जब हम किसी दो पदार्थो को परस्पर मिलाते है तो उससे बनने वाले मिश्रण को विलयन या घोल कहा जाता है. इसको कई भागों में भी बांटा गया है. जिसके बारे में आपको पूरी जानकारी नीचे दे रहे है.
दो या दो से अधिक पदार्थ का समांग मिश्रण विलयन या घोल कहलाता है.
जिसमे एक निश्चित ताप पर विलेय या विलायक की आपेक्षिक मात्राए एक निश्चित सीमा तक निरन्तर परिवर्तित हो जाती है, जैसे चीनी या नमक का जल में विलयन, यहाँ चीनी या नमक विलेय है जबकि जल विलायक.
विलयन को कई और भागों में बाँटा गया है.
निश्चित ताप पर बना एक ऐसा विलयन, जिसमे विलेय पदार्थ की अधिकतम मात्रा घुली हो उसे संतृप्त विलयन कहते है.
निश्चित ताप पर बना एक ऐसा विलयन, जिसमे विलेय पदार्थ की और अधिक मात्रा उस ताप पर घोली जा सकते है, उसे असंतृप्त विलयन कहते है.
संतृप्त विलयन, जिसमे विलेय की मात्रा उस विलयन को संतृप्त करने के लिए आवश्यक विलेय की मात्रा से अधिक घुली हुई हो तो अतिसंतृप्त विलयन कहते है.
सांद्र विलयन में प्रति इकाई आयतन विलेय की मात्रा अपेक्षाकृत अधिक होती है.
तनु विलयन में प्रति इकाई आयतन विलेय की मात्रा अपेक्षाकृत कम होती है.
विलायनो के सांद्रण को ग्राम प्रति लीटर, नाँर्मलता, मोलरता एव मोललता आदि से व्यक्त किया जाता है.
विलेय का वह भार है जो विलायक के 100 ग्राम को एक संतृप्त घोल बना दे, विलेयता कहलाता है.
जब किसी विलायक में प्रिक्षेपित कणों का आकार 10-5 सेमी० से 10-7 सेमी० तक होता है तो ऐसे विलयनो को कोलाइड कहा जाता है.
कोलाइड के प्रिक्षेपित कणों में विलग (अलगाव) होने की प्रवृति नहीं होती है, जैसे- धुँआ, कोहरा, दुध आदि.
जब किसी कोलाइड में एक द्रव के सारे कण दुसरे द्रव के सारे कणों में प्रक्षेपित तो हो जाते है, लेकिन घुलते नहीं है, तो इस कोलाइड को पायस (Emulsion) कहते है. दुध एक प्राकृतिक पायस है, जबकि फेंट एक कृत्रिम पायस का उदहारण है.
वह विलयन जो की अम्ल या क्षार की साधारण मात्राओं को अपनी प्रभावी अम्लता या क्षारता में पर्याप्त परिवर्तन किये बिना अवशोषित कर लेता है, इसे बफर विलयन कहते है जैसे –
सोडियम ऐसीडेट तथा ऐसीटिक अम्ल का मिश्रण एक प्रभावी बफ़र है, जब उसे पानी में विलीन किया जाता है.
जब किसी कोलाइडी विलयन में तीव्र प्रकाश गुजारते है और इसके लम्बवत रखे सूक्ष्मदर्शी से देखते है तो कोलाइडी कण काली पृष्ठभूमि में आलपिन की नोक की भांति चमकने लगते है इसे टिंडल प्रभाव कहते है.
टिंडल प्रभाव का कारण प्रकाश की प्रकीर्णन है.
कोलाइडी विलयन के कण लगातार इधर-उधर भागते रहते है इसे ब्राउनी गति कहते है.
यह गति कोलाइडी कणों की प्रकृति पर निर्भर नहीं करती है कण जितने ही सूक्ष्म होते है तथा माध्यम की श्यानता जितनी ही कम होती है एवं ताप जितना ही अधिक होता है यह गति उतनी ही तेज होती है.
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