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बिहार का भूगोल से जुडी जानकरी

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बिहार का भूगोल से जुडी जानकरी

बिहार की भौगोलिक स्थिति

भारत के उत्तर पूर्वी भाग में स्थित बिहार का क्षेत्रफल की दृष्टि से देश में 12वां स्थान है.जनसंख्या की दृष्टि से अन्य राज्यों की तुलना में इसका स्थान देश में तीसरा है. बिहार का भौगोलिक विस्तार 24०20’10” उत्तरी अक्षांश से 27० 31,15 उत्तरी अक्षांश और 83०19’50” पूर्वी देशांतर में 88०17’40” पूर्वी देशांतर तक है.

इस राज्य का कुल क्षेत्रफल 94,163 वर्ग किमी है, जिसमें ग्रामीण क्षेत्रफल 91,838.28  वर्ग किमी तथा नगरीय क्षेत्रफल 2,324.73 वर्ग किमी है. पूर्व से पश्चिम तक बिहार की चौड़ाई 483 किमी तथा उत्तर से दक्षिण तक लंबाई 345 किमी है. इसका स्वरूप लगभग आयताकार है.

वर्तमान बिहार के उत्तर में नेपाल से जुड़ी अंतर्राष्ट्रीय सीमा है और दक्षिण में झारखंड राज्य है, जबकि पूर्व में पश्चिम बंगाल और पश्चिम में उत्तर प्रदेश है. बिहार का क्षेत्रफल संपूर्ण भारत का 2.86% है. बिहार राज्य मुख्य मध्य गंगा के मैदानी क्षेत्र में है.

कृषि के क्षेत्र में बिहार भारत के अन्य राज्यों में अग्रणी है. देश के कुल चावल का लगभग 15% उत्पादन करने वाला यह राज्य चावल उत्पादन की दृष्टि से देश में पश्चिम बंगाल के बाद दूसरा स्थान रखता है. गेहूं, मक्का, तिलहन, तंबाकू, जुट, मिर्च इत्यादि के उत्पादन में भी बिहार का देश में महत्वपूर्ण स्थान है. यह कुल 8 से 10% तक उत्पादित करता है.

भूगर्भिक संरचना

बिहार राज्य के भूवैज्ञानिक संगठन में चतुर्थ कल्प से लेकर कैम्ब्रियन पूर्व कल्प के शैल समूह का योगदान है. बिहार का जलोढ़ मैदान सरंचनात्मक की दृष्टि से न्यूनतम सरचना है जबकि दक्षिणी बिहार के सीमांत पठारी प्रदेश में आक्रियन युगिन चट्टाने मिलती है.

भूगर्भिक सरचना  की दृष्टि से बिहार में चार स्पष्ट धरातल देखे जाते हैं.  उत्तर में शिवालिक की टर्शियरी चट्टाने, गंगा के मैदान मे प्लिस्टोसिन काल  का जलोढ़ और निक्षेप, कैमूर के पठार पर विंध्य क्लब का चूना पत्थर और बलुआ पत्थर से बना निक्षेप है तथा दक्षिण के सीमांत पठारी प्रदेश की अक्रिय युगिन चट्टाने.

बिहार का मैदानी भाग जो बिहार के कुल क्षेत्रफल का लगभग 95% है, प्राप्त टेथिस सागर के ऊपर विकसित हुआ बताया जाता है. भू सन्नित सिद्धांत के अनुसार हिमालय पर्वत का निर्माण टेथिस सागर के मलबे के संपीड़न द्वारा हुआ है.

हिमालय के बनते समय हिमालय के दक्षिण में एक विशाल अग्रगर्त बन गया था. इस विशाल अग्रगर्त में गोंडवानालैंड के पठारी भाग से निकलने वाली नदियों ने अपने द्वार लाए गए अवसादो का निक्षेप करना शुरू किया. इससे प्लीस्टोसिन काल में गंगा के मैदान का निर्माण हुआ. बिहार का मैदानी भाग असंगठित महीन मृतिका, गाद एवं विभिन्न कोटि के बालूकणों जैसे अवसदों से निर्मित है.

