खेती की तैयारी – कोई भी फसल उगाने से पहले भूमि को इस योग्य बनाया जाता है कि इसमें बीजों का अंकुरण उचित प्रकार से हो सके। खेती के लिए देसी व आधुनिक मिट्टी पलट यंत्रों दोनों प्रकार के हलों का प्रयोग किया जाता है। यह मिट्टी को चीरने के साथ-साथ पलट देते है। इसी मिट्टी भूरभूरी होकर उपजाऊ बन जाती है और इसमें भूमि में वायु संचार भी एक मात्रा में होने लगता है। इससे भूमि मे पानी धारण करने की क्षमता भी बढ़ जाती है।
बुआई- खेत की तैयारी के पश्चात विभिन्न फसलों की बुआई की जाती है। फसलों की बिजाई के लिए बीजों को पूरे खेत में बिखेर दिया जाता है। खेतों में बीजाई कई विधियों द्वारा की जाती है जैसे प्रसारण ,बीजवेधन द्वारा एवं प्रतिरोपण विधि ।
खाद देना– पौधों को अपनी वृद्धि के लिए कई प्रकार की खादों की आवश्यकता होती है। खेतों में लगातार फसलें उगाने से उनमें पोषक तत्वों की कमी हो जाती है। इससे भूमि की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है। भूमि की उपजाऊ शक्ति बनाए रखने के लिए उसमें विभिन्न प्रकार की खादे डाली। इससे भूमि में पोषक तत्वों की कमी पूरी हो जाती है।
सिंचाई- सभी पौधे पोषक तत्व को घोल के रूप में ग्रहण करते है, इसलिए भूमि में पानी का होना बहुत जरूरी है। भूमि में पानी की कमी को वर्षा द्वारा पूरा नहीं किया जा सकता, इसलिए फसलों को नहरो, कुओं, नलकूपों, आदि द्वारा पानी दिया जाता है। फुव्वारा विधि सिंचाई की महंगी और आधुनिक विधि है।
खरपतवार से सुरक्षा – फसल बोने के पश्चात भूमि में से अनावश्यक पौधों अर्थात खरपतवार को बाहर निकाल दिया जाता है. इस क्रिया को निराई कहते हैं। इससे भूमि की दिशा भी ठीक रहती है और वायु संचार भी सुचारु रुप से होता है। भूमि में निराई का कार्य कस्सी खुरपा, कल्टीवेटर तथा हेरो आदि द्वारा किया जाता है। निराई करने से भूमि में पोषक तत्वों की मात्रा बनी रहती है। जिन से फसल का पोषण होता है।
कटाई और गहाई- जब फसल पक कर तैयार हो जाती है तो उसकी कटाई की जाती है। यह कृषि की अंतिम क्रिया है। फसल की कटाई दरांति या गंडासी द्वारा की जाती है। गेहूं मक्का ज्वार चावल बाजरा की कटाई दराँती से की जाती है, जबकि गन्ना तथा कपास आदि फसलों की कटाई गंडासी से की जाती है। आजकल कटाई और गहाई कार्य मशीनों द्वारा किया जाता है, जैसे कंबाइन, हार्वेस्टर आदि।
अन्न का भंडारण करना- खेतों से प्राप्त अन्न को भंडारित किया जाता है ताकि इसे कीटो और चूहों से बचाया जा सके। अन्न भंडारण के लिए मिट्टी या धातु के बड़े बर्तन ( साइलो) का प्रयोग किया जाता है। अधिक मात्रा में अनाज गोदामों में सुरक्षित रखा जाता है।
खेत की तैयारी के उपरांत बीजों को खेत में बोया जाता है, इसे बुआई कहते हैं।
सरल या प्रसारण विधि- इस विधि में बीजों को हाथों के द्वारा खेत में बिखेर दिया जाता है। इस विधि में समय कम लगता है, परंतु बीजों की आपसी दूरी कम या ज्यादा रहती है और बीज उचित गहराई में भी नहीं पहुंच पाते। इस विधि में बीजों को भारी नुकसान होता है।
बीजवेधन या सीड ड्रिल विधि- बीजवेधन (औरना) बीज बोने का साधारण यंत्र होता है। बीज ड्रिल बनाने के लिए हाल के पिछले भाग में एक लोहे की एक लंबी नली बांध दी जाती है। इसके ऊपर एक कीप लगी होती है। बीजों को इस कीप में डालते हैं और हल चलने के साथ है बीज थोड़ी थोड़ी दूरी पर कुंडो में गिरते रहते हैं। इस प्रकार बीज पंक्तियों में, उचित दूरी और उचित गहराई में बोए जा सकते हैं। यह एक उत्तम विधि है। बड़े आकार के सीड ड्रिल बैलो या ट्रैक्टर द्वारा खींचे जाते हैं।
प्रति रोपण- इस विधि में पहले बीजों से नर्सरी तैयार की जाती है और फिर नर्सरी में उगी पौध को पंक्तियो में उचित दूरी पर रोपित किया जाता है। धान, गोभी, बैंगन, टमाटर आदि की फ़सल इस विधि द्वारा उगाई जाती है।
फसलों की कटाई और गहाई के बाद उसको पूरे वर्ष तक सुरक्षित रखा जाता है ताकि पूरे वर्ष तक उनका आवश्यकतानुसार प्रयोग किया जा सके। फसलों को सुरक्षित रखना फसलों का भंडारण कहलाता है।
आज इस आर्टिकल में हम आपको बताएँगे की अपने डॉक्यूमेंट किससे Attest करवाए - List…
निर्देश : (प्र. 1-3) नीचे दिए गये प्रश्नों में, दो कथन S1 व S2 तथा…
1. रतनपुर के कलचुरिशासक पृथ्वी देव प्रथम के सम्बन्ध में निम्नलिखित में से कौन सा…
आज इस आर्टिकल में हम आपको Haryana Group D Important Question Hindi के बारे में…
अगर आपका selection HSSC group D में हुआ है और आपको कौन सा पद और…
आज इस आर्टिकल में हम आपको HSSC Group D Syllabus & Exam Pattern - Haryana…