आज इस आर्टिकल में हम आपको कोशिका विज्ञान – कोशिका का आकार और प्रकार के बारे में बताने जा रहे है जिसकी मदद से आप आपने एग्जाम की तैयारी आसानी से कर सकते है.
कोशिका की खोज रॉबर्ट हुक ने 1665 में की थी. कोशिका सभी जीव धारियों की सरचनात्मक एवं कार्यात्मक इकाई है. का सिद्धांत स्लाइडेंन एवं श्वान (1838- 1839) द्वारा प्रतिपादित किया गया था, जिसके अनुसार सभी जीव एक अथवा अधिक कोशिकाओं द्वारा निर्मित होते हैं.
कोशिका की विभिन्न आकृतियां होती है जैसे- जीवाणु कोशिकाएं, लंबाकार, सर्पिल, तथा कामा के आकार की होती है.जबकि अमीबा एवं ल्यूकोसाइटस अपनी आकृति बदलते रहते हैं.
विभिन्न जंतुओं एवं पौधों की कोशिकाओं का आकार भिन्न भिन्न होता है. सबसे छोटी कोशिका माइकोप्लाज्मा 10 UM की होती है, जीवाणु भी सूक्ष्म होते हैं. तथा सबसे बड़ी कोशिका सतूमुर्ग का अंडा जिसका व्यास लगभग 10 इंच होता है.
कोशिकाओं की संख्या भी भिन्न-भिन्न होती है. एक कोशिकीय जीवों में एक कोशिका तथा एक सामान्य मनुष्य में लगभग 6000 बिलियन कोशिकाएं पाई जाती है.
केंद्रक की उपस्थिति तथा अनुपस्थिति के आधार पर कोशिकाएं प्रोकैरियोटिक एवं यूकैरियोटिक दो प्रकार की होती है-
इसमें सुविकसित सत्य केंद्रक व केंद्रक कला का अभाव होता है.तथा DNA कोशिका द्रव में स्वतंत्र रुप से उपस्थित होता है/ इसमें कल आयुक्त से कोशिकांग जैसे- माइटोकॉन्ड्रिया, लवक, गलाजिकाय, अंत प्रद्व्यी जालिका आधी अनुपस्थित होते हैं, जबकि 70 S राइबोसोम उपस्थित होते हैं. उदाहरण – जीवाणु, नीली, हरि, शेवाल
इसमें सत्य केंद्रक पाया जाता है जिसमें DNA उपस्थित होता है इसमें केंद्रक कला एवं क्लाइव कोशिकांग भी उपस्थित होते हैं उदाहरण – उस पादप एवं जंतु कोशिकाए
कोशिका का सबसे बाहरी आवरण कोशिका कला है, जो पादप कोशिका में कोशिका भित्ति, मैं सुरक्षित है. कोशिका कला के अंदर उपस्थित जीवित पदार्थ को जीवद्रव्य कहते हैं. जीव द्रव्य को दो भागों बांटा जा सकता है. – केंद्रक, कोशिका द्रव्य, कोशिका में सबसे महत्वपूर्ण सूचना केंद्रक है, जिसमें क्रोमीटीन पाया जाता है. क्रोमेटिन में अनुवांशिक पदार्थ डीएनए पाया जाता है.
नई कोशिकाओं के निर्माण हेतु डीएनए देवगन की क्रियाविधि केंद्रक में संपन्न होती. DNA कोशिका की सभी क्रियाओं को नियंत्रित करता है. अंत : केंद्र को कोशिका का मस्तीक या कोशिका का नियंत्रण कक्ष भी कहते हैं.केंद्रक एवं प्लाज्मा कला के मध्य का संजीव पदार्थ है कोशिकाद्रव्य कहलाता है. जिसमें विभिन्न कोशिकांग पाए जाते हैं. कोशिकांग कोशिका का 1% भाग है जिसकी विचित्र रचना एवं कार्य होते हैं.
माइटोकॉन्ड्रिया को सर्वप्रथम कोलिकर ( 1850) कीटो की रेखित पेशियों में देखा* किन्तु इनकी खोज का श्रय अल्टमान (1890) को जाता है. उसने इन्हें बायो प्लांसट कहा. जबकि बंडा ( 18079) ने इन संरचनाओ के लिए माइटोकॉन्ड्रिया शब्द प्रतिपादित किया.
माइटोकॉन्ड्रिया सभी यूकेरियोटिक कोशिकाओं में पाए जाते हैं. तथा कोशिका में ऑक्सीश्वसन के केंद्र है. माइटोकॉन्ड्रिया दो झिलियों से बने आवरण द्वारा घिरा होता है.आंतरिक झील्ली मैं भीतर की ओर कुछ वलयन पाए जाते हैं जो कृष्टि कहलाते हैं.
माइटोकॉन्ड्रिया में मैट्रिकस, राइबोसोम, एक कुंडलीत डीएनए अणु एवं फास्फेट अणु उपस्थित होते हैं.माइटोकॉन्ड्रिया को कोशिका का ऊर्जा ग्रह भी कहा जाता है.
पोर्टर क्लाउडे एवं फुलाम ( 1945) ने कोशिकाद्रव्य में अंत प्रद्रव्यी जालिका का वर्णन किया. यह चपटे झिल्ली युक्त तंत्र सिस्टरनि से बनी होती है. यह केंद्र को ब्राहा और आवरण जुडी होती है. यदि अंत प्र्द्रव्यी जालिका की सतह पर राइबोसोम पाए जाते हैं तो यह खुर्दरी या रुक्ष अंत प्र्द्रव्यी जालिका कहलाती है.
यह प्रोटीन संश्लेषण का मुख्य केंद्र है. राइबोसोम विहिन् अंत प्र्द्रव्यी जालीका, चिकनी अंत प्र्द्रव्यी जालिका कहलाती है. यह लिपिड एवं सिटीरॉयड संश्लेषण का केंद्र है.
राइबोसोम को सर्वप्रथम पेलेड ने सन 1955 में देखा.यह बहुत ही सूक्ष्म कोशिकांग है, दो छोटी एवं एक बड़ी उप -इकाई के बने होते हैं.यह प्रोटीन एवं आर एन ए द्वारा निर्मित होते हैं.
हरित लवक एवं माइटोकॉन्ड्रिया में कुछ छोटे राइबोसोम पाए जाते हैं. राइबोसोम प्रोटीन संश्लेषण में भाग लेते हैं. यह खुरदरी अंतर प्र्द्रव्यी जालिका अथवा कोशिका द्रव्य में पाए जाते हैं. पर स्थित राइबोसोम का समूह है पालीसोम कहलाता है.
गर्ल जी का एक ही खोज कैमिलो गोल्जी ( 1898) ने की थी. यह चिट्टी कलाइयां वे साइकिल एवं सिस्त्रनी से बनी होती है.गॉल्जीकाय कुछ पदार्थों के संसाधन एवं परिवहन में सहायक है. गॉल्जीकाय जीवाणुओं नीली हरी शैवाल में अनुपस्थित होती है .
इन की खोज क्रिस्टिन डी डूवे (1949) ने की थी, यह एक पल झिल्ली द्वारा घिरा वृताकार., थेलिनुमा कोशिकांग है, जिसमें पाचक एंजाइम पाए जाते हैं. यह पाचक एंजाइम विभिन्न संस्थाओं एवं अनुभवों को नष्ट करते हैं.
ये पुराने कोशिकागों, जीवाणुओं आदि के साथ कभी-कभी पोषक कोशिका को भी नष्ट कर देते हैं .इसलिए इन्हें आत्महत्या की थैली भी कहा जाता है.
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