आज इस आर्टिकल में हम आपको मौर्य वंश (321-184 ई० पु०) का इतिहास के बारे में बताने जा रहे है.
मौर्य वंश (321-184 ई० पु०) का इतिहास
मगध के सिंहासन से नंद वंश के अंतिम सम्राट घनानंद का नाश करके चंद्रगुप्त मौर्य ने मौर्य साम्राज्य की स्थापना 323 – 321 ईसा पूर्व में की थी. चंद्रगुप्त मौर्य और अशोक इस वंश के महान शासक थे. उन्होंने राज्य विस्तार के साथ – साथ जन कल्याण वाले साम्राज्य की स्थापना की. मौर्य काल में राजनीतिक एकीकरण से निरापद व्यापार और वाणिज्य को प्रोत्साहन मिला तथा चतुर्दिक आर्थिक विकास हुआ.
चंद्रगुप्त मौर्य (321-298 ई. पू .)
चंद्रगुप्त मौर्य के जन्म के विषय में ब्राह्मण तथा जैन ग्रंथों में परस्पर विरोधी विवरण है.विविध प्रमाणों की आलोचनात्मक समीक्षा के बाद जो तर्क निर्धारित होता है,उसके अनुसार चंद्रगुप्त मौर्य वंश के क्षत्रिय था.मुद्राराक्षस में चंद्रगुप्त की बृषल कहा गया है. कुछ विद्वानों के अनुसार वृषल शूद्र को कहा जाता है.
चंद्रगुप्त एक साधारण कुल में पैदा हुआ था. इसके बावजूद बचपन से ही इसमें उज्जवल भविष्य के सभी संकेत मौजूद थे. जब चंद्रगुप्त अपनी माता के गर्भ में था तभी उसके पिता की किसी सीमांत युद्ध में मृत्यु हो गई और उसकी माता अपने भाइयों द्वारा पाटलिपुत्र में सुरक्षा के उद्देश्य से पहुंचा दी गई. चंद्रगुप्त का जन्म पाटलिपुत्र में ही हुआ. जन्म के बाद उसे एक गाय पालने वाले के सुपुर्द कर दिया गया. गो पालक ने गोशाला में अपने पुत्र की भांति उसका लालन-पालन किया.
चंद्रगुप्त कुछ बड़ा हुआ तो गोपालक ने उसे एक शिकारी के हाथों बेच दिया. उसका बचपन मयूर पाल को, पालकों से, चरवाहों आदि के मध्य व्यतीत हुआ. चंद्रगुप्त बचपन से ही काफी प्रतिभाशाली था. उसने अपने समकक्ष से लड़कों के बीच प्रमुखता हासिल कर ली. वह प्राय : बालक मंडली के बीच उत्पन्न विवादों का हल एक राजा की तरह किया करता था.
एक दिन जब वह राजकीलम नामक खेल में व्यस्त था तभी उस रास्ते से जाते हुए चाणक्य ने अपनी सूक्ष्म दृष्टि से बालक चंद्रगुप्त के भविष्य का अनुमान लगा लिया. तक्षशिला तत्कालीन शिक्षा का विख्यात केंद्र था. वहाँ सभी आवश्यक कलाओं वह विधाओं की विधिवत् शिक्षा प्राप्त करके चंद्रगुप्त सभी विद्या में निपुण हो गया. यहाँ उसने युद्ध कला की बेहतर शिक्षा पाई.
सिकंदर की अकाल मृत्यु 323 – 322 ईसा पूर्व में बेबीलोन में हो गयी. ऊपरी सिंधु घाटी के प्रमुख यूनानी क्षत्रप फिलिप द्वितीय की हत्या 325 ईसा पूर्व में ही हो गई थी इसी समय चंद्रगुप्त में अपने उद्देश्य की पूर्ति हेतु व्यापक योजनाएं बना ली.
चाणक्य ने जिस कार्य हेतु चंद्रगुप्त को तैयार किया था उसके दो उद्देश्य थे- पहला यूनानियों के विदेशी शासन से देश को मुक्त कराना, दूसरा नंदो के अत्याचारपूर्ण शासन का अंत करना. चंद्रगुप्त ने सबसे पहले एक सेना तैयार किया, शिवम को राजा बनाया और इसके उपरांत सिकंदर के क्षत्रप के विरुद्ध संघर्ष प्रारंभ कर दिया.