संपूर्ण बिहार के मैदानी भाग में जलोढ़ की गहराई एक समान नहीं है. गंगा के दक्षिण सहित मैदान में जलोढ़ की गहराई पहाड़ियों के निकट अपेक्षाकृत कम है. इसके पश्चिम की ओर बढ़ने पर जलोढ़ की गहराई बढ़ती जाती है. दक्षिणी मैदान में सबसे गहरे जलोढ़ बेसिन की स्थिति बक्सर तथा मोकामा के मध्य उपलब्ध है.

25० उत्तरी अक्षांश से उत्तर की तरफ जलोढ़ की उच्चतम गहराई देखी जाती है. इन क्षेत्रों में आधार सेल के ऊपर 900 मीटर से लेकर 700 मीटर तक गहरे हैं. मुजफ्फरपुर तथा सारण के मध्य जलोढ़ और बेसन की अधिकतम गहराई 1000 से लेकर 2500 मीटर तक मापी गई है. 25० उत्तरी अक्षांश के दक्षिण तथा 86० देशांतर के पश्चिम में स्थित गंगा के मैदान में जलोढ़ की गहराई अपेक्षाकृत कम है.

हरिहरगंज, औरंगाबाद तथा नवादा के सीमांत क्षेत्रों में जलोढ़ स्थलाकृति पर्याप्त स्थानिक अंतर को अभिव्यक्त करती है. बिहार के पश्चिम चंपारण और पूर्णिया जिले में शिवालिक का हिस्सा दिखाई देता है.

बिहार में उस स्थिति सीमांत पठारी प्रदेश छोटा नागपुर का हिस्सा है. यह पठार पूर्व कैंब्रियन काल में निर्मित है. मध्य प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश में विध्यं काल के जो सेल्स में मिलते हैं उन्हीं का पूर्वी विचार बिहार के पश्चिम क्षेत्र में उपलब्ध है. इन्हें कैमूर का पठार कहा जाता है. यह प्राचीन अवसादी ग्रिटी से लेकर सूक्ष्मकणीय बालूकासम सेल, चूना पत्थर शैलों से तथा क्वाज्वाइंट ब्रेशिया और परसेलेनाइट्स शैलो से निर्मित है.

रासायनिक परिवर्तन के अंतर्गत चूना पत्थर के सेल रेवदार डोलोमाइट में प्रणित होते हैं एवं इन शैल समूह के सेल बहुदा पेराईटीफेरस विशेषताओं को भी प्रकट करते है. बिहार का मैदानी भाग हिमालय के प्रवर्तन से प्रभावित रहा है.

तृतीय क्लप के भूसंचालनों के प्रभाव से गंगा का असंवलीत बेसिन मे और भी गहरा होता चला गया तथा इसे असवलीत बेसिन में प्रवाहित होने वाली नदियों द्वारा अवसादो के निक्षेप होते रहने से वर्तमान जलोढ़ मैदान की उत्पत्ति हुई है.

प्राकृतिक विभाजन दशा

उच्चावच की दृष्टि से बिहार को तीन भागों में बांटा जा सकता है

  1. हिमालय का पर्वतपदीय क्षेत्र
  2. गंगा का मैदानी भाग क्षेत्र
  3. दक्षिण का पठारी भाग क्षेत्र

भौतिक बनावट और संरचना की दृष्टि से बिहार को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है:

  1. उत्तर का शिवालिक का पर्वतीय भाग एवं तराई क्षेत्र
  2. बिहार का विशाल मैदान
  3. दक्षिण का सीमांत पठारी प्रदेश

उत्तर का शिवालिक पर्वतीय और तराई क्षेत्र

बिहार के उत्तर पश्चिम में स्थित एक छोटा क्षेत्र है, जिसका कुल क्षेत्रफल लगभग 932 वर्ग किमी है. शिवालीक पर्वतीय प्रदेश हिमालय का तृतीय मोड माना जाता है. यह टर्शियरी भू-संचालन के स्वरूप बना है.

इसे 3 उप विभाजनों में बांटा जा सकता है.

राम नगर दून

यह छोटी-छोटी पहाड़ियों का क्रम है, जो 214 वर्ग किमी क्षेत्र पर फैला है. इसकी अधिकतम ऊंचाई 240 मीटर है. यह हरहा नदी घाटी के दक्षिण में अवस्थित है.

