जल में बहुधा अवांछित पदार्थ एवं सूक्ष्म जीवाणु मिलने से जल संदूषण होता है।
स्वच्छ व पारदर्शी जल का अर्थ है, कि इस जल में किसी प्रकार की कोई अशुद्धि वह हानिकारक सूक्ष्मजीव नहीं है। किसी प्रकार की गंदगी आदि से मुक्त जल पीने योग्य होता है। इस जल में किसी प्रकार के ऐसे सूक्ष्म जीव भी ना हो, जिनके कारण हम बीमार हो सकते हैं।
शहर की नगर पालिका का सदस्य होने के नाते, नगर वासियों को स्वच्छ जल की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए निम्नलिखित उपाय करने का प्रयास किया जाएगा-
शुद्ध वायु में किसी भी प्रकार के प्रदूषक नहीं मिले होते बल्कि दुर्गंध व धूल कणों आदि से भी मुक्त होती है। इसमें किसी प्रकार की हानिकारक गैस नहीं होती। शुद्ध वायु में वायु के संगठन अवयवों का अनुपात एकदम उचित होता है तथा श्वसन के लिए उपयुक्त होती है। जबकि इसके विपरीत अशुद्ध या प्रदूषित वायु में जहरीली गैस, सूक्ष्म जीव, धूल कण, परागकण, जलवाष्प, दुर्गंध, आदि अनेको एवं अवाछ्निय कारक मिले होने के कारण श्वसन के लिए उपयुक्त नहीं होती और ना ही प्रदूषित वायु में इसके संगठक अवयवों का अनुपात उपयुक्त होता है।
हमारे उद्योग धंधों से निकली अपशिष्ट जहरीली गैस, जैसे सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन क्लोराइड का कार्बन डाइऑक्साइड आदि वायुमंडल में मिल जाती है। वर्षा जल व ओस की बूंदों के साथ मिलकर यह अम्लीय गैस अम्ल बनाती है। इन नंबरों की वर्षा अम्लीय वर्षा या अम्ल वर्षा कहलाती है।
अम्ल वर्षा के प्रभाव-
पौधा- घर प्रभाव- वायुमंडल में उपस्थित कार्बन डाइऑक्साइड, मेथैन, नाइट्रस ऑक्साइड, क्लोरोफ्लोरोकार्बन व गैसीय जल ऐसी गैस है जो सूर्य से आने वाली अवरक्त विकिरणों को अवशोषित कर वायुमंडल को गर्म कर देती है, इस प्रभाव को पौधा घर प्रभाव या ग्रीन हाउस प्रभाव कहते हैं। इस प्रभाव का एक सीमा तक यह लाभ है कि वायुमंडल जीवो के जीवन के लिए पर्याप्त उस्मा प्रदान कर सकता है। जलीय जीव भी इस प्रभाव के कारण क्षमा ग्रहण कर जीवित रहते हैं। इस प्रभाव के अभाव में वायुमंडल अत्यधिक ठंडा हो सकता है।
परंतु इस प्रभाव का विपरीत प्रभाव हमारे सामने आ रहा है। कार्बन डाइऑक्साइड की बढ़ती मात्रा के कारण धरती का तापमान तेजी से बढ़ रहा है। इसलिए विश्व का लगातार बढ़ता तापमान चिंता का विषय बना हुआ है यदि तापमान यूं ही बढ़ता रहा तो पर्वतों की चोटियों पर पड़ी बर्फ, ध्रुवों पर जमी बर्फ व ग्लेशियर तेजी से पिघल जाएंगे और समुद्र जल का स्तर बढ़ने से पृथ्वी का अधिकतर भाग जलमग्न होने से भारी तबाही हो जाएगी।
पृथ्वी के तापमान में धीमी वृद्धि विश्व ऊष्णन या विश्व तापमान कहलाता है। कोयला पेट्रोलियम आदि के जलने या मनुष्य द्वारा छोड़ी गई कार्बन डाइऑक्साइड वायु में मिलने से विश्व ऊष्णन हो रहा है। क्योंकि कार्बन डाइऑक्साइड हुई है कि अवरक्त विकिरण ऊष्मा अवशोषित कर पर्यावरण को गर्म कर देती है।
