आज इस आर्टिकल में हम आपको गुप्तोतर काल के बारे में जानकारी देने जा रहे है जो निम्न प्रकार से है-
गुप्तोतर काल के बारे में जानकारी
गुप्त साम्राज्य के अंत के बाद उत्तर भारत में कई छोटे शासकीय समुदाय अस्तित्व में आए, जिनमें मुख्य मथक तथा पुष्यभूति वंश के प्रमुख थे.
हर्षवर्धन (पुष्यभूति वंश 606-647 ई.)
थानेश्वर पुष्यभूति वंश के अधीन था, जबकि कन्नौज पर मौखरि वंश का शासन था. धनेश्वर के पुष्यभूति शासक हर्ष ने अपने संबंधी ग्रह वर्मा की हत्या के बाद कनौज स्वशासन प्रारंभ किया.
हर्षवर्धन के शासन की जानकारी बाणभट्ट की रचना हर्षचरित से मिलती है. चीनी यात्री हेनसांग हर्षवर्धन के शासनकाल में भारत की यात्रा पर आया था. अपने किशन के ऐहोल अभिलेख ( 433 – 34 ई.) मैं अपवर्तन के नर्मदा तट पर का लुकेसन सत्य पराजित होने का उल्लेख मिलता है. इलाहाबाद में प्रत्येक 5 वर्षों पर एक धार्मिक आयोजन करने की व्यवस्था की. उस के शासनकाल में छह बार ऐसा उत्सव हुआ. हर्षवर्धन ने रत्नावली, प्रियदर्शिका तथा नागानंद नामक नाटकों की रचना की.
हर्षचरित कथा कादंबरी के रचनाकार बाणभट्ट के अतिरिक्त मयूर, दिवाकर, जयसेन, जैसे विद्वान हर्षवर्धन के दरबार में रहते थे. मधुबन तथा बांसखेड़ा अभिलेखों में हर्षवर्धन को परम महेश्वर कहा गया है. हर्षवर्धन अच्छा पुत्र मनोज में एक बौद्ध धर्म सम्मेलन आयोजित किया. इस सम्मेलन की अध्यक्षता असम के स्वास्थ्य के भास्कर वर्मन को सौंपी गई.
हर्षवर्धन की मृत्यु के बाद कन्नौज यशोवर्मा का शासन हुआ. यशोवर्मन एक पति नामक प्रसिद्ध कवि को संरक्षण प्रदान किया. वाक्पति को गोडवाहो रचना में यशोवर्मा की विजयों का वर्णन हुआ.यह प्राकृतिक भाषा की रचना है .यशोव्र्मा ने 731 ईसवी में बुद्धसेन को चीन के शासक के पास अपना राजदूत बनाकर भेजा.