जीवो में वंश वृद्धि को जनन कहते हैं। जीव जनन निम्नलिखित कारणों से करते हैं –
लैगिक जनन- नर तथा मादा का युग्मक की सहायता से संतान उत्पन्न करने की क्रिया को लैगिक जनन कहते हैं। नर के शुक्राणु में व मादा के अंडाणु मिलकर युग्मनज बनाते हैं जिस से भ्रूण तथा भ्रूण से जीव बनता है। उदाहरण- पक्षी, मनुष्य, मेंढक आदि।
अलैंगिक जनन- बिना नर तथा मादा युग्मको के संतान उत्पन्न करने की क्रिया को अलैंगिक जनन कहते है। इस क्रिया में पौधे के किसी भाग में विशेष परिवर्तन आकर बीजाणु बनते हैं। जो अनुकूल वातावरण में नए पौधे को जन्म देते हैं। इस में नर युग्मक तथा मादा की आवश्यकता नहीं होती है। उदाहरण- अमीबा, स्पंज, मूंगे, मयूकर आदि।
सजीव | निर्जीव |
यह सांस लेते हैं। | यह सांस नहीं लेते हैं। |
इनमें कोशिकीय के संगठन होता है। | इनमें कोशिकीय संगठन का अभाव होता है। |
सजीव भोजन खाते हैं। | निर्जीव भोजन नहीं खाते हैं। |
इनमें विकास और वृद्धि होती है। | इनमें विकास और वृद्धि नहीं होती है। |
यदि समष्टि अपने परिवेश के अनुकूल अपने आपको ढालने में असमर्थ रहे तो समष्टि का समूल विनाश संभव है। परंतु जब समष्टि में विभिन्नताएं हो, तो कुछ विशेष समष्टि परिवेश के अनुकूल डालने में सफल हो सकती है और समूल विनाश से बच सकती है। इस प्रकार, वे विभिन्नताएं जो जीवो में विद्यमान है उनके अस्तित्व को बनाए रखने में सहायक है।
अमीबा में जनन सम्मानित द्वि-खंडन विधि द्वारा होता है। अमीबा की कोशिका दो समान कोशिकाओं में विभक्त हो जाती है।
लेस्मानिया एक एक कोशिकीय जंतु है, जो कालाजार नामक रोग का रोगाणु है।
यह एक कोशिकीय जीव कुछ जटिल संरचना प्रदर्शित करता है, इसमें जीव (कोशिका) के एक सिरे पर एक चाबुक जैसी संरचना होती है।
लेस्मानिया में द्विखण्डन शरीर सरचना के एक निश्चित दिशा में होता है। इसमें शरीर का ऊर्ध्वाधर विभाजन होता है, जिससे संतति जीव बनते हैं।
यीस्ट समानता मुकुलन द्वारा जनन करते हैं। यीस्ट एक कोशिका कवक है।
हाइड्रा एक बहुकोशिकीय सिलेटरेंट है ।
पुनरुदभवन वह पर घटना है जिसमें जीव अपने खोए हुए अंगों का विकास या पूर्ण शरीर ही अपने शरीर के छोटे से भाग से कर लेता है।
नोट- पुनरुदभवन की क्षमता केवल निम्न प्रकार के जीवों में पाई जाती है। हाइड्रा एक अन्य जंतु का उदाहरण है जिसमें यह क्षमता पाई जाती है।
गुलाब, बोगनविलिया, डेहलिया, ब्रायोफिलम, आलू आदि।
लैंगिक जनन | अलैंगिक जनन |
इसमें युग्मक बनते हैं तथा उनका सहयोग होता है | इसमें युग्मक नहीं बनते और ना ही उनका सहयोग होता है। |
इसमें दोनों पैतृक भाग लेते हैं। | इसमें केवल जनक/पैतृक भाग लेता है। |
जीवो के दोबारा संयोग के कारण अनेक गुण विकसित होते हैं। | समानयत: कोई नया लक्षण/गुण विकसित नहीं होता है। |
यह सामान्य उंच पौधे और जंतुओं में होता है। | यह केवल निम्न पौधों और जंतुओं में होता है। |
स्वपरागण | परपरागण |
पराग कणों का उसी फूल के या उसी पौधे पर लगे अन्य फूल के वर्तिकाग्र तक स्थानांतरित होने की क्रिया स्वप्रागण कहलाती है। | पराग कणों का एक पौधे पर लगे फूलों से अन्य पदों पर लगे फूलों के वर्तिकाग्र तक स्थानांतरित होने की प्रक्रिया परपरागकण कराती है। |
इसमें अधिक की विभिन्नताएं उत्पन्न नहीं होती है। | इसमें विभिन्नताएं उत्पन्न होती है। |
पराग कणों के खराब होने के कम अवसर हैं। | पराग कणों के खराब होने के अधिक अवसर हैं। |
स्वपरागण की बजाय परपरागण ज्यादा लाभदायक है क्योंकि-
अंड/डिंब | शुक्राणु |
यह मादा युग्मक है। | यह नर युग्मक है। |
यह आकार में बड़ा होता है। | यह आकार में छोटा होता है। |
इसमें पूंछ व सिर अनुपस्थित होते हैं। | इसमें पूंछ व सिर उपस्थित होते हैं। |
यह अगतिशील है। | यह गतिशील होता है तथा तैर सकता है। |
