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सोल्डरिंग और ब्रेजिग से जुडी जानकारी

वेल्डिंग प्रक्रिया में जॉब की धातु को पिघलने तक गर्म किया जाता है तथा जब दोनों बेस धातुओं को आपस में मिलाया जाता है फिर दोनों को ठंडा होने के लिए छोड़ दिया जाता है। इस में जोड़े जाने वाली सच है अपना वास्तविक स्वरूप नहीं रख पाती। परंतु यदि जोड़े जाने वाली दोनों सतहों के वास्तविक स्वरूप को सुरक्षित रखते हुए जोड़ना हो तो उन्हें सोल्डरिंग या ब्रैंजीग द्वारा ही जोड़ा जा सकता है।

इन विधियों में जोड़े जाने वाली धातुओं की सतहों को पिघलाने की आवश्यकता नहीं होती। मेल्टिंग तापक्रम से काफी कम तापक्रम पर ही सोल्डर या स्पैल्डर की सहायता से जोड़ा जाता है। इस विधि में सोल्डर या स्पैल्डर फिलर मेंटल के रूप में प्रयोग होती है। सोल्डर का मेल्टिंग पॉइंट 427 डिग्री सेल्सियस से कम तथा बरेज का मेल्टिंग पॉइंट 427 डिग्री सेल्सियस से अधिक परंतु 650 डिग्री सेल्सियस से कम रहता है।

साफ़ की गई धातु की सतहों पर जब सोल्डर या ब्रेज अपने मेल्टिंग प्वाइंट से अधिक तापक्रम पर लाकर फैलाया जाता है तो यह धातुएं आपस में एक मिश्रण तैयार कर लेती है। इस मिश्रण को इंटरमैटेलिक कंपाउंड कहते हैं। कुछ फिलर मेंटल कैपिलरी एक्शन के द्वारा जोड़े जाने वाली सतहों  के बीच में चली जाती है और ठंडा होने पर उन्हें जोड़ देती है। सोल्डर उसी धातु को किया जा सकता है जो धातु सोल्डर के साथ मिलकर इंटर मैटेलिक कंपाउंड बनाती है।

सोल्डर

सोल्डरिंग को नर्म टांका का लगाया जाना भी कहा जाता है क्योंकि यह जोड़ बहुत कम तापक्रम पर लगाया जाता है। तीन तथा लेट जैसी नरम धातु को विभिन्न प्रतिशतता में मिलाकर सोल्डर बनाया जाता है।

कलई का गलनांक 235 डिग्री सेल्सियस तथा लेड का गलनांक 325 डिग्री सेल्सियस होता है। सबसे अधिक प्रयोग होने वाला सोल्डर टीन तथा लैड को 63:37 के अनुपात में मिलाने से बनता है। इसका गलनांक कम होकर 183 डिग्री सेल्सियस रह जाता है। टिन लैंड सोल्डर के अतिरिक्त विभिन्न अन्य मेंटल के साथ भी टिन सोल्डर बनाता है।

सोल्डर के रूप में साधारणयता टिन तथा लैड की मिश्र धातु ही प्रयोग की जाती है। विभिन्न धातुओं के लिए इसका कंपोजिशन अलग अलग रहता है.

अच्छे सोल्डर के गुण

अच्छे फोल्डर में निम्नलिखित गुण होना चाहिए:-

  • यह आसानी से बेस मेटल की सतह पर फैलना चाहिए। उन्हें गीला करने का गुण इसमें होना चाहिए। इसे सोल्डर की वेटिंग प्रॉपर्टी चाहते हैं।
  • बेस मेटल की ऊपरी सतह को अपने अंदर घोलकर एलॉय बनाने की क्षमता होनी चाहिए। जिससे कि अच्छा मैटेलिक बॉन्ड बन सके, इसे सोल्डर में एलोइंग प्रॉपर्टी कहते हैं।
  • सोल्डर का गलनांक परस्पर जुड़े जाने वाली धातुओं के गलनांक से कम से कम 60 डिग्री सेल्सियस कम होना चाहिए।
  • पिंघली अवस्था में सोल्डर में बारिक रिक्त स्थानों के द्वारा अंदर तक पहुंचने का गुण होना चाहिए।
  • सोल्डर, मजबूर, साफ-सुथरा और सुंदर बनाने में सक्षम होना चाहिए।

