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बिहार की जलवायु
बिहार में गंगा का उत्तरी मैदान भाग हिमालय के निकट स्थित है और पूर्व से पश्चिम की ओर खुला है, जिससे होकर मानसून की नम हवाएं पश्चिम की ओर तथा गर्मियों में पश्चिम की ओर से गर्म एवं सर्दियों में ठंडी हवाएं बिहार के मैदानी भाग से प्रवाहित होती है. पश्चिम बंगाल तथा उत्तर प्रदेश के मध्य स्थित बिहार का पूर्व विभाग पश्चिम बंगाल के समान आर्द्र है तथा इसका पश्चिमी भाग पूर्वी उत्तर प्रदेश के समान उपोषण है.
राज्य के अक्षांशीय विस्तार के आधार पर यह उपोष्ण जलवायु में स्थित है. बिहार के पूर्वी भाग में आर्द्र जलवायु तथा पश्चिमी भाग में अर्ध शुष्क जलवायु है. बंगाल की खाड़ी के निकट रहने के कारण राज्य की जलवायु पर खाड़ी से आने वाले चक्रवातों का विशेष प्रभाव पड़ता है.
ग्रीष्म ऋतु में राजस्थान के क्षेत्र में विकसित होने वाले निम्न दाब का विस्तार पूर्व में बिहार, झारखंड से उड़ीसा तक हो जाता है. इस निम्न दाब की और बंगाल की खाड़ी से चलने वाली हवाओं के मार्ग में स्थित होने से बिहार राज्य में वर्षा होती है.
बिहार का पश्चिम प्रदेश न केवल उत्तर पश्चिम मानसूनी हवाओं की खाड़ी की शाखाओं के क्षेत्र में स्थित है, बल्कि अरब सागर की शाखाओं के मार्ग में भी सचेत रहने के कारण अपेक्षाकृत अधिक वर्षा उपलब्ध कराता है.
बिहार राज्य न केवल सर्दियों में चलने वाली भूमध्यसागरीय अवदाब की पूर्वी सीमा है, बल्कि ग्रीष्मकालीन पश्चिम से आने वाली गर्म लू की भी पूर्वी सीमा है. इस गर्म लू से बिहार का उत्तर पूर्वी भाग एवं समस्त मैदानी भाग प्रभावित रहता है. एक ऋतु से दूसरे ऋतु में होने वाला वायु मार्ग परिवर्तन भी बिहार की जलवायु की एक प्रधान विशेषता है.
बिहार राज्य की जलवायु मानसूनी प्रकार की है. समुंद्र से दूर होने के कारण यहां के मौसम में विषमता है. तापमान वर्षा की दृष्टि से राज्य की जलवायु विशिष्ट प्रकार की है.
ग्रीष्म ऋतु
राज्य में ग्रीष्म ऋतु जो मार्च में शुरू होती है, मध्य जून तक रहती है. अप्रैल माह से दिन का तापमान काफी बढ़ जाता है. यहां मई माह में तापमान सर्वाधिक रहता है. मई का आज तापमान 32 डिग्री सेल्सियस रहता है. मानसूनी हवाओं के आगमन से मध्य जून में तापमान कुछ कम हो जाता है. बहुधा बंगाल की खाड़ी से चक्रवाती तूफानों के मई-जून से पहुंचने पर तूफानी वर्षा से जनजीवन अस्त व्यस्त हो जाता है.
राज्य में धूल भरी आंधियों के अलावा चलने वाली गर्म हवा इसकी मुख्य विशेषता है. लू की चपेट में गंगा के दक्षिणी मैदान के क्षेत्र रहते हैं. यह हवाएं 8-16 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से बहती है. पठारी भाग में इनका ताप कम हो जाता है और यह मंद पड़ जाती है. राज्य के गया जिला में सर्वाधिक तापमान रहता है.
वर्षा ऋतु
बिहार में इस मौसम का मानसून के आगमन के साथ होता है. वर्षा मध्य जून से शुरू हो जाती है लेकिन जुलाई अगस्त माह अत्यधिक वर्षा वाले माने जाते हैं.
