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बिहार में गीत संगीत

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बिहार में गीत संगीत

भारत में संगीत की परंपरा दो तरह की विकसित हुई है- प्रथम को शास्त्रीय संगीत एवं दूसरे को लोक संगीत कहा जाता है. बिहार में उक्त दोनों प्रकार के संगीत प्रचलीत है. शास्त्रीय संगीत में ताल, लय, मात्रा, राग रागिनी आदि से संबंधित जटिल नियमों का पालन करना होता है. शास्त्रीय संगीत दो प्रकार का होता है- कांट संगीत और वाद्य संगीत.

लोकगीतों को सामूहिक अथवा व्यक्तिगत रूप से बिना वाद्य यंत्रों की सहायता के भी गाया जा सकता है. बिहार में शास्त्रीय संगीत की एक सुदृढ़ परंपरा रही है. द्रुपद, धमार, खयाल, और ठुमरी राज्य की सर्वाधिक प्रचलित शास्त्रीय संगीत है. लोकगीतों को सामूहिक अथवा व्यक्तिगत रूप से विना वाद्य यंत्रों की सहायता के भी जाया जा सकता है.

राज्य में लोकगीतों की व्यापक परंपरा, स्थानीय लोकगीतों में चैती, कजरी, होली आदि प्रचलित है. इन गीतों को लोग छोटे-छोटे समूहों में झूम झूम कर गाते हैं. चेती मूल रूप से भोजपुरी क्षेत्र की गायन शैली है. होली के अवसर पर विशेष प्रकार की लय में गीत गाए जाते हैं, जिन्हें फाग कहा जाता है.

बिहारी लोकगीतों में बारहमासा का एक अलग स्थान है. बारहमासा में वर्ष के प्रत्येक महीने की विशेषता का वर्णन है. जब आकाश में काले काले बादल घिरे रहते हैं, पूइया बयार बहने लगती है, और हल्की हल्की फुहार भी पड़ने लगती है तब किशोरिया व नव वधु झूले पर झूलती हुई बारहमासा और कजरी गाती है.

मिथिला में विशेष तौर पर विद्यापति के गीत गाने की परंपरा है. इन गीतों को नचारी भी कहते हैं और इनका स्वरूप अर्द्धशास्त्रीय होता है. नचारी में भगवान शिव की स्तुति की जाती है.

लोकगीतों का घनिष्ठ संबंध जनजीवन से होता है. विभिन्न अवसरों पर अलग-अलग लोक गीत गाए जाते हैं, जैसे – शिशुओं के जन्म के अवसर पर महिलाएं सोहर गाती हैं. किसी नवजात शिशु के जन्म पर पवारिया खैलोना और बधावा गाते हुए नाचते हैं. विवाह उत्सव में झूमर गाया जाता है. जबकि बेटी विदाई के अवसर पर समदाउन गाया जाता है.

पुरुषों के बीच आल्हा, बिरहा और लोरीकायन गाने और सुनने की पुरानी परंपरा रही है. चरवाहे बिरहा गाते हुए अपने अपने मवेशियों को चराते हैं, जबकि गांव में, हाट-बाजारों में, रेलवे स्टेशनों पर आल्हा और लोरीकायन सुनने और सुनाने की परंपरा है. आल्हा वीर रस प्रधान लोक काव्य है.

स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान अनेक ऐसे लोकगीतों का प्रणयन बिहार में हुआ, जो देश भक्ति, की आवाज को बुलंद करते थे और इनसे स्वतंत्रता सेनानियों का जनसामान्य को काफी प्रेरणा मिलती थी. उन दिनों राजेंद्र कॉलेज, छपरा के प्रिंसिपल मनोरंजन प्रसाद सिन्हा द्वारा रचित किरण दिया गीत इतना लोकप्रिय हुआ कि इस गीत को गाने वालों को तुरंत कैद कर लिया जाता था.

श्री रघुवीर नारायण का देश प्रेम से भरा बटोहिया गीत भोजपुरी क्षेत्र के घर घर में गाया जाता है इस गीत में मातृभूमि की वंदना की गई है. पंडित श्याम दास मिश्र रचित गीत ये है मेरा बिहार, वर्तमान में काफी लोकप्रिय है.

