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बिहार में भूमि संसाधन एवं कृषि संसाधन
बिहार आर्थिक सर्वेक्षण 2015 से 2016 के अनुसार, वर्ष 2012 से 2013 में बिहार की कुल कृषि योग्य भूमि तंत्र दशमलव 77.78 लाख हेक्टेयर थी, जिसमें निवल बुवाई क्षेत्र 5402.39 हजार हेक्टेयर है. यह राज्य देश के कुल 8 से 10% तक खदान उत्पन्न करता है.
बिहार में कुल क्षेत्रफल के केवल 6.65% क्षेत्र में वनों का विस्तार है तथा 80% से अधिक लोग कृषि क्षेत्र से जुड़े हुए हैं. बिहार में औसत जोतों का आकार 0.4 हेक्टेयर से कम है. बिहार आर्थिक सर्वेक्षण 2015 से 2016 के अनुसार बिहार में फसल सघनता 2010 से 2011 के 1.370 की तुलना में 2012 से 2013 में 1.44 हो गई है.
बिहार में भूमि उपयोग का पैटर्न (2012 से 2013)
भूमि उपयोग | क्षेत्रफल | बिहार के कुल क्षेत्र का प्रतिशत है | भूमि उपयोग | क्षेत्रफल | बिहार के कुल क्षेत्रफल का प्रतिशत |
निवल बुवाई क्षेत्र | 54,02.39 | 57.7 | बागवानी भूमि | 246 .34 | 2.6 |
वर्तमान परती भूमि | 766.7 | 8.2 | अन्य प्रति (वर्तमान प्रति भूमि को छोड़ कर) | 121.78 | 1.3 |
कृषि उसर भूमि | 45.02 | 0.5 | गैर कृषि कार्य में लगी भूमि | 1708.37 | 18. 3 |
वन | 621.64 | 6.6 | बंजर एवं कृषि भूमि | 431.72 | 4.6 |
स्थायी चारागाह |
15.6 |
0.2 |
बिहार में जैविक कृषि
बिहार में जैविक कृषि प्रगति पर है. बिहार ब्रांड केंचुए की मांग देशभर में जोर पकड़ने लगी है. वर्मी कंपोस्ट के व्यवसाई के उत्पादन पर अनुदान देने वाला बिहार देश का पहला राज्य है. बिहार में बेगूसराय को वर्मी कंपोस्ट का जनक माना जाता है, वर्ष 2002 में कृषि वैज्ञानिक डॉ आर के सोनी की पहल पर वर्मी कंपोस्ट की पहली इकाई बेगूसराय जिले के खोदाबंदपुर में लगी थी.
वर्ष 2006 में जब या सरकार ने राज्य में वर्मी कंपोस्ट प्रोत्साहन योजना शुरू करके इसे बढ़ावा देना आरंभ किया तो समिता पूर्व जिला का कोटिया राज्य का पहला जैविक ग्राम बन गया. राज्य में जैविक ग्रामों की संख्या 38 है.
बिहार के कृषि प्रदेश
कृषि प्रदेश | प्रमुख फसल | भौगोलिक विशेषताएं |
उत्तर पूर्वी मैदान | चावल एवं जुट | बाढ़ का मैदान और कले मिट्टी, पर्याप्त उर्वरता पर्याप्त वायुमंडलीय आर्द्रता, 125 मीटर से अधिक |
उत्तर पश्चिमी मैदान | चावल गन्ना | वर्षा 125 सेंटीमीटर से कम, लेकिन गंडक कमांड एवं भू जल से सिंचाई, पुरानी जलोढ़ के मैदान. मिट्टी में अधिक नमी रखने की क्षमता और मिट्टी में चुनने का अधिकार से. |
उत्तर मध्यवर्ती मैदान | चावल, मक्का, गेहूं | गंडक से लेकर कोसी के बीच का क्षेत्र, बाढ़ का मैदान, हल्के एवं कले प्रधान मिट्टी, अनुकूल वर्षा, नहर, नलकूपों द्वारा क्षेत्र में रवि फसलों की भी कृषि. |
दक्षिणी पश्चिमी मैदान | चावल, गन्ना, गेहूं | खड़कपुर पहाड़ी के पश्चिम स्थित मैदानी क्षेत्र और सिंचित क्षेत्र ( सोन कमांड क्षेत्र) में चावल, गन्ना एवं गेहूं की प्रधानता. |
दक्षिणी पूर्वी मैदान | चावल, मक्का, गेहूं, गन्ना | वर्षा 125 सेंटीमीटर से अधिक, सिंचाई के अभाव में सूखे की अधिकता. |
बिहार की कृषि एवं प्रमुख फसलें
बिहार एवं कृषि प्रधान राज्य है या कृषि योग्य भूमि 80% से अधिक है, शुद्ध बोया गया क्षेत्र 57 प्रतिशत से अधिक है. राज्य की 86% जनसंख्या कृषि कार्य में लगी है.
