खरीफ फसलें- जून से अक्टूबर तक उगाई जाने वाली फसलें खरीफ की फसलें कहलाती है, जैसे- मक्का, धान, जवार, बाजरा आदि।
रबी फसलें- नवंबर से अप्रैल के मध्य उगाई जाने वाली फसलें रबी फसल कहलाती है जैसे गेहूं, चना, सरसों, मटर, जो आदि।
कृषि पद्धतियां- किसी करने के लिए विभिन्न गतिविधियां और क्रियाकलाप कृषि पद्धतियां कहलाती है।
विभिन्न कृषि पद्धतियां- भूमि तैयार करना, बुआई, खाद देना, सिंचाई, निराई या खरपतवार से सुरक्षा, कटाई एवं मढ़ाई, भंडारण।
फसल उगाने से पहले भूमि को कृषि योग्य बनाना बहुत जरूरी है ताकि उस में उगने वाले बीजों का अंकुरण सरलतापूर्वक तथा जड़ों का विकास पूरी तरह से हो सके और पौधा भूमि से अपने भोजन सरलतापूर्वक ले सके। इसके लिए भूमि में कुछ कृषि क्रियाएं की जाती है। इन्हीं क्रियाओं को खेत को तैयार करना या प्रारंभिक भूपरिष्करण कहते हैं।
भूमि को तैयार करने के लिए उसमें सबसे पहले देशी ( मिट्टी पलट) हल का प्रयोग किया जाता है। देसी हल मिट्टी को चीरता है और मिट्टी पलट हल मिट्टी को चीरने के साथ साथ पढ़ता भी है जिससे मिट्टी भुरभुरी और नरम होकर उपजाऊ बन जाती है। उसमें वायु संचार उपयुक्त मात्रा में होने लगता है ताकि पौधे की वृद्धि सरलता से हो सके। जुताई से भूमि की घास फूस मिट्टी में मिलकर खाद बन जाती है और भूमि की उपजाऊ शक्ति बढ़ जाती है। भारी तथा घास वाली भूमि में जुताई हैरो द्वारा अच्छी प्रकार से की जाती है। हल्की भूमि में जुताई कल्टीवेटर से की जाती है।
खेत की अच्छी तैयारी करने के निम्नलिखित लाभ है-
केंचुए मिट्टी को पलट कर पोला करते हैं और मृत जीवों से बनाकर हयूमस मिट्टी में मिलाते हैं। ह्यूमस पौधों को पोषक तत्व प्रदान करता है। पोली मिट्टी में वायु का संचार होता है जिससे पौधे की जड़ें शवसन करती है। इसलिए केचुआ किसान का मित्र।
कृषि यंत्र– हल, कुदाली, कल्टीवेटर।
हल- प्राचीन समय से ही हल का इस्तेमाल जुताई, खाद मीलाने, खरपतवार हटाने व मिट्टी खुरचने के लिए किया जा रहा है। हल को घोड़े, ऊंट या बैलों के द्वारा खींचा जाता है। इससे लोहे की तिकोनी पती (जिसे फाल कहते हैं) मिट्टी खोदने का कार्य करती है। लंबी लकड़ी का बना सेफ्ट फाल व हैंडल से जुड़ा होता है। बैलों के कंधों पर रखी जोत हल के शेफ़्ट से जुड़ी होती है ।
हाथों से बिखेर कर या प्रसारण विधि, बीजवेधन या सीड ड्रिल विधि, रोपण विधि।
बीजवेधन– बीजवेधक धातु की लंबी नली होती है। इसके नीचे की और अनेक शाखाएं होती है। ऊपर बीज डालने के लिए कीप लगी होती है। बीजवैधक को हल के पिछले भाग (फाल) से बांध देते हैं। जैसे-जैसे हल भूमि में खाचे बनाता है वैसे वैसे ही बीजवेधक द्वारा बीजों की बुवाई होती है। बैलो तथा ट्रैक्टर के साथ खींचे जाने वाले बीजवेद्यक भी उपयोग में लाए जाते हैं। इस विधि द्वारा बुवाई को बीजवेधन कहते हैं।
ताकि बीजों को पक्षी न खा सके तथा बीजों को अंकुरण के लिए पर्याप्त मात्रा में नमी मिल सके। उचित गहराई में जोड़ों का विकास भी भलीभांति हो सकता है।
बीजों ( अथवा पौधे) को बहुत पास-पास नहीं बोना चाहिए, उनके बीच अधिक दूरी भी नहीं होनी चाहिए, क्योंकि इससे खेत की भूमि व्यर्थ होती है, फल स्वरुप उपज घट जाती है। इसी प्रकार बीच की गहराई भी उचित होनी चाहिए।
सीड ड्रिल (बीजवेधन) इस विधि में हल के साथ एक साधारण यंत्र औरना बांध लिया जाता है। यंत्र के नीचे वाले भाग में लोहे या बांस की एक खोखली नली लगती है। इसका ऊपरी भाग 1प्याले के आकार का होता है जिसमे बीज डाला जाता है। यहबीज नली में से गुजरकर नीचे आता है। इसमें एक व्यक्ति की आवश्यकता होती है। आजकल ट्रैक्टर द्वारा संचालित सीड ड्रिल का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे समय व श्रम दोनों की बचत होती है।