पिछले 100 वर्षों में और विशेषकर पिछले कुछ दशकों में विश्व के ओसत तापमान में वृद्धि दर्ज की गई है। मौसम बदलने के प्रमुख कारणों में से यह एक कारण है। मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार पिछली सदी में 0.3॰ से 0.6॰ सेल्सियस तापमान बढ़ा है। अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2025 तक तापमान 1 डिग्री सेल्सियस तथा वर्ग 2100 तक 2 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा। तापमान 0.3॰-0.6॰ बढ़ने मात्र से सागरों का जलस्तर 10 सेंटीमीटर से भी अधिक बढ़ गया है। फल स्वरुप विश्व भर में सागर तटीय क्षेत्र कटने या डूबने लगे हैं। अनुमान है कि बहुत जल्द बांग्लादेश, मालदीव तथा विश्व के निबंधों सत्रीय देश ढुब जाएंगे। एक तापमान के अनुसार 2025 तक मालदीव सागर में समा जाएगा। हिंद महासागर का डिएगो गार्सिया द्वीप अब समुंद्र से मात्र 3 इंच ही ऊपर रह गया है।
विश्व तापमान बढ़ने के असाधारण और भयंकर परिणाम निकल सकते हैं। ऊंचे पहाड़ों की पिंगलने लगी है। हिमालय के ग्लेशियर तेजी से पिघल कर इन जिलों में परिवर्तित होने लगे हैं। मसूरी, शिमला, दार्जिलिंग तथा अन्य पहाड़ी शहरों में हिमपात अब कभी कभार ही होता है। शिमला अब एक गर्म शहर गिना जाता है।
वातावरण गर्म होने का यह प्रक्रिया विश्व भर में चल रही है। यूरोप में बर्फ गिरनी कम हो गई है। उत्तरी ध्रुव के नजदीक के देश ग्रीनलैंड में तेजी से सिकुड़ रही है। अर्जेटीना के बर्फीले क्षेत्र सूखकर पीछे जा रहे हैं। यहां तक कि दक्षिण ध्रुव (एंटार्कटिका) में बर्फ के विशाल खंड टूटकर पिघलने लगे हैं।
उपरोक्त परिणामों के अतिरिक्त वर्षा में कमी, अनाज उत्पादन में कमी, जल-स्तरों का बढ़ना, बाढ़ आना, बीमारियों का बढ़ना, बड़े पैमाने पर जीवो वनस्पतियों की प्रजातियों में पानी का भारी संकट है, जहरीली गैसों का अधिक उत्पादन इत्यादि भी तापमान बढ़ने के कई परिणामों में से कुछ है।
ताज महल आगरा में यमुना के किनारे सफेद संगमरमर से बनी ऐतिहासिक व भव्य इमारत है। ताजमहल पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य बिंदु रहा है परंतु वायु प्रदूषण के कारण इसकी भव्यता निरंतर कम होती जा रही है जो भारी चिंता का कारण बना हुआ है।
आगरा में रबड़ प्रक्रमण, स्वचालित वाहन, रसायन और विशेषकर मथुरा रिफाइनरी से परिष्कृत सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड निरंतर वायु में मिल रही है। यह गंधकाम्ल व शोर का अम्ल बनाती है। इस अम्ल की वर्षा अम्लीय वर्षा कहलाती है यही अम्ल संगमरमर से अभिक्रिया करके इसका संक्षारण कर रहा है। इसे संगमरमर कैंसर भी कहते हैं। रिफाइनरी से उत्सर्जित काजल के कण भी संगमरमर के सफेद रंग को पिलाया काला कर रहे हैं। यही ताजमहल का संकट है। इस संकट से विश्वस्त्रीय भव्य इमारत की सुंदरता निरंतर कम होती जा रही है।
आवश्यकता से अधिक पोषक जगदल में मिल जाते हैं तो जलीय पौधों, जैसे कवक वैसे वालों की वृद्धि दर बढ़ जाती है जब यह जलीय पौधे मरते हैं तो जीवाणुओं के भोज्य बन जाते हैं। परिणाम स्वरुप जलीय जीवो की संख्या में वृद्धि होने से, यह जलीय ऑक्सीजन को तेजी से उपयोग में लाते हैं और इस प्रकार जल में ऑक्सीजन की कमी आ जाती है। ऑक्सीजन की कमी के कारण जलीय जीवो की मृत्यु हो जाती है। जीव प्रदाई पर्यावरण के विषैले होनेकी प्रक्रिया को सुपोषण कहते हैं। इस प्रक्रिया से अन्य जलीय जीवो के लिए समस्या बन जाती है। ऑक्सीजन की कमी से दूसरे जिव मरने लगते हैं।
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