बिहार की प्रमुख रियासते

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Group Join Now

आज इस आर्टिकल में हम आपको बिहार की प्रमुख रियासते के बारे में बता रहे है जिसकी मदद से आप न सिर्फ BPSC की बल्कि Anganwadi, AIIMS Patna, BPSC, BRDS, BSPHCL, Bihar Education Project Council, IIT Patna, RMRIMS, Bihar Agricultural University, District Health Society Arwal, Bihar Police, Bihar Steno, Bihar Constable, BSSC के एग्जाम की तैयारी आसानी से कर सकते है.

More Important Article

बिहार की प्रमुख रियासते

स्वतंत्रता प्राप्ति में पूर्व बिहार में छोटी-बड़ी अनेक  रियासतें थी. मुसलमानों के शासनकाल में इनमें से अनेक का स्वतंत्र अस्तित्व था. परंतु कुछ रियासतों से अधिपति मुसलमान शासकों को कुछ कर देते थे.

कालांतर में ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना के पश्चात इन रियासतों की स्वतंत्रता समाप्त हो गई और इनके अधिपतियों की गणना जमींदारों के रूप में की जाने लगी. उस समय बिहार में इन जमींदारों का एक संगठन बिहार लैंड होल्डर्स एसोसिएशन था, जिसके नेता थे दरभंगा के महाराज.

दो रियासतों खरसावां तथा सरायकेला की गणना स्वतंत्रता प्राप्ति के ठीक पूर्व तक देशी राज्यों के रूप में की जाती रही. बिहार में स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व तक प्रमुख रियासते (या जमीदारों) की संख्या लगभग 25 थी.

श्रीनगर

पूर्णिया के निकट स्थित बनैली राजवंश के पूर्व राजा रुद्रानन्द सिंह ने अपने पुत्र राजा श्रीनंद सिंह के नाम पर लगभग 3 मील दूर श्रीनगर बसाया. श्रीनगर राजधानी के प्रासाद और पुस्तकालय समेत उत्तर भारत में श्रेष्ठ एवं दर्शनीय माने जाते थे, किंतु 1932 ई. में हुए भयंकर अग्निकांड में भस्मीभूत हो गए.

गिद्धोर

मुंगेर के दक्षिणी भाग में स्थित इस रियासत की स्थापना 12वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में बुंदेलखंड के चंद्रवंशी राजा वीर विक्रमादित्य ने की थी. इसी राजवंश के दसवीं राजा पूरनमल ने बैद्यनाथधाम (देवघर) में शिव का मंदिर बनवाया था. अंग्रेज शासकों के आने के बाद यहां के राजा गोपालसिंह रियासत छीन ले गए.

बाद में उनके पोत्र जयमंगल सिंह ने संथाल-विद्रोह के समय अंग्रेजों की काफी सहायता की, जिससे प्रसन्न होकर अंग्रेजों ने राजा की उपाधि के साथ उन्हें रियासत वापस कर दी.

दरभंगा (मिथिला)

यह भारत का सर्वश्रेष्ठ ब्राह्मण राज्य था. यहां के महाराजा भारत के सभी जमींदारों में सर्वाधिक धनी तथा प्रतिष्ठित समझे जाते थे. इस राज्य के संस्थापक महामहोपाध्याय पंडित महेश ठाकुर थे.

मुगल सम्राट अकबर ने इनकी विद्वता या वाकपटूता से प्रभावित होकर उन्हें सम्मान स्वरूप मिथिला का राज्य दिया था. महाराज शिव सिंह, महाराज लक्ष्मीश्वर सिंह, महाराजाधिराज कामेश्वर आदि कालांतर में दरभंगाराज के अन्य प्रमुख राजा हुए.

सूर्यपुरा

इस प्राचीन रियासत के  राजा चूँकि सदा डुमरांव नरेश के दीवान रहते आए थे, इसलिए यह दीवान जी की रियासत कहलाता है. यहां के दीवान रामकुमार सिंह के समय में इस रियासत की विशेष उन्नति हुई. उनके पुत्र राज राजेश्वरी प्रसाद सिंह को ही सर्वप्रथम राजा की उपाधि मिली.