सीड ड्रिल विधि के उत्तम होने के कारण
खाद- भूमि की उपजाऊ शक्ति को निरंतर बनाए रखने के लिए इसमें कुछ विशेष पदार्थों को मिलाना पड़ता है। यह विशेष पदार्थ जो भूमि की उपजाऊ शक्ति को बनाए रखते हैं, खाद कहलाते हैं। खाद्य मुख्य रूप से दो प्रकार की होती है-
जैविक खाद- यह खाद जीव जंतुओं के अवशेषों, उनके मल पदार्थों तथा अन्य कूड़ा करकट से तैयार की जाती है।
अजैविक खाद- यह वह खादें हैं जो भूमि में कुछ विशेष प्रकार के तत्वों की कमी को पूरा करने के लिए कुछ कृत्रिम रूप से तैयार की जाती है, इन्हें उर्वरक कहते हैं। नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटैशियम प्रमुख उर्वरक है। इन्हें NPK उर्वरक भी कहते हैं।
पौधों को खनिज पोषक तत्व भूमि से प्राप्त होते हैं। यदि किसी खेत में लगातार फसलें उगाई जाए तो पौधे किसी महत्वपूर्ण पोषक तत्वों की अत्यधिक मात्रा का अवशोषण करके भूमि में उस पोषक तत्वों की कमी पैदा कर देते हैं। भूमि में समान्य पोषकों की कमी को पूरा करने के लिए कृषि योग्य भूमि में खाद डालते हैं।
कंपोस्ट खाद वनस्पति उत्पादों,मृत जंतुओं तथा जंतु -अपशिष्टों से तैयार की जाती है। कंपोस्ट खाद बनाने के लिए एक गड्ढा खोदकर उसमें पादप और जंतु अपशिष्टों की एक परत बिछा दी जाती है। इसपरत को मिट्टी कीपरत से ढक देते हैं ताकि अपशिष्ट हवा और प्रकाश से बचे रहें और इनमें नमी बनी रहे। मिट्टी के ऊपर कांच फूस या पतियों की तह बिछा दी जाती है। गड्ढे में उपस्थिति सूक्ष्म जीव जैव अवशेषों का अपघटन कर, इन्हें उपयोगी खाद में परिवर्तित कर देते हैं। इसे कंपोस्ट खाद कहते हैं।
जिन पोषक तत्वों की पौधों को अधिक मात्रा में आवश्यकता पड़ती है उन्हें मुख्य पोषक तत्व कहते हैं। जैसे नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटासियम।
मुख्य पोषक तत्व प्रदान करने वाले उर्वरक-
किसी खेत में बार-बार एक ही फसल आने से उसकी पैदावार काफी घट जाती है और फसल में कीट और रोगों के लगने का खतरा भी बढ़ जाता है। अंत फसल को प्रतिवर्ष बदलते रहना चाहिए। उदाहरण स्वरुप दो धान फसलों के बीच क्षेत्रों में हमें एक फसल दलहन की बोनी चाहिए। इसी को फसल चक्रण कहते हैं। इससे खेतों की उर्वरा शक्ति कायम रहती है जैसे गेहूं- लोबिया- आलू फसल चक्र का उदाहरण है।
लाभ
ह्रामुस – सूक्ष्म जीव मृत पतियों, जंतु अवशेषों और कूड़े करकट को अब गठित कर उन्हें गहरे भूरे रंग में बदल देते हैं जिसे ह्रामुस कहते हैं।
उपयोग-
पानी की आवश्यकता को पूरा करने के लिए फसलों को पानी देना संचाई कहलाता है।
सिंचाई की आवश्यकता- पौधों में वृद्धि एवं परिवर्धन के लिए जल की आवश्यकता होती है। पौधों में लगभग 90% जल होता है। बीजों के अंकुरण के लिए वह जल में घुले पोषकों के स्थानांतरण के लिए भी पौधों की जल की आवश्यकता होती है। जल पौधों को पानी व गर्म हवा से भी बचाता है।
खेतों की बार बार सिंचाई निम्नलिखित कारणों से की जाती है-
भूमि से अनावश्यक पौधे ( खरपतवार) निकालना निराई या गुड़ाई कहलाता है।
निराई के लाभ-
निराई के लिए प्रयुक्त होने वाले यंत्र- खुरपा, कुदाली या कस्सी , हल तथा कल्टीवेटर।
खरपतवार- फसलों के साथ कुछ अनावश्यक पौधे स्वंय उग जाते है , इन पौधों को खरपतवार कहते हैं। यह पौधे खेत में अनावश्यक स्थान घेरते हैं तथा फसली पौधों के साथ जल पोषक तत्वों का सूर्य के प्रकाश के लिए प्रतियोगिता करते हैं। अत: फसलों को आवश्यक कारक उपलब्ध नहीं होने के कारण फसल उत्पादन घट जाता है। कुछ खरपतवारो के उदाहरण है- बथुआ, जंगली चौलाई, घास, जंगली जवार और हिरनखुरी, कंडियाल यादी।
