पादप शरीर-क्रिया विज्ञान या पादप कार्यिकी वनस्पति की वह शाखा है, जिसके अंतर्गत पौधों के विभिन्न जैविक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है.
पौधों के वायवीय भागों से जल की वाष्प के रूप में हानि वाष्पोत्सर्जन कहलाती है. वाष्पोत्सर्जन तीन प्रकार का होता है
पत्तियों में उपस्थित रंध्रों के द्वारा होता है. 80-90% वाष्पोत्सर्जन किस विधि से होता है.
शाकीय तनु तथा पत्तियों पर उपस्थित उपत्वचा द्वारा 3-9% वाष्पोत्सर्जन होता है.
कोष्ठीय पौधों के तनों पर पाए जाने वाले वातरंन्ध्रों द्वारा 0.1% वाष्प उत्सर्जन होता है.
पत्तियों की पर्णमध्योतक कोशिकाओं की भितियों जल के वाष्पन के कारण इनकी परासरण सांद्रता तथा विसरण दाब न्यूनता अधिक हो जाती है और परासरण द्वारा जल जाइलम वाहिकाओं से पर्णमध्योतक कोशिकाओ में प्रवेश करता है. इससे जाइलम के द्रव में उत्पन्न तनाव को वाष्प वाष्पोत्सर्जनकर्षण कहा जाता है.
पौधों के हरे भागों के द्वारा उनके भोजन का निर्माण प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा होता है. प्रकाश संश्लेषण की क्रिया जल, प्रकाश, पर्णहरित व कार्बन डाइऑक्साइड की उपस्थिति में होती है, जिसके परिणाम स्वरुप कार्बनिक खाद्य पदार्थ (कार्बोहाइड्रेट) का निर्माण होता है, जो पत्तियों में उपस्थित शिराओं द्वारा स्वनहीनत होता है.
पत्तियों के मंड (स्टार्च) की उपस्थिति के परीक्षण हेतु आयोडीन विलियन का प्रयोग होता है. प्रकाश-संश्लेषण के लिए आवश्यक जल पौधों की जड़ों के द्वारा अवशोषित किया जाता है एवं प्रकाश-संश्लेषण के दौरान निकलने वाली ऑक्सीजन इसी जल के अपघटन से प्राप्त होती है
क्लोरोफिल पत्तियों में हरे रंग का वर्णक है. इसके चार घटक होते हैं, जैसे- क्लोरोफिल a, एवं b, कैरोटीन तथा जेंथोफिल a एवं b हरे रंग का होता है और ऊर्जा स्थांतरित करता है. यह प्रकाश-संश्लेषण का केंद्र होता है.
जेन्थोफिल पादप की पराबैंगनी विकिरण क्षती से सुरक्षा करता है. क्लोरोफिल प्रकाश में बैंगनी, नीला तथा लाल रंग का ग्रहण करता है. प्रकाश-संश्लेषण की दर लाल रंग के प्रकाश में सबसे अधिक एवं बैंगनी रंग के प्रकाश में सबसे कम होती है.
यह क्रिया क्लोरोप्लास्ट के ग्रेना भाग में संपन्न होती है इसे हिल क्रिया भी कहते हैं. इस प्रक्रिया में जल का अपघटन होकर हाइड्रोजन आयन तथा इलेक्ट्रॉन आयन तथा ऑक्सीजन बनती है. जल के अपघटन के लिए उर्जा प्रकाश से मिलती है. इस प्रक्रिया के अंत में ऊर्जा के रूप में ATP तथा NADPH निकलता है, जो रासायनिक प्रकाश ही प्रतिक्रिया संचालित करने में सहायता करता है.
यह क्रिया क्लोरोप्लास्ट के स्ट्रोमा में होती है. इस क्रिया में कार्बन डाई ऑक्साइड का अपचयन होकर शर्करा (ग्लूकोज), स्टार्च (ग्लूकोज के बहुलीकरण से) बनता है.
कोशिकीय श्वसन जीवित कोशिकाओं में होने वाली वह ऑक्सीकरण, अपचीय क्रिया है जिसमें विभिन्न जटिल कार्बनिक पदार्थों, जैसे- कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा के अपघटन से कार्बन-डाइऑक्साइड तथा जल मुक्त होते हैं, वह ऊर्जा उत्पन्न होती है. यह ऊर्जा विभिन्न शारीरिक क्रियाओं के लिए ATP के रूप में संचित हो जाती है.