वह बिहार के एकमात्र कायस्थ राजा थे. इनके जेयष्ठ पुत्र राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह हिंदी के विख्यात लेखक हुए तथा उनके छोटे पुत्र कुमार राजीव रंजन प्रसाद सिंह सन 1952 से पहले बिहार विधान परिषद के सभापति थे.

नरहन

सप्तरी (नेपाल) के सुप्रसिद्ध राजा पुरादित्य के वसंज गंगा राय के दरभंगा जिले के सरैसा परगने को जीतकर गंगसरा नामक गांव में अपनी राजधानी बनाई. बाद में सरैसा का राज उनके वशंजो के बीच बंट जाने के कारण कई छोटी-छोटी रियासतें कायम हुई, जिनमें नरहन एक प्रमुख रियासत थी. नरहन की राजमाता की मृत्यु के बाद नरहन का राज नरहन के राजवंशों और काशी नरेश के मध्य बांटा गया. इस प्रकार आधा नरहन राज काशी नरेश के अधिकार में चला गया.

टेकारी

गया जिले में स्थित इस राज ( रियासत) के संस्थापक धीर सिंह के पुत्र सुंदर सिंह ने बंगाल और बिहार के सूबेदार को सासाराम (शाहाबाद) और नरहन (दरभंगा) के युद्ध में सहायता दी थी. अत: उन्हें राजा की उपाधि मिली. कालांतर में यहां के राजा मित्रजीत सिंह के निधन के बाद उनके पुत्रों के मध्य रियासत बांटी गई. ज्येष्ठ पुत्र कुमार हितनारायण सिंह को नौ आने और कनिष्ठ पुत्र कुमार मोदनारायण सिंह को सता आने के हिस्से मिले. कुमार हितनारायण सिंह टेकारी के महाराजा हुए.

हथुआ

सारण (छपरा) जिले में वीरसेन ने इस राज्य की स्थापना मुसलमानों की बिहार विजय से पहले की थी. इस राजवंश के 27 में राजा खेमकर्ण साही को मुगल दरबार ने महाराज बहादुर की उपाधि दी थी. 1769 में हथुआ नरेश महाराज फतेह साही ने अंग्रेज शासकों के विरुद्ध झंडा उठाया था. तब कंपनी ने हथूआ पर कब्जा कर लिया था. परंतु इस राजवंश के लोगों ने संघर्ष करते हुए अपना राजवंश कायम रखा. शुरू से ही इस रियासत की राजधानी होसेपुर नामक गांव में थी, कि छत्रधारी सिंह साहि के समय में राजधानी वहां से हथूआ लाई गई.

जगदीशपुर

सन 1857 में हुए सिपाही विद्रोह के नायक बाबू कुंवर सिंह जगदीशपुर रियासत के अधिपति (जमीदार) थे. उनके भाई के वंशज निकटस्थ दिलीपपुर में रहते थे. आरा से करीब 35 किलोमीटर दक्षिण पश्चिम की ओर स्थित जगदीशपुर से कुंवर सिंह के नेतृत्व में अंग्रेजो के विरूद्ध छेड़े गए संघर्ष का प्रभाव निकटवर्ती उत्तर प्रदेश और नेपाल की तराई में भी महसूस किया गया है.

बक्सर

1577 में राजा दलपति से यहां के राजा हुए. वह इस राज वंश के सबसे प्रसिद्ध राजा हुए. कालांतर में यह रियासत डुमराव राजा में विलीन हो गई.

गंधवार

गंधवरिया लोग स्वयं को परमार राजपूत और मिथिला के कर्णाट वंशीय नरेश राजा नान्यदेवसिंह के वंशज मानते थे. मिथिलाधीपति महाराज शिव सिंह के ओइनवार वंश के नष्ट होने पर मिथिला में अराजकता फैली. तब परमारो ने दरभंगा जिले के गंधवार और भौर नामक स्थानों में अपने राज्य स्थापित किए. गंधवार में रहने वाले गंधवारिया और भौर में रहने वाले भौरशुरिया कहलाने लगे.

