पर्यावरण रसायन

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जल, वायु अथवा मृदा में अवांछनीय अनावश्यक  पदार्थों की उपस्थिति प्रदूषण कहलाती है. पदार्थ प्रदूषण उत्पन्न करते हैं, प्रदूषक कहलाते हैं. प्रदूषक ठोस, द्रव तथा गैसीय हो सकते हैं. जो प्राकृतिक घटनाओं के कारण या मानवीय क्रियाकलापों के द्वारा भी उत्पन्न हो सकते हैं.

प्रदूषण के प्रकार

प्रदूषण मुख्यता तीन प्रकार का होता है:-

  1. वायुमंडलीय प्रदूषण या वायु प्रदूषण,
  2. जल प्रदूषण
  3. मृदा प्रदूषण

प्रदूषकों के आधार पर प्रदूषक रेडियो सक्रिय, ध्वनि तथा नाभिकीय प्रदूषण आदि भी हो सकता है.

वायुमंडलीय प्रदूषण

पृथ्वी के चारों ओर वायु से गिरे भाग को वायुमंडल कहते हैं. यह पुन: सौरमंडल पृथ्वी की सतह से 10 किलोमीटर ऊंचाई तक, समताप मंडल लगभग 60 किलोमीटर ऊंचाई तथा आयन मंडल में विभाजित रहता है. विभिन्न गैसों का मिश्रण होती है नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, आर्गन, कार्बन डाइऑक्साइड.

जल प्रदूषण

जल में बहुत से खनिज लवण कार्बनिक-अकार्बनिक पदार्थ तथा गैंसे घुली रहती है. जल में विलय पदार्थ की मात्रा आवश्यकता से अधिक होने पर अथवा जल में अनुपस्थित अवययों के जल में उपस्थित होने पर जल हानिकारक हो जाता है. इसे प्रदूषित जल कहा जाता है.

जल प्रदूषण मुख्यता: घरेलू सीवेज, औद्योगिक अपशिष्ट, कृषि में उपयोग किए जाने वाले रासायनिक खाद तथा बड़े हुए तापमान के कारण होता है. बहुत से देशों द्वारा परमाण्विक कचरे को भी समुद्री जल में डाल दिया जाता है, जिससे पर्यावरण एवं समुद्री जीवों को गंभीर क्षति पहुंचती है.

वैज्ञानिकों के मतानुसार विश्व के 5% बच्चे प्रतिवर्ष सिर्फ प्रदूषित जल के उपयोग के कारण मर जाते हैं. प्रदूषित जल के कारण निम्नलिखित रोग उत्पन्न हो जाते हैं, जैसे- हेजा, पेचिश, टाइफाइड, गैस्ट्राइटिस आदि.

मृदा प्रदूषण

अपशिष्ट पदार्थों, पीडकनाशी, शाकनाशी आदि के द्वारा मृदा की गुणवत्ता को कम होना मृदा प्रदूषण कहलाता है. द्वितीय विश्वयुद्ध के समय मलेरिया तथा अन्य कीट जनित रोगों के नियंत्रण में डीडीटी बहुत उपयोगी योगी पाया जाता है. इसलिए युद्ध के पश्चात एक डीडीटी का उपयोग कृषि में कीट, सडेट, खरपतवार तथा फसलों के अनेक रोगों के नियंत्रक के रूप में किया जाने लगा हालांकि प्रतिकूल प्रभाव के कारण इसका प्रयोग भारत में प्रतिबंधित हो गया है.

विश्व उष्मायन

हरितगृह गैसों की बढ़ती हुई सांद्रता के कारण होता है. इसके कारण बर्फ की पहाड़ियां ग्लेशियर पिघल सकते हैं तथा बहुत से जटिल रोग जैसे मलेरिया, स्लीपिंग सिकनेस आदि फ़ैल सकते हैं.

अम्ल वर्षा

इस शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम रोबर्ट आगस ने किया था. इसके लिए नाइट्रोजन तथा सल्फर के ऑक्साइड उत्तरदाई होते हैं. यह मार्बल या चुने के पत्थर की बनी इमारतों में अन्य संस्थाओं को नष्ट कर देती है. धातु की पाइपों को संक्षारित कर देती है और विभिन्न रोगों के लिए उत्तरदाई होती है. सामान्यतः वर्षा को जल का ph मान 5.6 होता है.

सपत्तापमंडलीय प्रदूषण

इसका अभिप्राय मुख्यतः ओजोन परत के क्षय से होता है .ओजोन परत का क्षय क्लोरो फ्लोरो कार्बन तथा नाइट्रोजन के ऑक्साइड द्वारा किया जाता है.

जल

जल एक सार्वजनिक विलायक है तथा शरीर के तापमान को संतुलित रखता है, क्योंकि इसकी विशिष्ट ऊष्मा होती है. इसका क्वथनांक 100०C तथा गलनांक 0०C है. 4०C पर इसका घनत्व अधिकतम होता है. बर्फ का घनत्व जल की अपेक्षा कम होता है, इसलिए यह जल पर तैरने लगती है.

जल के प्रकार

जल दो प्रकार का होता है-

मृदा जल

यह साबुन के साथ आसानी से झाग देता है.

कठोर जल

यह साबुन के साथ झाग नहीं देता है.

जल की कठोरता

अस्थायी कठोर जल

इसमें केल्सियम तथा मैग्नीशियम के बाइकोबोर्नेट उपस्थित होते हैं. इस को उबालकर या इसमें कैल्शियम हाइड्रोक्साइड की मात्रा मिला कर (क्लर्क विधि), मृदु जल में परिवर्तित किया जा सकता है. इसका प्रयोग कपड़े धोने व बायलर्स में नहीं किया जाता है.

स्थायी कठोर जल

इसमें केल्सियम तथा मैग्नीशियम के सल्फेट में क्लोराइड उपस्थित होते हैं. इसमें सोडियम कार्बोनेट कैलगन अथवा जिओलाइट मिला कर, इसी मृदु जल में परिवर्तित किया जा सकता है.

भारी जल

यह ड्यूटेरियम ऑक्साइड (D2O) यानी हाइड्रोजन में समस्थानिक का ऑक्साइड है. इसका अणुभार 20 है. इसका प्रयोग नाभिकीय रिएक्टर में, मंदक के रूप में तथा हाइड्रोजन एवं उसके यौगिक की अभिक्रिया की क्रियाविधि के अध्ययन में किया जाता है.

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