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बिहार उच्च न्यायालय के अधिकार एवं शक्तियाँ

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 225 के अनुसार उच्च न्यायालय को निम्नलिखित अधिकार व शक्तियां प्राप्त है-

प्रारंभिक अधिकार

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के अनुसार मौलिक अधिकार से संबंधित कोई भी मामला सीधे उच्च न्यायालय में लाया जा सकता है.

अपीलीय अधिकार

उच्च न्यायालय को अपने अधीनस्थ न्यायालयों तथा न्यायाधिकरण के निर्णयों आदि के विरुद्ध अपील सुनने का अधिकार है.

न्यायिक पुनरावलोकन का अधिकार

उच्च न्यायालय को भी संसद तथा विधानमंडलों द्वारा बनाए गए किसी कानून, संविधान के विरुद्ध हो, को असंवैधानिक घोषित करने का अधिकार प्राप्त है.

अंतरण संबंधी अधिकार

अनुच्छेद 228 के अनुसार उच्च न्यायालय किसी भी अधीनस्थ न्यायालय से मुकदमे को अपने पास मंगवा सकता है और उसकी व्याख्या कर सकता है.

अभिलेख न्यायालय

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 215 के अनुसार उच्च न्यायालय को अभिलेख न्यायालय कहा गया है.

अधीक्षण संबंधी अधिकार

अनुच्छेद 227 के अनुसार उच्च न्यायालयों को अपने अधीनस्थ सभी न्यायालयों तथा अधिकारों का अधीक्षण करने की शक्ति प्राप्त है.

जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति

  • उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति राज्यपाल करता है.
  • उच्च न्यायाधीशों की नियुक्ति उच्च न्यायालय द्वारा आयोजित न्यायिक सेवा अथवा राज्य लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित प्रांतीय न्यायिक सेवा परीक्षा के परिणाम के आधार पर किया जाता है.

प्रत्येक जिले में तीन प्रकार के न्यायालय होते हैं

  • दीवानी न्यायालय: दीवानी न्यायालय को सिविल कोर्ट के नाम से भी जाना जाता है. इन  न्यायालयों में जिला स्तर पर अंचल संपत्ति संबंधित मामलों की सुनवाई होती है.
  • फौजदारी न्यायालय: फौजदारी न्यायालय को आपराधिक न्यायालय भी कहा जाता है. इसके अंतर्गत लड़ाई झगड़े मारपीट आदि से संबंधित मुकदमों की सुनवाई की जाती है.
  • भू राजस्व न्यायालय: इस नाले के अंतर्गत भू राजस्व एवं लगान समरी मामलों की सुनवाई की जाती है.

पटना उच्च न्यायालय

  • पटना उच्च न्यायालय बिहार राज्य की न्यायिक व्यवस्था के शिखर पर विराजमान है.
  • पटना उच्च न्यायालय की स्थापना 9 फरवरी 1916 को हुई थी. स्थापना के समय पटना उच्च न्यायालय के कार्य क्षेत्र में बिहार में उड़ीसा दोनों सम्मिलित थे.
  • 1936 में उड़ीसा के बिहार से अलग होने के के पश्चात इसका कार्य क्षेत्र केवल बिहार तक सीमित रह गया.
  • 15 नवंबर 2000 को बिहार के विभाजन के पश्चात जब झारखंड राज्य का निर्माण हुआ तो झारखंड की राजधानी में स्थित पटना उच्च न्यायालय की रांची पीठ के स्थान पर रांची उच्च न्यायालय का गठन किया गया. संप्रत्ति पटना उच्च न्यायालय का कार्य क्षेत्र वर्तमान में मात्र बिहार के क्षेत्रों तक ही सीमित रह गया है.
  • पटना उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों के कुल 45 स्वकृत पद हैं.