सोमेश्वर श्रेणी

सोमेश्वर श्रेणी का विस्तार पश्चिम में त्रिवेणी नहर के शीर्ष  भाग से भिखनाठोरी, तक है. इस की सर्वोच्च चोटी 874 मीटर ऊंची है,

इस क्षेत्र में कई दर्रे हैं, जो नदियों के बहाव के कारण बने हैं. इनमें सोमेश्वर, भिखनाठोरी, और मवाद प्रमुख है. इन्ही दर्रो से बिहार और नेपाल के बीच संपर्क बनता है.

शिवालिक वलित पर्वत के इन श्रेणियों में नदी द्वारा अपरदन के कारण काफी उबर खाबर क्षेत्र का विकास हुआ है. इन नयी परतदार चट्टानों में मुलायम बलुआ पत्थर मिलता है.

दून घाटी

दून घाटी उपर्युक्त दोनों उप विभाजन के बीच स्थित है तथा इस घाटी को हरहा नदी की घाटी भी कहते हैं. यह लगभग 24 किलोमीटर लंबी है एवं गंगा के जलोढ़ मैदान से कुछ ऊंची है.

बिहार का विशाल मैदान

यह 90,650 वर्ग किलोमीटर में विस्तृत है, जो बिहार के कुल क्षेत्रफल का लगभग 96% है. उत्तरी पर्वतीय प्रदेश और दक्षिणी पठारी प्रदेश के बीच फैलाव बिहार का विशाल मैदान नदियों द्वारा लाई गई जलोढ़ मिट्टी से बना है, जिसका पश्चिम समवर्ती भाग में कहीं-कहीं चूने के कंकड़ का उपरी सतह के निकट जमाव पाया जाता है.

गंगा नदी के दक्षिणी भाग पर सपाट मैदान है और इस मैदान में चौर के तरह की निचली भूमि पाई जाती है, जिसे टाल या ताल कहते हैं. वर्षा ऋतु में यह टाल क्षेत्र जलमग्न रहती है. गंगा के मैदानी क्षेत्र का ढाल सर्वत्र एक समान एवं धीमा है, जो 6 सेमी प्रति किमी है. समुद्र तल से इसकी औसत ऊंचाई 60 मीटर से 120 मीटर के मध्य है. हालांकि इसकी औसत गहराई 1000 मीटर से 1500 मीटर के मध्य है.

संपूर्ण राज्य को मुख्यतः दो भू आकृति प्रदेशों में बांटा जा सकता है, या फिर यह भी कह सकते हैं कि गंगा नदी इस मैदान के दो भागों में बांटती है-

  1. गंगा का उत्तरी मैदान
  2. गंगा का दक्षिणी मैदान.

गंगा का उत्तरी मैदान

गंगा के उत्तर में स्थित उत्तरी बिहार का मैदान घागरा, गंडक, बूढ़ी गंडक, बागमती एवं कोसी नदियों के बहने का क्षेत्र है. नदियों ने इसे प्रदेश को अनेक दबाव में वर्गीकृत कर दिया है, जैसे-

  1. घागरा-गंडक दोआब
  2. गंडक-कोशी दोआब
  3. कोसी-महानंदा दोआब

गंगा मैदान में गंगा नदी पश्चिम से पूर्व की ओर प्रवाहित होती है. बिहार की राजधानी पटना के उत्तर में गंगा नदी  गंडक नदी में से मिलती है. गंगा नदी से बागमती और कोशी नदिया मिलती है. यह भू-भाग गंगा के उतरी के 56,980 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है.

इस भू-भाग का ढाल उत्तर से दक्षिण को मंद तथा उत्तर पश्चिम से दक्षिण-पश्चिम को अत्यंत मद होता चला गया है. इसकी ऊंचाई समुद्र तल से 66 मीटर है. मैदान के उत्तर पश्चिम भाग में शिवालिक पर्वत श्रेणी के अवशेष रूप में कुछ पहाड़ियां स्थित है, राज्य की उत्तरी सीमा के साथ साथ लगभग 60 किलोमीटर तक सोमेश्वर पर्वत श्रेणियां फैली हुई है.

