भारतीय परमाणु कार्यक्रम से जुडी जानकारी

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भारतीय परमाणु अनुसंधान

वर्ष 1948 में डॉक्टर होमी जे भाभा की अध्यक्षता में परमाणु ऊर्जा आयोग की स्थापना हुई तथा परमाणु ऊर्जा अनुसंधान के क्षेत्र में कार्य प्रारंभ हुए तथा परमाणु ऊर्जा कार्यक्रमों के क्रियान्वन के लिए 1954 में परमाणु ऊर्जा विभाग की स्थापना की गई.

होमी जहांगीर भाभा को भारतीय परमाणु विज्ञान का जनक कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने नाभिकीय विज्ञान में तब कार्य प्रारंभ किया, जब परमाणु विद्युत की संकल्पना कोई मानने को तैयार नहीं था और श्रंखला अभिक्रिया को नहीं खोजा गया था. श्रंखला अभिक्रिया की खोज वर्ष 1945 में एनरीको फर्मी (अमेरिका) ने की. उन्होंने टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च की स्थापना वर्ष 1945 में की और वर्ष 1948 में डॉ भाभा परमाणु ऊर्जा आयोग के प्रथम अध्यक्ष नियुक्त हुए.

परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम

परमाणु ऊर्जा विभाग तीन चरणों में नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम चल रहा है

पहले चरण में धार्मिक गुरु जल रिएक्टरों को बनाने का प्रावधान है. हिंदी एक्टरों में प्राकृतिक यूरेनियम ईंधन के रूप में तथा भारी जल (CO2O) को मॉडल एवम कुलेंट के रूप में प्रयोग किया जाता है.

द्वितीय चरण में फास्ट ब्रीडर रिएक्टर बनाने का प्रावधान है, इसमें प्लूटोनियम को यूरेनियम-238 के विखंडन से प्राप्त किया जाता है.

तीसरा चरण थोरियम- यूरेनियम-233 पर आधारित है. यूरेनियम 235 को थोरियम के विकिरण से हासिल किया जाता है.

परमाणु अनुसंधान केंद्र

  • भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC) मुंबई में स्थापित किया गया. (1957) बार्क देश का प्रमुख अनुसंधान केंद्र है.
  • धुर्व- समस्थानिकों को तैयार करने के साथ-साथ परमाणु प्रौद्योगिकियों में शौध पर कार्य किया जाता है.
  • साहा नाभिकीय भौतिकी संस्थान की स्थापना वर्ष 1949 में कोलकाता में भौतिक एवं जैव भौतिक विज्ञान में मूलभूत अनुसंधान एवं शोध के लिए की गई थी. यह संस्थान प्रसिद्ध भारतीय भौतिक शास्त्री डॉ मेघनाद साहा के नाम पर है.

परमाणु ऊर्जा

पृथ्वी पर ऊर्जा का प्रमुख स्रोत सूर्य है, परंतु औद्योगीकरण एवं जनसंख्या वृद्धि के चलते परंपरागत ऊर्जा स्रोतों, जैसे- कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस आदि पर भारी दबाव पड़ रहा है. परमाणु ऊर्जा के विकास पर निरंतर शोध एवं कार्य किया जा रहा है. भारत की कुल ऊर्जा खपत में परमाणु ऊर्जा का योगदान मात्र 2.8% है. फ्रांस में सबसे अधिक 76.18% है.

ओटेक

महासागरों की स्थिति एवं गहराइयों पर स्थित तापांतर से विद्युत ऊर्जा उत्पन्न करने वाला संयंत्र OTEC प्रणाली के उपयोग के लिए महासागरों की संख्या एवं 1000 मीटर की गहराई पर पानी के ताप में 20 डिग्री सेल्सियस का अंतर होना चाहिए.

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