श्वसन क्रिया ग्लूकोज से प्रारंभ होकर ग्लाइकोलाइसिस, वायवीय एवं अवायवीय ऑक्सीकरण में विभक्त होती है.
ग्लाइकोलाइसिस को EMP पथ कहा जाता है, तथा यह कोशिकाद्रव्य में पूर्ण होती है. ग्लाइकोलाइसिस में ग्लूकोज के एक अणु से 2 ATP अणुओं का शुद्ध लाभ होता है.
पाईरुविक अम्ल वायवीय ऑक्सीकरण द्वारा को-एंजाइम-A (CO-A) से मिलकर एसिटाइल को-एंजाइम-A का निर्माण करता है. एसीटाइल CO-A ग्लाइकोलाइसिस एवं क्रेब्स चक्र के मध्य संयोजी कड़ी होती है.
क्रेबस चक्र की खोज हेंस क्रेबस ने वर्ष 1937 में की थी. क्रेबस चक्कर माइटोकॉन्ड्रिया में संपन्न होता है. ग्लूकोज के एक अणु को ओक्सिकीय ऑक्सीकरण से कुल 38 ATP अणुओ का लाभ होता है.
यह पौधों में श्रम मात्रा में उपस्थित रासायनिक पदार्थ है, जो पौधों की वृद्धि तथा निभेदन संबंधी क्रियाओं पर नियंत्रण रखते हैं. कुछ प्रमुख पादप हार्मोन निम्नलिखित है.
हार्मोन | खोज | कार्य |
ओक्सिंन | डार्विन ( 1880) | पौधों की वृद्धि का नियंत्रण |
जिबरेलिन | कुरोसावा ( 1926) | पौधों को लंबा करना, फूल बनने में सहायता करना, बीजों की परशपति भंग करना. |
साइटोकाइनिन | मिलर ( 1955) | ओक्सिन के साथ मिलकर कोशिका विभाजन को उद्दीपित करना, RNA वह प्रोटीन बनाने में सहायक. |
एबसिस्क | एसिड कार्नस व् एडीकोट (1961- 65) | वृद्धि रोधक हार्मोन है. रंध्रों को बंद करना. |
इथाइलीन | बर्ग ( 1962) एकमात्र हार्मोन, जो गैस के रूप में मिलता है. | फल पकाने में, मादा पुष्पों की संख्या बढ़ाने में सहायता. |
पुष्प में चार चक्कर, जैसे- ब्राह दलपुंज, पुमंग एवं जायांग( मादा जननांग) है. पुमंग में एक या एक से अधिक पुंकेसर पाए जाते हैं. पराग कणों में दो नर युग्मक उपस्थित होते हैं.
जायांग में अंडप होते हैं, जो तीन भागों में विभाजित होते हैं, जैसे- अंडाशय, वर्तिका व् वर्तिकाग्र, अंडाशय के भीतर बीजांड तथा बीजांड के भीतर भूर्णकोष उपस्थित होता है. भूर्णकोष में निषेचन की क्रिया करने हेतु एक अंडकोष व द्वितीयक केंद्रक उपस्थित होता है.
इसका निर्माण अंडाशय से होता है. फलों को तीन वर्गों में विभाजित किया जाता है-
फल | भाग | फल | भाग |
पपीता | मध्य फल भित्ति | नारंगी | रसीले हेयर |
नारियल | भूर्णपोष | कटहल | प्रिन्द्ल्पुंज एवं बीज |
टमाटर | फल भित्ति एवं बिजानडसन | मूंगफली | बीजपत्र एवं भूर्ण |
सेब | पुष्पासन | गेहूं | भूर्णपोषण |
नाशपाति | पुष्पासन | काजू | बीजपत्र |
आम | मध्य फल भित्ति | चना | बीजपत्र एवं भूर्ण |
केला | मध्य एवं अंत विधि | लीची | एरिल |
अमरूद | फल भित्ति एवं बीजांडसन | शहतूत | रसीले प्रीदलपुंज |
अंगूर | फल विधि एवं बिजाडसन | अनानास | परिदलपुंज |
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