हार्मोन हमारे बॉडी में बहुत से फंक्शन को करने के लिए जरुरी है. भोजन पचाने से लेकर नाख़ून के ग्रोथ के लिए भी यह बहुत जरुरी है.
हार्मोन शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम 1906 में स्टलिंग ने किया था.
हार्मोन एक विशिष्ट यौगिक होता है, जो अंत: स्त्रावी ग्रंथियों द्वारा स्त्रावित होता है, जो रुधिर द्वारा शरीर के विभिन्न भागो में पहुंचकर उस अंग के कार्यो को प्रभावित करता है.
मुख्यत: अमीनो अम्ल, कैटेको, लेमिंस, स्टीरायड्स एव प्रोटीन होते है.
ग्रंथिया तीन प्रकार की होती है.
वे सभी ग्रंथिया जिसमे एक नलिका या वाहिनी होती है तथा इसका स्त्राव शरीर के अंग या सतह पर पहुँचाया जाता है, उन्हें नालिकयुक्त या बाह्य स्त्रावी ग्रंथिया कहते ह.जैसे
ये ग्रंथिया नलिका विहीन होती है. इसमें हार्मोन का स्त्राव होता है. रुधिर परिसंचरण तंत्र द्वारा ही इनका परिवहन सम्पूर्ण शरीर में होता है. जैसे
वे ग्रंथिया बाह्य स्त्रावी एवं अंत:स्त्रावी दोनों प्रकार की होती है उन्हें मिश्रित ग्रंथिया कहते है. जैसे –
शरीर में कई ग्रंथि है हम आपको उनके काम और उनके विभिन्न अंगों के बारे में बता रहे है.
यह कपाल की स्फेनाड हड्डी में, मेलाटर्सिका नामक गड्ढे में उपस्थित रहती है.
इसका भार 0.6 ग्राम होता है, लेकिन स्त्रियों में गर्भावस्था के दौरान कुछ बड़ी हो जाती है.
इसे मास्टर ग्रंथि के रूप में जाना जाता है. इनसे निम्न हार्मोन स्त्रावित होते है.
यह हार्मोन मुख्यतः शरीर की वृद्धि के लिए सहायक होता है. यह शरीर में प्रोटीन सश्लेषण, ऊतको को क्षय होने से रोकना, शरीर में कोशिका विभाजन को बढ़ाना, अस्थियो के विकास में सहायता पहुचाना एव शरीर में वसा विघटन को प्रभावित करके उर्जा उत्पादन में सहायता पहुचाना आदि महत्वपूर्ण कार्यो को प्रभावित करता है. इसकी कमी से बौनापन एव साइमंड रोग (समय से पहले बुढा) तथा अधिकतम से महाकायता (लम्बाई वृद्धि से बेडोल) एव एक्रोमिगेली रोग हो जाता है.
यह हार्मोन ग्रंथि के कार्यो को उदीप्त करता है यह थाइराक्सिन हार्मोन के स्त्रवण को भी प्रभावित करता है.
यह हार्मोन ग्रंथि के कट्रेक्स को प्रभावित कर उससे निकलने वाले हार्मोन्स को भी प्रेरित करता है.
यह स्तन वृद्धि एव दुग्ध के स्त्राव को कायम रखता है.
मनुष्य में यह हॉर्मोन त्वचा में चक्के तथा तिल पड़ने को प्रेरित करता है. निम्न स्त्तर जंतुओ एव पक्षियों में यह त्वचा के रंग को प्रभावित करता है.
यह मुख्यतः पोलीपेप्टाइड होती है. यह शरीर के जल संतुलन में सहायक होता है.
इसकी कमी से डायबीटीज इन्सिपिडस या उदकमेह रोग होता हैं.
सभोगावस्था में यह हॉर्मोन गर्भाशय की दीवार में संकुचन उत्पन्न करता है, जिससे शुक्राणु अंडवाहिनी में आसानी से पहुँच जाते है.
यह मनुष्य के गर्दन के भाग में श्वासनली के दोनों ओर तथा स्वरयंत्र के जोड़ के अधर तल पर स्थित होती है इससे स्त्रावित होने वाले हार्मोन नीचे बताये गए है.
यह मुख्यतः अमीनो अम्ल है, जिससे 65% आयोडीन होता है इसके मुख्य कार्य आपको नीचे बताये गए है.
यह रोग बच्चो में होता है और इससे ग्रसित बच्चो का मानसिक एव शारीरिक विकास अवरूद्ध हो जाता है.
यह रोग व्यस्क व्यक्ति में होता है इसमे मनुष्य जनन एव मानसिक रूप से पूर्ण विकसित नहीं होता है इससे हदय स्पदन तथा रक्त चाप कम हो जाता है.
यह रोग शरीर में आयोडीन की अत्यधिक कमी के कारण होता है इससे दी जाने वाली दवाएँ एव स्वयं हार्मोन भी विष का काम करने लगता है ये ग्रंथि को नष्ट कर देता है.
इस रोग में थायरायड ग्रंथि के आकर में बहुत वृद्धि हो जाती है जिसके फलस्वरूप गर्दन फुल जाती है.
इसमे आँख फूलकर नेत्र कोटर से बाहर निकल जाता है नेत्र गोलक के नीचे श्लेष्म जमा हो जाता है.
