वैदिक काल क्या है?
सिंधु सभ्यता के पतन के बाद जो नवीन संस्कृति प्रकाश में आयी उसके विषय में हमें सम्पूर्ण जानकारी वेदों से मिलती है। इसलिए इस काल को हम ‘वैदिक काल’ अथवा वैदिक सभ्यता के नाम से जानते हैं।
वैदिक काल को दो भागों में विभाजित किया गया है.
- ऋगवैदिक काल
- उत्तर वैदिक काल

ऋगवैदिक काल
ऋगवैदिक काल – पिछले 15 ई.पूर्व 1000 ई.पु. माना गया है. इसके मंदिर में आर्यों का मूल निवास स्थान मध्य एशिया को मानना है. भारत में आर्य सर्व प्रथम सप्त सिंधु क्षेत्र में बसे.
ऋगवैदिक काल आर्य कई छोटे-छोटे कबीलों में विभक्त है. ऋगवैदिक साहित्य में सभी लिए जन शब्द का प्रयोग किया गया है. कबीले के सरदार को राजन कहा जाता था, जो शासक होते हैं. सबसे छोटी राजनीतिक इकाई कुल या परिवार थी, कई कुल मिलकर ग्राम बनाते थे, जिसका प्रधान ग्रामीण होता था. कई ग्राम मिलकर विश होता था, जिसका प्रधान विश्वपति होता था तथा कई विश मिलकर जन होता था, जिसका प्रधान राजा होता था.
ऋगवैदिक में जन का 275 बार तथा विश्व का 170 बार उल्लेख हुआ है. सभा समिति एक विद्युत राजनीतिक संस्थाएं थी. परिवार पितृसत्तात्मक था. समाज में वर्ण- व्यवस्था कर्म पर आधारित थी.
ऋगवैद के दसवें मंडल के पुरुष सूक्त में चारों वर्णों में:- ब्राहण, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र, का उल्लेख है.
समाज में स्त्रियों की स्थिति अच्छी थी. इस समय समाज में विधवा विवाह, नियोग प्रथा तथा पुर्न विवाह का प्रचलन था, लेकिन पर्दा प्रथा, बाल- विवाह प्रथा सती-प्रथा प्रचलित नहीं थी.
ऋगवैदिक कॉल के देवताओं में सर्वाधिक महत्व इंद्र को तथा उसके उपरांत अग्नि वरुण को महत्व प्रदान किया गया था. ऋगवैद इंद्र को पुरंदर अर्थात किले को तोड़ने वाला कहा गया है. ऋगवैद में उसके लिए 250 सूक्त है.
उत्तर वैदिक काल
उत्तर वैदिक काल के राजनीतिक संगठन की मुख्य विशेषताओं बड़े राज्यों तथा जनपदों की स्थापना थी. देवी उत्पत्ति के सिद्धांत का सर्वप्रथम उल्लेख ऐतरेय ब्राह्मण में किया गया है. इस काल में राजा का महत्व बढ़ा. उसका पद वंशानुगत हो गया.
उत्तर वैदिक काल में परिवार पितृसत्तात्मक होते थे. संयुक्त परिवार की प्रथा विद्यमान थी. समाज स्पष्ट रूप से चार वर्णों, ब्राहण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शुद्र में बांटा था. वर्ण व्यवस्था कर्म के बदले जाति पर आधारित थी. स्त्रियों की स्थिति अच्छी नहीं थी. उन्हें धन संबंधी तथा किसी प्रकार के राजनीतिक अधिकार प्राप्त नहीं थे.
जाबालोपनिषद में सर्वप्रथम चार आश्रमों, ब्राह्चार्य, गृहस्थ,वानप्रस्थ एवं संन्यास का विवरण मिलता है. धार्मिक एवं यज्ञीय कर्मकांडो में जटिलता आई.
इस काल में सबसे प्रमुख देवता प्रजापति (ब्राहा) विष्णु एवं इन्द्र (शिव) थे.
लोहे के प्रयोग के सर्वप्रथम साक्ष्य 1000 ई.पु. उतर प्रदेश के अन्तरजिखेडा (उतर प्रदेश) से मिला.