कृषि की प्रधानता सबसे अधिक गंगा के उत्तरी मैदानों में देखी जाती है जहां 65% से 80% भू-भाग पर कृषि कार्य किया जाता है. बिहार में चावल प्रधान भोजन है, इसलिए धान की खेती राज्य के सभी जिलों में होती है, जबकि राज्य में उत्पादन की दृष्टि से चावल के बाद दूसरी फसल गेहूं है.
गेहूं
गेहूं बिहार की प्रमुख रबी फसल है जो नवंबर दिसंबर में बोई और मार्च-अप्रैल में काटी जाती है. इसकी खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी उत्तम रहती है.
गेहूं के उत्पादन में बिहार का देश में छठा स्थान है. राज्य में लगभग 26.5 लाख हेक्टेयर पर गेहूं की खेती होती है. बिहार आर्थिक सर्वेक्षण 2015 से 2016 के अनुसार गेहूं उत्पादन में जहानाबाद, पटना, गया, रोहतास, कैमूर, सीवान आदि अग्रणी जिले हैं.
धान/चावल
बिहार में लोगों का मुख्य भोजन चावल है, जो धान की फसल से प्राप्त होता है. धान ऊँचे तापमान तापमान, उर्वर मिट्टी और 125 सेंटीमीटर से अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में उगाया जाता है. पश्चिम में बूढ़ी गंडक और पूर्वी में कोसी नदी के मध्य विस्तृत उतरी मैदान धान की कृषि का आदर्श क्षेत्र माना जाता है. यहां 54 लाख हेक्टेयर भूमि में धान की खेती होती है.
जलवायु की व्यवस्थाओं के फलस्वरूप बिहार में ग्रीष्मकालीन, शरद कालीन और शीतकालीन धान की फसलें उगाई जाती है. बिहार में इन्हें अगहनी, गरमा एवं भदई फसलों के रूप में जाना जाता है. बिहार में अगहनी धान की खेती सबसे अधिक भूमि पर होती है. बिहार आर्थिक सर्वेक्षण 2015 से 2016 के अनुसार, चावल उत्पादन में अग्रणी जिले हैं- अरवल, रोहतास, औरंगाबाद, पश्चिम चंपारण आदि.
जौ
जौ भारत की प्राचीनतम कृषि उपज है. बिहार में जो की खेती अत्यंत प्राचीन काल से की जा रही है. जो की खेती कम वर्षा और उष्ण जलवायु में होती है.
यह रबी की फसल है जो अक्टूबर में बोई जाती है. इसके उत्पादन में पूर्वी चंपारण एवं पश्चिमी चंपारण अग्रणी है. इसके अतिरिक्त गोपालगंज, सिवान, वैशाली, मुंगेर, मुजफ्फरपुर, गया तथा रोहतास में भी जौ कि खेती होती है.
मक्का
धान और गेहूं के बाद मक्का बिहार का तीसरी प्रमुख फसल है. यह राज्य के 8% से भी अधिक पाया जाता है. यह आर्द्र जलवायु में पैदा होने वाली फसल है. इसके लिए भारी दोमट मिट्टी उपयुक्त है. मक्का खरीफ की फसल है जो जुलाई महीने में बोई जाती है और सितंबर -अक्टूबर में काट ली जाती है.
