मनुष्य की आर्थिक क्रियाओं का विवरण : मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अनेक क्रियाएँ करता है अर्थव्यवस्था पर प्रभाव डालती हैं। मनुष्य की इन क्रियाओं पर भौतिक व सामाजिक वातावरण प्रभाव डालते हैं। जैसे मनुष्य वनों में संग्रहण, आखेट व लकड़ी काटने का व्यवसाय, घास के में पशुचारण, जल से मछली पालन आदि का कार्य करता है। मनुष्य द्वारा की जाने वाली आशा क्रियाओं को तीन भागों में बांटा जाता है।
(1) प्राथमिक क्रियाकलाप।
(2) द्वितीयक क्रियाकलाप।
(3) तृतीयक क्रियाकलाप।
इन क्रियाओं में मनुष्य सीधा प्राकृतिक साधनों का प्रयोग करता है और अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है, जैसे-वनों से लकड़ी काटना, संग्रहण, आखेट मछली पालन, कृषि करना, खनिज निकालना आदि। इन क्रियाकलापों का वर्णन इस प्रकार है
वनों से विभिन्न प्रकार की वस्तुओं जैसे लकड़ी, फल, फूल आदि के इकटठा करने को एकत्रीकरण कहते हैं।
एकत्रीकरण को दो भागों में बांटा जाता है
(i) जीवन निर्वाह के लिए एकत्रीकरण- इसमें अपने निर्वाह के लिए जंगलों में रहने वाली जनजातियाँ वस्तुओं को एकत्रित करती हैं, जैसे कि भोजन के लिए फल, शहद, चिकिल आदि, वस्त्रों के लिए वृक्षों की छाल व पत्तियाँ, जलाने के लिए लकड़ी आदि।
(ii) व्यापार के लिए एकत्रीकरण- इस प्रकार के व्यवसाय में जनजातियाँ व्यापार के उद्देश्य से वस्तुओं को एकत्रित करती हैं। इस व्यवसाय में विभिन्न प्रकार की उपजों को एकत्रित किया जाता है, जैसे
(a) जंगली रबड़ व बलाटा- जंगली रबड़ अमेजन बेसिन में उगने वाले ब्राजीलियनसिस नामक पेड़ के तने की छाल को काटकर इससे प्राप्त होने वाले दूध से बनाई जाती है। जंगली रबड़ की तरह ही एक पेड़ होता है, जिसके दूध से बलाटा नामक पदार्थ प्राप्त किया जाता है।
(b) फल- वनों से कई प्रकार के फल, बेर, महुआ, खजूर, जामुन आदि प्राप्त किए जाते हैं।
(c) चिकल- चिकल एक प्रकार का गोंद होता है जो कि जपोटा नामक वृक्ष के दूध से तैयार किया जाता है।
(d) रेशे- इन वनों से अनेक प्रकार के रेशे प्राप्त किए जाते हैं, जो कि चटाई, रस्से आदि बनाने में काम आते हैं।
(e) गोंद व लाख- वनों से गोंद व लाख भी प्राप्त की जाती है। लाख को कीडों से प्राप्त किया जाता है।
आखेट मनुष्य के प्राचीनतम व्यवसायों में से एक व्यवसाय है। कम जनसंख्या का भरण-पोषण करने के कारण ये विरल जनसंख्या वाले प्रदेशों में किए जाते हैं। ये प्रदेश निम्न हैं
(1) दक्षिण अमेरिका के अमेजन बेसिन की अमेरिण्ड आदिम जाति।
(2) मध्य अफ्रीका के कांगो बेसिन के पिग्मी
(3) मलाया के समांग व सकाई
(4) न्यूगिनी के पापुआन
(5) कालाहारी मरूस्थल के बुशमैन
(6) उत्तरी आस्ट्रेलिया की आदिम जातियाँ।
ये लोग अलग-अलग उद्देश्य के लिए आखेट करते थे। ये उद्देश्य निम्नलिखित हैं
(1) भोजन- उष्ण कटिबन्ध में रहने वाली जनजातियाँ उस क्षेत्र में पाए जाने वाले पशुओं जैसे जिराफ, हिरण, शुतुरमुर्ग, जंगली सुअर आदि का शिकार करते हैं, जबकि टुण्ड्रा प्रदेश में रहने वाली जनजातियाँ हवेल, सील, ध्रुवीय भालू आदि स्थलीय जीवों का आखेट करके भोजन प्राप्त करती हैं।
