आज इस आर्टिकल में हम आपको शारीरिक पुष्टि के विकास के प्रमुख सिद्धांत के बारे में बताने जा रहे है.
शारीरिक पुष्टि के विकास के प्रमुख सिद्धांत
गर्माना
शरीर के लिए गर्माना आवश्यक है क्योंकि गर्माना खिलाड़ी को प्रशिक्षण के लिए तैयार करता है. गर्माने से काफी हद तक खेल चोटों से बचा जा सकता है इसलिए प्रशिक्षण व खेल प्रतियोगिताओं से पहले गर्माना किया जाता है. गर्माना के आरंभ में धीमी गति से दौड़ना चाहिए उसके बाद खिंचाव वाले व्यायाम करने चाहिए. गर्माना से नाड़ी की गति तथा शरीर का तापमान अधिक हो जाता है.
नियमितता का सिद्धांत
शरीरिक पुष्टि के विकास हेतु पूरा कार्यक्रम नियमित रूप से करना चाहिए. यदि कोई व्यक्ति प्रतिदिन अभ्यास नहीं करता तो उसके शरीर का आकार ठीक नहीं होगा और उसकी शारीरिक पुष्टि में भी धीरे-धीरे कमी हो जाएगी. इसलिए शारीरिक पुष्टि के लिए व्यायाम नियमित रूप से करना अति आवश्यक है.
अतिभार का सिद्धान्त
शारीरिक पुष्टि के विकास के लिए अतिभार के सिद्धान्त को अपनाना अति आवश्यक है. अतिभार के सिद्धान्त को अपनाने के लिए लंबी दूरी के धीरे-धीरे दूरी में बढ़ोतरी करते रहते हैं. अतिभार के लिए यह ध्यान रखना चाहिए कि जब तक अनुकूल ना हो जाए तब तक अतिभार नहीं करना चाहिए.
लिम्बरिंग/कूलिंग डाउन
लिम्बरिंग कूलिंग डाउन भी गर्माना की तरह ही शारीरिक के लिए आवश्यक क्रिया है. किसी भी प्रतियोगिता या प्रशिक्षण के बाद यह क्रिया करनी चाहिए.
उचित अराम
शारीरिक पुष्टि के कार्यक्रम के दौरान तथा बाद में उचित आराम लेना चाहिए यदि ऐसा ना किया जाए तो व्यक्ति के भार में कमी हो सकती है. इसके साथ साथ उसकी गति में भी कमी आना स्वभाविक है उचित आराम में लेने की अवस्था में व्यक्ति की योग्यता के कार्यक्रम में रुचि कम होने लगती है।
साधारण से कठिन का सिद्धांत
शारीरिक पुष्टि के विकास के लिए जो भी व्यायाम या क्रियाएँ करें वे सभी साधारण से कठिन सिद्धांत पर आधारित होनी चाहिए था अर्थात सबसे पहले साधारण व्यायाम और बाद में कठिन या जटिल व्यायाम करने चाहिए।
प्रगतिशीलता का सिद्धांत
शारीरिक पुष्टि के विकास के लिए प्रशिक्षण में प्रगतिशील सिद्धांत का पालन करना चाहिए. जब भार को जल्दी-जल्दी बढ़ाया जाता है तो इससे प्रगति की बजाय अवनति होने लगती है इसलिए प्रगति करने हेतु को धीरे-धीरे बढ़ाना चाहिए तभी शारीरिक पुष्टि का संतुलित विकास होगा.
विभिन्नता का सिद्धांत
शारीरिक पुष्टि के विकास हेतु विभिन्नता के सिद्धांत को अपनाना चाहिए. व्यायाम में विभिन्नता होने से रुचि को अधिक बढ़ावा मिलता है और रूचि से किया गया कार्य शारीरिक पुष्टि में बहुत महत्वपूर्ण होता है.