सविनय अवज्ञा आंदोलन का इतिहास

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यहाँ पर हम आपको सविनय अवज्ञा आंदोलन का इतिहास के बारे में बताएँगे जो आपको एग्जाम क्लियर करने में मदद करेंगे.

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सविनय अवज्ञा आंदोलन का इतिहास

दिसंबर, 1929 में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में सविनय अवज्ञा आंदोलन का प्रस्ताव पारित हुआ. इसकी अध्यक्षता पंडित जवाहरलाल नेहरू ने की. इस अधिवेशन में पूर्ण स्वतंत्रता का प्रस्ताव भी पारित हुआ और 26 जनवरी को संविधान दिवस मनाने का फैसला हुआ.

26 जनवरी 1930 को बिहार में स्वाधीनता दिवस उत्साह पूर्ण ढंग से मनाया गया.

12 मार्च 1930 को गांधी जी की दांडी यात्रा आरंभ हुई और 5 अप्रैल को उन्होंने नमक कानून का उल्लंघन कर सकते प्रारंभ किया. नमक सत्याग्रह में बिहार की बेरी निवासी एवं गांधी जी के निकट सहयोगी श्री गिरधारी चौधरी (उर्फ कारो बाबु) जिन्होंने बापू के साथ साबरमती आश्रम में काफी समय बिताया, शामिल हुए थे.

बापू के साथ साबरमती आश्रम से दांडी के लिए प्रस्थान करने वाले 78 स्वयंसेवकों में गिरवरधारी चौधरी बिहार के एकमात्र प्रतिनिधि थे. बिहार में नमक सत्याग्रह का आरंभ, 15 अप्रैल, 1930 को चंपारण और सारण जिलों में नमकीन मिट्टी से नमक बना कर, किया गया. इस आंदोलन का नेतृत्व पटना में जगत नारायण लाल, सारण में गिरीश तिवारी, चंद्रिका सिंह आदि, मुजफ्फरपुर में रामदयालु सिंह, रामानंद सिंह आदि, मुंगेर में श्रीकृष्ण सिंह, दरभंगा में सत्य नारायण सिन्हा आदि ने किया.

4 मई 1930 को गांधीजी की गिरफ्तारी हुई. इसके विरोध में पूरे बिहार में प्रदर्शन हुए तथा 9 मई, 1930 को बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी स्वदेशी वस्तुओं और शराब की दुकानों के आगे धरना का प्रस्ताव रखा.

इसी आंदोलन के क्रम में बिहार में चौकीदारी कर बंद करने दे कर देने के लिए भी आंदोलन हुए. 26 जनवरी, 1932 को समस्त बिहार में संविधानता दिवस मनाया गया.

7 अप्रैल, 1934 को गांधी जी ने अपने एक वक्तव्य में सविनय अवज्ञा आंदोलन स्थगित करने की सलाह दी. 18 मई, 19 को बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने इसका समर्थन किया और बिहार में यह आंदोलन स्थगित हो गया.

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