रासायनिक बंध
रासायनिक बंध का निर्माण, तत्वों द्वारा अपने बाह्रा कक्ष में 8 इलेक्ट्रॉन करने के लिए किया जाता है. बंध बनाने के फलस्वरूप प्रमाण की स्थितिज ऊर्जा में कमी आती है. रासायनिक बंध ही परमाणुओं के मध्य आकर्षण बल के रूप में कार्य करते हैं.
विद्युत संयोजक बंद है या आयनिक बंध
एक परमाणु के दूसरे परमाणु में इलेक्ट्रॉनों के स्थानांतरण से जो बंध बनता है, उसे विद्युत संयंत्र किया आयनिक बंध कहते हैं. वह यौगिक जिनमे विद्युत संयोजक बंध पाया जाता है, विद्युत संयोजक यौगिक या आयनिक यौगिक कहलाते हैं.
सहसंयोजक बंध
परमाणुओं के मध्य इलेक्ट्रॉनों की साझेदारी से बनने वाला बंध सहसंयोजक बंध कहलाता है. सहसंयोजक बंध के बनने में दोनों परमाणु इलेक्ट्रॉन की साझेदारी इस प्रकार से करते हैं कि निर्मित अणु में प्रत्येक परमाणु एक अक्रिय गैस कास्थायी इलेक्ट्रॉनिक विन्यास प्राप्त कर लेता है. वह यौगिक जिनमे सहसंयोजक बंध उपस्थित होता है, सहसंयोजक यौगिक कहलाते हैं.
धातुएं
यह कठोर, चमकदार, आघातवर्ध्य, तन्य तथा ध्वनिक होती है. यह विद्युत ऊष्मा का चालन ठोस तथा गलित दोनों अवस्थाओं में रह सकती है, जो अधिक सक्रिय होती है, कम सक्रिय धातुओं को विस्थापित कर देती है.
प्रमुख धातुएं एवं उनके उपयोग
धातु | उपयोग |
सोडियम | सड़क पर रोशनी के लिए प्रयुक्त पीले लैंपों में |
तांबा | तार (विद्युत के चरण के लिए) बर्तन तथा पानी के निर्माण में |
एल्युमीनियम | तार, बर्तन, पन्नी (पैकिंग के लिए) के निर्माण में, अंतरिक्ष में ऑटो उद्योग में. |
आयरन | बर्तन, चुंबक जो ट्रांसफार्मर की कोर में प्रयुक्त होती है) स्टेनलेस स्टील में. |
गोल्ड तथा चांदी | आभूषण में तथा भोज्य पदार्थों की सजावट के लिए |
पारा | थर्मामीटर में तथा अतिचालक के रूप में, ट्यूबलाइट में |
टाइटेनियम | परमाणु अंतरिक्ष अनुसंधान में तथा हवाई जहाज उपयोग में |
विभिन्न धातुओं की विशेषताएं
- सोडियम तथा पोटैशियम में मृदा धातुएं है. यह अत्यधिक क्रियाशील होने के कारण जल तथा वायु से भी क्रिया करती है. इस कारण इन्हें केरोसिन के तेल में रखा जाता है.
- सोडियम तथा पोटैशियम जल में रखे जाते हैं, जबकि कैल्शियम धातु जल के ऊपर तैरने लगती है.
- टाइटेनियम को रणनीतिक धातु भी कहा जाता है.
- आतिशबाजी में हरा रंग बेरियम तथा गहरा लाल रंग स्ट्रांनिशिय्म की उपस्थिति के कारण होता है.
- 24 कैरेट स्वर्ण का सबसे शुद्ध रूप है. यह बहुत नर्म होता है, इसलिए आधार धातु के साथ मिश्रित करके इससे आभूषण बनाए जाते हैं. आधार धातु के रूप में कॉपर का प्रयोग सबसे अधिक किया जाता है. आभूषण में स्वर्ण की प्रतिशत निबंध सुत्र द्वारा ज्ञात की जाती है.
धातु का निष्कर्षण
सर्वप्रथम धातु अयस्क का सांद्रण किया जाता है. उसके पश्चात अशांति दशक से धातु का निष्कर्षण निस्तापन, भर्जन, प्रगलन आदि विधियों द्वारा किया जाता है.
खनिज, अयस्क
वे पदार्थ हैं, जिनके रूप में धातु प्रकृति में उपस्थित होती है, वह खनिज है जिनसे धातु का निष्कर्षण सुविधापूर्वक मितव्ययिता के साथ किया जा सकता है सभी अयश्क खनिज होते हैं, परंतु सभी खनिज अयस्क नहीं होती हैं. माणिक्य और नीलम रासायनिक रूप से एलुमिनियम आक्साइड है. हिमोग्लोबिन तथा मायोग्लोबिन धातु अवस्था में उपस्थित होती है.
