भारत में संवैधानिक विकास

26 नवम्बर 1949 को भारतीय संविधान सभा द्वारा निर्मित भारत का संविधान के पूर्व ब्रिटिश संसद द्वारा कई ऐसे अधिनियम\चार्टर पारित किये गये थे, जिन्हें भारतीय संविधान का आधार कहा गया है. भारत में संवैधानिक विकास

भारत में संवैधानिक विकास

ब्रिटिश संसद द्वारा पारित अधिनियमों\ चार्टरो \योजनाओं को मूलत: दो भागों में बांटा गया है.

ब्रिटिश संसद द्वारा पारित अधिनियम\चार्टर\योजना.

यहाँ 2 योजना पारित की गई थी जिसको 2 भागों में बाँटा गया था.

कम्पनी  के मामलों में प्रभावी नियन्त्रण स्थापित करने के लिए अथवा कम्पनी का शासन 1773 से 1858 तक जिसको केन्द्रीकरण का नाम दिया गया.

सम्राज्य के हितों को सुरक्षा के लिए अथवा ताज का साश्न 1858 से 1947 तक जिसको विकेन्द्रीकरण का नाम दिया गया है.

1726 का राजलेख

कोलकाता , बंबई ओर मद्रास प्रेसीडेंसियों के गवर्नर एवं उनकी परिषद को विधि बनाने की शक्ति प्रदान की गई थी!

1773 का रेग्युलेटिंग  एक्ट

तत्कालीन ब्रिटिश पर्धानमंत्री लार्ड नाथ द्वारा 1772 में गठित संसदीय समिति के प्रतिवेदन पर यह एक्ट पारित किया गया था.

यह प्रथम प्रयास था जिसके माध्यम से भारत मे केंद्रीय परसास्न की नीव रखी गई.

  • मद्रास तथा बम्बई प्रेसीडेन्सी को बंगाल प्रेसीडेन्सी के अधीन पर कर दिया गया है
  • बंगाल के गवर्नर को तीनों प्रेसीडेन्सीयों का गवर्नर जनरल बना दिया गया है.
  • प्रथम गवर्नर जनरल वारेन होस्टिंग को बनाया गया था.
  • कलकता में उच्चतम न्यायलय का प्रवधान किया गया. यह अभिलेख न्यायलय था इसका अधिकार क्षेत्र कलकता नगर के नागरिकों तक समित था.
  • सुप्रीम कोर्ट को सिविल अपराधिक, नौसेना, तथा धार्मिक मामलों में अधिकारिता प्राप्त थी.
  • 1774 में भारत में उच्चतम न्यायलय की स्थापना कलकता में की गई थी.इसमें मुख्य न्यायधिस के अलावा तीन अपर न्यायधीश थे.
  • सर एलीजाह इम्पें इस न्यायालय के प्रथम न्यायधीश थे.

एक्ट ऑफ़ सेटलमेंट 1781

यह रेग्युलेंटिंग एक्ट की त्रुटियों को दूर करने के लिए पारित किया गया था. कलकता सरकार बंगाल, बिहार और उड़ीसा के दीवानी प्रदेशों के लिए विधि बना सकती थी.

पिट्स इण्डिया एक्ट 1784

एक्ट ऑफ स्टेलमेंट एक्ट का विस्तुरित रूप ही पिट्स इण्डिया एक्ट था.

यह अधिनियम कम्पनी द्वारा अधिग्राहित भारतीय राज्यों क्षेत्रों पर ब्रिटिश ताज के स्वामित्व के दावे का पहला वैधानिक दस्तावेज था.

कम्पनी के शासन को दो भागों में बांटा गया है

1. राजनितिक
2. व्यपारिक

6 सदस्यीय नियंत्रक मण्डल का गठन

  • कर्मचारियों को उपहार लेने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया.
  • भारत में नियुक्त अंग्रेज अधिकारियों के ऊपर मुकदमा चलाने के लिए इंग्लेंड में एक कोर्ट की स्थापना की गई .

1793 का राजलेख

  • कम्पनी के व्यापारिक अधिकारों को आगे 20 वर्षो के लिए बढ़ा दिया गया .
  • सभी कानून और एवं विनियमों की व्याख्या का अधिकार न्यायलयों को दिया गया.
  • वोर्ड ऑफ़ कंट्रोल के अधिकारीयों का वेतन भारतीय कोष से मिलने लगा.