शिवालिक पर्वत श्रेणियों में रामनगर दून की पहाड़ियों विस्तृत है. रामनगर दून की पहाड़ियां 32 किलोमीटर लंबी और 6 से 8 किलो मीटर चौड़ाई में विस्तृत है तथा यही हरहा कि घाटी है जो 22 किलोमीटर लंबी है. इसी घाटी के उत्तर में सोमेश्वर की 800-2800 फीट ऊंचाई वाली पहाड़ियां स्थित है.

इस मैदान की निम्नलिखित विशेषताएं हैं

  1. यह जलोढ़ पंखी क्षेत्र है, झांसी नदियां मुड़कर अपना प्रभाव बदल लेती है.
  2. गंगा के उत्तरी मैदान में दक्षिणी मैदान का सीमावर्ती भाग अपेक्षाकृत कौन सा है. इनकी संख्या पश्चिम से अधिक है.
  3. इस मैदान के पश्चिम चंपारण जिले में पहाड़ियों के समीपवर्ती भाग में नम तराई क्षेत्र है.

उपयुक्त आधारों पर गंगा के उत्तरी मैदान को चार भागों में बांटा जा सकता है-

  1. भाबर, तराई एवं उप तराई क्षेत्र
  2. भानगर या बागर भूमि
  3. खादर भूमि
  4. चौर एवं मन

भांबर तराई एवं उत्प तराई  क्षेत्र

तराई क्षेत्र शिवालिक पर्वत श्रंखला के नीचे पश्चिम से पूर्व की और एक संकीर्ण पट्टी के रूप में विस्तृत है यह एक सपाट आधार क्षेत्र है. तराई क्षेत्र से ठीक सटे दक्षिणी उप-तराई प्रदेश पाया जाता है. उत्तर प्रदेश की ऊंचाई तराई क्षेत्र से कम है. यह एक दलदली क्षेत्र है.  तराई क्षेत्र को भाबर क्षेत्र भी कहते हैं. यह सोमेश्वर पहाड़ी के तराई में 10 से 12 किलो मीटर चौड़ा कंकड़ बालू का निक्षेप है.

भांगर भूमि

भांगर भूमि के अंतर्गत प्राकृतिक बांध तथा दोआब मैदान के क्षेत्र आते हैं. यह आसपास के क्षेत्र से 7.8 मीटर ऊंचे दिखते हैं. भांगर पुराने जलोढ़ होते हैं. पुराने जलोढ़ एवं नए जलोंढ के बीच में एक मध्यवर्ती ढाल मिलता है, जो बहुत स्पष्ट दिखाई देता है.

खादर भूमि

खादर भूमि नवीन जलोढ़ का विस्तृत क्षेत्र है. इसका विस्तार गंडक नदी और कोसी नदी के बीच है. यह क्षेत्र लगभग प्रत्येक वर्ष बाढ़ से प्रभावित होता है. यह भूमिका की उपजाऊ होती है. जिन नदियों में बाढ़ प्रत्येक वर्ष आती है उन नदियों के किनारों पर खादर भूमि का मैदान विकसित होता है.

चौर एवं मन

उत्तरी गंगा मैदान का निम्न भूमि जो वर्षा के समय में पानी से भरा रहता है वह चौर कहलाती है.

नदियों से बने गोखरू झीलों के रूप में पाए जाने वाली आकृति मन कर आती है.

गंगा का दक्षिणी मैदान

गंगा नदी के दक्षिणी तट से झारखंड के छोटा नागपुर पठार तक फैला बिहार का भाग भी समतल है. परंतु कहीं कहीं बाहर स्थित पहाड़ियां इसकी एकरूपता को भंग करती है. इन में गया (266 मीटर), राजगीर (466 मीटर), खड़गपुर (510 मीटर), गिरियक और बराबर की पहाड़िया मुख्य है.

यह भू-भाग दक्षिणी बिहार के लगभग 33,670 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है. यह पश्चिम मध्य में अधिक थोड़ा तथा पूर्व में (राजमहल की पहाड़ियों के निकट) संकीर्ण हो गया है. इस भू-भाग में अनेक छोटी-छोटी पहाड़िया है, जो मैदानी बाग के कृषि क्षेत्र में बीच-बीच में स्थित है. यह मैदान राज्य को 19.3% क्षेत्र पर विस्तृत है.

