G.KHistoryStudy Material

उत्तर प्रदेश मुस्लिम लीग का जन्म, कांग्रेस कमेटी और लीग समझौता

उत्तर प्रदेश मुस्लिम लीग का जन्म, कांग्रेस कमेटी और लीग समझौता, up mushlim lig kaa janm, congress kemti, congress liig samjhota

More Important Article

उत्तर प्रदेश मुस्लिम लीग का जन्म, कांग्रेस कमेटी और लीग समझौता

मुस्लिम लीग का जन्म

30 दिसंबर 1906 को बनने वाले इंडियन मुस्लिम लीग नामक संस्था बीसवीं सदी के पहले दशक की दूसरी सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना थी. 1 अक्टूबर को इसके नेता आगा खान ने वायसराय लॉर्ड मिंटो से मिलकर मुसलमानों के लिए कुछ विशेष अधिकारों की मांग की तथा अंग्रेजी शासन के प्रति मुसलमानों की वफादारी का विश्वास दिलाया. उस मुस्लिम तबके ने इस संस्था की नीव रखी थी जो प्रारंभ से ही अंग्रेजो के प्रभाव में रहा था. कांग्रेस के विरोध का झंडा प्रारंभ में इस वर्ग ने सर सैयद के नेतृत्व में खड़ा किया था. परंतु यह भारत के आम मुस्लिम नागरिकों को अपनी तमाम कोशिशों के बाद भी न तो अपनी तरफ आकर्षित कर सका था ना ही मुसलमान को कांग्रेस से अलग करने में सफल हो पाया.

सैयद बदरुद्दीन जी मद्रास के तीसरे अधिवेशन के अध्यक्ष थे तथा इसमें लगभग 13% मुस्लिम प्रतिनिधियों ने भाग लिया था. इलाहाबाद के चौथे अधिवेशन में उनका प्रतिनिधित्व लगभग 18% वर्ष 1889 में, 13% वर्ष 1890 में, 16.5% वर्ष, 1892 के इलाहाबाद अधिवेशन में 42%तक पहुंचे चुकी थी, परंतु सन 1892 के अधिनियम के बाद प्रारंभ हिंदू मुस्लिम दंगा, गोहद विरोधी आंदोलन तथा हिंदू उर्दू विरोध आदि जैसे नवीन तत्वों के समावेश ने अपना प्रभाव दिखाना प्रारंभ कर दिया था.

कर्जन ने बंग-भंग आंदोलन के समय बांटो और राज करो की नीति का जमकर विस्तार किया था. पूर्वी बंगाल में जहां हिंदू संपन्न और शिक्षित और मुस्लिम मुख्यत: निर्धन और अशिक्षित किसान ,कर्जन की कुटिल नीतियों को पनपने का अवसर मिल गया. पश्चिम बंगाल के मुसलमानों ने इस आंदोलन में जमकर विरोध किया. जिसने संप्रदायवाद के बीज को हवा पानी देने का कार्य किया था, परंतु यह बीज राष्ट्रवाद की उस लहर का परिणाम था जिसका स्रोत धार्मिक पुनरुत्थानवाद रहा था. इस लहर का प्रभाव भारत की तत्कालीन राजनीति में संपर्क रूप से परिलक्षित होने लगा था, परंतु राजनीतिक चेतना से पूर्ण मुसलमानों की बहुमत अभी भी राष्ट्रीय मुख्यधारा से अलग नहीं था. सन 1960 में दादा भाई नौरोजी के व्यक्तित्व सचिव के रूप में मोहम्मद अली जिना कांग्रेस अधिवेशन में मुसलमानों के लिए अलग प्रतिनिधियों की मांग का कांग्रेस के मंच से विरोध किया था. आगा खान के साथ किए गए वादे का इस प्रकार की मांग ने पूरा कर दिया वह हिंदुओं और मुसलमानों के बीच स्थाई दरार पैदा करने के लिए अलग निर्वाचन मंडल और प्रतिनिधित्व की व्यवस्था कर दी.

उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी

पंडित मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में उत्तर प्रदेश ( यूनाइटेड प्राविसेज) में कमेटी का पहला प्रारंभ हुआ उत्तर प्रदेश के पंडित मोतीलाल नेहरु पंडित मदन मोहन मालवीय ने सन 1907 के सूरत विभाजन में नरमपथियों का साथ दिया था. सन 1909 में मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में आगरा में प्रदेश कांग्रेश राजनीतिक सम्मेलन पुणे शुरू हुआ. सन 1910 तक प्रदेश के अनेक जिलों तक कांग्रेस के संगठन का विस्तार हो चुका था. वर्ष 1907 में गरम दल के निष्कासन से वर्ष 1914 के प्रथम विश्व युद्ध के प्रारंभ तक कांग्रेसी नरम दल वालों के हाथ में रही.

कांग्रेस-लीग समझौता

इस समय के दौरान तिलक, बर्मा की मांडले जेल में रहे. जून, 1914 में गरम दल तिलक के छूटने तक गोखले व प. फिरोजशाह मेहता की मृत्यु के बाद फिर से कांग्रेस में प्रवेश पा गया. प्रथम विश्वयुद्ध सितंबर, 1914 में प्रारंभ हो गया और ऑटोमन खलीफा ने नवंबर में मित्र राष्ट्रों के विरुद्ध केंद्रीय शक्तियों का साथ देना स्वीकार कर लिया था. पूरे ब्रिटिश साम्राज्य के मुस्लिम समाज में तुर्की द्वारा जर्मनी का साथ देने का निर्णय लेते ही ब्रिटिश विरोधी भावनाओं का संचार प्रारंभ होने लगा था.

मुस्लिम लीग ने भारत में भी मौलाना अबुल कलाम आजाद, मौलाना मोहम्मद अली और शौकत अली जैसे नेताओं के प्रयास से अपने उद्देश्यों व नीतियों में थोड़ा परिवर्तन किया और भारत में स्वशासन की स्थापना को मुस्लिम लीग का उद्देश्य घोषित कर दिया. इसके साथ ही कांग्रेस और मुस्लिम लीग का अधिवेशन एक साथ मुंबई में तिलक, एनी बेसेंट कथा जिन्ना के प्रयासों से हुआ. इन दोनों के प्रतिनिधियों ने संयुक्त रूप से हिंदू मुस्लिम भोज का आयोजन किया. इन्होंने चांद और कमल दोनों चिन्ह वाले बैज लगा रखे थे, जो हिंदू मुस्लिम एकता के प्रतीक थे. जिन्ना इस समय तक हिंदू मुस्लिम एकता के राजदूत कहे जाने लगे थे.

एक बार फिर कांग्रेस और मुस्लिम लीग का अधिवेशन एक साथ लखनऊ में सन 1916 में, संपन्न हुआ. इस समय जिन्ना स्वयं मुस्लिम लीग के नेता थे, जो सन 1904 से ही कांग्रेस के नेता थे. अंबिका चरण मजूमदार लखनऊ कांग्रेस के अध्यक्ष थे. यहां पर कांग्रेस और लीग एकता ने  मूर्त रूप धारण कर लिया था. इन दोनों ने मिलकर जो योजना तैयार की वह कांग्रेस लीग समझौता के नाम से प्रसिद्ध हुई सन 1907 के बाद पहली बार तिलक भारतीय कांग्रेस अधिवेशन में सम्मिलित हो रहे थे. जिस कारण कांग्रेस का यह अधिवेशन महत्वपूर्ण था क्योंकि तिलक की लोकप्रियता इस सीमा तक पहुंच चुकी थी कि लखनऊ स्टेशन से अधिवेशन स्थल तक उन्हें जिस घोड़ा गाड़ी में लाया गया उसे घोड़ों के जगह लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्रों ने खींचकर पंडाल तक पहुंचाया था.

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
Close