दुसरे विश्व युद्ध के दौरान 1942 ई. में भारत को अंग्रेजों के कब्जे से स्वतन्त्र कराने के लिये आजाद हिंद फौज या Indian National Army (INA) नामक सशस्त्र सेना का संगठन किया गया। इसका गठन रासबिहारी बोस ने जापान की सहायता से टोकियो में की।
आज़ाद हिन्द फ़ौज की स्थापना राजा महेन्द्र प्रताप सिंह ने 29 Oct 1915 में अफगानिस्तान की। इनका लक्ष्य अंग्रेजों से लड़कर भारत को आजाद करना था. इसके लिए दक्षिण-पूर्वी एशिया से जापान द्वारा लगभग 40 हजार सैनिकों को इस फौज में शामिल किया गया.
बाद में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को इसका सर्वोच्च कमाण्डर बना दिया गया. शुरुवात में इस फौज में उन भारतीय सैनिको को भी शामिल किया गया जो जापान द्वारा युद्धबंदी बनाये गए थे, और फिर इसमें बर्मा और मलाया से भारतीय स्वयंसेवक भी भर्ती हुए.
एक साल के बाद नेताजी ने जापान पहुँच कर 1943 में टोकियो के रेडियो के माध्यम से यह घोषणा कर दी की अंग्रेजों से भारत छोड़ने की आशा करना बेकार है तो इसके लिए हमें संघर्ष करना पड़ेगा. हम मिलकर भारत के अन्दर और बाहर दोनों से स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करेंगे. इससे प्रभावित हो रासबिहारी बोस ने 4 जुलाई 1943 को 46 वर्षीय सुभाष को आज़ाद हिन्द फ़ौज का नेतृत्व सौंप दिया।
नेताजी ने 5 जुलाई 1943 को सिंगापुर के टाउन हाल के सामने ‘सुप्रीम कमाण्डर‘ के रूप में सेना को सम्बोधित करते हुए “दिल्ली चलो!” का नारा दिया और इसके अलावा जापानी सेना के साथ मिलकर ब्रिटिश व कामनवेल्थ सेना से बर्मा के साथ साथ इम्फाल और कोहिमा में एक साथ जमकर मोर्चा लिया।
सुभाष बोस ने 21 अक्टूबर 1943 को आजाद हिन्द फौज के सर्वोच्च सेनापति की पद पर रहते हुए स्वतन्त्र भारत की अस्थायी सरकार बनायी जिसे जर्मनी, जापान, फिलीपीन्स, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुको और आयरलैंड ने मान्यता दे दी।
जापान ने अंडमान व निकोबार द्वीप को सुभाष बोस की अस्थायी सरकार को दे दिया।
सुभाष उन द्वीपों में गये और उनका नया नाम रखा। अंडमान का नया नाम शहीद द्वीप तथा निकोबार का स्वराज्य द्वीप रखा गया।
30 दिसम्बर 1943 को इन द्वीपों पर स्वतन्त्र भारत का ध्वज भी फहरा दिया गया।
4 फ़रवरी 1944 को आजाद हिन्द फौज ने अंग्रेजों पर दोबारा भयंकर आक्रमण किया और कोहिमा, पलेल और कुछ अन्य भारतीय प्रदेशों को अंग्रेजों से मुक्त कराया।
6 जुलाई 1944 को नेताजी ने रंगून रेडियो स्टेशन से गाँधी जी के नाम जारी एक प्रसारण में अपनी स्थिति स्पष्ठ की और आज़ाद हिन्द फौज़ द्वारा लड़ी जा रही इस निर्णायक लड़ाई की जीत के लिये उनकी शुभकामनाएँ माँगीं।
21 मार्च 1944 को ‘चलो दिल्ली’ के नारे के साथ आज़ाद हिंद फौज का हिंदुस्तान की धरती पर कदम रखा।
22 सितंबर 1944 को शहीदी दिवस मनाते हुये सुभाष बोस ने अपने सैनिकों से मार्मिक शब्दों में कहा – हमारी मातृभूमि स्वतन्त्रता की खोज में है। तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा। यह स्वतन्त्रता की देवी की माँग है।
इसी बीच एक मोड़ आया जिसकी वजह से जर्मनी ने हार मान ली और जापान को भी घुटने टेकने पड़े। ऐसे में सुभाष को टोकियो की ओर पलायन करना पड़ा और कहते हैं कि हवाई दुर्घटना में उनका निधन हो गया।
कदम कदम बढ़ाये जा
खुशी के गीत गाये जा
ये जिंदगी है क़ौम की
तू क़ौम पे लुटाये जा
तू शेर-ए-हिन्द आगे बढ़
मरने से तू कभी न डर
उड़ा के दुश्मनों का सर
जोश-ए-वतन बढ़ाये जा
कदम कदम बढ़ाये जा
खुशी के गीत गाये जा
ये जिंदगी है क़ौम की
तू क़ौम पे लुटाये जा
हिम्मत तेरी बढ़ती रहे
खुदा तेरी सुनता रहे
जो सामने तेरे खड़े
तू खाक में मिलाये जा
कदम कदम बढ़ाये जा
खुशी के गीत गाये जा
ये जिंदगी है क़ौम की
तू क़ौम पे लुटाये जा
चलो दिल्ली पुकार के
ग़म-ए-निशाँ संभाल के
लाल क़िले पे गाड़ के
लहराये जा लहराये जा
कदम कदम बढ़ाये जा
खुशी के गीत गाये जा
ये जिंदगी है क़ौम की
तू क़ौम पे लुटाये जा
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