1813 का राजलेख

  • कम्पनी के भारतीय व्यापारिक एकाधिकार को समाप्त कर दिया गया. केवल चाय और चीन के साथ व्यापार का अधिकार बचा रहा.
  • कम्पनी के व्यपारिक अधिकारों को (राजस्व नियन्त्रण) 20 वर्ष के लिए बढ़ा दिया गया.
  • ईसाई मसनारियों को भारत में अनुज्ञा पप्रदान की गई.
  • भारतीयों को शिक्षा पर एक लाख रुपये की वार्षिक धनराशी व्यय का प्रवधान किया गया .
  • स्थानीय स्वायतशासी संस्था को करारोपण का अधिकार.

1833 का चार्टर अधिनियम

  • बंगाल के गवर्नर जनरल को सम्पूर्ण भारत का जनरल बना दिया गया
  • भारत के प्रशासन का केन्द्रीकरण कर दिया गया.
  • लार्ड विलियम बैटिक भारत के प्रथम गवर्नर जनरल थे.
  • सम्पूर्ण देश के लिए एक बजट की व्यवस्था की गई
  • भारत में दास प्रथा को गैर कानूनी घोषित किया गया जिसके आधार पर 1843 में दास प्रथा का उन्मूलन कर दिया गया .
  • भारत में सभी प्रचलित रुढियों तथा प्रथाओं सहित बद्ध करने के लिए एक विधि आयोग का गठन किया गया. इस आयोग के प्रथम अध्यक्ष लार्ड मैकाले थे.
  • चाय और चीन के साथ व्यपारिक एकाधिकार समाप्त कर दिया गया.

1853 का चार्टर अधिनियम

  • कम्पनी के कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए प्रतियोगी परीक्षा की व्यवस्था की गई.
  • 1854 में भारतीय सिविल सेवा के संबंध में मैकाले समिति नियुक्ति की गई.
  • इस अधिनियम द्वारा गवर्नर जनरल की परिषद के विधायका और प्रशासनिक कार्यो को अलग अलग कर दिया गया. जिसके तहत भारत में पृथक भारतीय विधान परिषद का गठन हुआ जिसका मुख्य कार्य देश के लिए विधि बनाना था.
  • भारतीय केन्द्रीय विधान- परिषद में (स्थानीय) क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व का सामवेश किया गया.
  • 1853 के अधिनियम ने सर्वप्रथम सम्पूर्ण भारत के लिए एक विधान मण्डल की स्थापना की (All India legislative council).

भारत सरकार अधिनियम 1858

ब्रिटिश संसद की निम्न सदन हाउस ऑफ़ कामन्स द्वारा भारत में उत्तरदायी शासन की स्थापना के लिए विधेयक तैयार किया गया जो अधिनियम बनकर प्रवृत हुआ.

  • भारत में कम्पनी का शासन ख़त्म कर दिया गया तथा भारत का शासन इंग्लेंड की साम्राज्ञी के नाम से किया जाने लगा.
  • ब्रिटिश साम्राज्ञी की और से भारत राज्य सचिव का गठित किया गया.
  • भारत राज्य की सहायता के लिए 15 सदस्यों की भारत परिषद का गठन किया गया.
  • भारत राज्य सचिव को बैठकों में अतिरिक्त निर्णायक मत देने का अधिकार प्राप्त था.
  • भारत को गवर्नर जनरल के पद को बदलकर वासराय कर दिया गया.
  • वोर्ड ऑफ़ डाईरेकटर्स तथा बोर्ड ऑफ़ कंट्रोल को समाप्त कर दिया गया .
  • भारत राज्य सचिव को ब्रिटिश संसद के समक्ष भारत के बजट को प्रतिवर्ष करने का अधिकार दिया गया.
  • गवर्नर जनरल लार्ड केनिंग ने सर्वप्रथम विभाग प्रणाली की शुरुआत की.
  • देश के शासन में विकेंद्रीकरण की शुरुआत हुई.

1861 के भारतीय परिषद अधिनियम की विशेषता

  • 1861 में लार्ड केनिंग तीन भारतीय बनारस के राजा ,महराजा पटियाला और सर दिनकर राव को विधान परिषद में मनोनीत किया गया.
  • मद्रास और बम्बई प्रेसिडेंसी को विधायी शक्तियाँ देकर विकेंद्रीकरण की प्रक्रिया शुरू की.
  • लार्ड कैनिग द्वारा प्रारम्भ की गई मंत्रालय प्रणाली को मान्यता दी गयी.
  • वायसराय को आपतकाल में अध्यादेश जारी करने का अधिकार प्राप्त हुआ.
  • गवर्नर जनरल को विधान सभा में भारतीयों को मनोनीत करने की शक्ति प्रदान की गयी.