मगध की ओर प्रस्थान
इसके बाद चंद्रगुप्त चाणक्य घनानंद का नाश करने हेतु मगध की ओर प्रस्थान कर गए. बौद्ध तथा जैन मतों के अनुसार चंद्रगुप्त ने सर्वप्रथम नंद साम्राज्य के मध्य भाग पर हमला किया किंतु उसे सफलता नहीं मिली.
अपनी भूल का अहसास होने पर उसने दूसरी बार सीमांत प्रदेश की विजय करते हुए नंदों की राजधानी पर हमला किया. घमासान युद्ध हुआ घनानंद मारा गया. अब तक भारत के एक विशाल साम्राज्य मगध का शासक बन गया. सिकंदर की मृत्यु के बाद उसका सेनापति सेल्युकस निकेटर उसके पूर्वी प्रदेशों का उत्तराधिकारी हुआ.
सिकंदर द्वारा जीते गए भारत के प्रदेशों को पुन : अपने अधिकार में लेने के लिए सेल्युकस ने 305 ईसा पूर्व के लगभग भारत पर पुन: चढ़ाई की. सिंधु नदी पार करके सेल्यूकस ने चंद्रगुप्त से युद्ध किया. जिसमें वह चंद्रगुप्त से हार गया. इसके बाद दोनों के बीच संधि हुई तथा एक वैवाहिक संबंध में स्थापित हुआ.
चंद्रगुप्त का सैनिक उसके बीच हुई संधि के तहत है
सेल्यूकस ने चंद्रगुप्त को आरकोसिरिया और पेरोपनीसडाई (काबुल) के प्रान्त तथा एरिया क्षत्रपियों के कुछ भाग दिए. चंद्रगुप्त ने सेल्युकस को 500 भारतीय हाथी उपहार में दिया. कुछ विद्वानों के अनुसार दोनों नरेशों के बीच एक वैवाहिक संबंध स्थापित करने की संधि के तहत सेल्युकस ने अपनी एक पुत्री का विवाह चंद्रगुप्त मौर्य के साथ कर दिया.
सेल्युकस ने मेगस्थनीज नामक अपना एक राजदूत चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में पाटलिपुत्र भेजा ( 305 ईसा पूर्व में) जो बहुत दिनों तक पाटलिपुत्र में रहा. मेगास्थनीज ने भारत पर इंडिका नामक एक पुस्तक की रचना की थी.
अब चंद्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य पारसीक साम्राज्य की सीमा को स्पर्श करने लगा तथा उसके अंतर्गत अफगानिस्तान का एक बड़ा भाग भी सम्मिलित हो गया. चंद्रगुप्त के कान्धार पर आधिपत्य की पुष्टि वहां से प्राप्त हुए अशोक के लेख से होती है. इसी समय से भारत तथा यूनान के बीच राजनीतिक संबंध प्रारंभ हुआ जो बिंदुसार तथा अशोक के समय में भी बना रहा.
पश्चिम भारत की विजय
चंद्रगुप्त मौर्य ने पश्चिम भारत में सौराष्ट्र तक का प्रदेश जीतकर अपने प्रत्यक्ष शासन के अंतर्गत शामिल कर लिया. रुद्रदामन के गिरनार अभिलेख ( 150 ई. पु.) के अनुसार इस प्रदेश में पुष्य गुप्त वैसे चंद्रगुप्त मौर्य का राज्यपाल था, जिसने वहां सुदर्शन झील का निर्माण करवाया था. सौराष्ट्र के दक्षिण में सोपारा तक चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा विजित व शासित था.
दक्षिण विजय
दक्षिण में चंद्रगुप्त मौर्य ने उत्तरी कर्नाटक तक विजय प्राप्त की. जैन स्त्रोतों के अनुसार चंद्रगुप्त में अपने जीवन के आखिरी दिनों में जैन धर्म स्वीकार कर लिया तथा उसी स्थान पर ( मैसूर के निकट) तपस्या के लिए गया जो उसके साम्राज्य में था. इससे यह प्रमाणित होता है कि श्रवणबेलगोला तक उसका अधिकार था.
साम्राज्य का विस्तार
मगध साम्राज्य के उदय की जो परंपरा बिंबिसार के काल में प्रारंभ हुई थी, वह चंद्रगुप्त के समय में पराकाष्ठा पर पहुंच गई. उसका विशाल साम्राज्य उत्तर पश्चिम में ईरान की सीमा से लेकर दक्षिण में वर्तमान उत्तरी कर्नाटक तथा पूर्व में मगध से लेकर पश्चिम मैं सौराष्ट्र तथा सोपारा तक का संपूर्ण प्रदेश उसके साम्राज्य के अधीन था.
