आज इस आर्टिकल में हम आपको गुप्त साम्राज्य के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी देने जा रहे है जो निम्नलिखित है.
गुप्त साम्राज्य या गुप्त वंश का प्रथम महत्वपूर्ण शासक चंद्रगुप्त था, लेकिन इसके पहले श्रीगुप्त (240 – 285 ई.) तथा घटोत्कच (280-320 ई.) का शासक के रूप में उल्लेख मिलता है.
चंद्रगुप्त प्रथम ने 320 ई. में गुप्त संम्वत की शुरुआत की. उसने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की थी. चंद्रगुप्त प्रथम में अपने राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए लिच्छवी राजकुमारी कुमार देवी से विवाह किया था, जो उस समय की महत्वपूर्ण घटना थी.
समुंद्र गुप्त (350-375 ई.) चंद्रगुप्त प्रथम का पुत्र था. विभिन्न अभियानों के कारण इतिहासकार वी. ए. स्मिथ ने उसे भारत का नेपोलियन कहा है. समुद्रगुप्त की विजय और उसके बारे में जानकारी के स्त्रोत इसके दरबारी कवि हरिषेण द्वारा रचित प्रशासित या इलाहाबाद स्तंभ अभिलेख है. समुद्रगुप्त की अनुमति से सिंहल (श्रीलंका) के राजा में गोवर्धन ने बोधगया में एक बौद्ध मठ स्थापित किया था. समुद्रगुप्त के सिक्कों पर उसे वीणा बजाते हुए दिखाया गया है.
गुप्तोत्तर वंश एवं पुष्यभूति वंश
चंद्रगुप्त द्वितीय (375 – 415 ई.) गुप्त काल में साहित्य और कला का स्वर्ण-काल कहा जाता है. चंद्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य की उपाधि धारण की तथा चांदी के सिक्के चलाए. चंद्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल में चीनी यात्री फाह्यान ( 399 – 412ई.) भारत आया था. उसके दरबार में नौ विद्वानों की मंडली थी, जिसे नवरत्न कहा जाता था. इस नवरत्न में कालिदास अमर सिंह आदि शामिल थे.
कुमारगुप्त प्रथम ( 415 – 455ई.) के समय में नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना की गई थी.
स्कंदगुप्त ( 455 – 467 ई.) गुप्त वंश का अंतिम प्रतापी शासक था. उसने हूणों के आक्रमण को विफल किया था. स्कंद गुप्त ने भी चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा के समस्त निर्मित सुदर्शन झील का पुनरद्वारा करवाया था. गुप्तकालीन प्रशासन की सबसे छोटी इकाई ग्राम थी, जिसका प्रशासन संग्रामी के हाथ में होता था. कई गांवों को मिलाकर पेठ बनते थे.
भारत में मंदिरों का निर्माण गुप्त काल से शुरू हुआ. देवगढ़ का दशावतार मंदिर गुप्त काल का सबसे उत्कृष्ट मंदिर है. गुप्त कालीन बौद्ध गुफा मंदिरों में अजंता एवं बाघ की गुफाएं प्रमुख है. गुप्त शासकों की राजकीय या आधिकारिक भाषा संस्कृत थी. गुप्तकाल में भाग एवं भोग राज्यस्व कर था, ऊपर कांच का हिस्सा होता था, जबकि भोग सब्जी तथा फलों के रूप में दी जाती थी.
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