आज इस आर्टिकल में हमने आपको गुप्त साम्राज्य से जुडी जानकारी देने जा रहे है-
गुप्त वंश के शासन का प्रारंभ श्री गुरु द्वारा किया गया था, किंतु इस वर्ष का वास्तविक शासक चंद्रगुप्त ही था.
गुप्त अभिलेखों से ज्ञात होता है, कि चंद्रगुप्त प्रथम ही गुप्त वंश का प्रथम स्वतंत्र शासक था. उसने महाराजाधिराज की उपाधि ग्रहण की थी. चंद्रगुप्त प्रथम ने संवत की स्थापना 319-320 ई. में की थी. गुप्त संवत तथा शक संवत के बीच 241 वर्षों का अंतर था. चंद्रगुप्त प्रथम का लिच्छवी राजकुमारी कुमार देवी से विवाह हुआ था.
चंद्रगुप्त प्रथम के पश्चात उसका पुत्र समुन्द्रगुप्त शासक बना. वः लिछिवी राजकुमारी कुमार देवी से उत्पन्न हुआ था. मैं स्वयं को लिच्छवी दौहित्र कहने पर गर्व का अनुभव करता था. हरिश्चंद्र रचित प्रयाग प्रशस्ति से समुद्रगुप्त की विजयों की विस्तृत जानकारी मिलती है.
समुद्रगुप्त की विजय के बाद एक अश्वमेध यज्ञ किया था और अश्वमेध करता की उपाधि धारण की. समुद्रगुप्त एक उच्च कोटि का कभी भी था. उसे कविराज नाम से कई कविताएं भी लिखी थी. एक सिक्के पर उसे वीणा बजाते हुए दिखाया गया है. विशेष समिति ने समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन कहा था.
समुद्रगुप्त के बाद राम गुप्त शासक हुआ, किंतु वह एक दुर्बल शासक था, उसके बाद समुद्रगुप्त है ii शासक बना, चंद्रगुप्त ii के अन्य नाम देवराज तथा देवगुप्त भी थे. चंद्रगुप्त ii ने सड़कों पर विजय के उपलक्ष्य में रजत मुद्राओं का प्रचलन करवाया था तथा शकारी उपाधि धारण की एवं व्याधृ शैली के सिक्के चलाए.
चंद्रगुप्त ने अपनी पुत्री प्रभावती का विवाह वाकाटक शासक सुदर्शन के साथ किया. चंद्रगुप्त के दरबार में विद्वानों एवं कलाकारों को आश्चर्य प्राप्त था. उसके दरबार में नवरत्न थे – कालिदास, धनवंतरी, क्षपणक, अमर सिंह, शंकु, वेताल भट्ट, घटकर पर, वराहमिहिर, और वररुचि. प्रसिद्ध चीनी यात्री फरहान इसी के काल में भारत आया था.
चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के पश्चात उसका पुत्र कुमार गुप्त साम्राज्य का शासक बना. कुमार गुप्त की माता का नाम धुर्व देवी था. गुप्त शासकों में सर्वाधिक अभिलेख कुमार के ही प्राप्त हुए हैं. उस के शासनकाल में हूणों का आक्रमण हुआ था. कुमार गुप्त ( 415 – 454 ई.) के शासनकाल में नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना हुई थी.
स्कंदगुप्त ( 454 – 467 ई.) गुप्त वंश का अंतिम प्रतापी शासक था. स्कंद गुप्त ने 466 ई. में चीनी सॉन्ग सम्राट के दरबार में राजदूत भेजा था. गुप्त वंश के शासक के भानुगुप्त के समय सती प्रथा का प्रथम साक्ष्य 510 ईसवी के एरण अभिलेख में मिलता है. गुप्त वंश का अंतिम शासक विष्णुगुप्त था. 570 ईसवी में गुप्त साम्राज्य का पतन हो गया.
क्षेत्रीय राजवंश – बंगाल के वंश
गुप्त युग में विभिन्न कलाओं-मूर्तिकला, चित्रकला, वास्तु कला, संगीत नाटक उन्नति. मंदिर निर्माण कला का जन्म गुप्त काल में हुआ. देवगढ़ का दशावतार मंदिर भारतीय मंदिर निर्माण में शिखर का सबसे पहला उदाहरण है.
सारनाथ की बुद्ध मूर्ति, मथुरा की वर्धमान महावीर की मूर्ति, विदिशा की वराह अवतार की मूर्ति, झांसी की शेषशायी विष्णु की मूर्ति, काशी की गोवर्धन धारी कृष्ण की मूर्ति शिव की मूर्ति कला के प्रमुख उदाहरण है. अजंता की 16 एवं 17 के चित्र एवं बाघ के चित्र इसी समय चित्रित किए गए, जो चित्रकला के सर्वोत्तम उदाहरण है. यह महाराष्ट्र राज्य में अवस्थित है.
रचनाकार | रचना |
विशाखा दत्त | मुद्राराक्षस से, देवीचंद्रगुप्तम |
शुद्र के | मृच्छकटिकम् |
दंडी | दशकुमारचरित |
विष्णु शर्मा | पंचतंत्र |
नारायण पंडित | हितोपदेश |
वराहमिहिर | लघु जातक |
पलकापय | हस्त आयुर्वेद |
सुबंधु | स्वप्नवासवदत्ता |
आर्यभट्ट इस युग के प्रख्यात गणितज्ञ एवं खगोलशास्त्री थे, इन्होंने आर्यभट्ट नामक ग्रंथ की रचना की, जिसमें अंकगणित बीजगणित का रेखा गणित की विवेचना की गई है. आर्यभट्ट ने सूर्य सिद्धांत नामक ग्रंथ में यह सिद्ध किया कि पृथ्वी सूर्य का चक्कर लगाती है.
वाराहमिहिर ने वृहत्संहिता एवं पंचसिद्धांतिका नाम के खगोलशास्त्र के ग्रंथों की रचना की ग्राहकों का ब्राह्मण सिद्धांत भी खगोल शास्त्र का एक प्रसिद्ध ग्रंथ है. भास्कराचार्य ने महाभाष्यक्रय , लघुभास्करय लिखा. धनवंतरि तथा सूश्रुत इस युग के प्रख्यात वैद थे.
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