राज्यपाल
राज्यपाल (अनुच्छेद 153) की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है. वह राज्य का मुख्य कार्यकारी अध्यक्ष होता है. राज्य 35 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुका हो, भारत का नागरिक हो. राज्यपाल के रूप में नियुक्त होने के लिए उसे उस राज्य का निवासी होना आवश्यक नहीं है. वह राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यंत कार्य करता है, जिसकी नियुक्ति 5 वर्ष की अवधि के लिए की जाती है. राष्ट्रपति शासन के दौरान केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त परामर्शदाता की सहायता से सीधे तौर पर प्रशासन को चलाता है.
राज्यपाल की शक्तियां
राज्यपाल की शक्तियां इस प्रकार है
विधीय शक्तियां
वह विधान मंडल की बैठक के लिए समय और स्थान को निश्चित करता है और उनका बुलावा भेजता है. वह वर्ष में एक बार सत्र के आरंभ में विधान मंडल की बैठक को संबोधित करता है. विधानमंडल द्वारा पारित किसी भी विधेयक पर उसकी स्वीकृति होनी आवश्यक है. जब भी विधानमंडल का अधिवेशन नहीं चल रहा होता है, तो उसे एक अध्यादेश लागू करने की शक्ति प्राप्त है.
कार्यकारी शक्तियां
मुख्यमंत्री की नियुक्ति करता है और मुख्यमंत्री की सलाह पर अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है. राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और इसके सदस्यों की नियुक्ति करता है. आपातकाल में वह केंद्र के एजेंट के रूप में कार्य करता है.
वित्तीय शक्तियां
वित्तीय शक्तियां राज्य की विधानसभा में कोई भी धन विधेयक राज्यपाल की सिफारिश के बिना पेश नहीं किया जा सकता.
विवेकाधीन शक्तियां
वह यह निर्णय करता है, कि राज्य की सरकार को संविधान की व्यवस्था के अनुरुप चलाया जा सकता है या नहीं. ऐसा नहीं पाए जाने पर वह अनुच्छेद 356(1) के अंतर्गत राष्ट्रपति को रिपोर्ट भेज सकता है.
मुख्यमंत्री\परिषद
मुख्यमंत्री को परिषद मुखिया के रूप में मानते हुए संविधान, एक मंत्री परिषद की व्यवस्था करता है. राज्यपाल, मुख्यमंत्री और उसके मंत्रियों की नियुक्ति करता है. सामान्यत: सभी मंत्रियों को राज्य विधानमंडल का सदस्य होना अनिवार्य है, परंतु कभी-कभी एक गैर-सदस्य को भी मंत्री नियुक्त किया जा सकता है. उस स्थिति में वह राज्यपाल विधानमंडल का सदस्य है बिना 6 महीने से अधिक अपने पद पर नहीं बना रह सकता, मंत्री परिषद राज्य विधानसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी है.
राज्य विधायिका
विधान परिषद
विधान परिषद, राज्य विधानमंडल का उच्च सदन होता है. वर्तमान में 7 राज्यों( उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, जम्मू कश्मीर, महाराष्ट्र, बिहार, आंध्रप्रदेश तथा तेलगाना) में विधान परिषदें विद्यमान है. विधान परिषद का सदस्य बनने के लिए न्यूनतम आयु- सीमा 30 वर्ष है. विधान परिषद के प्रत्येक सदस्य का कार्यकाल होता है, किंतु प्रति दूसरे वर्ष एक-तिहाई सदस्य अवकाश ग्रहण करते हैं तथा उनके स्थान पर नवीन सदस्य निर्वाचित होते हैं. विधान परिषद में सदस्यों में से दो कर्म से सभापति एवं उपसभापति चुनती है.
विधानसभा
विधानसभा का कार्यकाल 5 वर्ष होता है. विशेष परिस्थिति में राज्यपाल को यह अधिकार है, कि वह इससे पूर्व भी उस को विघटित कर सकता है. विधानसभा में निर्वाचित होने के लिए न्यूनतम आयु- सीमा 25 वर्ष है. प्रत्येक राज्य की विधानसभा में कम से कम 7 और अधिक से अधिक 500 सदस्य होते हैं. (अरुणाचल प्रदेश(40), गोवा(40), मिजोरम(40), सिक्किम(32), विधानसभा सदस्यों का चुनाव व्यस्क मताधिकार प्रणाली द्वारा होता है.