हिंदूकुश पर्वत भारत की वैज्ञानिक सीमा थी. यूनानी लेखकों ने हिंदूकुंश को इंडियन कोकेशस कहा है. यहीं पर चंद्रगुप्त मौर्य ने सेल्युकस को पराजित किया था. इस पूरे विशाल मगध साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र थी.
चंद्रगुप्त मौर्य का मूल्यांकन
मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य ( 321 – 298 ई. पू .) को भारत की मुक्तिदाता भी कहा जाता है, क्योंकि उसने यूनानियों के प्रभुत्व से भारत को मुक्ति दिलाई थी. कौटिल्य के अर्थशास्त्र के अनुसार चंद्रगुप्त मौर्य प्रशासन तंत्र का भी निर्माण किया जो भारतीय उपमहाद्वीप में विकसित पहली देशव्यापी शासन प्रणाली थी. प्रशासन केंद्रीयकृत और कठोर था. करों का बाहुल्य था और आम जनता का पंजीकरण अनिवार्य था.
इस प्रशासनिक व्यवस्था को उदार और कल्याणकारी स्वरूप अशोक ने प्रदान किया. मेगास्थनीज की इंडिका में राजस्थानी पाटलिपुत्र के नगर प्रशासन की विस्तृत चर्चा के साथ नगर प्रशासन की देख रेख के लिए 6 समितियों की चर्चा भी मिलती है.
उसके शासनकाल के अंत में मगध में 12 वर्षों का भीषण अकाल पड़ा. जैन परंपराओं के अनुसार अपने जीवन के अंतिम दिनों में वह जैन हो गया तथा उसने भद्रबाहु की शिष्यता ग्रहण कर ली. श्रवणबेलगोला की एक छोटी पहाड़ी आज भी चंद्रगिरि कहलाती है तथा वहां चंद्रगुप्त बस्ती नामक एक मंदिर भी है. बाद के कई लेखों में भी भद्र्बाहु तथा चंद्रगुप्त मुनि का उल्लेख मिलता है.
चाणक्य
चंद्रगुप्त मौर्य का गुरु व प्रधानमंत्री चाणक्य एक महान विद्वान व पंडित था. वह विष्णुगुप्त या कोटिल्य के नाम से भी जाना जाता था. चाणक्य तक्षशिला के कुठिल नामक ब्राह्मण कुल में उत्पन्न हुआ था तथा तक्षशिला के शिक्षा केंद्र का प्रमुख आचार्य था.
वह वेदों, शास्त्रों, राजनीति और कूटनीति का महान ज्ञाता था. पुराणों में उसे श्रेष्ठ ब्राह्मण कहा गया है. एक बार मगध के राजा नंद ने यज्ञशाला में उसे अपमानित किया, जिसे क्रोध में आकर उसने नंद वंश को समूल नष्ट करने की प्रतिज्ञा कर ली.
चंद्रगुप्त मौर्य विशाल मगध साम्राज्य या भारत का एकछत्र सम्राट बना तब कौटिल्य प्रधानमंत्री एवं प्रधान पुरोहित के पद पर आसीन हुआ. जैन ग्रंथों के अनुसार चंद्रगुप्त की मृत्यु के बाद उसका पुत्र बिंदुसार सिंहासन पर बैठा तो उसके काल में ही कुछ समय तक कौटिल्य प्रधानमंत्री बना रहा.
चाणक्य रचित अर्थशास्त्र हिंदू राजशासन से संबंधित प्राचीनतम उपलब्ध पुस्तक है.
अर्थशास्त्र
मौर्य काल की रचना है, जिसमें मूलतः चंद्रगुप्त मौर्य के प्रधानमंत्री कौटिल्य के विचार स्वयं उसी के द्वारा प्रस्तुत किए गए हैं. कालांतर में अर्थशास्त्र में अन्य लेखकों द्वारा कुछ अंश जोड़ दिये गये , जिससे मूल ग्रंथ का स्वरुप परिवर्तित हो गया. मूल ग्रंथ ( अर्थशास्त्र) को चौथी शताब्दी ई० पू० की रचना मानी जा सकती है.
अर्थशास्त्र में 15 अधिकरण तथा 180 प्रकरण है. इस ग्रंथ में इसके श्लोकों की संख्या 4000 बताई गई है. चंद्रगुप्त के उत्तराधिकारी बिंदुसार के समय में मौर्य साम्राज्य का गौरव बना रहा. विदेश- संबंध भी विकसित रहे और यूनानी दूत डीमाॅक्लस उसके दरबार में रहा.