बिहार में वर्षा दक्षिण पश्चिम मानसून का उपहार है. राज्य में वर्षा की मात्रा उत्तर से दक्षिण की ओर तथा पूर्व से पश्चिम की ओर घटती चली जाती है. दक्षिण पश्चिम मानसून का उद्भव हिंद महासागर से होता है- जो अरब सागर होता हुआ लगभग मध्य जून में बिहार में पहुंचता है.
मध्य अक्टूबर तक राज्य के मैदानी भागों में पर्याप्त वर्षा होती है. इसके बाद दक्षिण पश्चिम मानसून प्रभाव शिथिला हो जाता है और मंद गति से हवा विपरीत दिशा में बहने लगती है. इसे मानसून का लौटना कहा जाता है. इसके साथ ही मैदानी भागों में ठंडी पछुआ व उत्तरी हवा का बहना प्रारंभ हो जाता है जो शरद ऋतु के आगमन का संकेत माना जाता है.
शीत ऋतु
राज्य में मानसून के समाप्त होते ही आर्द्रता और रात में भरपूर औस से तापमान कम होने लगता है. इसी समय पश्चिम से ठंडी हवा चली शुरू होती है, जिसे पछुआ बयार कहते हैं.
दिसंबर जनवरी महा में भूमध्य सागरीय क्षेत्र में उत्पन्न होने वाली चक्रवाती तूफान मौसम बदल डालते हैं. इस कारण प्राय घनघोर वर्षा होती है जिससे दिसंबर जनवरी माह में ठंड अत्यंत पड़ जाती है. यह वर्षा रबी की फसल के लिए लाभप्रद होती है. कोपेन ने अपने जलवायु विभाजन में बिहार के उत्तरी भाषा को CWg और दक्षिणी भाग को AW जलवायु के अंतर्गत माना जाता है.
बिहार में कृषि जलवायु क्षेत्र
कृषि जलवायु की दृष्टि से बिहार राज्य को चार भागों में सम्मिलित किया जा सकता है.
- पश्चिमोत्तर का मैदान
- पूर्व का मैदानी भाग
- दक्षिण पश्चिम का मैदान
- दक्षिण का पठारी क्षेत्र.
बिहार के जलवायु प्रदेश
जलवायु के क्षेत्रीय विशेषताओं के आधार पर बिहार को मुख्य रूप से 4 जलवायु प्रदेशों में बांटा जा सकता है-
- उत्तर-पश्चिम गिरिपाद प्रदेश
- उत्तर-पूर्वी प्रदेश
- रोहतास का पश्चिम निम्न पठारी प्रदेश
- मध्यवर्ती प्रदेश
हिमालय के गिरिपाद के निकट स्थित बिहार के उत्तरी भाग यानी उत्तर पश्चिम मध्य प्रदेश में, 1,400 मिमी से अधिक वर्षा होती है. यह क्षेत्र जुलाई में अधिक वर्षा प्राप्त करता है. अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा इस आर्द्र प्रदेश में ग्रीष्म काल की अवधि छोटी और शीत काल की अवधि लंबी होती है.
राज्य का उत्तर पूर्वी प्रदेश सर्वाधिक वर्षा प्राप्त करता है तथा क्षेत्र में वर्षा ऋतु की अवधि भी लंबी होती है. यह क्षेत्र नार्वेसटर तथा दक्षिण पश्चिम मानसून दोनों से वर्षा प्राप्त करता है. मई महीने में नॉर्वेस्टर से होने वाली वर्षा जूट की खेती के लिए उत्तम होती है. अरब सागर से प्रभावित रोहतास का पठारी प्रदेश 1200 मीमी तक वर्षा प्राप्त करता है,
नॉर्वेस्टर वर्षा से प्राय वंचित तथा धूल भरी आंधियां और लू से प्रभावित इस प्रदेश में सबसे गर्म महीना मई होता है. दक्षिण की तुलना में इस के उत्तरी भाग में वर्षा कम होती है. मध्यवर्ती प्रदेश गंगा के दोनों ओर का क्षेत्र है, जहां वर्षा कम होती है. यह क्षेत्र उच्चतम तापान्तर का क्षेत्र है.