इसमे थायरायड में जगह-जगह पर गांठे बन जाती है.
थायरायड ग्रंथि में पृष्ठ सतह पर धसी ये ग्रंथिया कोशिकाओ के समूहों द्वारा निर्मित होती है जिसके मध्य अत्यधिक रुधिर कोशिकाए उपस्थित रहती है.
यहाँ हम आपको पैराथाइराइड ग्रंथि से निकलने वाले हार्मोन के बारे में बता रहे है.
यह हॉर्मोन कैल्सियम के अवशोषण तथा वृक्क में इसके पुनरावशोषण को बढ़ाता है. यह हड्डियों की वृद्धि एव दांतों के निर्माण का नियंत्रण करता है.
यह हार्मोन पैराथारमोन के विपरीत काम करता है. यह हड्डियों के विघटन को कम करता है तथा मूत्र में कैल्शियम का उत्सर्जन बढाता है.
अब हम आपको इस ग्रंथि से होने वाले रोगों के बारे में बता रहे है.
इस रोग में पैराथारमोन का स्त्रवण अत्यधिक कम हो जाता है. इससे टेटनी एव हाइपोकैल्सिमिया रोग होता है.
पैराथाइराइड ग्रंथि ट्यूमर के कारण अत्यधिक बढ़ जाता है, जिसके फलस्वरूप हॉर्मोन का स्त्राव काफी अधिक होने लगता है. इससे ओस्टीओपोरेसिस हाइपरकैल्सीमिया एव गुर्दे के पथरी बनने लगती है.
यह ग्रंथि प्रत्येक वृक्क के उपरी सिरे पर अन्दर की ओर स्थिर रहती है. यह वृक्क की टोपी के सामान गाढ़े भूरे रंग के होती है. इस ग्रंथि के दो भाग है-
अधिवृक्क ग्रंथि (एड्रीनल ग्लैड) का सम्बन्ध रकत्चाप से है.
यह कार्बोहाइड प्रोटीन वसा के अपापचय का नियंत्रण करते है. ये शरीर में लाल रुधिरणुओ की संख्या को बढ़ाते है तथा श्वेत रुधिरणुओ को नियंत्रण करते है.
इसका मुख्य कार्य वृक्क नालिकाओ द्वारा लवण के पुनः अवशोषण एव शरीर के अन्य लवणों की मात्राओ का नियंत्रण करना है.
यह बह्यलिंगों पर बालो के आने का प्रतिमान एव यौन आचरण को नियंत्रण करते है.
यह हार्मोन मुख्यतः नर हार्मोन एंड्रोजन तथा मादा हार्मोन एस्ट्रोजन होते है.
मेडुला से भी दो तरह के हॉर्मोन निकलते है जिसके बारे में हम आपको बता रहे है.
यह हार्मोन क्रोध, डर, मानसिक तनाव, अपमान एव व्यग्रता की अवस्था में अत्यधिक स्त्रावित होने लगता है, जिससे संकटकालीन परिस्थितियों में उचित कदम उठाने का निर्णय लिया जा सकता है इसे लड़ो और भागो हार्मोन ( लड़ो या उड़ो ) कहते है.
यह हार्मोन शरीर की समस्त रुधिरवाहिनियो को सकुचित करता है, जिससे रुधिर दाब बढ़ जाता है.
इसके कम निकलने से एडिसन रोग (इसमे रुधिर दाब घट जाता है) एव कान्स रोग (पेशियों में अकडन) होता है.
इसके ज्यादा निकलने से शरीर में कुशिग रोग (शरीर में जल एव सोडियम का अधिक जमाव) तथा एड्रीनल विरीलिज्म रोग (स्त्रियों में पुरुषो के लक्षण) होता है.
यह वक्ष में दिल से आगे स्थित होती है और बुढ़ापा में लुप्त हो जाती है. इससे 3 तरह के हार्मोन निकलते है.
यह हार्मोन शरीर में लिम्फौसाइट कोशिका बनाने में सहायक होती है. ये शरीर में एंटीबाडी बनाकर शरीर सुरक्षा तंत्र स्थापित करने में सहायक होती है.
यह मादा के उदर गुहा में स्थित होता है, जिससे नीचे बताये गए हार्मोन है-
यह यौवनारंभ में यौन लक्षणों जैसे – गर्भाशय, योनि, भगशिष्ण व स्तनों के विकास को प्रेरित करता है.
इस हॉर्मोन की कमी से जनन क्षमता क्षीण हो जाता है. राजोनिवृती (menopause) का आभास होने लगता है तथा स्तन ढलने लगता है.
इसका निर्माण बच्चे के जन्म के समय होता है यह हार्मोन प्यूबिक सधान (public symphysis) नामक जोड़ तथा यहाँ की पेशियों को लचीला बनाता है, जनन नाल छोटी हो जाती है इसे बच्चे के जन्म में सहायता मिलती है.
वृषण के अन्दर अंतरली कोशिकाओ व लडिंग कोशिकाओ से नर हॉर्मोन निकलते है, जिन्हें एंड्रोजन कहते है. यह मानव प्रजजन का एक अंग है
एंड्रोजन हार्मोन नर के गौण लैगिक लक्षणों के लिए उतरदायी होते है. यह इपोडाईडाईमिस, शुक्रवाहिनी तथा शुक्राशय के विकास को प्रेरित करता है.
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