1892 का अधिनियम

  • इस अधिनियम ने भारत में प्रतिनिधि सरकार सरकार की नींव डाली.
  • केन्द्रीय और प्रांतीय विधान परिषद के दो तिहाई सदस्यों को एक सीमित और परोक्ष रूप से चुनाव का प्रवधान किया गया जिसे निकायों की सिफारिस पर की जाने वाली नामाकंन की प्रक्रिया कहा गया. (विस्वविद्यालय, जिला, बोर्ड, नगरपालिका)
  • विधान परिषदों के सदस्यों को सावर्जनिक हित के विषयों पर प्रश्न पूछने तथा बजट एवं वार्षिक व्यय पर बहस करने का अधिकार दिया गया किन्तु मतदान का अधिकार नहीं दिया गया.
  • कुछ हद तक भारत में संसदीय व्यवस्था का प्रचलन प्रारम्भ हो गया.

1909 के अधिनियम (मार्ले-मिटों सुधार)

  • केन्द्रीय और प्रान्तीय विधान परिषद में अतिरिक्त सदस्यों की वृद्धि की गयी.
  • विधान परिषद के कार्यो में वृद्धि की गयी और किसी भी विषय एवं पूरक प्रश्न पूछने का अधिकार तथा सामान्य और लोक हित सार्वजनिक मामलों पर बहस के लिए नियम बनाने का अधिकार दिया गया.
  • कुछ हद तक भारत में संसदीय व्यवस्था का प्रचलन प्रारम्भ हुआ.
  • सत्येंद्र प्रसाद सिन्हा को वायसराय की कार्यपालिका परिषद का प्रथम भारतीय सदस्य बनाया गया.
  • पृथक निर्वाचन के आधार पर मुस्लिमों के लिए साप्रदायिक प्रतिनिधित्व का प्रावधान किया गया. स्त्रियों को मताधिकार नहीं प्राप्त था.
  • लार्ड मिन्टों को साप्रदायिका निर्वाचन का जनक कहा गया.
  • राजनितिक दल के रूप में मुस्लिम लीग की स्थापना (1906 में) हुई.
  • भारतीय विकेंद्रीकरण आयोग की स्थापना की गयी.

भारत शासन अधिनियम – 1919 (मांटेग्यु चेम्सफोर्ड सुधार)

इसे मांटेग्यु चेम्सफोर्ड सुधार कहा गया जिनमें मांटेग्यु भारत के राज्य सचिव और चेम्सफोर्ड भारत के व्यवसाय थे.

  • केन्द्रीय विधान – मण्डल में दो सदन थे.
  • इस अधिनियम ने प्रान्तों में एक उत्तरदायी सरकार की स्थापना की.
  • मताधिकार का अहर्ता सम्पति के आधार पर निर्धारित थी. स्त्रियों को मताधिकार दिया गया परन्तु परिषदों की सदस्य नही बन सकती थी.
  • प्रान्तों में द्वैध शासन व्यवस्था और प्रत्यक्ष निर्वाचन की व्यवस्था की गयी.  मतलब (राज्य सभा) उच्चतर सदन और निम्न सदन (लोक सभा ) थे.
  • केंद्र और प्रान्तीय विषयों की सूची को पृथक कर दिया तथा प्रान्तीय विषयों को दो भागों में बाँट दिया – 1 हस्तांतरित 2. आरक्षित विषय
  • आरक्षित विषयों की श्रेणी में जेल, पुलिस, न्याय, वित्त सिंचाई तथा हस्तांतरित विषयों में काम महत्व के विषय शिक्षा खेती , स्थानीय स्वायत शासन आते थे.
  • प्रान्तिय विधान परिषदों का कार्यकाल 3 वर्ष था तथा अपने क्षेत्राधिकार के अंतर्ग्रत कानून बनाने व बजट पारित करने का अधिकार था.
  • अधिनियम के पारित होने के दस वर्ष बाद सवैधानिक सुधारों की जाँच के लिए ब्रिटिश संसद द्वारा एक आयोग का गठन किया गया.

1926 में लोक सेवा आयोग का गठन किया गया

साइमन कमीशन – 1927

नवम्बर 1927 में गठित वैधानिक आयोग ने अपनी रिपोर्ट 1930 में पेश की जिसमें दोहरी शासन प्रणाली, राज्यों का विस्तार का अनुशंसाएं की गई.

