बिहार के प्रमुख पर्व-त्योहार

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बिहार के प्रमुख पर्व-त्योहार

राष्ट्रीय पर्व

प्रत्येक वर्ष 30 जनवरी को गणतंत्र दिवस एवं 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के रूप में राष्ट्रीय पर्व धूमधाम से मनाए जाते हैं.

मकर सक्रांति

बिहार में मनाए जाने वाले पर्वों में मकर सक्रांति भी एक महत्वपूर्ण पर्व है. यह धान की नई फसल का पर्व है.

पटना एवं आसपास के क्षेत्र में दिन लोग चूड़ा दही व तिलकुट विशेष तौर पर खाते हैं. उसी दिन अथवा 1 दिन बाद खिचड़ी खाने का भी रिवाज है.

सरस्वती पूजा

यह पर्व शुक्ल पंचमी (बसंत पंचमी) के दिन धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा-अर्चना बड़े धूमधाम से की जाती है. बच्चे व विद्यार्थी सरस्वती पूजा को बड़े उत्साह व हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं.

महाशिवरात्रि

फाल्गुन कृष्ण पक्ष के 14वें दिन (चतुर्दशी को) महाशिवरात्रि का पर्व पूरे देश के अन्य भागों के साथ पूरे बिहार में मनाया जाता है.

होली

होली वसंत ऋतु का महत्वपूर्ण त्यौहार है. सामान्यतया यह प्रवृत्ति और फाल्गुन पूर्णिमा के अगले दिन यानी चेत्र के पहले दिन धूमधाम से मनाया जाता है.

किंतु बिहार में भागलपुर में सहरसा जिले में कुछ स्थानों पर फगुआ (होली) फाल्गुन पूर्णिमा के दिन ही मनाया जाता है.

इस उत्सव का पौराणिक आधार हिरण्यकश्यप नामक असुर राजा और उसके ईश्वर भगत पुत्र प्रह्लाद की कथा है. यह पर्व अत्याचार पर धर्म की विजय के रूप में मनाया जाता है. होली के दिन खूब रंग गुलाल खेला जाता है. यह पर्व आपसी संबंधों को पुनर्जीवित करता है.

रामनवमी

यह त्यौहार चेत्र मास में शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है. इसे भगवान राम के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस दिन मंदिर, पवित्र स्थलों पर झंडा (महावीर ध्वज) जिस पर हनुमान जी की आकृति अंकित होती है, लगाने की भी प्रथा है.

महावीर जयंती

भगवान महावीर का जन्म दिवस प्रत्येक वर्ष चैत्र शुक्ल तेरस को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. जैन धर्म के प्रवर्तक एवं अंतिम 24वें तीर्थकार के जन्मदिवस के अवसर पर मंदिर को सजाया जाता है तथा विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है.

बुद्ध जयंती

यह त्यौहार वैशाख माह की पूर्णिमा को बड़ी श्रद्धा व धूमधाम से मनाया जाता है. इसी दिन बिहार में बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचे भगवान बुद्ध को परम ज्ञान प्राप्त हुआ था.

वट-सावित्री

यह पर्व विशेष रूप से मिथिलांचल में विवाहित (सुहागिन) महिलाओं द्वारा मनाया जाता है. प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठकृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि के दिन सुहागिन (सधवा) महिलाओं द्वारा वट वृक्ष (बरगद के पेड़) के नीचे सावित्री और ब्राह्मण की पूजा विधि पूर्वक की जाती है. इस दिन पतिव्रता स्त्रियों द्वारा वटवृक्ष के चारों और धागा बांधा जाता है तथा अपने पति के दीर्घ जीवन की कामना की जाती है.

मधुश्रावणी

श्रावण मास में नवविवाहिता द्वारा विशेष उल्लास से मनाया जाता है. इसका आरंभ नाग पंचमी (श्रावण कृष्ण पंचमी) से होता है और मधुश्रावणी (श्रावण शुक्ल तृतीया) के दिन नवविवाहिता को टेमी देने के साथ संपन्न होता है.

रक्षा बंधन

यह त्यौहार श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है. इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती है, जिसका एक प्रमुख उद्देश्य भाइयों द्वारा बहनों की रक्षा का संकल्प लेना है.

कृष्णाष्टमी

भादो महीने (भाद्रपद) के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कृष्णाष्टमी (कृष्ण जन्माष्टमी) मनाई जाती है. मान्यतानुसार इसी तिथि को अर्ध रात्रि में भगवान श्री कृष्ण ने जन्म लिया था. इस अवसर पर दिन भर उपवास करके मध्य रात्रि में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाया जाता है.

हरितालिका तीज

भाद्र शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को बिहार में महिलाएं अक्षय सुहाग की कामना करती हुई हरि तालिका यानी तीज व्रत करती हैं. इस अवसर पर वह किसी मंदिर के समीप वट वृक्ष की पूजा करती हैं.