बिहार के प्रमुख लोक गीत

ऋतु गीत

बिहार में प्रत्येक ऋतु में अलग-अलग गीत गाए जाते हैं जिन्हें ऋतु गीत कहा जाता. विभिन्न ऋतु गीतों के नाम है- कजरी, चैता, बारहमासा, हीडोल आदि.

संस्कार गीत

बिहार में विवाह, जनेऊ, मुंडन तथा बालक बालिकाओं के जन्मोत्सव आदि के अवसर पर विभिन्न संस्कार गीत गाए जाते हैं. यह संस्कार गीत है- सोहर, समदाउन, गोना, बेटी विदाई, बंधावा आदि.

पेशा गीत

बिहार में विभिन्न पेशो के लोग अपना कार्य करते समय मस्ती में जो गीत गाते हैं उसे ही पेशा गीत कहा जाता है. बिहार में विभिन्न पेशा गीत है-

  • गेहूं पिसते समय जाता-पिसाईं या जातसारी
  • छत की ढलाई करते समय थपाई 
  • छप्पर छाते समय छवाई .

इनके अतिरिक्त रोपनी, सोनी आदि कार्य को करते समय भी गीत गाए जाते हैं.

गाथा गीत

बिहार राज्य के अलग-अलग क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार के गाथा गीत गाए जाते हैं जिनमें प्रमुख है- लोरिकायन, सलहेस, बीजमेल, दिना भदरी आदि.

लोरीकायन

लोरीकायन वीर रस का लोकगीत है. इस गीत के माध्यम से लोरी के जीवन प्रसंगों का वर्णन किया जाता है. इस लोकगीत को मुख्य रूप से अहिर लोग आते हैं, क्योंकि इससे गाथा का नायक अहिर था. इस गाथा को मिथिला, भोजपुरी व मगही क्षेत्रों के लोग अपने-अपने ढंग से कहते हैं.

सलहेस

सलहेस ,दोना, नामक एक मालिन का प्रेमी था. किसी शत्रु ने ईर्ष्या व्यस्तता के कारण सलहेश पर चोरी का झूठा आरोप लगाकर उसे बंदी बनवा दिया. दोना मालिन ने जिस ढंग से अपने प्रेमी सलहेश को मुक्त कराया, उसी प्रकरण को इसे लोकगीत के माध्यम से सुनाया और प्रस्तुत किया जाता है.

विजमैल

विजमैल में लोकगीत के अंतर्गत से गीतों के माध्यम से राजा विजयमल की वीरता का वर्णन किया जाता है.

दीना-भदरी

दिना-भदरी लोकगीत के माध्यम से दीना और भदरी नामक दो भाइयों की वीरता की मार्मिककथा के साथ गाया जाता है. इनके अतिरिक्त राज्य में अन्य अनेक गाथा गीत भी गाए जाते हैं, जैसे- आल्हा, मैनावती, गोपीचंद, बिहुला, राजा हरिश्चंद्र, कुंवर बृजभान, लाल महाराज, कालिदास, छतीर चौहान, राजा ढोलन सिंह आदि की जीवन गाथा पर आधारित गाथा गीत है.

पर्वगीत

बिहार में भिन्न-भिन्न पर्व त्योहारों के अवसर पर भिन्न-भिन्न प्रकार के मांगलिक गीत गाए जाते हैं, जिसे पर्वगीत कहा जाता है. उदाहरण के तौर पर तीज, छठ, गोधन, रामनवमी, जन्माष्टमी, होली, दीपावली के अवसर पर अनेक प्रकार के गीत गाए जाते हैं. इनके अधिक बिहार में सांझ प्राती, झूमर, बिरहा, प्रभाती, निर्गुण गीत भी गाए जाते हैं.

बिहार में प्रचलित राग

प्राचीन काल से ही बिहार में विभिन्न रागों का प्रचलन रहा है, जो विभिन्न संस्कारों के समय गाए जाते हैं. बिहार में संगीत के क्षेत्र में नचारी, चैता, पूर्वी तथा फाग रागों को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है.

नचारी

मिथिला के प्रख्यात कवि विद्यापति नचारी राग के गीतों का सृजन किया है. नचारी में भगवान शिव की स्तुति की जाती है.