खरपतवार को फसलों से हटाया जाता है, क्योंकि खरपतवार या अवांछित पौधे अपना भोजन फसल के पौधों के लिए दिए गए पानी तथा पोषक तत्वों से प्राप्त करते हैं जिससे फसल की पैदावार कम हो सकती है। इसलिए अधिक उत्पादन के लिए फसलों से खरपतवार निकाल देते हैं ताकि पानी और पोषक तत्वों की आपूर्ति फसल के लिए पर्याप्त मात्रा में हो सके और पैदावार अधिक मिले।
खरपतवार की वृद्धि को रोकने के लिए कुछ विशेष प्रकार के रासायनिक पदार्थ भी उपलब्ध है जिन्हें खरपतवारनाशी कहते हैं। इन रासायनिक पदार्थों को खेतों में छिड़काव कर के खरपतवार पर नियंत्रण किया जा सकता है।
खरपतवार नाशी को जल में आवश्यकतानुसार मिलाकर सप्रेयर की सहायता से खेतों में छिड़काव किया जाता है। इस प्रक्रिया के दौरान खरपतवारनाशी छिड़काव करने वाले किसान के स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है। अत: इन रसायनों का प्रयोग करते समय मुंह व नाक कपड़े से ढक लेना उचित है। नंगे हाथों से रसायनों को हाथ न लगाए बल्कि रबड़ के बने दस्ताने पहने व छिड़काव हमेशा बहती वायु की दिशा में ही करें, विपरीत दिशा में नहीं।
जब फसल पककर तैयार हो जाती है तो उसकी कटाई व गहाई की जाती है। यह कृषि की अंतिम क्रिया है। पकी हुई फसल की कटाई दराँती या गंडासी से की जाती है। गेहूं, जवार, मक्का, धान, बाजरा, की कटाई दराँती से तथा गन्ने की कटाई दराँती से और कपास की कटाई गंडासी से की जाती है। आजकल गेहूं जैसी फसलों को कंबाइन हार्वेस्टर मशीनों से काटा जाता है। यह कम समय में फसल की कटाई कर के दाने अलग कर देती है। कटाई के उपरांत गहाई या मढाई की जाती है जिससे भूसा और दाना अलग अलग हो जाते हैं। आजकल गहाई मशीनों द्वारा भी की जाती है। कपास की केवल चुनाई की जाती है। गन्ने की पिराई की जाती है।
अनाज को भूसे से अलग करना मढाई या गहाई कहलाता है। अन्न को भूसे से अलग कर भूसे को चारे के रूप में प्रयोग किया जाता है। आजकल मढ़ाई का कार्य थ्रेसर से किया जाता है। आजकल खेतों में खड़ी फसल की कटाई और गहाई का काम कंबाइन हार्वेस्टर के द्वारा किया जाता है।
फसल की कटाई के साथ जुड़े पर्व निम्नलिखित है- पोंगल, बैशाखी, होली, दिवाली, आदि।
हमारी कृषि आज भी वर्षा पर निर्भर है। इसका उत्पादन प्रति वर्ष घटता और बढ़ता रहता है। कई बार बार बाढ़ या सूखा पड़ने से खाद्यान्न उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। अंतः संकट के समय के लिए खद्यानों का भंडारण किया जाता है। सरकार के पास सुरक्षित खाद्यान्न भंडार को बफर स्टॉक क्या सुरक्षित भंडार कहते हैं।
अनाज को कुछ दिनों तक खुले स्थान पर सुखाने के पश्चात उसका भंडारण किया जाता है। किसान अनाज का भंडारण मिट्टी अथवा धातु के बने बर्तनों या भंडार में करते हैं। अधिक मात्रा में अनाज गोदामों तथा साईंलो भंडारों में सुरक्षित रखा जाता है। अन्न को जूट के बोरों में तोल कर भरते हैं। अनाज के इन बोरों को गोदामों में पहुंचाया जाता है। इस प्रकार भंडारण द्वारा अनाज को कीटों, चूहा, और अन्य पीड़को से सुरक्षित रखा जा सकता है। नमी में अन्न कणो पर मोलड अथवा फफूंदी लग जाती है।
कृषि विज्ञान की वह शाखा पशुपालन कहलाती है जिसमें पशुओं के पालन पोषण, आहार, प्रजनन, उनके आश्रयस्थलों तथा रोगो से उनकी रक्षा का अध्ययन किया जाता है। पशुओं की नस्ल सुधारना पशुपालन का एक मुख्य अंग है। पशुपालन का उद्देश्य पशुओं से अधिक से अधिक लाभ प्राप्त करना तथा उन्हें मनुष्य के लिए अधिक उपयोगी बनाना है।
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