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जंतुओं में शारीरिक समन्वयन (Physical coordination in animals)

जंतुओं में शारीरिक क्रियाओं का नियंत्रण और समन्वय दो प्रकार से होता है – तंत्रिकीय नियंत्रण एवमं समन्वय (nervous control and co- ordination ), रासायनिक नियंत्रण एवम समन्वय ( chemical control and co-ordination ). आज इस आर्टिकल में हम आपको जंतुओं में शारीरिक समन्वयन(Physical coordination in animals) के बारे में बताने जा रहे है.

जंतुओं में शारीरिक समन्वयन (Physical coordination in animals)

जंतुओं में शारीरिक क्रियाओं का नियंत्रण एवं समन्वय संवेदी अंगों तंत्रिका तंत्र एवं अंतः स्रावी तंत्र द्वारा होता है. संवेदी अंग कुछ प्रमुख संवेदी अंग है.

जंतुओं में शारीरिक समन्वयन
जंतुओं में शारीरिक समन्वयन (Physical coordination in animals)

त्वचा

त्वचा शरीर का ब्राहा आवरण है. यह शरीर की सुरक्षा का पहला बाह्य कारक है. त्वचा का बाहरी सतह उपक्रम मैया एपिडर्मिस होता है जो एकटोड्रम से बनता है. आर्थिक क्षेत्र कर्म या डर्मिस होता है जो मिसोप्द्र्म से बनता है.

श्रम में अनेक हो तंत्र तंत्रिका छोर होते हैं. कुछ विशेष संवेदी कोशिकाएं भी होती है. त्वचा में तवक संवेदी होते हैं. जो विभिन्न प्रकार के उद्दिप्नो को ग्रहण करते हैं .

नेत्र

नेत्र प्रकाश संवेदी अंग है. दृष्टि हेतु संवेदी अंगों को प्रकाश ग्राही पाए जाते हैं, जो विशिष्ट रंग दे दिया के प्रकाश की ऊर्जा को तांत्रिक तंत्र अंगों के कार्य विभव में परिवर्तित कर देते हैं.प्रत्येक नेत्र एक खोकला अंग है. जो प्राय नेत्रगोलक कहलाता है. नेत्रगोलक की दीवार में परेतिन  सेकेन्द्री सत्र होते हैं.

श्वेत पटल

यह सबसे भारी सत्र है जो सफेद तंतु में ऊतक का बना होता है तथा जिसमें पारदर्शी कार्निया पाई जाती है. कार्निया कंजी कटवा नामक पतली तथा पारदर्शी झिल्ली से घिरा होता है.

रक्त पटल

आयरिश के केंद्र में छोटा द्वारक होता है जिसे प्यूपिल कहते हैं, एक पारदर्शी जलीय द्रव जिसे जलीय ह्यूमर कहते हैं.

दृष्टिपटल

यह सबसे भीतरी प्रकाश संवेदी सत्र है, यह दो प्रकार की कोशिकाओं प्रकाशग्राही सालका तथा शंकु कोशिकाओं से मिलकर बना होता है.शलाकाओ  में बैंगनी रंग का प्रकाश संवेदी वर्णक रोडोपिसन में पाया जाता है.

श्लाकाएं कम प्रकाश तथा गहरे प्रकाश के लिए भी सवेंदी होती है.शंकुओ  में बैंगनी रंग का प्रकाश संवेदी वर्णक आयोडापिसंन पाया जाता है तथा आयोडापिसन चमकीले प्रकाश सारण ग्रहण के लिए संवेदी होता है.

बहुत से घरेलू जन्तु  तथा शार्क में रंगीन दृष्टि नहीं होती. बहुत से रात्रिचर प्राणियों जैसे उल्लू की दृष्टि पटेल में केवल श्लाकाएं होती है, जिसके कारण में अंधेरे में देखने में सक्षम होते हैं. मधुमक्खियां पराबैंगनी प्रकाश को देख सकती है, वर्णांधता तथा दाल टूरिज्म सपनों की कमी के कारण होती है,

निकट दृष्टि दोष

प्रतिबिंब दृष्टिपटल के आगे बनता है. इसका निवारण अवतल लेंस के द्वारा किया जाता है.

दूर दृष्टि दोष

प्रतिबिंब दृष्टि पल के पीछे बनता है. इसका निवारण उत्तल लेंस के द्वारा किया जाता है. मुर्गे की दृष्टि पटेल में केवल शंकु पाए जाते. हैं.

