उत्तर प्रदेश राज्य की वन नीति

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उत्तर प्रदेश राज्य की वन नीति

उत्तर प्रदेश शासन द्वारा 28 दिसंबर 1998 को घोषित प्रदेश की वन नीति के महत्वपूर्ण तथ्य

  • राज्य में वनों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से 1952 की वन नीति के अनुसार जुलाई 1952 से पूरे देश के अन्य प्रांतों की तरह यहां भी वन-उत्सव मनाना आरंभ कर दिया। इस वन महोत्सव का मूल आधार है- वृक्ष का अर्थ जल है, जल का अर्थ रोटी है, रोटी ही जीवन है।
  • वनीयकरण को जल आंदोलन का रूप देना।
  • वन एवं वन्य जीव अपराधों पर नियंत्रण करना।
  • अभिरुचि के विषयों में प्रशिक्षित आपकी कार्यकुशलता को बढ़ावा देना।
  • राज्य में व्यापक स्तर पर सभी वर्गों की विशेषकर महिलाओं एवं वनों के नजदीक, ग्राम वासियों की भागीदारी एवं सहयोग प्राप्त कर वनों के विकास एवं वृक्षारोपण हेतु जन आंदोलन चलाना।
  • राष्ट्रीय वन नीति के अनुरूप राज्य के एक तिहाई क्षेत्र को वनाछादित करने के लक्ष्य की पूर्ति के लिए कार्य योजना तैयार करना।
  • राज्य वन नीति का मुख्य उद्देश्य पर्यावरणीय स्थिरता एवं प्रकृति की संतुलन को बनाए रखना है।

अविभाजित उत्तर प्रदेश में 1991 की जनगणना के अनुसार प्रति व्यक्ति वनाछादित क्षेत्र 0.024 हेक्टेयर था। जो कि राज्य पुनर्गठन की उपाधि घटकर मात्र 0.01 के प्रति व्यक्ति रह गया है। उत्तर प्रदेश का प्रति व्यक्ति वांछादन की दृष्टि से भारत में 27वाँ स्थान है। उत्तर प्रदेश में वन उष्णकटिबंधीय प्रकार के हैं। तापमान एवं अन्य भौगोलिक कारकों के आधार पर उत्तर प्रदेश में वनों को तीन वर्गों में विभाजित किया गया है-

उष्णकटिबंधीय नम पर्णपति वन

इस प्रकार के वन ज्यादातर तराई वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं। ये वन ऐसे क्षेत्र में पाए जाते हैं, जहां औसत वार्षिक वर्षा 100 से 150 सेंटीमीटर होती है। इन वनों में साल, बेर, गुल्लर, महुआ, पलास, आंवला, सेमल, जामुन के पेड़ अधिकता में पाए जाते हैं। इसके अतिरिक्त इमली, शीशम आदि वृक्ष भी पाए जाते है। इन वनों में स्थित वृक्ष के नीचे झाड़ झखाड़ अधिक पाए जाते हैं तथा बैंत, ताड़ एवं लताओं का अभाव पाया जाता है।

उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन

राज्य के मध्य पूर्वी एवं पश्चिमी मैदानो मैदानों में शिक्षक प्रणपति वन पाए जाते हैं। इन वन क्षेत्रों में औसत वर्षा 50 से 100 सेंटीमीटर तक होती है। इनमें पर्णपति जाति के वृक्ष अधिक पाए जाते है। झाड़ीया तथा घास भी उगती है। इन वनों के अधिकांश भागों की खेती के लिए सफाई कर दी गई है। इनके प्रमुख वृक्षों में साल, अमलतास, प्लास, बेल, अंजीर आदि है। नम भूमि तथा नदी वाले किनारों पर नीम, पीपल, मुहुआ, जामुन, इमली आदि वृक्ष पाए जाते हैं।

उष्णकटिबंधीय कँटीले वन

ये वन प्रदेश के दक्षिणी भाग में पाए जाता है. इनमे औसतन वर्षा 50 से 75 से.मी. तक होती है. इनमे ज्यादातर बाबुल और कँटीले फलदार पौधों के वृक्ष पाए जाते है.

राज्य में उपरोक्त वन क्षेत्र के अलावा और वृक्ष उगने की सीमा समुद्र तल से 3,950 मीटर की ऊंचाई तक है। प्रवतों की हिम रेखा के आस-पास भोजपत्र तथा ऐसे पौधे पाए जाते हैं, जिनके पुष्प गुलाब के फूल की तरह होते हैं। उसके नीचे चीड़,देवदार, सिल्वर फर तथा ओक के वृक्ष पाए जाते हैं। मूल्यवान साल तथा हल्दू के वन पहाड़ियों तथा तराई के क्षेत्र में पड़ जाते हैं। शीशम के अधिकाशत: नदियों के किनारे उगते हैं।

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