केंद्र
राज्य संबंध
भारत में केंद्र- राज्य संबंध, संघवाद की ओर उन्मुख है और संघवाद की इस प्रणाली को कनाडा के संविधान से लिया गया है. भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची में केंद्र एवं राज्य की शक्तियों के बंटवारे से संबंधित ही सूचना दी गई है.- (i) संघ सूची,(ii) राज्य सूची और(iii) समवर्ती सूची.
पंचायती राज
पंचायती राज का उद्देश्य लोगों के संगठनों को वास्तविक शक्तियां सौंपकर लोकतंत्र को ग्रामीण स्तर पर ले जाना है. इसका शुभारंभ 2 अक्टूबर, 1959 को नागौर, राजस्थान से हुआ. बाद में इसे आंध्र प्रदेश में लागू किया गया. अनुच्छेद 40 के अनुसार, संवैधानिक व्यवस्थाओं को आकार प्रदान करने के लिए, बलवंत राय मेहता समिति ने ग्रामीण क्षेत्र पर सबल लोकतांत्रिक संस्थाओं के प्रवर्तन को प्रोत्साहित करने के लिए शक्तियों के लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण की सिफारिश की थी
पंचायती राज का लक्ष्य लोगों को विकास और योजनाओं से जोड़ना है ताकि अफसरशाही पर निर्भरता को कम किया जा सके. समिति ने त्रिस्तरीय पंचायती राज प्रणाली को लागू करने की सिफारिश की थी, जो निम्न प्रकार है-
- ग्राम स्तर ग्राम पंचायत है
- ब्लॉक स्तर पर पंचायत समिति. जिसके सदस्य ब्लाक के अंतर्गत आने वाले गांव की पंचायतों द्वारा निर्वाचित किए गए हैं.
- जिला स्तर पर जिला परिषदें है
ग्राम पंचायत
ग्राम पंचायत, पंचायती राज का पहला सत्र है. ग्राम सभा के सदस्यों द्वारा गुप्त मतदान करके ही सभी सदस्यों का चुनाव होता है.
पंचायत समिति
पंचायत राज में पंचायत समिति को मध्य स्तर कहा जाता है. जनपद पंचायत, तालुका पंचायत है और अंचल पंचायती भी कहा जाता है. इसमें शामिल है-
- पंचायतों के सरपंच (पदेन),
- स्थानीय सांसद, विधायक और विधान परिषद के सदस्य (मताधिकार सहित या मताधिकार रहित)
- नारी प्रतिनिधि, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों सहयोजित है और जिनकी सदस्यता आरक्षित है
- नगर पालिकाओं और सहकारी समितियों आदि का प्रतिनिधित्व करने वाले व्यक्ति
- निकाय का अध्यक्ष एक गैर-सरकारी व्यक्ति होता है, जिसका चुनाव समिति के सदस्यों द्वारा होता है.
पंचायती राज से संबंधित महत्वपूर्ण समितियां
समिति | सिफारिश |
बलवंत राय मेहता | त्रिस्तरीय पंचायती राज की स्थापना, लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण |
अशोक मेहता | द्विस्तरीय पंचायती राज की स्थापना |
जी. के राव | लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण का व्यतिकरण |
एल एम सिंघवी | स्थानीय संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा |
जिला परिषद
पंचायती राज प्रणाली का सबसे ऊपर का स्तर जिला परिषद द्वारा निर्मित है. यह नचले स्तर ग्रामीण स्थानीय सरकारी निकायों के बीच एक कड़ी का काम करती है. पंचायत समिति और राज्य विधानमंडल व् संसद. एक जिला परिषद में समानयत: जिले की पंचायत समितियों के अध्यक्ष शामिल होते हैं, जिले से संबंधित सांसद और विधायक सहकारी समितियों के प्रतिनिधि, अनुसूचित जातियों, जनजातियों और कुछ संयोजित सदस्यों के प्रतिनिधियों की एक विशेष संख्या. समानयत: परिषद के सदस्यों द्वारा ही इसके अध्यक्ष का चुनाव किया जाता है.
जिला विकास अधिकारी जिला परिषद का मुख्य कार्यकारी अधिकारी या सचिव होता है और विभिन्न प्रशासनिक विकास विभाग के जिला अधिकारी के मतदान में हिस्सा लेने वाले सदस्य होते हैं. कई राज्यों में जिलाधिकारी( कलेक्टर) भी एक मतदान करने वाले सदस्य के रूप में सम्बद्ध होता है. जिला परिषद का कार्यकाल 5 वर्ष है.