कर्ण

मनुष्य का कर्ण से 8-80 डेसिबल की ध्वनि को सुन सकता है. चमगादड़ प्राणियों को उत्पन्न करता है तथा सुन सकता है. ध्वनि की तीव्रता डेसीबल में नापी जाती है.

मनुष्य में कर्ण पल्लव अवशेषी अंग है, जो हिल-डुल नहीं सकते परंतु कुछ जंतुओं जैसे- कुत्ता, बिल्ली, खरगोश, हाथी यह हिल-डुल सकते हैं.

बाह्य कर्ण

इसमें एक करण पालि कर्ण पल्लव तथा एक बाह्य श्रवण नल्लिका होती है. यह श्रवण तरंगों को एकत्र करके बाह्य नलिका की और भेजती है.

मध्य कर्ण

कर्ण सुनने तथा संतुलन बनाने में सहायक है. मध्य कर्ण में तीन छोटी अस्थियां होती है जो करुणया श्रवण अस्तियां कहलाती है. कर्ण हस्तियां हथौड़े के आकार की मेलीयस निहाई नुमा इनका तथा घोड़े की सात्नुमा स्टेपिस होती है .

अंत कर्ण

इसमें एक अस्थाई लैबरीन्थ तथा एक झिलियाँ लेबिरिन्थ होती है.

जिह्रा

स्वाद कलिकाएं स्वाद संवेदन के अंग है. स्वाद कलिकाएं सलेशम झिल्ली के पेपिली पर उपस्थित होती है जो जिव्हा की सतह पर पाए जाते हैं. मनुष्य की जिव्हा में 10,000 स्वाद कलिकाएं होती है.

स्वाद कलिका पर सवार ग्राही कोशिकाएं होती है जो रसायन स्वेदी के रूप में कार्य करती है. मनुष्य में चार विभिन्न प्रकार के स्वाद जीभ के विभिन्न भागों द्वारा अनुभव किए जाते हैं.

जिहा का अग्रभाग मीठे स्वाद के लिए पिछला कड़वे स्वाद के लिए अग्रसर स्वतंत्र सिरे के पार्श्व और नमकीन स्वाद के लिए तथा पश्च पार्श्व खट्टे सवेंद के लिए संवेदी होते हैं. मिर्च का सवाद जिहा के दर्द ग्राही के द्वारा ग्रहण किया जाता है.

नाक

गंध ग्राही, घ्राण उपकला के बने होते हैं, घ्राण संवेदी कोशिकाएं रसायन संवेदी के रूप में कार्य करती है. यह विशेष रसायनों के द्वारा उत्तेजित होती है तथा स्वेदनाएं उत्पन्न करती है. उपकला का रूपांतरण है.

सभी बहु कोशिका जंतुओं में ग्राही द्वारा ग्रहण किए गए उद्द्पिनो  का अनुभव करने उन्हें शरीर के विभिन्न भागों में संचारित करने तथा कार्यकर अंगो द्वारा प्रतिक्रियाओं को कार्य एवं करने वाले तंत्र को तंत्रिका तंत्र कहते हैं.

तंत्रिका तंत्र केवल जंतुओं में पाया जाता है जबकि पौधों में अनुपस्थित होता है. यह तंत्रिका तंत्र कौन से बने उसको के माध्यम से शरीर के विभिन्न क्रियाओं को नियंत्रित करता है.

तंत्रिका कोशिका तंत्रिका तंत्र की इकाई होती है तथा यह शरीर की सबसे लंबी कोशिकाएं हैं. तंत्रिका तंत्र की मुख्य भाग होते हैं जैसे- केंद्रीय तंत्रिका त्तन्त्र, परिधीय तंत्रिका तंत्र, स्वायत्त तंत्रिका तंत्र,

प्रतिवर्ती क्रिया

प्रतिवर्ती क्रिया किसी उद्दीपन के प्रति कार्य कर उत्तक द्वारा होने वाली अचेतन एवं अनैच्छिक अनुपक्रीया होती है.इसका नियंत्रण मेरु रज्जु द्वारा होता है तथा इसके पद को प्रतिवर्ती चाप कहते हैं.

