अनाज या धान्य
अनाज अथवा धान्य शब्द की उत्पत्ति सीरीएलिया मुनेरा से मानी जाती है. इसे रोम की कृषि देवी की देन समझा जाता है.
- शीतोष्ण घास स्थलों को विश्व का अन्न भंडार कहा जाता है.
- गेहूं पुरानी दुनिया से नई दुनिया के लिए भेंट है. संभवतया इस का उदेश्य केंद्र दक्षिण-पश्चिम एशिया है.
- लरमा रोजा, NP 846, सोनारो – 64 , कल्याण सोना, शरबती सोनारा, Hera अधिक गेहूं की प्रमुख किस्में है.
- धनिया चावल एवं मक्का के फल को कैरीयोपिस्स कहते हैं, जो सुनहरे अथवा भूरे रंग के छिलके से ढका होता है. बाला, जमुना, कृष्णा, साबरमती, जया, आदि मुख्य रूप से उगाई जाने वाली चावल की किस्में है.
- भारत में चावल उत्पन्न करने वाले प्रमुख प्रदेश-पश्चिम बंग, तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, ओडिशा, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश तथा असोम है.
- मक्का का उत्पत्ति केंद्र पूर्व मेक्सिको को माना जाता है.
- विश्व उत्पादन का लगभग 44% मक्का अमेरिका में उगाया जाता है.
- यह नए संसार का पुरानी संसार को वरदान है.
दालें
- मनुष्य के भोजन स्रोत के संदर्भ में अनाजों के पश्चात दूसरा स्थान दालों का है.
- चने का वानस्पतिक नाम साईसर एरिटीनम है, एवं इसका उत्पत्ति केंद्र दक्षिण पश्चिम एशिया माना जाता है.
- विश्व का 70% चना भारत उत्पादित करता है.
- अरहर का वानस्पतिक नाम केजेन्स कजान है ,इसका उत्पत्ति केंद्र अफ्रीका है. इसे लाल चना भी कहते हैं, जिसमें डायस्टेज नामक एंजाइम प्रचुर मात्रा में होता है.
- सोयाबीन के बीजों में प्रोटीन सर्वाधिक मात्रा में उपस्थित होता है.
- निकोलाई इवानोविच वेवीलोव् ने कृषि उपयोगी फसलों की उत्पत्ति के आठ केंद्र प्रस्तावित किए.
तेल
- पौधों से प्राप्त होने वाले तेल सुगन्धित तथा वाष्पशील होते हैं. इनका उपयोग इत्र, साबुन तथा बालों के तेल बनाने में होता है, जैसे- गुलाब का तेल, खसखस का तेल, लौंग का तेल आदि.
- मूंगफली ब्राजील का मूल निवासी है. यह भारत पूर्व पश्चिम अफ्रीका, चीनी इंडोनेशिया आदि में उगाया जाता है.
- नारियल का वास्तविक नाम कोकस न्यूसीफेरा तथा कुल एरिकेसी या पामी है. इसका मूल निवास दक्षिण या सेंट्रल अमेरिका या दक्षिण पूर्व एशिया माना जाता है.
रेशे
- रेशे दृढोतक कोशिकाओं का एक समूह है. यह कोशिकाएं संकीर्ण, दिर्घित व लिंग्निन्युक्त कोशिका भित्ति वाली होती है.
- यह कोशिकाएं पौधों के विभिन्न उत्तकों में पाई जाती है, परंतु संवहन उतको में इनकी अधिकता होती है.
उत्पत्ति के आधार पर रेशे तीन प्रकार के होते हैं
पृष्ठीय रेसे
यह फल, पति, बीजों तथा तकनीकी सतह पर विकसित होते हैं, उदाहरण- कपास के रेशे (बीज के आवरण से)
मुलायम अथवा बास्ट रेशे
जाइलम की बाहर की कोशिकाओं अर्थात फ्लोएम, परिरंभ, तथा वल्कुट की, से उत्पन्न होता है.
कठोर अथवा संरचनात्मक रेशे
यह प्राय एक बीजपत्री पौधों में जाइलम और फ्लोएम की कोशिकाओं के बाहर उपस्थित कोशिकाओं से उत्पन्न होते हैं. उदाहरण मनीला हेंप तथा सीसल हेप
उपयोगी पादप
- मसालों की सौरभ और सुवास का कारण उनमें एरोमेटिक के अमीनो अम्ल की उपस्थिति है.
- सेलिक्स एल्बा-की लकड़ी से क्रिकेट के बल्ले तथा मोर्स एल्बा की लकड़ी से हॉकी, स्टिक, टेनिस, बैडमिंटन, व क्रिकेट के स्टंप बनाए जाते हैं.
- राल का निष्कर्षण रबड़ से किया जाता है.
- रबड़ पौधे के क्षीर से प्राप्त होता है.
जैव उर्वरक
जैव उर्वरक सूक्ष्म जीवाणु टीका है, जो वायुमंडल में नाइट्रोजन के योगीकीकरण द्वारा एवं फास्फोरस को अघुलनशील से घुलनशील अवस्था में करके कार्बनिक पदार्थों का विघटन तीव्र गति से करता है
जैसे बायोफर्टिलाइजर, जैव उर्वरक या फसलों का टीका या कल्चर या फसलों को इंजेक्शन भी कहा जाता है. वास्तव में, भूमि में ऐसे अनेक जीवाणु स्वतंत्र रूप से या पौधे के संपर्क में विकास करते हैं, जो वायु की नाइट्रोजन को स्थिर करके पौधों को देते हैं.
जैव कीटनाशक
विश्व भर में कीटों के कारण लगभग 15-20% फसल नष्ट हो जाती है. रासायनिक कीटनाशकों से कीटों पर नियंत्रण तो पाया गया. परंतु प्रदूषण अधिक हुआ. यह नहीं अवांछित कीटों को मारने के अतिरिक्त वांछित कीटों तथा अन्य जीव धारियों पर दुष्प्रभाव पड़ा. इसलिए वैज्ञानिकों ने ऐसे जीव धारियों को ढूंढा, जो अवांछित कीटों का विनाश कर सके और उन्हें प्रकृति में छोड़कर कीटनाशी की तरह इस्तेमाल किया. इस प्रकार का एक कीटनाशी BTI है.
कीटों पर नियंत्रण के लिए हार्मोन का भी प्रयोग किया जा सकता है. इस दिशा में क्षेत्रीय अनुसंधान प्रयोगशाला त्रिवेंद्रम में फेरोमोन विकसित किए गए हैं.
- वर्मीकंपोस्टिंग उर्वरक हेतु कंपोस्टिंग उर्वरक विधि को अधिकतम आर्द्रता की आवश्यकता लगभग 65% होती है.
- कंपोस्ट प्राकृतिक खाध है जिसमें पौधों के लिए आवश्यक सभी पोषक तत्व उपस्थित होते हैं.
- हड्डी का प्रयोग उर्वरक के रूप में करने से फास्फॉरेस् की कमी दूर होती है.
अनेक रोगों के विरुद्ध प्रतिरक्षी के उत्पन्न करने के लिए प्रतिजन को कमजोर कर के या मार कर, उसे शरीर के अंदर अनंत क्षेपित कर देते हैं. इस प्रतिजन से प्रतिरक्षी तंत्र प्रेरित होकर स्मृति कोशिकाएं बना लेता है, जो कि अगली बार इसी रोगाणुओं द्वारा आक्रमण होने पर तुरंत मारक कोशिकाओं को जन्म देती है. ऐसे ही कमजोर प्रतिजन को टीका कहते हैं.