गंधवारीयाकी तीन मुख्य रियासतें थी- सोनबरसा, बरुआरी, और पंचगछिया. उस समय यह तीनों ही भागलपुर जिले में थी, पर अब वह क्रमश: से सहरसा और सुपौल जिले में है. गंधवारियो की छोटी रियासतों में दरभंगा जिले के भगवानपुर का विशिष्ट स्थान था.

भगवानपुर

यह रियासत शाहाबाद जिले के चैनपुर पर अंगने में थी. यहां के राजपूत शासक तकक्षीला को अपना आदि निवास स्थान तथा इतिहास प्रसिद्ध वीर पोरस को अपना पूर्वज मानते थे.

परंतु भारतीय राजाओं के आधुनिक इतिहास के लेखक श्री लोकनाथ घोष के अनुसार, इस राज्य के संस्थापक लक्ष्मीमल चंद्रवंशी आज से लगभग 400 वर्ष पहले दिल्ली के निकट है सकरी नामक स्थान से आकर तत्कालीन शाहाबाद जिले के भगवानपुर नामक नवागांव में बस गए थे.

बरारी

दरभंगा जिला निवासी पंडित नारायण ठाकुर तांत्रिक को भागलपुर जिले में जो जागीर मिली थी उसी से बरारी की रियासत कायम की थी. नारायण ठाकुर के वशंजों कि 3 शाखाएं थी-  दत्त शाखा, मोहन शाखा और नाथ शाखा, जिनमें से मोहन शाखा की काफी उन्नति हुई थी.

बाघी

मुजफ्फरपुर से 15 मील दक्षिण में स्थित इस रियासत के अधिपति रायबहादुर श्याम नंदन सहाय थे. अपनी रईसी के लिए विख्यात सहाय साहब बाद में बिहार विश्वविद्यालय के प्रथम कुलपति और फिर सांसद भी हुए.

बेतिया

इस रियासत के संस्थापक उग्रसेन थे, जिनके पुत्र राज सिंह को मुगल सम्राट अकबर से राजा की उपाधि मिली थी.

शिवहर

यह बेतिया राज वंश की एक शाखा है. ब्रिटिश सरकार द्वारा यहां के अधिपति को राजा की उपाधि मिली थी.

बदलपुरा

इसके अधिपति रायबहादुर रामनुग्रह नारायण सिंह थे. यह रियासत पटना जिले में स्थित है.

हरिजी की रियासत

यह रियासत आरा में स्थिति थी. इसके अधिपति रायबहादुर हरिहर प्रसाद सिंह थे. इनके पिता दीवान जयप्रकाश लाल डुमराव राजा के दीवान रह चुके थे.

सुरसंड

यह रियासत उस समय मुजफ्फरपुर जिले में थी. सुरसंड अभी सीतामढ़ी जिला में है. मिथिला नरेश राजा प्रताप सिंह के समय में इस राज्य की स्थापना हुई थी.

पलामू

लगभग 400 वर्ष पहले खबरों के राजपूत दक्षिण-पूर्व पलामू (अब झारखंड में) राज करते थे. उनकी राजधानी औरंगा नदी के किनारे पलामू गढ़ थी.

सोनपुरा

यह रियासत पलामू जिले में थी. इस राजवंश के कनर साहि देव ने जपला और लौजा परगनों को दिल्ली के बादशाह से जागिर के रूप में प्राप्त किया था. उन्होंने सोनपुरा में राजधानी बनाई थी.

कुंडे

यह रियासत हजारीबाग जिले में थी. औरंगजेब ने अपने सेवक राम सिंह को सन 1669 ईसवी में जागीर के तौर पर दिया था.

अन्य रियासतें

उपर्युक्त रियासतों के अतिरिक्त बिहार में कई अन्य (लगभग 35) छोटी रियासतें थी. इनमें आरा के निर्मल कुमार जैन की रियासत प्रमुख थी. मुजफ्फरपुर के रायबहादुर नारायण मेहथा, रायबहादुर कृष्ण देव नारायण मेहथा और उमाशंकर प्रसाद की भी रियासत प्रसिद्ध थी. पूर्णिया नगर में राजा पृथ्वीचंद्र लाल की रियासत प्रसिद्ध थी. इसके अंतर्गत नगर में एक छोटी रियासत मुस्लिम जमीदार असद राजा की थी.

Leave a Comment