  • सभी दलों द्वारा साइमन कमीशन का विरोध किया गया क्योंकि आयोग में कोई भी सदस्य भारतीय नही था.

साप्रदायिक आवार्ड पूना पैक्ट

अगस्त 1932 में रैम्जे मैकडोनाल्ड ने अल्पसंख्याओं के प्रतिनिधित्व पर एक योजना प्रस्तुत की जिसका गाँधी जी द्वारा विरोध हुआ और कांग्रेस नेताओं और दलित नेता भीमराव अम्बेडकर के बीच एक समझौता हुआ जिसे पूना पैक्ट कहा गया .

भारत सरकार अधिनियम 1935

  • 1935 का अधिनियम ब्रिटिश संसद के इतिहास में यह सबसे बड़ा और जटिल अधिनियम माना जाता है.
  • इस अधिनियम में 14 भाग 321 धाराएं और 10 अनुसूचियां थी.
  • साइमन आयोग 1927 के बाद कुछ एसी घटनाएँ घटी जो 1935 के अधिनियम का आधार बनी.
  1. मोती लाल नेहरु की गठित कमेटी 10 अगस्त 1928.
  2. जिन्ना द्वारा 14 सूत्रीय कार्यक्रम को पेश करना 29 मार्च 1919.
  3. गोलमेज सम्मेलन – प्रथम 1930 द्वितीय 1931 तृतीय सम्मेलन 1932 द्वारा श्वेत पत्र का प्रस्तुतिकरण.

भारतीय राजव्यवस्था से जुड़े महत्वपूर्ण सवाल

महत्वपूर्ण विशेषता

  • भारत का संघ स्थापित करने का सुझाव दिया गया. भारत का संघ- 1. ब्रिटिश प्रांत 2. देशी रियासतों द्वारा
  • संघ और राज्यों के बीच शक्तियाँ का विभाजन अधिनियम की सांतवी अनुसूचित में शामिल की गई. 1. संघ सूची (59 विषय) 2. समवर्ती सूची (36 विषय) 3. प्रांतीय सूची (54 विषय).
  • किन्तु अवशिष्ट शक्तियों को गवर्नर जनरल को सोंपी गई थी.
  • केंद्र में द्वैध शासन की स्थापना की गई. आशिंक उतरदायी स्थापना का प्रवधान किया गया. केंद्रीय सरकार के विषयों को बाँट दिया गया. 1. आरक्षित विषय 2. हस्तांतरित विषय
  • 1935 अधिनियम के अनुसार केन्द्रीय विधानमंडल के तीन अंग थे. 1. राज्य परिषद 2. गवर्नर जनरल 3. विधान सभा
  • राज्य परिषद एक स्थायी संस्था थी, के ब्रिटिश भारतीय सदस्यों को तो प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रो के माध्यम से प्रत्यक्ष निर्वाचन रीति से तथा विधान सदस्य के निम्न सदनों के सदस्यों से निर्मित निर्वाचक मंडलो के माध्यम से परोक्ष निर्वाचन द्वारा चुने जाते थे.
  • धन विधेयक केवल विधान सभा में ही पेश किया जा सकता है.
  • अधिनियम द्वारा संघ की राजधानी दिल्ली में एक संघीय न्यायलय की स्थापना का उपबन्ध किया गया था. जिनकी संविधान की व्याख्या प्राथमिक तथा पुनर्विचार का अधिकार प्रदान किया गया, परन्तु अंतिम निर्णय प्रिवी काउंसलिंग से प्राप्त था. 1937 में संघीय अदालत की स्थापना हुई.
  • 1935 के अधिनियम ने प्रान्तों में द्वैध शासन प्रणाली का अन्त कर स्वशासन स्थापित की गई.
  • 1935 के अधिनियम के द्वारा 6 प्रान्त मद्रास बम्बई, बंगाल, बिहार, सयुंक्त प्रान्त तथा असम में द्विसदनीय विधान मण्डल की स्थापना की गई थी.
  • निम्न सदन (legislative Assembly) अथवा विधान सभा तथा उच्च सदन (legislative council) अथवा विधान परिषद कहलाया. शेष प्रान्तों में एक सदन (11 प्रान्त) विधान सभा का घटन किया गया.
  • विधान सभा के लिए प्रमुख प्रत्यक्ष चुनाव पध्दति से होने की व्यवस्था थी किन्तु मताधिकार के लिए कई मानक बनाए गये. अधिकतम महत्व सम्पति को दिया गया.
  • विधान सभा का कार्यकाल 5 वर्ष और विधान परिषद स्थायी सदन जिसके सदस्य 9 वर्षो के लिये चुने जाते थे किन्तु विधान परिषद के लिये 1\3 सदस्य हर तीसरे वर्ष अवकाश ग्रहण करते थे.
  • प्रान्तीय शासन के अध्यक्ष के रूप में राज्यपाल की न्युक्ति की गयी थी.
  • शिक्षा के क्षेत्र में महात्मा गाँधी की बुनियाद शिक्षा की योजना को लागू करके प्रारम्भिक शिक्षा को सुलझाने का प्रयास किया गया.
  • भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना की गई.
  • संघीय लोक सेवा स्थापित होने के अलावा प्रान्तों में राज्य सेवा आयोग तथा दो राज्यों के लिये सयुंक्त सेवा आयोग की स्थापना हुई.
  • 1937 में प्रान्तीय विधान सभाओं के चुनाव सम्पन हुए जिसमे कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी.