सोल्डर का फ्लक्स

सोल्डर करने में फ्लक्स का महत्वपूर्ण योगदान है। सोल्डर की जाने वाली सतह का आक्साइड रहित होना, चिकनाई रहित होना तथा अन्य गंदगी से रहित होना, गैस वेल्डिंग या आर्क वेल्डिंग की तुलना में अधिक आवश्यक है क्योंकि सोल्डर करने में बेस धातु का प्रयोजन नहीं होता है। सोल्डर फ्लक्स निम्न कार्य करते हैं-

  • सोल्डर करने वाली सतह से आक्साइड को अपने में घोलकर बाहर ले आता है तथा फिर से आक्साइड बनने से रोकता है।
  • पिंघले हुए सोल्डर को ऑक्साइड बनने से रोकता है।
  • सोल्डर का पृष्ठ तनाव कम करता है,जिससे यह पतला होकर ,समस्त जोड़ में फैल जाता है।  फ्लक्स सोल्डरिंग आयरन का ताप जोड़ के तल में पहुंचाने में सहायता करता है।

अच्छे फ्लक्स में कम ताप पर ही धातु तथा फोल्डर में से आक्साइड बाहर निकालने की सामर्थ्य होनी चाहिए। इसका वाश्पानांक से अधिक होना चाहिए अन्यथा वह सफाई नहीं कर पाएगा। इसकी बेस मेटल या सोल्डर की मेंटल से कोई रासायनिक क्रिया नहीं होनी चाहिए। बाजार में फ्लेक्स पाउडर पेस्ट या द्रव के रुप में उपलब्ध है।

सोल्डरिंग की विधि

सोल्डरिंग करने से पहले सतह को साफ करना जरूरी होता है। गंदगी के रूप में धूल कण, ग्रीस या तेल आदि मोर्चा या मेंटल के ऑक्साइड से चिपटे रहते हैं, इन्हें हटाने के लिए में के निकलवाया रासायनिक विधियाँ प्रयोग की जा सकती है।

मेकेनिकल विधियां

स्टील वूल से रगड़ कर, वायर, ब्रूस से या स्क्रेपर से रगड़कर ,शॉट ब्लास्ट करके या फिर रेत से ग्राइंड करके सतह को साफ किया जा सकता है।

रासायनिक विधियां

ग्रीस या आयल को सॉल्वेंट की मदद से सॉल्वेंट के रूप में अल्कोहल कार्बन टेट्राक्लोराइड या ट्राई क्लोरो एथिलीन को प्रयोग किया जाता है।

मोर्चा या ऑक्साइड को हटाने के लिए एसीड से पिक्लिंग करते हैं। इसके लिए सोरे या गंधक का तेजाब प्रयोग किया जाता है। सोल्डरिंग करने को ताप देने की विधि के अनुसार निम्न विधियों में बांटा गया है।

  • सोल्डरिंग आयरन विधि
  • सोल्डरिंग टॉर्च विधि
  • डीप एंड वेव विधि
  • रेजिस्टेंस विधि
  • फनेश एंड हॉट प्लेट विधि
  • सप्रे विधि
  • अल्ट्रा सैनिक विधि
  • कंडेसेशन विधि