बिहार में वर्षा का वितरण
बिहार आर्थिक सर्वेक्षण 2015-16 के अनुसार बिहार राज्य में वार्षिक वर्षापात का औसत 1009 मिमी है, राज्य में वर्षा के वितरण में प्राय असमानता पाई जाती है.
बिहार के मैदानी भाग में जहां 100 से 150 सेमी वर्षा होती है, वहां राज्य के उत्तर पश्चिमी और उत्तर पूर्वी भाग के छोटे क्षेत्रों में 200 सेमी से अधिक वर्षा पाई जाती है.
बिहार में सबसे कम वर्षा पटना के पश्चिम त्रिकोणीय भूखंड पर होती है, जबकि सर्वाधिक वर्षा राज्य के उत्तर पूर्व में स्थित है किशनगंज जिले में होती है.
किशनगंज क्षेत्र में होने वाली वर्षा का संबंध में नॉर्वेस्टर से होने वाली वर्षा से है तथा कुछ हिमालय की ऊंचाई और उससे इसकी निकटता से भी है.
दक्षिण पश्चिम मानसून वर्षा
बिहार में होने वाली वर्षा मुख्यत या बंगाल की खाड़ी से आने वाली दक्षिणी पश्चिमी मानसून हवाओं की देन है. इन हवाओं से बिहार की कुल वार्षिक वर्षा की 85% वर्षा होती है. मानसून के आगमन की अनिश्चित तिथि तथा इस से प्राप्त होने वाली वर्षा की अनिश्चित अवधि और मात्रा से बिहार की कृषि काफी प्रभावित होती है.
मानसून की वापसी
प्राय अक्टूबर के प्रथम सप्ताह से बिहार में मानसून का प्रभाव कम होने लगता है. मानसूनी हवाओं का वेग तथा उनका प्रवाह समेटने के परिणाम स्वरुप उस समय बिहार का उत्तर पूर्वी भाग जहां मात्र 100 mm तक वर्षा प्राप्त करता है वहां इसके उत्तर पश्चिम भाग में इस अवधि में कुल 25 मिमी से भी कम वर्षा होती है.
सामान्यतया इस अवधि में बिहार का अधिकार क्षेत्र 25 मिमी से 100 मिमी तक वर्षा प्राप्त करता है. घर में शरद कालीन धान के तैयार होने तथा रबी की फसल के लिए आवश्यक आर्द्रता बंगाल की खाड़ी से उत्पन्न होने वाले चक्रवाटन के प्रभाव से उपलब्ध होती है. उस अवधि में हथिया नक्षत्र की वर्षा बिहार की कृषि के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण एवं निर्णायक भूमिका अदा करती है.
शीतकालीन वर्षा
बिहार में होने वाले शीतकालीन वर्षा भूमध्यसागरीय अवदाबों से संबंधित है, जिन के आगमन से ही जनवरी फरवरी महीना की कुल वर्षा मात्र एक दो दिनों में उपलब्ध हो जाती है.
बिहार में गंगा के उत्तरी मैदान में इन महीनों (जनवरी- फरवरी) में होने वाली वर्षा की मात्रा पश्चिम से पूर्व की ओर कम हो जाती है, जबकि गंगा का दक्षिणी मैदान, जो कुल 10 मिमी शीतकालीन वर्षा प्राप्त करता है, से दक्षिण पूर्व की ओर वर्षा की मात्रा बढ़ कर 25 मिमी तक हो जाती है.
ग्रीष्मकालीन वर्षा
बिहार में ग्रीष्मकालीन वर्षा अल्प मात्रा में मार्च से मई तक होती है. इस अवधि में बिहार में 50 मिमी से 200 मिमी तक वर्षा होती है. ग्रीष्मकालीन वर्षा जहां राज्य के पूर्वी भाग में 150 मिमी तक हो जाती है, वहीं पश्चिम भाग में इसकी मात्रा काफी कम होती है. ग्रीष्म ऋतु में चक्रवाती हवाओं के कारण पूर्णिया जिले का उत्तर पूर्वी भाग में आर्द्र रहता है. ग्रीष्मकालीन वर्षा खासकर मई महीने में होने वाली वर्षा आम, लीची एवं भधई फसलों के लिए विशेष रूप से लाभदायक में महत्वपूर्ण होती है.