अनंत चतुर्दशी

भाद्र शुक्ल पक्ष की चतुर्थी (14 वीं) तिथि को भगवान अनंत (विष्णु) की पूजा की जाती है. पूजा अर्चना के उपरांत भक्तजनों के बाह पर अनंत (रक्षा सूत्र) बांधा जाता है.

जीतीया

पुत्रवती महिला द्वारा अपने पुत्र के दीर्घ जीवन की कामना से यह व्रत आश्विन कृष्ण अष्टमी के दिन रखा जाता है. इस अवसर पर महिलाएं विधान के अनुसार 24 से 36 घंटे तक बिना अन जलग्रहण के उपवास रखती हैं तथा जिमुतवाहन की पूजा अर्चना करते हैं.

पितृपक्ष एवं महालया

आश्विन मास के कृष्ण पक्ष को पितृपक्ष के रूप में मनाया जाता है. 15 दिनों के इस अवधि में हिंदू लोग अपने पितरों का श्राद्ध कर्म वह तर्पण करते हैं. गया में फल्गु नदी के किनारे इस अवसर पर एक पखवारे तक देश विदेश के लोग आकर अपने-अपने पितरों को पिंड दान करते हैं आश्विन मास की अमावस्या तिथि को पितृ विसर्जन के साथ पितृपक्ष का समापन होता है उसी दिन महालया मनाया जाता है.

दशहरा

दशहरा हिंदुओं के सर्वाधिक महत्वपूर्ण पर्व में से एक है. यह पर आश्विन महीने के शुक्ल प्रतिपदा (पहली तिथि) से दशमी तिथि तक मनाया जाता है. इस दस दिवसीय आयोजन (शारदीय नवरात्र) मां दुर्गा की पूजा की जाती है तथा कुछ स्थानों पर रामलीला का आयोजन होता है.

पूजा के निमित्त राज्य भर में मां दुर्गा सहित अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाएं स्थापित की जाती है और उन पर प्रतिमाओं का विसर्जन तिथि को होता है इसे विजयादशमी कहते हैं.

विजयदशमी के दिन राजधानी पटना के गांधी मैदान में रावण वध का आयोजन किया जाता है. इसके अंतर्गत रावण कुंभकर्ण और मेघनाथ का पुतला दहन समारोह पूर्वक किया जाता है.

दीपावली

यह पर्व कार्तिक मास की अमावस्या को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है उसे भगवान राम की रावण पर विजय के बाद अयोध्या वापसी के रूप में मनाते हैं वेश्य लोग इस दिन अपने बही खाते बदलते हैं.

दीपावली के पूर्व घरों दुकानों की सफाई होती है और उन्हें सजाया जाता है. इस दिन रात्रि को दिए जलाए जाते हैं और गणेश लक्ष्मी की पूजा होती है. घरों में पकवान में मिठाई बनते हैं और बच्चे आतिशबाजी पटाखे छोड़ते हैं.

गोवर्धन पूजा

दीपावली के अगले दिन कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा (प्रथम तिथि) गोवर्धन पूजा की जाती है. प्रचलित मान्यता के अनुसार इस दिन भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठाकर गोकुल वासियों की इंद्र देवता के प्रकोप से रक्षा की थी. इस दिन राज्य में कई स्थानों पर पशु क्रीडा का भी आयोजन किया जाता है.

यमद्वितीया और चित्रगुप्त पूजा

कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि के दिन यम द्वितीया (भैया दूज या भरारी द्वितीय) का पर्व मनाया जाता है तथा गोधन के पूजा पूरे बिहार में होती है. इस अवसर पर बहन ने अपने भाइयों के दीर्घ जीवन के लिए यमराज की पूजा करती हैं. इसी दिन कायस्थ समाज के लोग द्वात पूजा अर्थात भगवान चित्रगुप्त की पूजा करते हैं.

छठ पर्व

यह बिहार का अद्वितीय एवं प्रसिद्ध पर्व है. इस दिन सूर्य भगवान की पूजा अर्चना की जाती हैं. इस पर्व में कार्तिक मास के षष्ठी तिथि को अस्त होते हुए(अस्ताचल गामी) सूर्य को तथा अगले दिन सप्तमी को प्रातः उदित होते हुए सूर्य को अर्ध्य दिया जाता है अर्घ्य किसी तालाब झील या नदी के किनारे दिया जाता है.

देवोत्थान

यह पर्व कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है. लोग इस पर्व पर विशेषत भगवान विष्णु की पूजा करते हैं. ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु 4 मास के शयन के पश्चात जलते हैं.

कार्तिक पूर्णिमा

यह पर्व पूरे बिहार में मनाया जाता है. लोग इस अवसर पर पवित्र नदियों में तालाबों में स्नान करते हैं. भगवान विष्णु की पूजा इस दिन प्राय: हर घर में होती है.

गुरु गोविंद सिंह जन्म दिवस

यह त्यौहार पौष माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को सिखों के अंतिम गुरु गोविंद सिंह जी के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है. यह सिखों का प्रमुख पर्व है. इस दिन पटना के गुरुद्वारा तख्त श्री हरमंदिर के भव्य समारोह का आयोजन होता है.