इन सभी विधियों में से पहली दो विधिया ही अधिक प्रचलित है।

स्पैल्टर या ब्रेजिंग एलाय

ब्रेजिंग करने के लिए प्रयोग होने वाले फिलर मेंटल या ब्रेजिग एलाय या सख्त सोल्डर कहते हैं। ब्रेजिंग में सोल्डरिंग के सामान दो धातुओं को बिना पिघलाएँ जोड़ने की विधि है। ब्रांडिंग से सोल्डरिंग की तुलना में अधिक ताप तक टिकने वाले अधिक मजबूत जोड़ बनाए जा सकते हैं। विभिन्न धातुओं को जोड़ने के लिए अलग-अलग प्रकार के ब्रांडिंग ऐलॉय या फिलर मेंटल प्रयोग किए जाते हैं। एक अच्छी स्पेल्टर में निम्न गुण होना चाहिए-

  • ब्रेज मेटल की सतह पर आसानी से फैलने योग्य होना चाहिए।
  • कैपिलरी एक्शन के द्वारा आसानी से जोड़ों में भरने योग्य नहीं होनी चाहिए।
  • मेल्टिंग प्वाइंट ब्रेज मेटल के मेल्टिंग प्वाइंट से काफी कम होना चाहिए जिससे की ब्रैंजिग करने से ब्रेज मेटल की सतह क्षतिग्रस्त न हो।
  • जोड़ के यांत्रिक गुण जैसे-  टेनसाइल स्ट्रेंगथ, तन्यता आदि आवश्यकतानुसार होनी चाहिए।

ब्रैंजिग की विधियां

सोल्डरिंग के समान ब्रैंजिग  के लिए भी सर्व प्रथमब्रैंजिग की जाने वाली सतहों की सफाई होना आवश्यक है। इसके लिए कुछ ब्रैंजिग फ्लक्स प्रयोग किए जाते हैं। ब्रैंजिग फ्लक्स स्पिनर मेंटल के मैल्टिग प्वाइंट् से कम तापक्रम पर ही पिंघलकर संपूर्ण सतह पर फैल जाना चाहिए। फ्लक्स के रूप में अधिकतर सुहागा प्रयोग किया जाता है। 7 डिग्री सेल्सियस या अधिक ताप के लिए सोडियम, पोटेशियम या लिथियम बोरेट प्रयोग किए जाते हैं। ऑक्साइड को हटाने के लिए Na, k तथा Li के फलों राइड्स प्रयोग किए जाते हैं। ब्रैंजिग के दौरान ऑक्साइड बनने से रोकने के लिए विभिन्न प्रकार के कृत्रिम वायुमंडल तैयार करके उसके अंदर वेल्डिंग की जाती है। इसके पश्चात निम्न पदों में बाकी प्रक्रिया भी पूरी की जाती है।

  • ब्रेज मेटल के छोटे-छोटे टुकड़े, जोड़ के साइज के अनुरूप, काटकर सुहाग लगाकर जोड़कर इस प्रकार रखना चाहिए जिससे गर्म करने पर यह पिंघलकर जोड़ के चारों ओर फैल जाए।
  • जोड़ को सही स्थिति में रखकर, पिक्सचर, क्लैम्पया अनिलड वायर के द्वारा कसकर बांध देना चाहिए।
  • ब्लो लैंप या वेल्डिंग टॉर्च के द्वारा जोड को गर्म करो जब तक स्पेलटर पिंघलकर जोड़ में न चला जाए।
  • गर्म पानी में धोकर फ्लक्स को हटाया जा सकता है या फिर गरम जॉब को पानी में ब्रैंजिग के तुरंत बाद धोकर फ्लक्स को हटा देना चाहिए।

जो वह गर्म करने की विधि के आधार पर ही ब्रैंजिग की विधियां बनाई गई है। यह निम्न प्रकार है-

  • ब्लॉ पाईप ब्रैंजिग
  • भट्टी ब्रैंजिग
  • टॉर्च ब्रैंजिग
  • इंडक्शन ब्रैंजिग
  • डीप ब्रैंजिग
  • रेजिस्टेंस ब्रैंजिग

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