मनुष्य में विभिन्न पदार्थों जैसे- श्वसन गैस , हार्मोन, पौषक पदार्थ उत्सर्जित उत्पाद आदि का परिवहन परिसंचरण तंत्र द्वारा रुधीर एवं लिम्फ के माध्यम से होता है. परिसंचरण तंत्र में ह्रदय तथा रुधिर वाहिकाएं सीमलीत होती है. रुधिर वाहिकाएं तीन प्रकार की होती है- धमनी, शिराएं, तथा वाहिनियां
रुधिर का अध्ययन रूधीर विज्ञान के अंतर्गत किया जाता है. रुधिर लाल सहनी संयोजी उत्तक है. स्वस्थ मनुष्य में रुधिर की मात्रा लगभग 5 से 6 लीटर होती है. रुधिर जल्द से भारी तथा स्वाद में नमकीन होता है. रुधिर के दो मुख्य घटक होते हैं
प्लाज्मा रुधिर की आधात्रि को दर्शाता है.यह पारदर्शी होता है. यह रुधिर के आयतन का बचपन से 55-60% भाग है.प्लाज्मा में 90% जल तथा 10% ठोस पदार्थ होते हैं. यह ठोस पदार्थ दो प्रकार के होते हैं- कार्बनिक ठोस जैसे – प्रोटीन फाइब्रिनोजन, ग्लोब्युलिन, आदि , अकार्बनिक ठोस, जैसे – सोडियम, पोटासियम, के, आयरन, कोबाल्ट आदि.
रुधिर कोशिकाओं को रुधिर कणिकाएं भी कहते हैं. आयतन के अनुसार यह रुधिर का 40 – 50% भाग बनाती है. रुधिर कोशिका चार प्रकार की होती है.
इन में उपस्थित हीमोग्लोबिन नामक लाल वर्णक के कारण ही रुधिर का रंग लाल होता है. इन्हें इरीथ्रोसाइटस भी कहते हैं. लाल रुधिर कणिकाओं संबंधित बिंदु निम्न है.
हिमोग्लोबिन शरीर की हर कोशिका में ऑक्सीजन पहुंचाने तथा कार्बन डाइऑक्साइड को वापस लाने का कार्य करती है केसुरी क्योंकि RBCs केंद्रीय होती है, जबकि स्तनधारियों की RBCs में केंद्रक अनुपस्थित होता है,ऊंट के अतिरिक्त सभी स्तनधारियों की RBCs अकेंद्रीय होती है,
सलामेडर की RBCs सबसे बड़ी होती है. कस्तूरी हिरण की RBCs सबसे छोटी होती है. RBCS आकार में उभयावतली होती है., मनुष्य में इनका जीवन काल लगभग 120 दिन होता है.
मनुष्य में पुरुषों के रुधिर में इनकी संख्या 5 – 5.5 मिलियन MM 3 रुधिर तथा स्त्रियों में 4 – 4.5 मिलियन MM 3 रक्त होती है, हिमोग्लोबिन (HB) की मात्रा शाले के हिमोमीटर से मापी जाती
यह अनुवांशिक नहीं होती विटामिन B12 की कमी के कारण RBCs की संख्या में कमी तथा आकार में वृद्धि होती है, परंतु RBC में हिमोग्लोबिन घटक कम रहता है.
यह अनुवांशिक रोग है, जिससे शरीर में RBCs या हिमोग्लोबिन का निर्माण नहीं होता.
यह एक प्रकार की रुधिर विषाक्तता है.
इन्हें ल्यूकोसाइट भी कहते हैं. यह RBCs से बड़ी तथा रंगहिन होती है. सभी WBCs मैं केंद्रक उपस्थित होता है. रुधिर में 8000 – 9000 \मिमी3 WBCs उपस्थित होती है. इनका रक्षा तंत्र में महत्वपूर्ण योगदान है, इसलिए यह शरीर की सिपाही कहलाती है. WBCs दो प्रकार की होती है
इनका कोशिकाद्रव्य कानिकामय का तथा केंद्रक पाली युक्त होता है. सममिति आकृती होती है. अभिरंजन गुण धर्मों के आधार पर इन्हें तीन भागों में बांटा जा सकता है.
यह कुल श्वेत रुधिर कणिकाओं की लगभग 2 से 4% होती हैं तथा अम्लीय अभिरंजक( जैसे -इयोसिन)द्वारा अभीरंजीत की जा सकती है, इनका केंद्रक दो पालियों में विभाजित रहता है, रोगों के संक्रमण के समय इनकी संख्या बढ़ जाती है, यह शरीर को प्रतिरक्षा प्रदान करने में सहायक होती हैं तथा एलर्जी व अतिसंवेदनशीलता में महत्वपूर्ण कार्य करती हैं,
यह कुल श्वेत रुधिर कणिकाओं की 0.5 – 2 % होती है. यह क्षारीय अभिरंजक र्ग्रहण करती है. जैसे – मैथिली में ब्लू द्वारा अभिरंजित होती है . इनका केंद्रक 2 – 3 पोलियो में विभाजित तथा s आकृति का दिखाई देता है. यह हेपिरिन, हिस्टेम्नी एवं सिरोटोनिन नामक पदार्थ का श्रावण करती है.