न्यायिक सेवाओं में भी 50% आरक्षण

राजस्व सरकार बनाम दयानंद सिंह मामले में सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट द्वारा 29 नवंबर 2016 को पारित आदेश के आधार पर पटना हाईकोर्ट और बिहार लोक सेवा आयोग के परामर्श के बाद बिहार सरकार ने बिहार न्यायिक सेवा संशोधन नियम वाली, 2016 में निहित आरक्षण 50% और अन्य प्रावधानों को लागू करने का फैसला 27 दिसंबर 2016 को लिया. राज्य कैबिनेट के इस निर्णय के अनुसार

  • आरक्षण का प्रावधान बिहार उच्च न्यायिक सेवा और बिहार असैनिक सेवा न्याय लागू होगा.
  • अब बिहार न्यायिक सेवा और उच्च न्यायिक सेवा में अति पिछड़ा वर्ग को 21% अनुसूचित जाति को 16% पिछड़ा वर्ग को 12% और अनुसूचित जनजाति को 1% आरक्षण का लाभ मिलेगा. यह कुल आरक्षण का 50% होगा.
  • इस आरक्षण में महिलाओं को इस ग्रुप से 35% और शारीरिक रूप से अक्षम को 1% आरक्षण मिलेगा. यानी किसी भी श्रेणी की आरक्षित कुल सीटों में उसी श्रेणी की महिलाओं को 35% और शारीरिक रूप से अक्षम को 1% आरक्षण मिलेगा.
  • अनारक्षित श्रेणी की सीटों में भी 35% महिलाओं को 1% शारीरिक रूप से अक्षम और आरक्षण मिलेगा.

पटना उच्च न्यायालय क्षेत्राधिकार

प्रारंभिक क्षेत्राधिकार

  • मौलिक अधिकार से संबंधित कोई भी मामला सीधे पटना उच्च न्यायालय में लाया जा सकता है.
  • पटना उच्च न्यायालय को मौलिक अधिकारों के उल्लंघन सहित अन्य मामलों में भी रिट जारी करने का अधिकार है.

अपीलीय क्षेत्राधिकार

  • पटना उच्च न्यायालय को अपने अधीनस्थ न्यायालयों तथा न्यायाधिकरण के निर्णयों आदि के विरुद्ध अपील सुनने का अधिकार है.

प्रशासकीय क्षेत्राधिकार

जिलों में अधीनस्थ न्यायिक सेवा की संरचना इस प्रकार है-

जिला एवं सत्र न्यायाधीश->सहायक सेशन जज->सबोर्डिनेट जज->न्यायिक मजिस्ट्रेट->मुंशीफ

  • पटना उच्च न्यायालय को प्रशासकीय क्षेत्र अधिकार के अंतर्गत राज्य के सभी अधीनस्थ न्यायालयों पर निरीक्षण तथा नियंत्रण की शक्ति प्राप्त है.
  • पटना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की सहायता हेतु रजिस्ट्रार, संयुक्त रजिस्ट्रार, उप रजिस्ट्रार तथा सहायक रजिस्ट्रार होते हैं.

महाधिवक्ता

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 165 के अनुसार राज्यपाल ऐसे किसी भी व्यक्ति, जो उच्च न्यायालय का न्यायधीश होने की योग्यता रखता है, को राज्य का महाधिवक्ता नियुक्त करता है.
  • महाधिवक्ता बिहार राज्य का उच्चतम विधि अधिकारी होता. महाधिवक्ता को वही पारिश्रमिक मिलता है जो राज्यपाल द्वारा निर्धारित हो.
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 165 के अनुसार महाधिवक्ता का मुख्य कार्य होता है- विधि संबंधी विषयों पर राज्य सरकार को सलाह देना.
  • महाधिवक्ता वैसे कार्यों को भी संपादित करता है जो उन्हें राज्यपाल संविधान अथवा अन्य किसी विधि द्वारा प्रदान करता है.
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 177 के अनुसार, महाधिवक्ता को राज्य विधान सभा में बोलने तथा उसकी कार्यवाही में भाग लेने का अधिकार तो है परंतु उसे मत देने का अधिकार नहीं होता है.

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