कैबिनेट मिशन 1946

द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त होने के बाद ब्रिटेन में लेबर पार्टी सत्ता में आयी और भारतीय समस्याओं के लिए मार्च 1946 में कैबिनेट मिशन भारत भेजा गया.

इसमें तीन सदस्य लार्ड पैथिक लारेन्स , स्टेफर्ड क्रिप्स और मिस्टर एलेक्जेंडर थे.

कैबिनेट मिशन का मुख्य कार्य संविधान सभा का गठन कर भारतीयों के लिए भारतीयों द्वारा संविधान बनाने का कार्य आरम्भ करना था.

अंतिम सरकार का गठन 1946

24 अगस्त 1946 कैबिनेट मिशन के सुझाव के आधार पर प्रथम अंतिम सरकार का गठन किया गया.

26 अक्टूबर 1946 को सरकार का पुनर्गठन किया गया.

जिसमें मुस्लिम लीग के पांच सदस्य को इसमें शामिल कर लिया गया और सरकार में मुस्लिम लीग की हिसेदारी बनी.

क्रम संख्या मंत्री विभाग
1. पं. जवाहर लाल नेहरू कार्यकारी के उपाध्यक्ष, विदेशी मामले और राष्ट्रमंडल
2. सरदार बल्लभ भाई पटेल गृह सुचना और प्रसारण
3. डॉ राजेन्द्र प्रसाद खाद्य और कृषि
4. राजगोपालाचारी शिक्षा
5. आसफ अली रेलवे
6. जगजीवन राम श्रम
7. डॉ जॉन मथाई उद्योग
8. सी. एच. भाभा बंदरगाह
9. लियाकत अली वित्त
10. गजनफर अली खां स्वास्थ्य
11. जोगेंद्र नाथ मंडल विधि
12. अब्दुर-रब नश्तर संचार
13. आई-आई चुंदरीगर वाणिज्य
14. सरदार बलदेव सिंह रक्षा

भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947

भारतीय साप्रदायिक दंगो को देखकर ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली ने 1947 में लार्ड माउन्टबेटन को वासराय नियुक्त कर सत्ता के हस्तान्तरण के लिये भारत भेजा.

  • 3 जून 1947 को माउन्टबेटन की विभाजन योजना कांग्रेस और मुस्लिम लोंगो ने स्वीकार कर ली. इस योजना को माउन्टबेटन योजना कहा गया.
  • माउंटबेटन योजना को कानूनी रूप प्रदान करने के लिए 18 जुलाई 1947 को भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम पेश किया गया.
  • अधिनियम में दो डामिनियंनों की स्थापना के लिए 15 अगस्त 1947 की तारीख निर्धारित की गयी.
  • वायसराय का पद समाप्त कर दोनों राष्ट्रों में गवर्नर जनरल का पद घोषित किया गया.
  • सविंधान सभा को अपने देश का सविंधान बनाने और दुसरे देश के संविधान को अपनाने की स्वंतन्त्रता थी.
  • 15 अगस्त 1947 से 26जनवरी 1950 को भारतीय संविधान के लागू होने तक भारत का राजनैतिक दर्जा ब्रिटिश राष्ट्रकुल का का एक औपनिवेशक का रहा.
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Published by
Deep Khicher

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