श्वेत रुधिर कणिकाओं में इनकी संख्या सबसे अधिक है ( 60- 70%) .होती है .यह उदासीन अभिरजोंकों द्वारा अभिरंजित होती है. इनका केन्द्र 3 – 5 पोलियो में विभाजित रहता है. ये भक्षकाणु क्रिया में सबसे अधिक सक्रिय होती है.
श्वेत रुधिर कणिकाओं के कोशिकाद्रव्य में कणिकाएं नहीं पाई जाती है. इनका कार्ड केंद्र होता है तथा विंडो में विभाजित नहीं रहता है. यह दो प्रकार की होती है.
इनका आकार सबसे छोटा होता है. यह कुल श्वेत रुधिर कणिकाओं की 20 – 30% होती है. इनका कार्य प्रतिरक्षी का निर्माण करना तथा शरीर की सुरक्षा करना होता है.
यह बड़े आकार की कोशिकाएं होती है. यह कुल श्वेत रुधिर कणिकाओं को 2-10% होती है. उत्तक द्रव्य में जाकर यह वृहद भ्क्ष्काणु में परिवर्तित हो जाती है.इनका कार्य भक्षकाणु कृया द्वारा जीवाणुओं का भक्षण करना होता है.
प्लेटलेट्स केवल स्तनधारियों में पाई जाती है. यह थ्रोंमोबोसाईट कहलाती है. तथा ये केंद्रकरही होती है.इनकी माप अनियमित बोलो या अंडाकार होती है. यह रुधिर के स्न्क्दन में सहायता प्रदान करती है.
यह रुधिर के बहने से धमनियों की दीवारों पर लगने वाला दाब है तथा पारे की मिमी के रूप में ब्रेकिय्ल धमनी में मापा जाता है इसके लिए जिस. उपकरण का प्रयोग किया जाता है. वह है सिफ्गोमिमे नोमिट्रर कहलाता है. इसका उत्पादन मूल्य सामान्यतया 120 मिमी hg तथा निम्न अनुशिथिलन मुल्य सामान्यता 80 मिमी hg होता है. अति तनाव में उच्च रुधीर दाब प्रकुंचन 140 मिमी Hg से अधिक तथा अनुशिथिलन 90 मिमी Hg से अधिक होता है. न्यून तनाव में निम्न रुधिर दाब प्रकुंचन 110 मिमी hg से कम तथा अनुशीथिलिन 70 मिमी hg से कम होता है.
इन्हें एलुटीजन भी कहते हैं.RBCs की सतह पर पाई जाती है. प्रतिजन A साथ B प्रकार के होते हैं.
इन्हें एग्लूटीन्स भी कहते हैं.यह रुधिर प्लाज्मा में उपस्थित होते हैं. इनका निर्माण ल्स्सिका नोड तथा लसीका ग्रंथियों में होता है.
नाइट्रोजन व वर्ज्य पदार्थों को शरीर के बाहर विकसित करने की जो प्रक्रिया को उत्सर्जन कहते हैं. उत्सर्जन में सहायक अंग उत्सर्जी अग कहलाते हैं. जो मिलकर उत्सर्जन तंत्र का निर्माण करते हैं. कोशिका अथवा शरीर में लवण एवं जल की शुद्धता के अनुपात का नियमन परासरण नियमन कहलाता है,
मानव का उत्सर्जी व्रीक्क मूत्रवाहिनी नलिका मूत्राशय तथा मूत्र मार्ग से मिलकर बना होता है.
वृक्क सत्नियों का उत्सर्जी अंग है. मनुष्य में एक जोड़ी वृकक दंड के दोनों और आमासीय गुहा में पाए जाते हैं. बायना व्रीक्क दाएँ व्रीक्क से कुछ ऊँचा होता है, वृकक दो भागों का बना होता है.
एसी सभी भौतिक एवं रासायनिक क्रियाओं के योग को शवसन कहते हैं. जिनमें वायुमंडल में ऑक्सीजन शरीर की कोशिकाओं में पहुंचकर भोजन का ऑक्सीकरण करती है तथा कार्बन डाइऑक्साइड एवं जल उत्पन्न होती है और ऊर्जा मुक्त होती है. श्वसन दो प्रकार का होता है -वायवीय श्वसन, आवयवीय श्वसन
मानव के मुख्य श्वस्नांग एक जोड़ी फेफडे होते हैं. यह कोमल सपंजी एवं लचीले अंग है जो कक्षगुहा में केशुरुक दंड एवं पन्सलीयों द्वारा बने एक कटघरे में सुरक्षित रहते हैं.फेफड़ों तक बाहरी वायु के आवागमन हेतु नासिक का ग्रसनी, वायुनाल तथा इसकी शाखाएं मिलकर एक जटिल वायु मार्ग बनाती है. इस प्रकार यह सब अंत का फेफड़े मिलकर मानव का श्वसन तंत्र बनाते हैं.
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