इसमें कोशिका द्रव्य भरा होता है। | इसमें कोशिका द्रव्य लगभग अनुपस्थित होता है। |
वायु, जल, कीट, पक्षी, जंतु आदि।
लैंगिक क्रिया के पश्चात शुक्राणुओं को योनि में जमा कर दिया जाता है। जहां से ग्रीवा, गर्भाशय में से होते हुए अंड वाहिनी नलिका में अंड तक पहुंच जाते हैं। अंड का निषेचन अंड वाहिनी नलिका में होता है।
नर तथा मादा युग्मक के संयोग से युग्मनज बनाता है, जो फिर विभाजित हो कर दो, चार, 8 कोशिकाओं वाली संरचना बनाता है। इस बीच यह अडवाहिनी में से गति करता रहता है, फिर यह कोशिकाओं का एक ठोस द्रव्यमान बनाता है जिसे मोरूला कहते हैं। बाद में मोरूला के अंदर एक गुहा विकसित होती है। इस सतना को ब्लास्टूला कहते हैं। ब्लास्टूला गर्भाशय में पहुंचने पर गर्भाशय की भिती पर रोपित हो जाती है। जहां पर यह भ्रूण में विकसित होती है, जो बाद में शिशु का रूप धारण करता है।
व्यर्थ पदार्थों को शिशु के शरीर से अपरा के माध्यम से ही बाहर निकाला जाता है। इनका विसरण माता के शरीर में हो जाता है जहां से वृक्क में रक्त के अपोहन के द्वारा इन्हें मूत्र के रूप में बाहर निकाला जाता है।
यह कोशिका वृषण के क्रियात्मक अवयओं में से एक है, इन्हें अंतराली कोशिकाएं भी कहते हैं। यह नर लैंगिक हॉर्मोन testostrone का स्त्राव करती है जो प्राथमिक एवं द्वितीयक लैंगिक गुणों का विकास करने में तथा शुक्राणुओं के बनने में सहायता करता है।
मादा में रजोदर्शन तथा रजोनिवृत्ति के बीच का समय 12 से 50 वर्ष तक जनन काल कहलाता है। गर्भधारण करने की अवस्था में या फिर लगभग 50 वर्ष की आयु से अधिक आयु होने पर रजोनिवृत्ति हो जाती है। शिशु के जन्म लेने तक अंडोत्सर्ग तथा रजोधर्म दोनों बंद रहते हैं।
गर्भाशय की दीवार तथा भ्रूण के बीच एक विशेष उत्तक विकसित होता है जिसे प्लेसेंटा कहते हैं। प्लेसेंटा एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन हार्मोन का स्त्राव कर मासिक धर्म को बंद कर देता है।
मैथुन क्रिया द्वारा नर युग्मक (शुक्राणु) स्त्री जननांग में प्रवेश कर गर्भाशय की ओर बढ़ता है। केवल एक शुक्राणु डिंब वाहिनी नली में अंडाणु निषेचित करता है। अंडोत्सर्ग काल में मैथुन क्रिया यूग्मनज बनाते है तथा ऋतु स्त्राव बंद हो जाता है। उसके उपरांत युग्मनज़ से भ्रूण के विकास के लिए पोषण, श्वसन तथा उत्तरण की पूर्ति मातृ शरीर से अपरा द्वारा होती है। गर्भाशय में जन्म लेने तक गर्भ के विकास को गर्भावती कहते हैं। इसके समाप्त होते ही अर्थात लगभग की 228 दिन की गर्भवती के उपरांत गर्व का जन्म होता है इस क्रिया को प्रसव कहते हैं।
गर्भनिरोधक वे युक्तियां/विधियां होती है जो गर्भधारण को रोकती है। यह यांत्रिक अवरोधक, रसायन (शुक्राणु नाशक) या हार्मोन (जो अंडोत्सर्ग को रोकते हैं) होते हैं।
गर्भनिरोधकों का उपयोग
शल्यचिकित्सा द्वारा अनचाहे गर्भ को हटाया जा सकता है। इस तकनीक का दुरुपयोग जब उन लोगों द्वारा किया जाता है जो विशेष लिंग अर्थात नर लिंग को ही चाहते हैं और इस प्रकार गैर- कानूनी कार्यक्रम मादा गर्भ को नष्ट कर दिया जाता है। इस प्रकार, हमारी जनसंख्या में मादा लिंग तेजी से घट रहा है। विशेषकर हरियाणा, पंजाब में लिंग अनुपात का अंतर काफी तेजी से बढ़ रहा है जो अपने में एक भारी चिंता का कारण है।
स्थान तथा खाद्य पदार्थों की कमी, गरीबी को बढ़ाना, शिक्षा तथा चिकित्सा सुविधाओं में कमी, प्रदूषण का बढ़ना, बेरोजगारी का बढ़ना, तनाव, निराशा तथा असंतोष का बढ़ना।
एडस का पूरा नाम है उपार्जित रोधक्षमता हीनता जन्य. एडस स्वयं में कोई रोग नहीं है, लेकिन प्रतिरोधक क्षमता कम होने पर शरीर अनेक रोगों/संक्रमण से ग्रसित हो जाता है।
लक्षण
एड्स से बचने के उपाय
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