इस मैदान की प्रमुख नदियां सोन, कर्मनाशा, पुनपुन और फल्गु उसकी सहायक नदियां है. मैदानी भाग में स्थान स्थान पर पहाड़ियों और टेकरिया फैली है. जिनमें गया जिले के बराबर रामशिला, प्रेतशिला व जेठियन पहाड़ियां, राजगीर और गिरियक की पहाड़ियां, बिहारशरीफ की बड़ी पहाड़ी तथा शेखुपुरा और पार्वती की टोकरिया महत्वपूर्ण है.

इस क्षेत्र की कई नदियां गंगा में नहीं मिलकर नदी के समानांतर दक्षिण से उत्तर की ओर बहती है, जिनका राज्य की सिंचाई में महत्वपूर्ण योगदान है. दक्षिण गंगा का मैदान मुख्य छोटा नागपुर के पठार (झारखंड) से गंगा में प्रवाहित होने वाली नदियों के द्वारा लाई गई मिट्टी से बना है.

दक्षिणी मैदान की ओर से ढाल दक्षिण से उत्तर की ओर है. इस मैदान का निर्माण पठारी प्रदेश से होकर बहने वाली नदियों के द्वारा लाई गई बलुई मिट्टी से हुआ है. बलुई मिट्टी होने के कारण इस में पानी अधिक सूखता है. अंतः सतह पर जल का अभाव होने पर भी भूमिगत जल अधिक मात्रा में मिलता है.

इस भाग में गंगा प्राकृतिक कागार का निर्माण करती है. ये प्राकृतिक कागार अपने आसपास की भूमि से ऊंचा रहते हैं, जिसके कारण नदियां गंगा के समानांतर की प्रवाहित होती है. इससे पिनेट प्रवाह प्रणाली का निर्माण होता है. प्राकृतिक कागार के दक्षिणी जल्ला-ढाल का निम्न क्षेत्र पाया जाता है. इसका विस्तार पटना से लखीसराय तक है. इससे बडहिया, मोकामा, फतुहा, बख्तियारपुर, बाढ़, मोर और सिघोल का टाल प्रमुख है. टाल क्षेत्र वर्षा ऋतु में जलमग्न होता है.

गंगा के दक्षिणी मैदान की चौड़ाई पश्चिम में अधिक है, किंतु पूर्व में यह धीरे-धीरे कम होती जाती है. गंगा के दक्षिणी मैदान को मुख्यतः तीन भागों में बांटा जा सकता है- सोन-गंगा दोआब, मगध का मैदान और अंग का मैदान.

दक्षिण बिहार की नदियां सदावाहिनी नहीं है. जहां दाल छेत्र में खादर के मैदान मिलते हैं. गंगा के दक्षिणी मैदान का निर्माण छोटा नागपुर के पठार से गंगा नदी की ओर प्रभावित होने वाली नदियों के द्वारा लाई गई जलोढ़ मिट्टीओं से हुआ है.

इस मैदान की प्रमुख नदियां सोन, पुनपुन, फल्गु, किउल और मान है. गंगा नदी के दक्षिणी किनारे के समांतर रेखा के कारण पुनपुन, फल्गु नदी नदिया से नहीं मिल पाती है.

दक्षिण का सीमांत  पठारी क्षेत्र

गंगा के मैदान के दक्षिणी सीमा में छोटानागपुर पठान की खादर प्राचीन चट्टानों के दृश्यांश, जिसमें निस, सिस्ट और ग्रेनाइट चट्टानों की बहुलता है, धरातल पर दिखाई देते हैं.

यह क्षेत्र तिरोहित सरिताओं वे प्रपाती ढाल से युक्त पहाड़ियों, समतल सक्रिय घाटियों एवं विषम धरातल से युक्त पठारी प्रदेश है. इसके अंतर्गत गया, मंदार, बराबर और जैठियन की पहाड़ियां, राजगीर और शेखुपुरा आदि की सुकर पीठ पहाड़ियों, बिहारशरीफ, जमालपुर, मुंगेर की पहाड़ियों तथा रोहतास और कैमूर जिले में विस्तृत कैमूर का पठार आता है.

मैदान के दक्षिणी सीमा में  नविननगर और मोराटाल से मुंगेर तक क्वार्टरजाईट की चट्टानें सुकर पीठ के रूप में विकसित है. सोन नदी के कैमूर के पठार को छोटा नागपुर के पठार से अलग करती है.

 

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