निस्तापन
सांद्रित अयस्क उसके गलनांक से कम ताप पर वायु की अनुपस्थिति या सीमित मात्रा में गर्म करने का प्रक्रम है. यह सामान्यतः हाइड्रोक्साइड कार्बोनेट अयस्कों के लिए किया जाता है.
भर्जन
सांद्रित अयश्क की वायु की अधिकता में गर्म करने का प्रक्रम है. यह सल्फाइड अयस्क के लिए प्रयोग किया जाता है.
गालक
वह पदार्थ है, जो अशुद्धियों को अन्य पदार्थ धातु मल में परिवर्तित कर देता है. यह दो प्रकार के होते हैं- अम्लीय गालक, क्षारीय गालक
मिश्र-धातुएं
दो या दो से अधिक धातुओं अथवा एक धातु व एक धातु का मिश्रण होती है. यह धातुएं अमलगम कहलाती है.
अधातुएँ
सभी धातुएं विद्युत एवं ऊष्मा की कुचालक होती है. यह भुंगर होती है तथा इनमें चमक नहीं पाई जाती है. यह ठोस, द्रव्य गैस अवस्था में हो सकती है. सभी अधातुएं आवर्त सारणी में ब्लॉक में उपस्थित रहती है. यह ऑक्सीजन के साथ है सामान्यतः अम्लीय ऑक्साइड बनाती है.
हीलियम- को गुब्बारों तथा हल्के वायुयानों में भरा जाता है(क्योंकि यह अज्वलनशील होती है) इसको ऑक्सीजन के साथ मिलाकर, कृत्रिम श्वसन के लिए प्रयोग में लाया जाता है. इस मिश्रण का प्रयोग गहरे समुद्री गोताखोरों तथा सांस के रोगों से पीड़ित रोगी द्वारा किया जाता है.
ऑर्गन- वेल्डिंग के लिए अक्रिय वातावरण उत्पन्न करने के लिए तथा अत्यधिक के चमकने वाले विद्युत बल्ब को भरने के लिए प्रयोग में लाई जाती है.
जेनान- कौशलेंद्र गैस भी कहा जाता है. इसको kr के साथ मिलाकर, उच्च तीव्रता एवं छोटे प्रकाश काले वाली फोटोग्राफी के फ़्लैश ट्यूब में प्रयुक्त किया जाता है
कार्बन के अपरूप
कार्बन के मुख्यतः तीन रूप है-
- हीरा
- ग्रेफाइट
- बकमिन्स्टर फुलरीन
- हीरा कार्बन का सर्वाधिक कठोर अपरूप है. इसका कारण इसकी त्रिविम विस्तृत संरचना है.
- हीरे का गलनांक बहुत ऊंचा होता है.
- हिरे का उपयोग शीशे को काटने के लिए किया जाता है.
- हीरे का एक कैरेट 200 MG के बराबर होता है
- ग्रेफाइट की प्रतिय संरचना होती है. किन्ही दो प्रश्नों के मध्य वान डर वाल्स बल कार्य करता है.
ग्रेफाइट मुक्त इलेक्ट्रॉनों की उपस्थिति के कारण विद्युत का सुचालक है.
फुलेरेन को वर्ष 1995 में राज्य विश्वविद्यालय के प्रोफेसर आर ई समेली तथा उनके सहकर्मी द्वारा बनाया गया. इस खोज के लिए उन्हें वर्ष 1996 में नोबेल पुरस्कार दिया गया.
उपधातुए
धातु व अधातु दोनों के गुण रखती है,- उदाहरण- ओर्स्निक, एंटीमनी, जर्मी नियम आदि है.
संक्षारण
किसी धातु की सतह का वातावरण के प्रभाव द्वारा ऑक्सीकारक अपक्षय है. उदाहरण- लोहे की सतह: का भूरे रंग की जंग में परिवर्तन सिल्वर का काला पड़ना. कोपर तथा ब्रांन्ज की शिकायत पर हरे रंग की परत जमुना आदि. इसमें निम्न प्रकार बताओ किया जा सकता है-
- विद्युत लेपन द्वारा
- सत्या लेपन द्वारा
- लोहे के गैल्वेनिक करण द्वारा
आयरन का ऑक्सीकरण
कटे हुए सेब को वायु में रखने पर कुछ समय पश्चात वह भूरा पड़ जाता है. इसका कारण यह है कि जब आयरन उपस्थित होता है, जो वायु की उपस्थिति मे ऑक्सीकरण हो कर भूरा हो जाता है.