ भूमि खण्ड पर किया जा रहा है।
कृषि, शिक्षा के क्षेत्र में विकास के साथ-साथ हिसार ने औद्योगिक एवं अन्य क्षेत्र के विकास में नये आयाम स्थापित किए। सन् 1947 से पहले हिसार में केवल एक बिनौला फैक्टरी थी। आजादी के बाद अनेक छोटे-बड़े उद्योग स्थापित हुए परन्तु वास्तविक विकास 1 नवम्बर 1966 को हरियाणा प्रांत बनने के बाद हुआ।
जहां हरियाणा टेक्सटाईल मिल की स्थापना हुई वहीं जिंदल उद्योग ने हिसार को प्रसिद्धि दिलवाई। आयरन फरनिश, सरिया, बाल्टी आदि विभिन्न प्रकार के उद्योगों ने शहर के विकास में अहम् भूमिका निभाई तो जिंदल उद्योग को हिसार को उद्योग जगत में नाम दिलाने का श्रेय जाता है। विद्युत ऊर्जा आपूर्ति हेतु राजीव गांधी थर्मल पावर प्लांट खेदड़ स्थापित किया गया है। जो प्रगति के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित हो रहा है।
Q. हिसार किस भाग में स्थित है?
Ans. हरियाणा के पश्चिमी भाग में स्थित है. इसके पुरुव में जींद, उतर में फतेहाबाद, दक्षिणी में भिवानी जिला और पश्चिमी में राजस्थान राज्य स्थित है?
Q. हिसार की स्थापना कब हुई थी?
Ans. 1 नवम्बर, 1966
Q. हिसार का क्षेत्रफल कितना है?
Ans. 3, 983 वर्ग कि. मी.
Q. हिसार का मुख्यालय कहाँ स्थित है?
Ans. हिसार
Q. हिसार का उपमंडल कौन-कौन सा है?
Ans. हिसार, हांसी, बरवाला
Q. हिसार की तहसील कहाँ है?
Ans. हिसार, हांसी, नारनौंद, बरवाला, बास और आदमपुर
Q. हिसार की उप-तहसील कहाँ स्थित है?
Ans. उकलाना मंडी, बालसमन्द, बास.
Q. हिसार का खण्ड कौन-सा है?
Ans. आदमपुर, बरवाला, हिसार-1, हिसार-2, नारनौद, अग्रोहा, उकलाना, हाँसी-1, हाँसी-2
Q. हिसार की प्रमुख फसलें कौन-सी है?
Ans. गेंहू व कपास
Q. हिसार के अन्य फसलें कौन-कौन सी है?
Ans. चना, बाजरा, चावल, सरसों, गन्ना आदि
Q. हिसार का प्रमुख उघोग धंधे कौन-से है?
Ans. कपास छंटाई, हैण्ड लूम वस्त्र, कृषि यंत्र व सिलाई मशीन, इस्पात उघोग
Q. हिसार का प्रमुख रेलवे स्टेशन कौन-सा है?
Ans. हिसार
Q. हिसार की जनसंख्या कितनी है?
Ans. 17, 43, 931 (2011 के अनुसार)
Q. हिसार के पुरुष कितने है?
Ans. 9, 31, 562 (2011 के अनुसार)
Q. हिसार की महिलाएँ कितनी है?
Ans. 8, 12, 369 (2011 के अनुसार)
Q. हिसार का जनसंख्या घनत्व कितना है?
Ans. 438 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी.
Q. हिसार का लिंगानुपात कितना है?
Ans. 872 महिलाएँ (1,000 पुरुषों पर)
Q. हिसार का साक्षरता दर कितना है?
Ans. 72. 89 प्रतिशत
Q. हिसार का पुरुष साक्षरता दर कितना है?
Ans. 82. 19 प्रतिशत
Q. हिसार की महिला साक्षरता दर कितना है?
Ans. 62. 25 प्रतिशत
Q. हिसार का प्रमुख नगर कौन-सा है?
Ans. हिसार, उकलाना मंडी, बरवाला, नारनौद, हांसी
Q. हिसार का पर्यटन स्थल कौन-सा है?
Ans. ब्लू बर्ड, फ्लेमिंगो.
Q. हिसार का विशेष क्या है?]
Ans. जिलें में तीन विश्वविधालय है एवं दो राष्ट्रीय संस्थान
निर्देश : (प्र. 1-3) नीचे दिए गये प्रश्नों में, दो कथन S1 व S2 तथा…
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