आज इस आर्टिकल में हम आपको धार्मिक आंदोलन के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी देने जा रहें है जिसकी मदद से आप एग्जाम की तैयारी कर सकते है
जैन धर्म के प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव थे. इन्हें इस धर्म का संस्थापक भी माना जाता है. जैन धर्म में कुल 24 तीर्थंकर हुए. महावीर स्वामी जैन धर्म के 24 वे तीर्थकर थे. यह जैन धर्म का वास्तविक संस्थापक माना जाता है.
जैन धर्म में कर्म फल से छुटकारा पाने के लिए त्रिरत्न का पालन आवश्यक माना गया है. ये त्रिरत्न है- सम्यक दर्शन, समय ज्ञान एवं समय आचरण.
महावीर ने पांच महाव्रतों के पालन का उपदेश दिया. यह पांच महाव्रत है – सत्य, अहिंसा, असत्य, अपरिग्रह एवं ब्राहचार्य. इनमें से शुरू के 4 महाव्रत जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ के थे, अंतिम महाभारत आचार्य महावीर स्वामी ने जोड़ा.
जैन धर्म अनीश्वरवादी है. कालांतर में जैन धर्म दो संप्रदायों श्वेतांबर एवं दिगंबर में बांटा गया. श्वेतांबर संप्रदाय के अनुयायी श्वेत वस्त्र धारण करते हैं, जबकि दिगंबर संप्रदाय के अनुयायी वस्त्रों का परीत्याग करते हैं. महावीर स्वामी ने अपने उपदेश प्राकृत भाषा में दिए.
बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध थे. गौतम बुद्ध ने अपना पहला उपदेश सारनाथ (ऋषिपत्नम) में दिया. बुद्ध ने सांसारिक दु:खों के बारे में चार आर्य सत्य बताए हैं. ये है – दु:ख, दु:ख समुदय, दु:ख विशेष तथा दु:ख निरोध गामिनी प्रतिपदा.
दु:खों से छुटकारा पाने के लिए बुद्ध ने अष्टांगिक मार्ग का उपदेश दिया है- सम्यक दृष्टि, सम्यक संकल्प, समयक वाक्, सम्यक स्मृति तथा सम्यक समाधि. प्
रतीत्यसमुत्पाद को गोतम बुद्ध की शिक्षाओं का सार कहा जाता है. बौद्ध धर्म अनीश्वरवादी तथा अनातंमवादी है.
बुद्ध, संघ एवं धम्म,- यह तीन बौद्ध धर्म के त्रिरत्न हैं.
बौद्ध ग्रंथों, सूत पिटक, विनय पिटक तथा अभिधम पीटक, को सामूहिक रुप से त्रिपिटक कहा गया है. त्रिपिटक की भाषा पाली है.
महात्मा बुद्ध ने अपने उपदेश पाली भाषा में दिये. कालांतर, कनीक्षक के शासनकाल में बौद्ध धर्म का विभाजन हीनयान तथा महायान दो शाखाओं में हो गया. इंडियन शाखा के अनुयायियों ने गौतम बुद्ध के मूल उपदेशों को स्वीकार किया जब की महायान शाखा के अनुयायियों ने बुद्ध धर्म की मूर्ति-पूजा का प्रचलन शुरू किया.
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