उत्तर प्रदेश आधुनिक काल का इतिहास

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Group Join Now

उत्तर प्रदेश आधुनिक काल का इतिहास, itihas uttar pradesh, UP itihas aadhunik, UP history aadhunik, up history aadhunik kaal, aadhunik kaal ka itihas

More Important Article

उत्तर प्रदेश आधुनिक काल का इतिहास

औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात 50 वर्षो में दिल्ली की गद्दी पर कुल 8 मुगल शासक ने शासन किया, वर्ष 1757 तक वर्तमान उत्तर प्रदेश में पांच स्वतंत्र राज्य स्थापित हो चुके थे. मेरठ और बरेली के उत्तर में नाजिम खान नामक पठान सरदार, मेरठ तथा दुआ क्षेत्र में रुहेलो के अंतर्गत रूहेलखंड, फरुखाबाद के नवाब के अंतर्गत मध्य दोआब का क्षेत्र, वर्तमान अवध तथा पूर्वी जिलों पर अवध के नवाब बुंदेलखंड और मराठों का शासन स्थापित हो चुका था.

इन सभी राज्यों वर्चस्व हेतु दिल्ली में मुगलों के प्रभाव के साथ ही संघर्ष शुरू हो गया था. उत्तर भारत का भाग्य सन 1761 के तीसरे पानीपत के युद्ध मराठों, जाटों तथा राजपूतों की पराजय में, तथा बक्सर के युद्ध (1764) में ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा अवैध के नवाब शुजाउद्दौला तथा बंगाल के नवाब मीर कासिम की पराजय ने, निर्धारित कर दिया था.

अंग्रेज इलाहाबाद तक बढ़ाए थे. अवध के नवाब ने मराठों को सहायता के लिए बुंदेलखंड से बुलाया परंतु कानपुर के निकट जाजमऊ में नवाब और सम्मिलित सेना अंग्रेजी सेना से पराजित हो गई. ईस्ट इंडिया कंपनी के निर्वासित मुगल सम्राट साह आलम को इलाहाबाद, तथा कोरा (इलाहाबाद, कानपुर, तथा फतेहपुर) के साथ साथ बंगाल के राज्यस्व से 26 लाख वार्षिक कर तय दिया, जबकि अवध के नवाब ने अंग्रेजों को 50 लाख का मुहावजा देना स्वीकार किया.

अंग्रेजों ने रुहेलखंड में वर्ष 1773 में मराठों को पराजित कर दिया तथा उन्हें दोआब से निष्कासित कर दिया. अवध के नवाब को इलाहाबाद इस आधार पर सौंप दिया गया कि साह आलम ने इसे मराठों को सौंप दिया था. रूहेल सरदार रहमत खान को अंग्रेजी सेनाओ ने सन 1774 शाहजहांपुर में पराजित कर रूहेलखंड को अवध के नवाब को सौंप दिया.

वर्ष 1775 में शुजाउद्दौला  की मृत्यु के पश्चात आसफुद्दौला अवध का नवाब बन गया. जिसने बनारस क्षेत्र का अधिपति अंग्रेजों के साथ की गई एक नवीन संधि में अंग्रेजों को सौंप दिया. इस समय बनारस क्षेत्र राजा चैत सिंह के अधिकार में था, राजा चेत सिंह ने सन 1780 में जब सैनिक टूकड़िया तथा धन की अतिरिक्त मांग को ठुकरा दिया था तब गवर्नर जनरल वारेन होस्टिंग राजा को सबक सिखाने स्वयं बनारस पहुंच गया. अंग्रेजों के राजा चेत सिंह के नेतृत्व में हुए बनारस  विद्रोह को दबाकर महिप नारायण सिंह को बनारस का राजा बना दिया इसके साथ ही बनारस पर ब्रिटिश शासन सुनिश्चित हो गया.

सन 1797 में आसफुद्दौला की मृत्यु हो गई. तत्पश्चात अवध का नवाब उसका भाई सआदत अली बन गया. उसने अंग्रेजों को इलाहाबाद का किला सौंप दिया तथा ब्राह्म आक्रमण से सुरक्षा के बदले में ईस्ट इंडिया कंपनी को प्रतिवर्ष 76 लाख रुपए देने का आश्वासन भी दिया.

अंग्रेजों के पास प्रांत में 19वीं सदी के प्रारंभ में सिर्फ बनारस क्षेत्र (मिर्जापुर के अंतरिक्त से) तथा इलाहाबाद का किला. अवध के सहादत अली ने सन 1801 में सुरक्षा की गारंटी में एवज में अंग्रेजों को गोरखपुर क्षेत्र, रुहेलखंड क्षेत्र, इलाहाबाद, फतेहपुर, कानपुर, इटावा, एटा दक्षिण मिर्जापुर, तथा कुमायूं का तराई परगना प्रदान कर दिया.

फर्रुखाबाद के नवाब अगले ही साल अपना इलाका भी अंग्रेजों को दे दिया. इस समय तक उत्तर को छोड़कर शेष सभी तरफ से अवध अंग्रेजों द्वारा शासित क्षेत्रों से घिर चुका था. सन 1803 में लार्ड लेक ने मराठा को पराजित कर अलीगढ़, दिल्ली तथा आगरा पर अधिकार कर लिया. इस युद्ध के परिणाम स्वरुप अंग्रेजों ने मराठों से मेरठ, आगरा, दिल्ली, के पड़ोसी जिले बांदा, हमीरपुर, जालौन, तथा ग्वालियर का क्षेत्र भी हथिया लिया, परंतु बाद में गोहाड़ा तथा ग्वालियर सिंधिया अंग्रेजों ने वापस कर दिया. सन 1816 के गोरखा युद्ध में अंग्रेजो को कुमाऊं तथा देहरादूर भी प्राप्त हो गए.

इस समय तक यह सारा क्षेत्र बंगाल प्रेसीडेंसी का हिस्सा रहा तथा इस पर गवर्नर जनरल का ही शासन चलता रहा. इसे बंगाल प्रेसीडेंसी से अलग कर सन 1833 में आगरा प्रेसिडेंसी का नाम दिया गया तथा साथ ही साथ एक गवर्नर की नियुक्ति भी कर दी गई. जब इस प्रांत का नाम सन 1836 में उत्तर पश्चिम प्रांत किया गया तथा आगरा, झांसी, जालौन के साथ साथ दिल्ली तथा अजमेर के क्षेत्र भी इस प्रांत में शामिल थे.

बाद में इसमें मारवाड़, बुंदेलखंड, तथा हमीरपुर भी शामिल कर लिए गए. सन 1856 में अवध को भी शामिल कर लिया गया. वर्ष 1857 की क्रांति के बाद दिल्ली का क्षेत्र पंजाब को, तराई के कुछ हिस्से नेपाल को, बरेली तथा मुरादाबाद के कुछ इलाके, रामपुर के नवाब को तथा सागर मध्य प्रांत को दे दिए. भारत सरकार को सन 1871 में अजमेर में मारवाड़ हस्तांतरित कर दिए गए.

Leave a Comment