लगनी

लगनी राग के गीतों की रचना भी महाकवि विद्यापति ने ही की थी. लगनी राग उत्तर बिहार के दरभंगा, मधु, समस्तीपुर, सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, पूर्णिया आदि जिलों में विवाह के अवसर पर गाए जाते हैं.

फाग

फाग राग के गीतों की रचना कथित तौर पर नवल किशोर सिंह ने की जो फगुआ या होली गीत के रूप में प्रसिद्ध है. नवल किशोर सिंह बेतिया राज्य के जमींदार थे.

पूरबी

पूरबी राग के गीतों का जन्म सारण जिला में हुआ. इन गीतों के माध्यम से वीरहिनियाँ, अपनी दयनीय दशा का वर्णन करती है और गीतों के द्वारा पति वियोग का वर्णन करती है.

बिहार के प्रमुख लोक गायक/गायिका

बिहार के प्रमुख लोक गायको/गायिकाओं में प्रमुख नाम है- विंध्यवासिनी देवी, कुमुद अखौरी, शारदा सिन्हा, भरत सिंह भारती, मोतीलाल मंजुल, कमला देवी, ग्रेस कुजूर, ब्रज किशोर दुबे,अजीत कुमार अकेला, योगेंद्र सिंह अलबेला, उर्वशी, रेणुका, लतिका झा, माया रानी दास, गजेंद्र नारायण सिंगर गजेंद्र महाराज पंडित राम कैलाश यादव (भिखारी ठाकुर पुरस्कार से सम्मानित) आदि.

बिहार में लोक नाट्य

बिहार के लोग जीवन में लोकनाट्य का अपना एक विशेष महत्व है. इन लोकनाट्य को प्रदर्शित करने के लिए सुसजीत रंगमंच, पात्रों का मेकअप है तथा वेशभूषा की आवश्यकता नहीं होती है.

बिहार के प्रसिद्ध लोक नाट्य

विदेशिया

विदेशिया भोजपुर क्षेत्र का अत्यंत लोकप्रिय लोक नाट्य है. इस लोक नाट्य में लौंडा-नाच के साथ-साथ आल्हा, बारहमासा, पूरबी, नटवा, ओड़िया आदि का योग होता है. इस नाटक का आरंभ मंगला कारण से होता है तथा महिला पात्रों की भूमिका पुरुष कलाकारों द्वारा निभाई जाती है.

जट-जटिन

जट जटिन बिहार का एक प्रचलित लोक नाट्य है. यह लोकनाट्य प्रतिवर्ष सावन से कार्तिक माह की पूर्णिमा के आसपास अविवाहित लड़कियों द्वारा अभिनीत होता है. इस लोक नाटक के माध्यम से जट-जटनी के वैवाहिक जीवन का प्रदर्शन किया जाता है.

डोमकच

डोमकच बिहार का एक घरेलू एवं निजी लोकनाट्य है. यह घर आंगन में ही जाने के बाद व अन्य विशेष अवसरों पर विवाहित महिलाओं द्वारा प्रस्तुत किया जाता है. इस लोक नाट्य का सार्वजनिक प्रदर्शन नहीं किया जाता है, क्योंकि इसके अंतर्गत हास परिहास, अश्लील हवा भाव तथा संवाद को प्रदर्शित किया जाता है.

सामा-चकेवा

सामा-चकेवा बिहार में प्रति वर्ष कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की सप्तमी से पूर्णमासी तक आयोजित किया जाता है. यह भाई बहन से संबंध लोक नाट्य व पर्व है. इस लोक नाट्य के अंतर्गत पात्र तो मिट्टी द्वारा निर्मित सामा चकेवा का बनाया जाता है, किंतु अभिनय बालिकाओं द्वारा किया जाता है. इसके अंतर्गत सामूहिक गीतों के माध्यम से प्रश्नोत्तर शैली में विषय वस्तु को प्रस्तुत किया जाता है.

किरतनिया

किरतनिया बिहार का एक भक्तिपूर्ण लोकनाट्य है. इस लोक नाट्य के अंतर्गत भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं का वर्णन भक्ति गीतों के माध्यम से किया जाता है.

