आज इस आर्टिकल में हम आपको प्राचीन भारत के एतिहासिक स्रोत के बारे में जानकारी देने जा रहे है. भारत एक विशाल  प्रायद्वीप है, जो तीन ओर से समुद्र से घिरा है. इसे आर्यव्रत, बरहाव्रत, हिंदुस्तान का इंडिया के नाम से भी जाना जाता है. सम्भवत  देश का भारत नामकरण का ऋगवैदिक काल के प्रमुख जन भरत के नाम पर किया गया. प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन के मुख्य तीन स्रोत है –

प्राचीन भारत के एतिहासिक स्रोत
प्राचीन भारत के एतिहासिक स्रोत

साहित्यिक साक्ष्य

साहित्यिक साक्षयों के अंतर्गत वेद,वेदांग, उपनिषद, ब्राह्मण, आरण्यक, पुराण, रामायण,महाभारत, स्मृति ग्रंथ है तथा बौद्ध एवं जैन साहित्य को शामिल किया जाता है.

विदेशियों के वृत्तांत

विदेशियों के वृतांत को तीन वर्गों में रखा जा सकता है –  यूनान- रोम के लेखक, चीन के लेखन तथा अरब के लेखक हैं. हीरोडॉटस तथा टीसिय्स सबसे पुराने यूनानी इतिहासकार थे. इनकी रचनाओं में कलपित  कहानियां को स्थान दिया गया है.

टीसियस ईरान का राज वैद्य था. मेगास्थनीज चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में सेल्यूकस का राजदूत था. उसने इंडिका की रचना की. इसमें मौर्यकालीन समाज तथा प्रशासनिक व्यवस्था का विवरण मिलता है. टॉलमी ने  जियोग्राफी (140 ई.) रचना की. पिलनी ने नेचुरल हिस्टोरिका ,फ्राहान ने फ़ो- क्यों- की तथा हेसॉन्ग में सी यु की रचना की.

जैन धर्म और महावीर स्वामी से जुडी जानकारी

प्राचीन भारत में विदेश यात्रा

विदेशी यात्री संभावित तिथि तत्कालीन सांसद
मेगस्थनीज 305 ई. चंद्रगुप्त मौर्य
फ्राहान 405 ई. चंद्रगुप्त द्वितीय
सुगयुन 518 ई, स्कंदगुप्त
कॉसमॉस 547ई. ईशानवर्मन मोखिर
अलमसूदी 915 ई. महिपाल
अलबरूनी 989 ई. जयचंद
इत्सिंग 675 ई. देवपाल

 

पुरातात्विक साक्ष्य

प्राचीन भारती अध्ययन के लिए पुरातत्विक  साक्ष्यों का विशेष महत्व है.यह कार्यक्रम का सही ज्ञान प्रदान करने वाले साक्ष्य हैं. पुरातत्वक साक्ष्यों में अभिलेख, सिक्के, स्मारक\भवन, मूर्तियां तथा चित्रकला प्रमुख है. अभिलेखों के अध्ययन को पुरालेख शास्त्र तथा सिक्कों के अध्ययन को मुद्राशास्त्र कहा जाता है. बोगजकोई अभिलेख-( एशिया माइनर) 1400 ई.पु. का है. जिससे आर्यों के इरान से पूर्व की ओर आने का साक्ष्य मिलता है.अभिलेख में वैदिक देवताओं इंद्र , मित्र वरुण तथा नासत्य का उल्लेख मिलता है.

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