ईद

ईद मुसलमानों का विशिष्ट त्यौहार है, इसे ईद-उल-फितर के नाम से भी जाना जाता है. मुस्लिम कैलेंडर के नौवें महीने में रमजान होता है इसे रमजान का महीना भी कहते हैं.

इसी माह इस्लाम धर्म के पवित्र ग्रंथ कुरान शरीफ की रचना पूरी हुई थी. रमजान के बाद इस खुशी में चांद निकलने के दूसरे दिन ईद मनाई जाती है. ईद मुसलमानों के लिए खुशी का त्यौहार है. इस दिन लोग मस्जिद जाकर नमाज अदा करते हैं और आपस में गले मिलकर खुशी प्रकट करते हैं.

बकरीद

इस्लाम धर्म अनुयायियों द्वारा उनके वार्षिक पंचांग के अंतिम महीने में इस पवित्र पर्व को मनाया जाता है. इब्राहिम द्वारा खुदा के आदेश से अपने पुत्र इस्माइल का स्वयं बलिदान करके तथा उसके (पुत्र के) पुनर्जीवित हो जाने की खुशी में इस पर्व को सोल्लास से मनाया जाता है. इस पवित्र पर्व को ईद उल जोहा के नाम से भी जानते हैं.

मुहर्रम

अनेक मुसलमान शोक के रूप में मनाते हैं. यह पर्व पवित्र कर्बला की ऐतिहासिक लड़ाई में हजरत हसन और हुसैन के बलिदान की याद में मनाया जाता है. इस पर्व में ताजिए के साथ जुलूस निकाले जाते हैं. जिस स्थान पर विभिन्न स्थानों से निकाले गए ताजिए का मिलन होता है, वहां पर एक दिन का मेला लगता है.

सोहराय

सोहराय संथाली का सबसे पवित्र माना जाता है. 5 दिनों तक लगातार मनाया जाने वाला सोहराय आदिवासियों के बीच खुशी का पर्व माना जाता है.

पर्व के प्रथम दिन देवी को कवरी (मुर्गी) और उपजा (मुर्गा) की बलि दी जाती हैं. पर्व के दूसरे दिन सुबह में पशुधन की पूजा की जाती है तथा घर के अंदर स्वर्गवासी पूर्वजों के नाम की पूजा होती है. तीसरे दिन गाय भैंस का जगाव कर लक्ष्मी की पूजा की जाती हैं. चौथे दिन गाय भैंस की पूजा सिंदूर तोप और धान से की जाती है. 5वें दिन पर्व का समापन होता है, जिसकी शुरुआत मांझीथान पर आयोजित रिंजो के गीतों से होती है. सोहराय एको बड़ी दीदी का पर्व कहा जाता है.

सरहुल

सरहुल उरांव जनजाति का सबसे महत्वपूर्ण पर्व है. खेती आरंभ करने के पूर्व यह त्यौहार मनाया जाता है. इसमें सरना अर्थात सखुए के कुंज में पूजा की जाती हैं. सखे के कुंज को उरांव अत्यधिक पवित्र मानते हैं.- पुरोहित इसे पाहुन कहते हैं और इसकी पूजा करते हैं. यह पर्व इतना महत्वपूर्ण है कि दूर दूर रहने वाले आदिवासी भी सरहुल के दिन अपने घर आते हैं. लड़कियां ससुराल में मायके आ जाती है.

करमा

भादों महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी को करमा पर्व मनाया जाता है. यह भी उरावों का एक महत्वपूर्ण पर्व है. गैर आदिवासी हिंदू भी इस पर्व को मनाते हैं, लेकिन आदिवासियों में अब इसका अपेक्षाकृत अधिक महत्व है.

इस दिन अखरा में करमा वृक्ष की एक डाली गाड़ी जाती है. अखरा नाच के मैदान को कहते हैं. अखरा में इस डाली की पूजा की जाती है. पूजा के पूर्व 24 घंटे का उपवास किया जाता है. अकरा में रात भर नाचना और गाना चलता है. गीत में कर्मा-धर्मा की कहानी कही जाती है

इस्टर

यह ईसाईयों का महत्वपूर्ण त्यौहार है. गुड फ्राइडे के बाद आने वाला रविवार को ईस्टर का त्यौहार होता है. मान्यता है कि रविवार के दिन क्राइस्ट (इशा) फिर से जीवित हो उठे थे. यही कारण है कि इसाई हर रविवार को चर्च जाकर प्रार्थना करते हैं.

क्रिसमस

क्रिसमस ईसाइयों का सबसे बड़ा एवं खुशी का पर्व है. यह पर्व प्रत्येक साल 25 दिसंबर को मनाया जाता है. इसी तिथि को प्रभु ईसा मसीह का जन्म हुआ था. इस दिन प्रात काल सभी ईसाई चर्च में जाकर सामूहिक प्रार्थना में भाग लेते हैं, नए कपड़े पहनते है.

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