भकुली बंका

इस लोक नाटक के अंतर्गत जट जटनी नृत्य किया जाता है. यह प्रतिवर्ष कार्तिक माह तक आयोजित किया जाता है.

बिहार के प्रमुख लोक नृत्य

कठघोड़ाबा नृत्य

इस नृत्य में लकड़ी तथा बांस की खपचियों द्वारा निर्मित सूसजित घोड़े को नर्तक अपने कमर में बांध लेता है तथा आकर्षक वेशभूषा बनाकर नृत्य करता है. देहाती क्षेत्रों में यह नृत्य आज भी लोकप्रिय हैं. यह बिहार के अलावा उत्तर प्रदेश के पूर्वी भागों में भी प्रचलित है. इस नृत्य में लोक संस्कृति का दर्शन होता है.

जोगिड़ा नृत्य

जोगड़ा नृत्य होली के अवसर पर ग्रामीणों द्वारा सामूहिक रुप से किया जाता है. इसमें एक दूसरे के रंग अबीर लगाते हुए सभी लोग जोगीड़ा गाते और नृत्य करते हैं. इस नृत्य में मौज मस्ती की प्रधानता होती है. यह नृत्य बिहार में काफी प्रचलित है.

लौंडा नृत्य

यह नृत्य जन्म आदि के अवसर पर पुरुषों अथवा किन्नरों द्वारा गाया जाता है. इस नृत्य का सर्वाधिक प्रचलन विवाह के अवसर पर तथा विशेषकर बरातों में है.

पंवाडिया नृत्य

यह नृत्य जन्म आदि के अवसर पर पुरुष अथवा किन्नरों द्वारा किया जाता है. इस नृत्य में पुरुष अंदर तक घाघरा चोली पहन कर ढोल मजीरा बजाते हैं और लोकगीत गाते हैं तथा नृत्य करते हैं.

धोबिया नृत्य

धोबिया नृत्य बिहार के भोजपुर क्षेत्र के धोबी समाज में प्रचलित है. इस नृत्य को मुख्यतः विवाह व अन्य मांगलिक अवसरों पर सामूहिक रूप से प्रस्तुत किया जाता है. इस नृत्य को प्रस्तुत करते हुए नर्तक श्रृंगार रस के गीत भी गाते हैं.

करिया झूमर नृत्य

करिया झूमर महिला प्रधान लोक नृत्य है, जो मिथिला क्षेत्र में काफी प्रचलित है. इस नृत्य में लड़कियां अपनी सहेलियों के साथ हाथ में हाथ डालकर घूमती हुई गाती है और नृत्य करती है.

झरनी नृत्य

मुहर्रम के अवसर पर नर्तको अथवा ताजिया के साथ चलने वाले हसन हुसैन के जगीयों द्वारा झरनी नृत्य किया जाता है. इस नृत्य में नर्तक शोक गीत गाते हैं और अपने अभिनय द्वारा शोकाभिव्यक्ति भी करते हैं.

विद्यापति नृत्य

विद्यापति नृत्य में मिथिला के महान कवि विद्यापति के पदों को गाया जाता है एवं नृत्य किया जाता है. यह एक सामूहिक नृत्य है, जो बिहार के पूर्णिया जिले तथा आस-पास के क्षेत्रों में विशेष प्रचलित है.

खोलडीन नृत्य

खोलडीन नृत्य वेश्याओं अथवा व्यवसायिक महिलाओं द्वारा शुभ अवसरों पर आमंत्रित अतिथियों के मनोरंजन हेतु प्रस्तुत किया जाता है. खोलडीन नृत्य को बिहार में सामंतवादी व्यवस्था की देन माना जाता है.

झिझिया नृत्य

झिझिया नृत्य राजा चित्रसेन एवं उनके रानी के प्रेम प्रसंगों पर आधारित है. यह नृत्य सिर्फ महिलाओं के द्वारा किया जाता है. इस नृत्य में ग्रामीण महिलाएं अपनी सखी सहेलियों के साथ एक घेरा बना लेती है. घेरा के बीच में एक महिला जो मुख्य नर्तकी की भूमिका निभाती है, वह सिर पर घड़ा लेकर नृत्य करती है.

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