अंत स्रावी तंत्र

शरीर की उपापचई क्रियाओं के लिए आवश्यक रासायनिक पदार्थों को सत्यवती करने वाली तथा रचना एवं कार्य में विशिष्ट कोशिकाओं के समूह ग्रंथियां कहलाती है.ग्रंथियां दो प्रकार की होती

अंत स्रावी ग्रंथियां

अंत स्रावी ग्रंथियां में अपने स्राव के लक्ष्य अंगों तक ले जाने हेतु नलिकाएं नहीं होती है.

अंत स्रावी तंत्र विभिन्न अंत स्रावी ग्रंथियों द्वारा निर्मित होता है. यह अपना रासायनिक पर यह हार्मोन सीधे रुधिर में स्रावित करती है, जहां से यह विभिन्न उत्पादों तक पहुंच कर कार्य की को नियंत्रित करता है.

हार्मोन अंत स्रावी ग्रंथियों से अल्प मात्रा में स्रावित होने वाले कार्बनिक पदार्थ है जो जैव उत्प्रेरकों के रूप में कार्य करते हैं तथा प्रथम संदेश वाहक रूप होते हैं. यह अनंत वातावरण एवं कार्य की को नियंत्रित करते हैं.

बहि स्रावी ग्रंथियां

इन ग्रंथियों में नलिकाएं होती है. यह अपना श्रावण नलिकाओं से स्रावित केयर लक्ष्य तक पहुंचाती है,  उदाहरण – त्वचा की स्वेद ग्रंथियां, तेल ग्रंथियां, लार ग्रंथियां, यकृत आदि

पौधों में परिवहन

कंकाल तंत्र

कंकाल तंत्र में आस्तियां तथा उनसे  संबंधित सूचनाएं सम्मिलित है, जो शरीर का ढांचा बनाती है और उसे निश्चित प्रकार प्रदान करती है. स्त्रियों को कंकाल तंत्र का अंग कहा जाता है.

इसमें अखियां पेशियां इत्यादि उत्तक सम्मिलित होते हैं, स्त्रियां एवं पर्शिया शरीर के अंगों के विभिन्न विधियों एवं प्रचलन में सहायक होती है. मनुष्य में कुल 206 अस्थियां पाई जाती है.

जनन तंत्र

वह प्रक्रिया जिसमें लोगों से नए जीवो की उत्पत्ति होती है जनन तंत्र कहलाती है. जन्म दो प्रकार का होता है, लिंग व आलिंग. इन कोशिकाओं के निर्माण तथा उनके युग्मन के बिना जनन आलिंगिन जनन कहलाता है.

पुष्पीय पादपों में लैंगिक जनन

आवृत्तबीजी (पुष्पीय) पादपों में लैंगिक जनन पुष्पों द्वारा होता है. उमंग पुष्प का नर जनान्नग होता है.

जिसमें पुकेश्र उपस्थित होते हैं. इनके द्वारा प्रांगकण उत्पन्न होते हैं

आवृतबीजी पौधे का मादा जननांग ज्यांग होता है.

यह अन्डास्य वर्तिका तथा वर्तिकाग्र से बना होता है.

पौधों में श्वसन

पौधों में श्वसन क्रिया के दौरान कोशिकाओं एवं वातावरण के बीच गैसीय आदान-प्रदान होता है.

गैसों का यह आदान-प्रदान मूलरोम में वातनधरो एवं पर्णन्ध्रो की सहायता से होता है.

नियंत्रण एव समन्वयन

प्रत्येक जंतु में वातावरण से क्रिया करने एवं प्रतिक्रिया व्यक्त करने की क्षमता होती है.

पौधों में प्रतिक्रियाओं का नियंत्रण में विशिष्ट रसायनों या पादप हार्मोन द्वारा होता है.

जबकि जंतुओं में इसके लिए विशेष संवेदी अंग तंत्रिका तंत्र व हार्मोन उत्तरदाई होते हैं.

आज इस आर्टिकल में हमने आपको जंतुओं में शारीरिक समन्वयन, पौधों और जंतुओं में समानता, जंतु वर्गीकरण, पौधों और जंतुओं में अंतर, संघ पोरिफेरा. कोर्डेटा वर्गीकरण. जंतु जगत का वर्गीकरण के बारे में बताया है, अगर आपको इससे जुडी कोई अन्य जानकारी चाहिए तो आप कमेंट बॉक्स में कमेंट करके पूछ सकते है.

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