बिहार में मक्का कटिहार, सारण, गोपालगंज, चंपारण, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, बेगूसराय, खगड़िया, सहरसा ,मुंगेर तथा भागलपुर में प्रमुख रूप से पाया जाता है. बेगूसराय को बिहार में मक्का का घर कहा जाता है. मक्का उत्पादकता और उत्पादन की दृष्टि से वर्ष 2014 से 2015 में कटिहार, मधेपुरा, खगड़िया और सहरसा जिले में अग्रणी है.
मडुआ (रागी)
मोटे अनाजों में यह काफी महत्वपूर्ण है. यह कम समय में तैयार होने वाली फसल है. इसकी बुआई अप्रैल-मई में की जाती है एवं कटाई जून जुलाई में होती है. देश में बिहार मडुआ का सबसे अधिक उत्पादक करता है. बिहार के दरभंगा जिले में मडवा सर्वाधिक उत्पादित होता है. इसकी खेती मुख्य दरभंगा, सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, समस्तीपुर वैशाली में होती है.
ज्वार-बाजरा
ज्वार एवं बाजरा निर्धनों के लिए खाद्यान तथा पशुओं के लिए हरे चारे के रूप में प्रयोग किया जाता है. यह मई के प्रारंभ में बोई जाती है और अगस्त में काट ली जाती है.
इसकी खेती साधारण उपजाऊ मिट्टी एवं कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी की जा सकती है. इसकी खेती मई के आरंभ में की जाती है. बिहार में सर्वाधिक ज्वार शाहाबाद में होती है. ग्वार का उत्पादन होता जिला में एवं बाजरा का उत्पादन मुख्यत: रोहतास, चंपारण, पटना, गया और मुंगेर जिले में होता है.
दलहनी फसलें
दाल भोजन का मुख्य अवयव है. इस फसल समूह में चना, अरहर, खेसारी, मूंग, उड़द, मटर आदि आते हैं. बिहार में लगभग 12 से 13 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में दलहन की खेती होती है.
इन फसलों में अधिकांश रबी व खरीफ की फसलों के साथ सम्मिलित कर मिश्रित फसल के रूप में उत्पादित की जाती है. वर्ष 2014-15 में दलहनों के उत्पादन की दृष्टि से पटना, औरंगाबाद और नालदा, जबकि उत्पादकता की दृष्टि से कैमूर, पटना और दरभंगा अग्रणी जिले रहे हैं.
अरहर
अरहर को खरीफ की फसल के साथ उगाया जाता है और रबी की फसल के साथ काटा लिया जाता है. अरहर के पौधे कम उपजाऊ मिट्टी में अच्छी फसल देते हैं. इसी कारण बिहार के किसान सीमांत भूमि या बांध नदी के निकट की ऊंची जमीन पर उस की बुवाई करते हैं. इसकी खेती के लिए सिचाई और उर्वरक की आवश्यकता नहीं होती है.
बिहार में इसकी खेती लगभग 83,000 हेक्टेयर भूमि पर होती है. इसकी खेती सारण, सिवान, गोपालगंज, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, बेगूसराय, मुंगेर, भोजपुर एवं रोहताश आदि जिलों में विशेष रूप से की जाती है.
चना
चना बिहार में गेहूं के बाद दूसरा प्रमुख रबी फसल है. चने का उपयोग दाल के अतिरिक्त सतू, बेसन आदि कई अन्य रूपों में भी किया जाता है. चने की फसल के लिए मटियार दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है. बालूयुक्त चिकनी मिट्टी में भी इसका उत्पादन अच्छा होता है. बिहार में प्रतिवर्ष 1.4 से 2 हेक्टेयर भूमि में इसकी उपज होती है. राज्य में चना को मिश्रित फसल के रूप में गेहूं, जौ, तीसी एवं सरसों के साथ बोया जाता है.
