जैव विकास
हमारी पृथ्वी की उत्पत्ति लगभग 4.6 वर्ष पूर्व हुई, परंतु इस पर जीवन की उत्पत्ति लगभग 3.8 अरब वर्ष पूर्व हुई. इसके पश्चात इन जीवो में विकास की क्रिया द्वारा नई जातियों की उत्पत्ति हुई. पृथ्वी की कुल जीवन अवधि (4.6 अरब वर्ष) को भू-वैज्ञानिक समय कहते हैं. जैव विकास में मुख्यतया दो सिद्धांत का जिक्र किया जाता है.
- लैमार्कवाद
- डार्विनवाद
लैमार्कवाद
लैमार्क ने 1809 ईसवी. में फिलॉसफी जूलोजिक के नामक पुस्तक में उपार्जित लक्षणों की वंशागति का सिद्धांत प्रस्तुत किया. अंगों के कम उपयोग का उदाहरण लैमार्क ने सौंप दिया. वीजमान ने 1886 ईसवी में जनन द्रव्य की निरंतरता का सिद्धांत प्रतिपादित किया.
डार्विनवाद
चार्ल्स रॉबर्ट डार्विन ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक जातियों का अभ्युदय में विकास के सिद्धांत की व्याख्या की. डार्विन के द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत को प्राकृतिक चयन का सिद्धांत है अथवा डार्विनवाद के रूप में जाना जाता है.
चार्ल्स डार्विन ने अपनी यात्रा के दौरान गैलापैसोस द्वीप समूह के जीवों का अध्ययन किया, जिसमें उन्होंने एक प्रकार की मिलती जुलती लगभग 20 चिड़िया( पक्षी) को फिच कहा, जिन्हें डार्विन फीच कहते हैं. इस सिद्धांत के द्वारा ही डार्विन ने स्पेन्सर की संकल्पना योग्यतम की उत्तरजीविता का समर्थन किया. डार्विन की पुस्तक ऑन द ओरिजिन ऑफ स्पीशीज 1859 में प्रकाशित हुई.
जैव विकास के प्रमाण
यह मुख्यता रचनात्मक अथवा समजात एवं समवृति अंगों से संबंधित है.
समजात अंग
ऐसे अंग जो रचना व उत्पत्ति में समान हो, लेकिन कार्य में भिन्न हो, समजात अंग कहलाते हैं. उदाहरण- मेंढक, पक्षी एवं मनुष्य के अग्रपाद.
समवर्ती अंग
ऐसे अंग, जो रचनाओं उत्पत्ति में भिन्न हो, लेकिन कार्य में सम्मान हो, समवृति अंग कहलाते है.
अवशेषी अंग
वे अंग, जो पूर्वजों में कार्यशील थे, लेकिन वर्तमान में कार्यवहिन हैं, अवशेषी अंग कहलाते हैं. उदाहरण- कर्ण पलवों की पेशियां, पुच्छ कोशिकाएं आदि
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