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हिमाचल प्रदेश के ऐतिहासिक राष्ट्रीय आंदोलन

  • 1885 ई. में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की योजना ह्रामु ने शिमला में बैठकर बनाई थी।
  • महात्मा गांधी की अगुवाई में कांग्रेस का पहला जुलूस शिमला में माल रोड से निकाला गया।
  • कांगड़ा के राजा प्रताप चंद, कुल्लू के भूतपूर्व राजा किशन सिंह के पुत्र प्रताप सिंह और रामपुर के नरेश शमशेर सिंह ने राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए संकल्प लिया। इन राजाओं ने देश के स्वतंत्रता प्रेमी क्रांतिकारियों से संपर्क बढ़ाया।
  • 1914-15 ई. में पहाड़ी रियासतों में क्रांतिकारियों के बल और शक्ति में लगातार वृद्धि होने लगी।  इनमें प्रमुख था- गदर पार्टी का संगठन।
  • मई 1921 में शिमला में कांग्रेस का प्रथम प्रतिनिधि संगठन बनाया। इसमें शिमला नगर के मौलवी गुलाम मुहम्मद कांग्रेस के प्रधान चुने गए थे।
  • 11 मई, 1921 को महात्मा गांधी शिमला आए थे। गांधी जी के शिमला आगमन से इस पहाड़ी क्षेत्र के लोगों का ध्यान राष्ट्रीय आंदोलन के विचारधारा की तरफ मुड़ गया।
  • 1929 ई. में शिमला में कांग्रेस को पुनः संगठित किया गया और उसके सदस्यों की संख्या में भी बढ़ोतरी हुई। पहाड़ी रियासतों के अनेक आंदोलनकारी भी शिमला नगर के आकर कांग्रेस के कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे।
  • 27 फरवरी 1930 ई. को महात्मा गांधी ने देश में सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू किया। कांगड़ा और शिमला के कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने इस आंदोलन में जोर-शोर से भाग लिया।  आंदोलनकारियों को पकड़कर पुलिस ने अनेक तरह से प्रताड़ित कर जेल भेज दिया।
  • मार्च 1931 ई. को वायसराय लॉर्ड इर्विन ने आंदोलन से उत्पन्न स्थिति के समाधान के लिए समझौता हेतु महात्मा गांधी को शिमला बुलवाया।
  • 26 अगस्त, 1931 ई. को महात्मा गांधी पुन: समझौते पर हस्ताक्षर हेतु शामिल हो गए।

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