खेसारी
खेसारी (खदसारी) एक निम्न कोटि का दलहन है. यह बिहार के दलहन उत्पादक क्षेत्र की दृष्टि से सबसे अधिक क्षेत्र में बोया जाता है. इसे गरीब आदमी दाल के रूप में और धनी व्यक्ति मवेशी के चारे के रूप में प्रयोग करते हैं. यह पटना, गया और शाहाबाद जिलों में मुख्य रूप से उगाई जाती है. खेसारी का दाल के रूप में सेवन करने से स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. इसके सेवन से गठिया आदि हड्डी के रोग उत्पन्न हो जाते हैं. अंत: सरकार ने इसके सेवन पर प्रतिबंध लगा दिया है.
मूंग
मूंग को गेहूं काटने के बाद पाया जाता है, जो धान की बुवाई से पहले तैयार हो जाता है. इसकी खेती मुख्य रूप से बिहार के मैदानी भाग में की जाती है. मुंगेर, शेखपुरा, भागलपुर, सहरसा, सुपौल तथा पूर्णिया इसके प्रमुख उत्पादक जिले हैं
मसुर
दलहन फसलों में मसूर का प्रमुख स्थान है. मसूर का उत्पादन पटना जिले में सर्वाधिक होता है. इसकी खेती रबी के मौसम में होती है. इसके प्रमुख उत्पादक जिले नालंदा, पटना, गया, जहानाबाद, मुंगेर एवं औरंगाबाद है.
अन्य दलहनी फसलें
अन्य दलहनी फसलों में उड़द और कुलथी प्रमुख है. यह दोनों ही भदई फसले हैं. इनकी खेती भागलपुर एवं कटिहार जिलों में होती है.
तिलहनी फसलें
बिहार में तिलहन खाद फसल होते हुए भी व्यापारिक महत्व की फसल है. इसके अंतर्गत तीसी, राई, सरसों, तिल और सरगुजा आदि फसलें आती है. इसके अतिरिक्त अरंडी भी तिलहन समुदाय की फसल है, जो व्यापारिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है.
राई और सरसों
बिहार से उत्पादित की जाने वाली तिलहन फसलों में राई और सरसों का स्थान प्रमुख है. बिहार में भोजन बनाने में इस के तेल का प्रयोग सर्वाधिक किया जाता है. यह फसल राज्य के लगभग सभी जिलों में थोड़ी बहुत मात्रा में पाई जाती है, लेकिन मैदानी भाग में इसकी उपज अधिक होती है.
तीसी (अलसी)
अलसी गहरी नमीयुक्त भारी चिकनी मिट्टी में उत्पादित होती है. इसका प्रमुख उत्पादन क्षेत्र गंगा का मैदानी भाग है. बिहार में तीसी का उत्पादन पटना, तिरहूत, कोसी, और भागलपुर मंडलों में होता है. दरभंगा जिला में सर्वाधिक प्रति हेक्टेयर उत्पादन होता है. सर्वाधिक उत्पादक जिलों में शाहाबाद, गया प्रमुख है.
तिल
तिलहन के अंतर्गत यह एक प्रमुख फसल है, जिसका प्रयोग खाद्य पदार्थ के अतिरिक्त तेल एवं सौंदर्य प्रसाधन सामग्री के रूप में होता है. तिल दो प्रकार का होता है- काला और सफेद. बिहार में काला और सफेद दोनों के प्रकार का तिल उगाया जाता है. गया, चंपारण पुर शाहाबाद जिलों में तिल प्रमुखता से उत्पादित होता है.
रेडी
रेडी अथवा अरंड भारत की प्रमुख तिलहन फसल है. इसकी खेती कम उपजाऊ भूमि व ऊंची नीची भूमि में भी होती है. रेडी का प्रयोग जलाने, साबुन उद्योग के लिए होता है. बिहार में भागलपुर, मुंगेर, पटना, दरभंगा, पूर्णिया और सारण जिलों में इसकी खेती अधिक होती है.