(2) वस्त्र- इन शिकार किए गए पशुओं की खालों का प्रयोग वस्त्र के रूप में भी किया जाता था। टुण्ड्रा प्रदेशों में रेण्डियर, कैरिवों आदि पशुओं की खालों का प्रयोग किया जाता है।
(3) आवास- इन पशुओं की खालों का प्रयोग रहने के लिए तम्बू के लिए प्रयोग किया जाता है। याकूत व सैमोयेड जनजातियाँ रेण्डियार पशु की खाल का प्रयोग तम्बू के लिए करती थीं।
(4) अन्य- पशुओं का शिकार कई बार हथियार प्राप्त करने के लिए भी किया जाता है। ये लोग पशुओं की हड्डियों को अपने अस्त्र-शस्त्र के रूप में प्रयोग करते हैं तथा पशुओं के बचे हुए अंगों से अनेक उपकरण भी बनाते हैं। जैसे बुशमैन जनजाति शुतुरमुर्ग के अण्डे को बीच में से काटकर पानी भरने के लिए इस्तेमाल करते हैं।
वनों से लकड़ी काटना मनुष्य के प्राथमिक व्यवसायों में से एक है। वनों से लकड़ी काटना एक महत्वपूर्ण व्यवसाय है। वनों से लकड़ी अनेक उद्देश्यों के लिए काटी जाती है। लकड़ी को कोयला बनाने, जलाने, फर्नीचर, कागज, भवन निर्माण, वस्तुओं को पैक करने आदि के लिए प्राप्त किया जाता है।
पशुपालन व पशुचारण मनुष्य के प्राथमिक व्यवसायों में से एक है. पशुओं से दूध, मांस, ऊन, खाल आदि वस्तुओं को प्राप्त करने के लिए पशुपालन कि जनजातियाँ अपने-अपने पशुओं को चारे की खोज में इधर-उधर चराती रहती हैं। पशुचरण व्यवसाय को तीन भागों में बांटा जाता है।
(i) चलवासी पशुचारण- चलवासी पशुचारण में ये लोग एक जगह पर चारे के पर अपने पशुओं के साथ दूसरी जगह पर चले जाते हैं। अतः चरवाहों का तलाश मे एक स्थान से दूसरे स्थान पर प्रवास करना चलवासी पशुचारण कहलाता है.
(ii) जीविका पशुचारण- इस व्यवसाय में आजीविका कमाने के लिए पशुओं को पाला जाता है। इस व्यवसाय में चरवाहे अपने पशुओं के साथ इधर-उधर घूमने की बजाय एक जगह रहकर पशु चराते हैं।
(iii) व्यापारिक पशचारण- इस व्यवसाय में चरवाहे एक निश्चित स्थान पर पर जीवन व्यतीत करते हैं। पशुओं को बड़े-बड़े बाड़ों में रखा जाता है। इनका पालन पोषण वैज्ञानिक ढंग से किया जाता है।
मछली पालन मनुष्य के प्राचीनतम व्यवसायों में से एक है। आज भी मछली पालन विश्व के विभिन्न भागों में आजीविका का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। जापान, नार्वे, न्यूफाउंड लैंड आदि देशों में जहाँ पर भूमि पथरीली व अनुपजाऊ है, वहाँ पर भोजन का अधिकतर भाग मछली से ही प्राप्त किया जाता है। जल की प्रकृति के आधार पर मछलियों को दो भागों में बांटा जाता है-
(1) ताजे जल की मछलियाँ।
(2) खारे जल की मछलियाँ।
खानों को खोदकर उनसे खनिज अयस्क प्राप्त करना खनन व्यवसाय कहलाता है। यह मनुष्य के प्राचीनतम व्यवसायों में से एक है। यह एक महत्वपूर्ण प्राथमिक व्यवसाय है।
कृषि एक व्यापक व्यवसाय है। इसमें विभिन्न प्रकार की फसलों को बोना – उगाना, पशुओं को पालना आदि सम्मिलित हैं। कृषि आज विकासशील देशों का एक महत्वपर्ण व्यवसाय है, जिस पर उस देश की अधिकतर जनसंख्या भोजन, वस्त्र व आवास के लिए निर्भर रहती है।
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