बिहार की अपवाह प्रणाली/नदी प्रणाली
बिहार राज्य के मुख्य जल संसाधन- बिहार राज्य में जल संसाधन के अनेक प्राकृतिक स्रोत है, दिन में मुख्य है- नदियां और अपवाह तंत्र, जल प्रपात एवं जल कुंड, वेटलैंडस. नदियों और उसके अपवाह तंत्र को, उद्गम के आधार पर दो वर्गों में रखा जा सकता है.
- हिमालय क्षेत्र से निकलने वाली नदियां
- पठारी क्षेत्र में के दक्षिण भाग से निकलने वाली नदियां
हिमालय क्षेत्र से निकलने वाली नदियां में सरयू, गंडक, बूढ़ी गंडक, बागमती कमला, कोसी, बलान तथा महानंदा प्रमुख है. यह सभी चिरस्थाई नदियां गंगा के मैदानी भाग में बहती हुई गंगा जिले में मिल जाती है. इनमें से अधिकांश नदियां बाढ़ की विभीषिका के लिए कुख्यात है.
पठारी क्षेत्र की नदियों में सोंन, उत्तरी कोयल, चानन, पुनपुन, फल्गु, कर्मनाशा, सकरी, पहचाने आदि प्रमुख है. यह नदियां राज्य के दक्षिणी भागों से बहती हुई गंगा या उसकी सहायक नदियों में मिल जाती है. यह मुख्यतः बरसाती नदियां है.बिहार के अपवाह तंत्र में अनेक छोटी-छोटी नदियां हैं, जो धरातलीय बनावट के अनुसार प्रवाहित होती है.
नदियों ने न केवल बिहार के धरातलीय स्वरूप को विकसित करने में निर्णायक योगदान दिया है बल्कि यह नदियां सिंचाई के लिए जल उपलब्ध कराती है, जल परिवहन का मार्ग प्रस्तुत करती है तथा साथ ही साथ मत्स्य प्राप्ति और अन्य व्यवसाय में सहायक भी होती है.यह नदियां जल विद्युत का स्रोत होती है और अन्य प्रकार से वे राज्य के प्राकृतिक संसाधनों को समृद्ध बनाती है.
बिहार में बहने वाली सोनू है पुनपुन नदियों का उद्गम स्थल मध्य प्रदेश है.पड़ोसी देश नेपाल बिहार के चार प्रमुख नदियों का उद्गम स्थल है. बागमती और कमला नदी नेपाल में हिमालय की महाभारत श्रेणी से, सरयू नदी नेपाल से तथा कोसी नदी पूर्वी नेपाल की सप्तकौशिक से निकलती है.
झारखंड राज्य का छोटा नागपुर- संथाल परगना क्षेत्र की नदियों का उद्गम स्थल रहा है, वे है- स्वर्ण रेखा, बराकर, सकरी, पंचाने.यह नदियां छोटा नागपुर के पठारी भाग से- दामोदर नदी पलामू जिले से, उत्तरी दक्षिणी कोयल नदी रांची की पहाड़ियों से तथा अजय नदी संथाल परगना के राजमहल पहाड़ी क्षेत्रों से निकलती है.
उपर्युक्त सभी नदियों का जल प्रवाह है, स्थिति व दिशा के आधार पर मुख्य तीन भागों में बांटा जा सकता है.
- प्रथम वर्ग- इस वर्ग में सरयू, गंडक, बूढ़ी गंडक, बागमती, कमला, बलान, कोसी एवं महानंदा नदियों को रखा जा सकता है, जो गंगा नदी में उतर से आकर मिलती है.
- द्वितीय वर्ग- इस वर्ग में सोन, पूनम, उतरी कोयल, चानन, फ्लगु, सकरी, पंचाने, एवं कर्मठ नदियां आती है, जो गंगा में दक्षिण से आकर मिलती है.
- तृतीय वर्ग- इस वर्ग में दामोदर, बराकर, स्वर्ण रेखा, दक्षिणी कोयल. शंख वादी ए सी नदियां हैं जो राज्य के दक्षिणी भाग में प्रवाहित होती है,
बिहार की जल प्रवाह प्रणाली में गंगा तथा उसकी सहायक नदियों का विशेष योगदान है.