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बिहार के वन्यजीव अभयारण्य
बिहार के वनों में, शेर, हाथी, लंगूर, हिरण, तेंदुआ, नीलगाय और सांभर जैसे वन्य जीव पाए जाते हैं. यह प्रदेश प्राकृतिक दृष्टि से बेहद समृद्ध है. यहां कई उद्यान और अभयारण्य में भी है.
भीम बांध वन्य जीव अभयारण्य
मुंगेर जिले में स्थित इस अभयारण्य की स्थापना सन 1976 में की गई थी. इस अभयारण्य में तेंदुआ, भालू, संभर, जंगली सूअर, भेड़िया, बंदर, लंगूर, नीलगाय, मगरमच्छ, मोर, सांप जैसे जीव पाए जाते है. यह 631.99 वर्ग किलोमीटर है.
गौतम बुद्ध वन्य जीव अभयारण्य
अभयारण्य की स्थापना सन 1976 में गया में की गई थी. यह 25.83 वर्ग क्षेत्र में फैला है. इसमें चीता, सांभर, तेंदुआ और चीतल पाए जाते है.
विक्रमशिला गंगा डॉल्फिन अभयारण्य
इस अभयारण्य को 1990 में बिहार सरकार की ओर से डॉल्फिन अभयारण्य के रूप में मान्यता प्रदान की गई थी. भागलपुर जिले में स्थित है अभयारण्य 50 किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है तथा इसमें बड़ी संख्या में गंगेटिक डॉल्फिन निवास करती है.
वाल्मीकि नगर वन्यजीव अभयारण्य
पश्चिम चंपारण के वाल्मीकि नगर में स्थित ए वाल्मीकि राष्ट्रीय उद्यान नामक अभयारण्य को दूसरी बाघ परियोजना के नाम से जाना जाता है. 840 वर्ग किलोमीटर में फैले इस अभयारण्य में 2008 में हुई गणना के मुताबिक बाघों की संख्या केवल 7 है. 2002 में इस राज्य में कुल 54 बाघ थे, जिनमें 33 इसी राष्ट्रीय उद्यान में थे. 2005 में यहां 35 बाघ होने की सूचना थी.
संजय गांधी जैविक उद्यान
गैंडा प्रजनन की दृष्टि से यह उद्यान देश में प्रथम स्थान रखता है. यह पटना में स्थित है और इसमें विभिन्न प्रकार के पशु पक्षियों तथा वनस्पतियों को सुरक्षित करके रखा गया है. इसमें 11 कमरों का एक सांप घर भी है, जो आकर्षण का केंद्र माना जाता है.
प्रमाण डाल्फिन अभयारण्य
अररिया में स्थिति इसे अभयारण्य की खोज सन 1995 में सुदन शाहय नामक व्यक्ति ने की थी. परमान नदी के ऊपरी भाग में 15 डाल्फिन मछलियां पाई जाती है.
बिहार के पक्षी विहार
कांवर पक्षी विहार
बेगूसराय में कांवर झील में स्थित इस विहार को सन 1989 में पक्षी विहार के रूप में मान्यता मिली थी. 63.11 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले पक्षी विहार में रूस, मुंगेली या और साइबेरिया से हजारों किलोमीटर की दूरी पर तय कर लाखों की संख्या में पक्षी पहुंचते हैं. कांवर पक्षी विहार की गणना विश्व में वेटलैंड के रूप में होती है. यहां कुछ दुर्लभ किस्म के पक्षी चीन हिमालय के उपरी भागों और श्रीलंका से भी आते हैं.
नागी पक्षी विहार
जमुई जिले में स्थित इस पक्षी विहार को 1987 में पक्षी विहार के रूप में मान्यता मिली थी. यह 7.91 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है.
बक्सर पक्षी विहार
25 वर्ग किलोमीटर में फैले इस पक्षी विहार में अक्टूबर महीने में लालशर नामक पक्षी कश्मीर से यहां प्रवास पर आते हैं और मार्च में पुन: कश्मीर की वादियों में लौट जाते हैं. यह पक्षी विहार बक्सर जिले में स्थित है.
गोगाबिल पक्षी विहार
217.99 एकड़ में फैला यह पक्षी विहार कटिहार जिले में है. 1990 ईसवी में इसे पक्षी विहार के रूप में मान्यता मिली. इसमें धनुष आकार झील है, जिसका नाम गोगा बिल है.
कुशेश्वर पक्षी विहार
दरभंगा जिला में कुशेश्वर स्थान के पास 29.23 वर्ग किमी पक्षी विहार उत्तर भारत का सबसे बड़ा पक्षी विहार माना जाता है. यहां साइबेरिया पक्षी अक्टूबर के महीने में आते हैं.
नक्टी पक्षी विहार
जमुई जिले में स्थापित इस पक्षी विहार का क्षेत्रफल 3.32 वर्ग किलोमीटर है. एक पक्षी विहार के रूप में मान्यता प्राप्त मिली थी.
बिहार राज्य की वन नीति
राष्ट्रीय वन नीति के अनुरूप ही बिहार राज्य वन नीति वन क्षेत्रों के विस्तार पर बल देती है. इसी नीति का मुख्य उद्देश्य राज्य में वन क्षेत्र को बढ़ाकर 33% करना है. राज्य के विभाजन के बाद अधिकतर वन क्षेत्र झारखंड राज्य में चला गया.
राज्य में अब वन क्षेत्र का प्रतिशत घटकर केवल 6.65% ही रह गया है. ऐसी स्थिति में यह आवश्यक हो गया है कि राज्य में वन क्षेत्र के प्रतिशत को बढ़ाने के लिए ठोस उपाय किए जाएं. एक तिहाई भू भाग को वन क्षेत्र के अंतर्गत लाने के लिए वन नीति में दोहरी व्यहू रचना की व्यवस्था है.
सामाजिक वानिकी
सामाजिक वानिकी का उद्देश्य वनों का विस्तार करना है, ताकि पर्यावरणीय संतुलन बना रहे. इसके अलावा इसका उद्देश्य जलवान के लिए लकड़ी की आपूर्ति करना भी है.
सामाजिक वानिकी के कार्यक्रम में तीन मुख्य उपाय शामिल है-
- उसर भूमि पर मिश्रित वृक्षारोपण
- जिन क्षेत्रों में वनों का ह्रास हुआ है वहां पुन: वन लगाना
- आश्रय पट्टी का विकास.
सामाजिक वानिकी के साथ कृषि वानिकी के कार्यक्रम को भी बढ़ावा दिया जा रहा है.