भारतीय इतिहास के विषय में जानकारी के चार प्रमुख स्रोत हैं – धर्मग्रंथ, ऐतिहासिक धर्मग्रंथ, विदेशियों का विवरण एवं पुरातत्व संबंधी साक्ष्य.

चाणक्य द्वारा रचित अर्थशास्त्र नामक पुस्तक में मौर्यकालीन इतिहास की जानकारी मिलती है.
कल्हण द्वारा रचित राजतरंगिणी को ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित भारत की प्रथम पुस्तक कहा जाता है. इसमें कश्मीर के इतिहास की जानकारी मिलती है.
पाणिनि द्वारा रचित संस्कृत भाषा व्याकरण की प्रथम पुस्तक अष्टाध्याई से भी प्राचीन भारतीय इतिहास से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारियां प्राप्त होती है.
विदेशी लेखकों में मेगस्थनीज, टालमी, फ्राहान, इत्सिग, अलबरूनी, तारानाथ, मार्कोपोलो इत्यादि की पुस्तकें प्राचीन भारतीय इतिहास के विभिन्न कालों के विवरण की महत्वपूर्ण स्रोत है.
मेगस्थनीज सेल्यूकस निकेटर का राजदूत था, जो चंद्रगुप्त के राज दरबार में आया था, इसके द्वारा रचित पुस्तक इंडिका से मौर्यकालीन समाज एवं संस्कृत के संबंध में महत्वपूर्ण जानकारियां मिलती है.
टालमी ने भारत का भूगोल नामक पुस्तक लिखी.
चंद्रगुप्त द्वितीय ( विक्रमादित्य) के दरबार में आने वाले चीनी यात्री फाह्यान द्वारा लिखे गए विवरण से गुप्त काल में भारतीय समाज एवं संस्कृति की जानकारी मिलती है.
हर्षवर्धन के शासनकाल में आने वाले चीनी यात्री हेनसांग द्वारा लिखे भ्रमण वृतांत सी – यू की छठी सदी के भारतीय समाज धर्म तथा राजनीति के बारे में पता चलता है.
इतिसंगनमक नामक चीनी यात्री सातवीं शताब्दी के अंत में भारत आया था, इसने अपने विवरण में नालंदा विश्वविद्यालय, विक्रमशिला विश्वविद्यालय, तथा अपने समय के भारत का वर्णन किया है.
मोहम्मद गजनबी के साथ दूसरी शताब्दी के प्रारंभ में भारत आने वाले लेखक अलबरूनी ने अपना विवरण तहतकीक ए हिंदी यह किताबबूल हिंद (भारत की खोज) नामक पुस्तक में लिखा है, इसमें राजपूत- कालीन समाज, धर्म, रीति – रिवाज राजनीति आदि पर सुंदर प्रकाश डाला गया है.
तारानाथ एक लेखक था, जिसने क्ग्युर तथा त्न्ग्युर नामक दो पुस्तकों में भारतीय इतिहास का वर्णन किया है.
पुरातत्व संबंधी साक्ष्य में अभिलेख, सिक्के, अवशेष, इत्यादि से भारतीय इतिहास की विविध पहलुओं का पता चलता है.
मध्य भारत में भागवत धर्म विकसित होने का प्रमाण एवं राजदूत हेलियोडोरस के बेसनगर (विदिशा) के गरुड़ स्तंभ लेख से प्राप्त होता है. कश्मीरी नवपाषाणिक पुरास्थल बुर्जहोम के गर्तवास का साक्ष्य मिला है. प्राचीनतम सिक्को को आहत सिक्के कहा जाता है, किसी को साहित्य में क्राष्परण कहा गया है.
सर्वप्रथम सिक्कों पर लेख लिखने का कार्य यवन संस्कों ने किया. अरिकेमेड ( पुद्दुचेरी के निकट है) शेयर रोमन सिक्के प्राप्त हुए हैं. कलिंग राजा खारवेल का हाथी गुंफा अभिलेख, समुद्रगुप्त के प्रयाग स्तंभ अभिलेख है, इत्यादि ऐतिहासिक जानकारियां के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है.
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